हवा में गांठ लगाना
किरण और अरुण दोनों जुड़वा भाई बहन है किरण ,पढ़ने में तेज होशियार हर काम में दक्ष ,
अरुण उतना ही आलसी कोई काम समय पर नहीं करता लेकिन एक काम में महारत हासिल थी कि वह *हवा में गांठ लगाना* बहुत अच्छी तरह जानता था हमेशा अपनी वाहवाही करवाना काम किरण करती और व्हावही अरुण लूटता था ।
उससे मां बहुत परेशान थी ,मां ने कहा बेटा तुम किरण से कुछ सीखो वह कितनी लगन से सब काम करती हैं । और तुम हो कि हवा में गांठ लगाने का ही काम करते हो ।तुम्हें पूरा परिवार चलाना है , हम लोगों का बुढ़ापे का सहारा बनना है। इस तरह से नहीं चलेगा .....मां की फटकार से अरुण का हृदय परिवर्तन होता है। उसने दृढ़ संकल्प लिया कि मैं आज से बदल जाऊंगा और उसने मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया परीक्षा का रिजल्ट आने पर अरुण इस बार फर्स्ट आता है और उसे जॉब भी मिल जाती है घर में बहुत खुशियां जाती हैं किरण भाई की कामयाबी पर खुश होती है । और कहती है भैया यह काम आपने अच्छा किया अब आप *हवा में गांठ लगा सकते हैं+* हमें आपके यह गांठ आने वाली कला बहुत पसंद आई है ।आप ऐसे ही तरक्की करते जाएं* *हवा में गांठ लगाते जाएं** हमें बहुत अच्छा लगेगा मां भी बहुत खुश हो जाती है अरुण को आशीर्वाद देती है। बेटा मैं तुम दोनों बच्चों पर बहुत गर्व करती हूं ।
अलका पाण्डेय मुम्बई
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[09/08, 10:33 am] Anita झा /रायपुर: अग्नि शिखा मंच नमन
विषय -हवा में गाँठ लगाना बड़े बड़े दावे करना
मोरमुकुट- मणि
पिता को अपने तीनों बेटों पर बड़ा नाज़ था । बड़ा नरसिंह का अवतार मान सम्मान मिलता । मँझले को कर्ण मान दिन हीन की सेवा में जुटा रहता था ! छोटा ध्रुव पिता का आज्ञाकारी था !
पिता को अभिमान ये मेरे तीनों बेटे इतने होनहार है !कि आगे के जीवन की चिंता नही करनी है ।
माता पिता सोचते आगे का जीवन राजा रानी की तरह मुकुटमणि धारण कर ,ऐशोआराम से अपनो के बीच गुणगान सुना बड़े बड़े दावे करते बिताना है।
पिता की विरासत में मिली ज़मींदारी से तीनों को सँवारते बड़ा कर आत्मनिर्भर बनाने में सारी संपत्ति को दाँव में लगा दी ।
ज़मींदारी की एक धरोहर मुकुटमणि रह गई थी ! जिसे तीनों में वितरित किया जाय , पत्नी ने कहा - ये विरासत की धरोहर है ,विरासत में रहेगी । पति हवा में गाँठ बाँध कहता तीनों के विवाह पर हमें सारी संपत्ति वापस मिल जायेगी । दहेज के रूप में मिल भी गई , नरसिंह नरसिंहगड़ का उत्तराधिकारी बन नरसिंहगड़ चला गया !
कर्ण स्वभावगत सुदामा ही रह जीवन व्यापन करने लगा गया ।
सारी आशाओं में ध्रुव ने पानी फेर दिया ! और
मुकुटमणि को हथियाना चाहा !
जिसे माता पिता की हालत हरीशचंद्र तारामती की तरह हो गई !
सपने में देखा - महादेव पार्वती के साथ आये !और कहते है - ये मुकुट मणि अश्वत्थामा को दी गई थी ! रात का तीसरा प्रहर बीतने वाला है !
समय के अनुसार निर्णय लो ? पुत्र मोह छोड़ मुकुट मणि ले अपने जीवनयापन के लिये वन की ओर प्रस्थान करो ? अंतिम प्रहर में यमराज आप की मुलाक़ात महादेव पार्वती से होगी ! जिसे आप अपना मोरमुकुट सौंप देंगे !
