चित्र पर रचना
पतंग
20/1/2022
आओ सीखें ऊंची उड़ान भरना पतंगों से सीख ले हम उड़ान भरना।।
सच्चे प्रेम की डोर से बांधना बंधन अपनों से
नहीं कभी हम उनका दिल तोड़े ।।
काले पीले लाल गुलाबी यह सब रंग है जीवन के
यही पतंगे हमें सिखाती
जीवन के रंगों से सीखो तुम अच्छी बातें
कभी ना घबराना तुम कितना भी आएअंधियारा ।।
कभी कटना भी पड़ेगा
कभी लड़ना भी पड़ेगा ।।
पेच लड़ा कर बचना भी होगा
फिर ऊंचा उठना होगा ।।
कभी धूप है ,कभी छांव है ,
कभी ना तुम घबराना ।।
देती है या संदेश हमें यह पतंग है जीवन है नश्वर यह कहती पतंग है ।।
फिर भी जीवन जीना है
आशाओं के साथ रहना है ।।
कचरे में जाना पड़ेगा अंत में
फिर भी अंबर को छूना है ।।
यही सीख हमें देती पतंग है
आओ हम सीखें हरदम खुश ही रहना है ।।
हंसते-हंसते उड़ना है
कितने भी दुखाए जीवन में ।।
निराश कभी ना होना
हिम्मत सदा ही रखना ।।
यह परिपक्व बात हमें बताती पतंग है
एक डोर थामे रखना प्रतीक्षा में हवा चले कितनी भी
फिर भी उड़ना है पतंग सिखाती है ।।
बच्चों को शिक्षा देती है
बुजुर्गों की सेवा बीमारी का इलाज ही जीवन है ।।
आंखों में चश्मा प्रेम का चढ़ा तुम देखो सदा बढ़ो को
बड़ों का कभी न करना अनादर ।।
तुम कभी ना घबराना
वक्त के झंझावात से
तुफानो से सदा लड़ना ही है ।।
सपनों के महल को बचाना ही है
मंजिल कितनी भी दूर हो उसे पाना ही है।।
बुजुर्गों का आदर सदा करना ही होगा
यही पतंग हमें शिक्षा देती है
बच्चों को प्रेम से बतलाती है ।। पतंग की तरह हमें भी सदा हौसलों की उड़ान भरना हमें है ।। उड़ना है उड़ते ही रहना है
निराशा को आस पास नही आने देना है।।
आशाओं के साथ जीना है आशाओं के साथ जीना है
पतंग सदा ही सिखाती है।।
अलका पांडे मुंबई
[20/01, 7:24 am] 👑सुषमा शुक्ला: पतंग,,,जीवन दर्शन🙏🌷🌷
पतंग आसमान में उड़ती ।मैं झरोखे से देखती उसका लहरा लहरा के घूमना, इधर से उधर उसका डोलना, मैं आंखों को झपकाती, पलके उठा कर पुनः उस पतंग पर जमाती।
फिर दिमाग में यह विचार आया इस पतंग को उड़ाने वाला कौन आया,? देखा तो डोर के साथ-साथ कोई मांजा को हाथ में पकड़ा,, पतंग को चला रहा,, ऊंचाइयों पर ले जा रहा!🌷
पर उड़ती पतंग को देखकर जीवन दर्शन में महसूस किया। आसमान की ऊंचाइयों को छूने से पहले ज़मीदोज़ लोगों पर भी निगाहे बान किया,।।,
जिनका पूरा योगदान हमें आसमान
को छुआने का है,, दिखाने का है।
उड़ते हुए जमीन पर भी निगाहे हो,,
पैर तो जमीन पर ही
जमाने हो🙂🙏🙏🙏🌷🌷🌷
सुषमा शुक्ला स्वरचित🙏🌷
[20/01, 9:32 am] सरोज दुगड गोहाटी: * अग्नि शिखा काव्य मंच *
* चित्र देख कविता लिखो *
आती मकर संक्रांति पतंगें खूब उड़ाई जाती ,
रंग बिरंगी पतंगे से आसमान ढ़ंक जाता !