श्रीमती अनिता शरद झा
रायपुर -छत्तीसगढ़
[09/08, 10:57 am] Nirja 🌺🌺Takur: अग्नि शिखा मंच
तिथि - ९-८-२०२२
विपय - लघुकथा - हवा में गांठ लगाना
बड़े काम करने का दम भरना
रमेश गांव में सबसे कहता फिरता कि देखना एक दिन मैं अंतरिक्ष पर जाऊंगा। सब उसका मज़ाक उड़ाते पर वह चाॅंद की रट लगाना नहीं छोड़ता पर एक बात तो थी कि रमेश होशियार बहुत है। वह बचपन से स्कूल और कॉलेज में प्रथम ही आया द्वितीय कभी नहीं आया।
स्कूल में टेलेंट सर्च वालों की तरफ़ से प्रतियोगिता रखी गई और उसमें रमेश पूरे प्रांत से प्रथम आया।
फ़िर बने भी टेक कर उसने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स में एडमिशन ले लिया। वहाॅं से जब बहुत अच्छे नंबर से मास्टर्स किया। अब अच्छी नौकरी मिलने पर उसके अंतरिक्ष में जाने के प्रतिशत बढ़ गये। लोगों ने कहना शुरू किया कि रमेश ने हवा में गांठ लगाने का दम भर और गांठ लगा दिया।
नीरजा ठाकुर नीर
पलावा मुंबई महाराष्ट्र
[09/08, 12:48 pm] वैष्णवी Khatri वेदिका: मंगल वार - 9/8/2022
विषय//हवा में गाँठ लगाना-
बड़े-बड़े दावे करना; असम्भव कार्य को करने का दम भरना
अर्थ – परिश्रम कोई व्यक्ति करे और लाभ किसी दूसरे
बिट्टू! बिट्टू! तुम्हारे पापा जी पेड़ के नीचे बैठे रो रहे हैं।
पुरानी यादें उसके सामने नाचने लगीं। पापा जी की कोई औलाद नहीं थी इसलिए मुझे अनाथ आश्रम से ले आए। नाम रखा बिट्टू। मैं पापा-मम्मी की आँख का तारा था। तीन साल पँख लगा कर कैसे उड़ गए पता ही नहीं चला, तभी भाई हो गया। उसके बाद मेरा बुरा समय शुरू हो गया। मुझे प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था।
उसने विचारों को झटका दिया और दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा जिस स्थान के लिए दोस्त ने इशारा किया था।। देखा कि पापा जी रो रहे हैं पास में कुछ कपड़े बिखरे पड़े हैं। बिट्टू ने उनके पैर स्पर्श किए तो पिता जी गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगे।
बिट्टू बड़े प्यार से पापा जी को घर ले आया। छोटा-सा मकान था। मैकेनिक होने के कारण उसकी थोड़ी-सी आमदनी थी। उसी आमदनी में वह, उसकी पत्नी और बच्ची गुज़ारा करते थे। पिता जी बीमार थे डॉक्टर ने लगभग एक लाख रुपये का खर्चा बताया। इसके लिए बिट्टू ने घर गिरवी रख दिया। पत्नी के जो थोड़े से ज़ेवर थे और अपना स्कूटर भी बेच दिया। पापा जी की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सब लोग हवा में गाँठ लगाने लगे कि बिट्टू को सेवा का मेवा तो मिलेगा ही कारण उसने इतनी सेवा जो की है। लेकिन हुआ इससे उल्टा ही।
एक दिन पिताजी ने वकील को मिलने के लिए बुलाया कुछ बातें कीं और भेज दिया। कुछ सालों के बाद पिता जी चल बसे। नियति को यही मंजूर था। सत्रह दिन बाद वकील आया और वसीयत पढ़ कर सुनाई जिसमें पापा जी ने अपना घर और फ़िक्स डिपॉज़िट अपने सगे बेटे के नाम कर दिए थे।
वह तो खुश था पर दूसरे लोग पापा जी को कोस रहे थे।
वैष्णो खत्री वेदिका
[09/08, 12:51 pm] विजेन्द्र मोहन बोकारो: मंच को नमन
*माँ शारदे को नमन*
विधा:-- *लघु कथा*
शीर्षक:-- *हवा में गांठ लगाना/बड़े काम करने का दम भरना।*
हमारे बोकारो जिला में चिरा -चास एक छोटा सा कस्बा है वहां जनजाति समुदाय के लोग रहते हैं, शहर में जा कर रोज कमाते हैं और आमदनी खर्च कर देते हैं। उसी में से एक परिवार का लड़का मोहन काफी होनहार निकला अपने ज़िद के कारण स्कूल जाने लगा पढ़ने में होशियार निकला अपने क्लास में 90% मार्क्स लाने लगा जब उच्च श्रेणी में गया उसके मन में इच्छा हुई मैं उच्च अधिकारी आईएस बनूंगा यह बात अपने समाज कहकर बहुत प्रचलित हुआ। यह बात शहर में हवा के तरह फैलने लगा। एक आईएएस की कोचिंग देने वाले इंस्टिट्यूट को जानकारी मिली तो बुलाकर प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आग्रह किए। लड़का मोहन ने कहा मेरे अभिभावक के पास क्षमता नहीं है अगर प्रतियोगिता हम देंगे और हम प्रथम स्थान प्राप्त करेंगे तो स्कॉलरशिप मिलेगा कोचिंग के अध्यक्ष उसके प्रस्ताव को स्वीकृत कर आश्वासन दिए। मोहन 99. 5 प्रतिशत लाकर स्कॉलरशिप के हकदार हो गया। यूपीएससी परीक्षा में प्रथम स्थान लेकर पहली बार में ही आई एफ़स बन गया। बोकारो शहर एवं उसके गांव के लोग कहने लगे मोहन ने हवा में गांठ लगाने का दम भरा और गांठ भी लगा दिया।
विजयेन्द्र मोहन।
[09/08, 1:03 pm] 👑मीना त्रिपाठी: *हवा में गांठ लगाना ( लघुकथा )*
गांव में आज काफी चहल-पहल थी क्योंकि चुनावी लहर शुरू हो गई थी और आज गांव में नेता जी का आगमन हुआ था । पूरा गांव उनकी खातिरदारी में जुट गया था। चुनावी बिगुल फूंकी जा चुकी थी और नेताजी आज गरीब की झोपड़ी में भोजन करके फोटो खिंचवा रहे थे। आखिर कल के अखबार में फ्रंट पेज पर यह खबर जो छपनी थी । भोजन के उपरांत अब गांव वाले की समस्या सुनने की बारी थी । सब के बराबर, सबके बीच बैठकर नेताजी सब की बातें सुन रहे थे और हर समस्या का अति शीघ्र समाधान करने का पूरा पूरा कोरा वादा भी करते जा रहे थे। गांव में 1 महीने के अंदर पक्की सड़कें , कोचिंग की व्यवस्था , गांव में नेटवर्क आदि की समस्या का समाधान सब नेताजी के अनुसार एक महीना के अंदर ही हो जाना था । बड़े बड़े वादे करके नेता जी ने गांव वालों से उन्हें ही वोट देकर जिताने का संकल्प लेना चाहा। तभी भीड़ में से आवाज आई --"नेताजी वर्षों से हमें मूर्ख बनाया जा रहा है। यह हवा में गांठ लगाना बंद करिए और पहले करिए गांव की तरक्की में काम तब मिलेगा हमारा वोट रूपी दाम!" नेताजी अपना सा मुंह लेकर वहां से चलते बने।।
यह देश की विडंबना है कि हमें "हवा में गांठ लगाने" का उदाहरण किसी नेता के किये हुए वादों से अच्छा नही मिल सकता।
*मीना गोप त्रिपाठी*
*9 / 8/2022*
[09/08, 1:42 pm] रवि शंकर कोलते क: मंगलवार दिनांक ९/८/२२
विधा ****लघु कथा
विषय#**हवा में गांठ लगाना**#
^^^^^^^^^
( बड़े-बड़े काम करने का
दम भरना )
सुशीला एक सुंदर युवती जिसके बारे में माता-पिता बहुत निश्चिंत थे शादी विवाह को लेकर । उनको थोड़ा सा गर्व भी था कि सुशीला सुंदर होने के कारण उसका ब्याह झटपट हो जाएगा ।
और यह स्वाभाविक भी है , मां-बाप को गर्व होना जिसकी बेटी सुंदर है उसका ब्याह जल्दी हो जाएगा ।
मगर भविष्य किसने देखा है कब समय का उंट करवट ले लेगा इसका अंदाजा किसी को नहीं होता । लड़की मांगने वाले केवल सुंदरता ही नहीं बल्कि लड़की का चाल चलन, उसका शिक्षित होना, उसका स्वभाव, काम धंधे में निपुण होना ,खानदान यह सारी बातें देखी जाती है ।
बड़े बड़े घर मैं रिश्ता होने के सुशीला के माता पिता ख्वाब देख रहे थे । जो भी सुशीला को देखने आते, किसी ने कीसी बात का अभाव जानकार रिश्ता करने से मुकर जाते थे ।
एक तो सुशीला पढ़ी लिखी नहीं होने के कारण वह अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती थी । कुछ तो लड़की में नायाब गुण हो जो आकर्षण का केंद्र बने ।
आखिरकार माता पिता जो बड़े डिंगे हाकते थे सुंदरता को
लेकर , हवा में गांठ बांधते थे सुशीला की शादी अच्छे घर में करने के संबंध में, वे कर ना पाए । एक सर्वसाधारण घर में सुशीला का ब्याह करना पड़ा । किस्मत में भी होना चाहिए मनचाही बात साकार करने में ।
कुछ किस्मत ,कुछ विशेष गुण और कुछ अपने कर्म इन तीनों को मेल अगर हो तो बात बनती है ।
हवा मे गाठ बांधने से कुछ नही होता ,कर्म और किस्मत का साथ चाहिये तभी कुछ हासिल होता है ।
प्रा रविशंकर कोलते
नागपुर
[09/08, 3:20 pm] आशा 🌺नायडू बोरीबली: (लघुकथा )
🌹हवा में गांठ लगाना।🌹 (बड़े काम करने का दम भरना।)
********************
मेरे बुआ जी की बेटी पढ़ी-लिखी नहीं थी। मुश्किल से दसवीं तक पहुंच पाई थी ।दसवीं भी पास न कर पाई थी ,पर हर काम में चपल थी। अपनी बुद्धि और सूझबूझ से वह सारे काम कर लेती थी और उसे सफलता भी मिल जाती थी ।पति की नौकरी छूट गई ।बच्चे छोटे थे ,पर उसने हिम्मत न हारी। हिंदुस्तान लीवर कंपनी में एक सेल्स गर्ल के रूप से काम शुरू कर वह अपने मेहनत से आगे बढ़ी।
अपनी मेहनत और अपनी सूझ बूझ तथा अपने मृदुल स्वभाव से उसने लड़कियों की एक टीम बनाई ।कंपनी के प्रोडक्ट्स घर घर पहुंच सेवा देकर बिकवाए। जिससे बिक्री के साथ- साथ, कंपनी के नाम की प्रसिद्धि भी बढ़ी। देखते ही देखते कंपनी को बहुत मुनाफा होने लगा ।उन्होंने अर्थात कंपनी के डायरेक्टर ने उसे अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बना दिया ।पद ,तनख्वाह व इज्जत बढ़ गई ।हम सब उसकी मेहनत और तरक्की से बहुत खुश हुए। हमें उन पर गर्व भी था, कि कम पढ़ी-लिखी रहकर भी उन्होंने हवा में गांठ लगाई और खुद अच्छे से अपने काम को संचालित भी करती रही।
असंख्य लोगों को उन से काम मिलता रहा।
********************डॉ.आशालता नायडू.
मुंबई ,महाराष्ट्र .
********************
[09/08, 3:24 pm] ब्रज किशोरी त्रिपाठी: *अंग्नि शिखा मंच*
*दि०९-८-२०२२*
*बिषय-हवा में गांठ में लगाना*
*बड़े बड़े काम का दम भरना*।
हमारे बगल में एक कायस्थ परिवार रहता था
मेरे पड़ोसन की आदत थी किसी भी विभाग के अफसर
की बात करो उनके मैके के कई लोग उस विभाग में अफसर रैंक पर जरूर होते
मैं बोर हो जाती एक दिन मैंने
कहा मिसेज बर्मा आप के घर सब अफसर हैं पर मेरे पिताजी किसान है मैं तो किसान की बेटी हूं।
कुछ महीने बिछे उनका लड़का आपस लडको में मार
किया एक को गम्भीर चोट लगी थी पांचों को दरोगा ले
जाके थाने में बन्द कर दिये।
उस दिन शनिवार था मीस्टर
बर्मा जी के यहां कोह राम मचा था
मेरा यहां का चपरासी
आया और हम से बताया बहू
जी पडो़स में लड़का थाने में बन्द है आपस में शराब पीकर झगड़ा किते है बगल वाली मेम साहब रो रही है।
अब मैं सोच में पड़ गई कि बच्चा दो दिन बन्द रहेगा मिसेज बर्मा के कोई रिस्तेदार
तो पुलिस विभाग है शायद फिर उनकी मदद क्यौ नहीं
ले रहे हैं। लेकिन फिर दिमाग
आया देखें हमीं कोशिश करें
मेरे बहन के दामाद का दोस्त
कोतवाली में पोस्ट था मैं चपरासी से कहीं जाओ जाकर ओ,पी, त्रिपाठी से बात कराओ फिर मैं टेलीफोन के पास जाकर बैठी इन्तज़ार करने लगी जैसे उनका फोन आया पुछे
चाची क्या बात है सारी बात
बताई और विनती की किसी
तरह छुड़ाओ उन बच्चों अभी
लड़कपन में किते है तो आगे
जाकर सही का क्रिमिनल निकल जायेगा अगर एक बेंत भी पड़ा तो वह अपनी
बेइज्जती मानेगा।
ओ,पी, त्रिपाठी गये और बोले कमांडेंट साहब के दोस्त लड़का है समझा कर छोड़ दिजिए।रात दंश बजे लड़का
आया और सिधे मेरे साहब
से बोला थैंक यू अंकल वह
बोले थैंक यू बेटा और मेरा
चपरासी मुस्करा कर रह गया
मैं उसे चुप रहने का सारा कर दी थी।
कुछ दिन बाद क्लब में सब लेडीज से मुलाकात हुई
उसी डिप्टी साहब की मेम साहब बोली मिसेज बर्मा जब
आप के भी रिस्तेदार भी पुलिस में थे तो फिर मिसेज त्रिपाठी आप के बच्चे को क्यौ छुड़वाई। मिसेज बर्मा की नजर मेरे तरफ उठी फिर
झुक गई।
स्वरचित
बृजकिशोरी त्रिपाठी
गोरखपुर यूं,पी
[09/08, 4:08 pm] ओम 👅प्रकाश पाण्डेय -: हवा में गांठे लगाना ( बड़े बड़े दावे करना) --- ओमप्रकाश पाण्डेय
जब से राम आधार का बेटा पुलिस में इंस्पेक्टर हो गया है तब से राम आधार अपने गाँव के लोगों से अपने बेटे के बारे में हवा में गांठे बांधकर बातें करने लगा था. गाँव वाले भी पुलिस के रौब से परिचित तो थे ही इसलिए मुंह पर कोई कुछ नहीं कहता, बल्कि कुछ लोगों ने तो उसका तारीफ भी करना शुरू कर दिया.
सुबह शाम उसके दरवाजे पर लोगों की बैठकी होने लगी. लेकिन ऐसे भी कुछ लोग थे जिन्हें यह पता था कि पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी कोई इतना बड़ा नौकरी नहीं है जो इतने बड़े बड़े काम करवा दे. आखिर देश में नियम कानून भी तो है! ऐसा थोड़े है कि जो इंस्पेक्टर चाहे वह हो ही जाये.
एक दिन राम आधार का बेटा रामपाल गाँव अपने घर आया. गाँव के कुछ लोग उससे मिलने पहुंचे. उनमें से एक महेश ने कहा रामपाल भईया मैं काफी दिनों से बेकार बैठा हूँ . आप तो पुलिस में इंस्पेक्टर है, मुझे पुलिस में नौकरी दिलवा दीजिये. आप का मुझ पर बड़ा उपकार होगा. नौकरी दिलाना तो आप के लिए बहुत ही आसान काम है. इतने में ही उसी के बगल में बैठा हुआ मिश्रा जी ने कहा रामपाल बेटा मेरा भतीजा एक महीने से जेल में बन्द है, उसकी जमानत नहीं हो पा रहा है, आप उसका जमानत करवा दो. इसी तरह कई तरह के अनुरोध लोगों ने रामपाल से किये.
रामपाल एक साथ इतने अनुरोध सुन कर घबरा गया. बोला देखिये आप लोगों ने जितने काम कहे, मैं कोई भी काम नहीं करवा सकता. हर एक का अपना नियम कानून है और सारे काम उसी हिसाब से होतें हैं. मैं पुलिस इंस्पेक्टर हूँ, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि मैं कुछ भी करवा दूंगा.
पास ही में बैठे रामपाल के पिता राम आधार का चेहरा उतर गया.
( यह मेरी मौलिक रचना है ----- ओमप्रकाश पाण्डेय)
09.08.2022
[09/08, 4:45 pm] डा. अंजूल कंसल इन्दौर: अग्निशिखा मंच
विषय- हवा में गांठ लगाना /बड़े-बड़े दावे करना।
एक घर में दो बहुएं हैं। बड़ी बहू, बड़े घर की है, पर छोटी बहू हवा में गांठ लगाती रहती। अपने भाइयों का रौब झाड़ती और कहती-" मेरे भाइयों का शहर में बड़ा रुतबा है"।
एक दिन छोटी बहू के पति का एक्सीडेंट हो गया। अब तुरंत खून की आवश्यकता पड़ी, पर छोटी बहू के यहां से कोई देखने भी नहीं आया। बड़ी बहू ने अपने मायके वालों से कह कर अपने देवर का इलाज कराया और वह जल्दी ठीक भी हो गया।
बहुओं की सास बोली-" यह छोटी बहू तो हवा में गांठ लगाती रहती है। कोई काम नहीं आया। बड़ी बहू चुपचाप सब काम समझदारी से करवा लेती है।"
यह सुनकर छोटी बहू ने शर्म से आंखें झुका ली।
डॉक्टर अंजुल कंसल "कनुप्रिया"
9-8-22
[09/08, 5:29 pm] पल्लवी झा ( रायपुर ) सांझा: विधा-लघुकथा
विषय-हवा में गांठ लगाना।
( बड़े काम करने का दम भरना )
दुबे चाची के दो बेटे हैं उनमें से छोटे बेटे समर की आज शादी है समर बहुत ही शांत स्वभाव का और जिम्मेदार लड़का है उसकी नौकरी और अच्छे चाल चलन की वजह से चाची के घर एक सर्वगुणसंपन्न बहू आ रही है ।
दोपहर खाना खाकर रिश्तेदार बैठे आपस में बातचीत कर रहे थे कोई समर की तारीफ करते नहीं थकता था तो कोई वधू पक्ष का गुणगान किये जा रहा था । तभी कम्मो मौसी ने चाची से कहा "यह सब तो ठीक है अच्छी जोड़ी मिल रही पर ये कहां का इंसाफ है कि बड़ा बेटा कुँआरा बैठा है और तुम छोटे का ब्याह रचा रही हो ?"
दुबे चाची गंभीर स्वर में कहती हैं तीन साल से तो रूकी थी कि बड़े का ब्याह पहले कर दूँ पर वह कुछ जिम्मेदार बने तब न हर नौकरी को मेरे लायक नहीं है या इतनी छोटी नौकरी मैं कैसे कर सकता हूँ कहकर निठल्ला बैठा है ।अरे। एक -एक पांव बढ़ाने से ही तो मंजील मिलती है ऊपर से रात दिन बड़ी -बड़ी बांते कर खाली सपने देख हवा में गांठ बांधता रहता है तो भला उसके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा? कोई लड़की की जिंदगी मैं ऐसे कैसे बर्बाद कर दूँ। इसके चक्कर में छोटे की उम्र भी हो रही थी ऊपर से अच्छे खासे रिश्ते भी हाथ से निकल रहे थे तो मुझे यही निर्णय लेना पड़ा।"
सभी बड़े ध्यान से दुबे चाची की बातें सुन रहे थे कम्मों चाची ने बड़ी संजीदगी से कहा -सच तुमने बड़ा उचित निर्णय लिया जो उसकी शादी नहीं कराई वरना सच में पराई लड़की के पल्ले चार आंसू ही आते ।"
पल्लवी झा (रूमा)
रायपुर छत्तीसगढ़
[09/08, 5:47 pm] कुंवर वीर सिंह मार्तंड कोलकाता: 🌺मंगल वार - 9/8/2022
विषय//हवा में गाँठ लगाना-
बड़े-बड़े दावे करना; असम्भव कार्य को करने का दम भरना
वह नेता था। बत्तीसी दिखाना और हाथ जोड़ना उसका चरित्र बन गया था। कभी किसी से किसी काम के लिए मना नहीं करता था। किंतु आज तक उसने किसी का काम नहीं किया।
*माइक के सामने खड़े होकर हवा में गांठ लगाने की कला में माहिर थे।* लोगों को लगता जैसे इनसे सच्चा ईमानदार और कर्मठ नेता दूसरा नहीं है।
मगर यह सब बहुत दिन नहीं रह सका। धीरे धीरे उन्होंने अनैतिक कार्यों के माध्यम से अपार संपत्ति जमा कर ली।
बात घुल गई। जांच आयोग बैठाया गया। सब पोल पट्टी खुल गई। उनको जेल में डाल दिया गया।
*आज जनता उनकी बुराई करते हुए हवा में गांठें लगा रही है।*
© कुंवर वीर सिंह मार्तंड कोलकाता
[09/08, 6:01 pm] मीना कुमारी परिहारmeenakumari6102: हवा में गांठ लगाना
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(बड़े -बड़े दावे करना)
श्रेया तड़के ही आंफिस जाने के लिए तैयार हो जाती है। मां पूछती हूं"बेटा आज तक बहुत जल्दी आंफिस जा रही है"
"हां मां !आज हमारे बांस आ रहे हैं उन्हीं के साथ मीटिंग है..."
अच्छा ठीक है .. बेटा " पर तू अपना ख्याल रखना... हां मां!"
समय से श्रेया आंफिस पहुंच जाती है.... मीटिंग की तैयारी जोर -शोर हूं चल रही थी... सभी कर्मचारी नियत समय पर पहुंच चुके थे.। बांस भी समय पर हाजिर हो जाते हैं सभी उनकी आवभगत में लग जाते हैं। मीटिंग में श्रेया की भूमिका प्रशंसनीय रही।
"बांस ने श्रेया को अपने केबिन में आने को कहा...श्रेया बांस के केबिन में पहुंचती है.".. जी सर!
"श्रेया बैठ जाओ...श्रेया बैठ जाती है ।
"बांस ने कहा- श्रेया! तुम हमारे आंफिस की सबसे अच्छी, सुन्दर, कर्तव्यनिष्ठ, अच्छी नेतृत्वकर्ता हो। मैं तुम्हें प्रमोशन देता हूं। तुम्हारे लिए बंगला, गाड़ी, नौकर, चाकर ,सारी सुविधाएं मैं तुम्हें मुहैया करा दूंगा .....मेरे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है।
"तुम अभी मेरे बारे में जानती ही क्या हो...... मैं बहुत अमीर हूं। लोग मेरे आगे झुकते हैं......." समझी....जी!
"श्रेया ने कहा - सर!छोटी मुंह बड़ी बात... मैंने बहुत देखे हैं "बड़े -बड़े दावे करनेवाले "लोगों को ..जो सिर्फ "हवा में गांठ लगाते "हैं।
डॉ मीना कुमारी परिहार
[09/08, 6:22 pm] सुरेन्द्र हरडे: अग्निशिखा मंच को नमन
आज की विधा *लघुकथा*
विषय:-* *हवा में गांठ लगाना*
अर्थ बडे बड़े दावे करना असम्भव कार्य को करने का दम भरना
सभी मेरे भाई बहनों को नमस्कार जैसा सभा में उपस्थित आदरणीय विधायक सेवा भावी सेवा ही परमधर्मा यही आदर्श ब्रीदवाक्य हुकमचंद लगातार दस वर्षों से विधानसभा विधायक हैं
तालियों ने स्वागत किया।
राजू जो की सचिव था बड़े बड़े वादे करना उसकी बड़ी आदत थी जुमले तो ऐसा देता था जैसा महात्मा हो बडी बडी बात करना
हवा में गाठ मारने की वजह से मतदाताओं उल्लू बनाता था। इस साल चुनाव का समय आया सभा में भीड़ भी होती थी। लोग विधायक की कला से अवगत हो गये थे जनता जनार्दन रोज खाना खाते हुकमचंद को लगा इस साल भी चुनके आ जायेगे पाच साल राज करेंगे किंतु यह जनता है सब कुछ जानती है ।
जब चुनाव का नतीजा आया तब हुकमचंद विधायक हार गए बडे बड़े खोखले दावे कुछ काम नहीं आये *इसको ही बोलते हवा में गांठ लगाना*
सुरेंद्र हरडे
नागपुर
दिनांक ०९/०८/२०२२
[09/08, 6:30 pm] कुम कुम वेद सेन: हवा में गांठ लगाना
बड़े-बड़े दावे करना चलिए राजनीति की ओर हम लोग एक कहानी लिख डालते हैं जितने राजनीति के मंत्री नेता होते हैं सभी चुनाव के समय या अपनी कुर्सी बचाने के लिए जब जनता से मिलते हैं तो बड़े-बड़े दावे करते हैं जैसे ही चुनाव जीत जाते हैं वह किए हुए दावे भूल जाते हैं इसी संबंध में एक प्रांत के नेता ने शिक्षा विभाग को सुधारने का जिम्मा उठाया और शिक्षकों के सहायता से अपने वोट बैंक को बढ़ा लिया।
चाहे प्राइमरी स्कूल के शिक्षक हो या मिडिल स्कूल के शिक्षक हो या उच्चतर विद्यालय महाविद्यालय के शिक्षक हूं सभी ने एकता दिखलाई और एकता के आधार पर उस प्रांत के नेता को अपना कीमती वोट देकर जिता दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात यह हुई शिक्षकों के साथ जो बड़े-बड़े दावे किए गए थे वह 20 वर्षों में भी पूरे नहीं किए गए।
नेता राजनेता का पद ही ऐसा होता है बड़े-बड़े दावे करना हवा में गांठ लगाना अपनी कुर्सी हासिल करना और ठेंगा दिखाकर आगे चले जाना
कुमकुम वेद सेन
[09/08, 6:32 pm] Dravinasi🏆🏆: अग्नि शिखा मंच दिनांक 9 अगस्त 2022 दिन मंगलवार विषय हवा में गांठ बांधना विधा लघुकथा दो मित्र थे। आपस में बातें कर रहे थे।पहला मित्र दूसरे से कह रहा था मेरे गांव में एक आदमी के पास एक भैंस है। वह बहुत दूध देती है। इतना ज्यादा दूध देती है कि दुहने वाले के हांथ दर्द करने लगते हैं।तब दूसरे मित्र ने कहा कि तुम हमेशा ऐसे ही लम्बी चौड़ी बातें करते हों। तब उसने कहा कि शर्त लगा लो । तब दूसरे ने कहा कि मै तुम्हारी बातों में नहीं आऊंगा। हर समय तुम हवा में गांठ लगाने जैसी बात करते हो।कई लोग सुन रहें थे। और मजा ले रहे थे । डॉ देवीदीन अविनाशी हमीरपुर उप्र
[09/08, 6:34 pm] रानी अग्रवाल: लघुकथा_हवा में गांठ लगाना।
९_८_२०२२,मंगलवार।
शीर्षक बेकार नवयुवक।
प्रतीक बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार था।हमेशा पहला या दूसरा क्रमांक लाता था।मैट्रिक परीक्षा ९०%और १२वी विज्ञान से ९६%के साथ उत्तीर्ण की।मेरिट के आधार पर एम एम बी एस में प्रवेश भी मिल गया।
बस यहीं से प्रतीक सपने बुनने लगा।" हवा में गांठ लगाने लगा।" एम एम बी एस के बाद एम एस करूंगा,हृदय विशेषज्ञ बनूंगा,बड़ा सा अस्पताल खोलुंगा ,खूब पैसे कमाऊंगा,गरीबों की सहायता भी करूंगा।विदेश जाकर भी सेवाएं दूंगा।
सब कुछ उसकी योजना अनुसार होता चला गया।उसका भाग्य भी तेज निकला और उसने अपनी तरफ से परिश्रम भी खूब किया।इस तरह उसकी हवा में लगाई गांठे सच साबित हो गईं।वह एक सफल जीने लगा।
इसलिए जब कभी कोई हवा में गांठे लगाए तो उसे अपना शत प्रतिशत श्रम लगाने को प्रतीक की तरह तैयार रहना चाहिए।
स्वराची मौलिक लघुकथा___
रानी अग्रवाल,मुंबई।
[09/08, 6:39 pm] निहारिका 🍇झा: नमन अग्निशिखा मंच
विषय;-हवा में गांठ लगाना (बड़े बड़े काम करने के झूठे दावे करना)
--दिनाँक-9/8/2022
विधा-;कथा
रामेश्वर व रमेश एक कि मोहल्ले के रहने वाले व एक साथ पढ़े थे।।दोनों कीगृहस्थी भी लगभग साथ साथ ही बस गयी थी।रमेश परियोजना विभाग में पास के शहरकार्यरत था जबकि रामेश्वर खेती कर रहा था उसे राजनीति में भी रुचि थीचुनाव में उसे विधायक प्रत्याशी बनाया गया और वह जीत भी गया।।अब तो रमेश हमेशा रामेश्वर के इर्दगिर्द रहना चाहता व उसके होने का दावा करने लगा ।कई लोगों से काम कराने के नाम से पैसे भी ऐंठ लिएविधायक (रामेश्वर) की जानकारी के बगैर।आवेदन के उपरांत परीक्षा हुई थी परिणाम के पूर्व ही यह धन के लेन देन की प्रक्रिया (हवा में गांठ बांधकर) रमेश ने गोपनीय ढंग से पूर्ण कर ली थी।सारे लोग इंतजारके सँग भरोसे में थे कि हमारा चयन हो ही जायेगा।
कतार में स्वयं रमेश का बेटा भी शामिल था।।
आज परिणाम आना था सभी बेताब थे ज्यों ही सूची देखी सब अचंभित हो गए पैसे वालों में से किसी का नाम नहीं था चयन प्रक्रिया परसेंटेज के अनुरूप हुई थी जो मेधावी थे वे चयनित हुए।शेष का नहीं हुआ।स्वयं रमेश के बेटे का भी नहीं हुआ था चयन।
तब सब लोगों ने रमेश की घेराबंदी कर अच्छी खबर ली।और कहा अब तो बाज आओ और हवा में गांठ लगाना बंद कर दो वरना अच्छा नहीं होगा।।
निहारिका झा
खैरागढ़ राज.(36 गढ़)
[09/08, 6:53 pm] रागनि मित्तल: जय मां शारदे अग्निशिखा मंच
दिन -मंगलवार दिनांक- 9/8/ 2022 लघुकथा
प्रदत्त विषय - हवा में गांठ लगाना
अचानक राधा के दरवाजे में कई लोगों के खटखटाने की आवाज आने लगी। राधा ने दरवाजा खोला तो देखा कि उसके कई पहचान वाले और कुछ अनजान लोग भी दरवाजे पर खड़े हुए हैं। वह अआश्चर्य में पड़ गई और सब के आने का कारण पूछा।
सभी बोलने लगे तुम्हारा बेटा तो बहुत अच्छा है ।उसने हम सबको बुलाया है और कहां है कि मेरी बहुत पहचान है जिससे आप सबको बिना पैसे के गंगा स्नान कराने इलाहाबाद ले जाएंगे। राधा सोचने लगी कि ऐसा इनको क्यों बोला गया ।मुझे तो ऐसी कोई जानकारी नही है। फिर आप लोगों को कैसे बुलाया ।
वह सभी बोलने लगे कि नहीं उसने इसी समय हम लोगों को बुलाया है ।तभी राधा ने देखा कि सौरभ ऊपर वाले कमरे से उतरता चला आ रहा है।
उसने सौरभ से पूछा तुमने इन सब लोगों को इलाहाबाद ले जाने का वादा किया है क्या?अब तो सौरभ के मुंह पर हवाइयां उड़ने लगी ।राधा सब कुछ समझ गई और उन लोगों से माफी मांगते हुए बोली--- कि आप लोग भी इसकी बातों में क्यों आ गए ?इसको तो हवा में गांठ लगाने की आदत है। और इसकी इस आदत से मैं कई बार परेशान हो चुकी हूं।
रागिनी मित्तल
कटनी ,मध्य प्रदेश
[09/08, 7:06 pm] पुष्पा गुप्ता / मुजफ्फरपुर: 🌹🙏अग्नि शिखा मंच
विषय: हवा में गाँठ लगाना
लघुकथा
दिनांक:9/8/22
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रमन और मदन दो भाई थे । दोनो मात्र दो साल के छोटे, बडे । उनके पिताजी एक हाई स्कूल में शिक्षक थे ।
माँ सविता देवी तो साक्षर भी न थी ,,,लेकिन दोनों बेटो से उम्मीद लगाए बैठी थी ।
बड़ा बेटा रमन तो पढ़कर बीए पास
हो गया । चार साल से नौकरी भी कर रहा है और मदन पिछले बार बीए मे फेल कर गया ,,,,इसबार परीक्षा नजदीक है किन्तु
वह हवा में गाँठें लगाने में तेज है ,,,हाँकता
ज्यादा है ।उसकी करतूत से माता-पिता
बहुत परेशान हो रहे थे ।
बड़े भाई की शादी के लिए रिश्ते आ रहे थे । पिता के रिटायर होने वाले थे ।सभी चाहते थे कि छोटे की जिंदगी भी संवर जाए लेकिन उसे तो केवल हवा में गाँठ लगाना ही आता है ,,, पढ़ाई- लिखाई से मतलब नहीं,,,नतीजा यह हुआ कि फिर वह दुबारा फेल हो गया ।
घर में सबके उम्मीद पर पानी फिर गया ।
मदन को अपने किए पर पछतावा हो रहा था ।
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स्वरचित एवं मौलिक रचना
रचनाकार-डॉ पुष्पा गुप्ता
मुजफ्फरपुर
बिहार
🌹🙏