है पारंपरिक त्योंहार खुशियां लाता अपार ,
हर पेच के साथ बढ़ता रोमांच का नहीं पार !
बच्चे , युवा, प्रौढ़ महिलाएं भी छत पर चढ़ जाते ,
बो मारा वो काटा की ढील दे कि खूब हाँक लगाते !
आनंद सकारात्मक ऊर्जा का होता संचार ,
पतंगों के होते कई तरह के आकार - प्रकार !
पिसली ,टकली , पिसियो ,टकलो आंदल ,
ढ़ुगदार ,चंदा गुड्डी उड़ती आकाश दीया जला !
पीसते कांच उबली मेथी लुगदी बनाई जाती ,
डोर की सुँताई में बहन भाभी से मदद माँगी जाती !
कटती पतंग लूटने वालों में मचती होडा़ -होड़ ,
ऐसे बात करते जैसे पाकिस्तान से लड़नी जंग ?
कई सीढ़ियों की छलांगें दिवारों से खुदा फाँदी ,
एक छोटी सी पतंग अच्छे अच्छों को नाच नचाती !
देख पतंग की निर्भिकता होता अभिमान ,
कटना तो निश्चित है क्यों ना छू लूं आसमान !
जीवन ओर पतंग का भाग्य एक समान ,
धागे की डोर साँस की डोर बंधी समान !
जिसकी डोर कटेगी वो पतंग नीची आयेगी ,
डोर पतंग की कहानी जीवन सच बतलाएगी !
मौलिक स्वरचित
सरोज दुगड़
खारूपेटिया
असम
🙏🙏🙏
[20/01, 10:24 am] वीना अचतानी 🧑🏿🦽: वीना अचतानी
अग्नि शिखा मंच को नमन
चित्र पर आधारित रचना
*****पतंग और व्यक्तित्व *****
एक डोर से बन्धी
रंग बिरंगी
हवा मे हिचकोले खाती
मुक्त रूप से
जीवन जीने की कला
सिखाती है पतंग।
सन्तुलन, नियम नियन्त्रण
संस्कृति से जुड़ी
संस्कार की डोर से बन्धी
खुले आसमान में उड़ी
जोशीले व्यक्तित्व की
पहचान कराती है पतंग ।
हर परिस्थति में ढलना
स्वछन्द उड़ने वाली
ज़मीँ की जड़ों से जुड़ी
एक उम्मीद और खुशी
परवाज़ का सबक
सिखाती है पतंग।
सुषुप्त इच्छाओं की प्रतीक
जोश और गर्व से भरी
हठीली हवाओं को चीरकर
हवा के अनुकूल होने की
अद्भुत शिक्षा देती है पतंग ।।।।
वीना अचतानी
जोधपुर (राजस्थान) ....
[20/01, 10:32 am] चंदा 👏डांगी: *चित्र आधारित रचना*
*!! पतंग !!*
पतंग देती है संदेश
खूब उड़ो आसमान मे
पेर जमीन से न छोड़ना
छूटते ही पेर गिरोगे धड़ाम से
उसी जमीन पर जहां से भरी थी उड़ान
झोंका हवा का ले जायेगा
न जाने किस ओर
मंज़िल पर नजर टिका कर रखना
राहगीर होंगे साथ मे कई
चाइनीज मांजे की तरह
जो छीन लेंगे जिन्दगी किसी की
साथी सच्चा अपने साथ मे रखना
कदम दर कदम साथ दे
छीने न हक किसी का
फट जायेगी जल्द कागज की पतंग
तो क्या हो गया
पाॅलीथीन की पतंग को हाथ न धरना
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर मंदसौर मध्यप्रदेश
[20/01, 10:37 am] शेभारानी✔️ तिवारी इंदौर: पतंग
मकर संक्रांति का पर्व आया मिलजुलकर पर्व मनाएंगे।
तिल गुड़ की मीठास संग,
हम खुशी जताएंगे।
मौज-मस्ती करेंगे हम,
मन में विश्वास जगायेंगे,
रंग बिरंगी पतंग डोर संग,
आसमान में उड़ाएंगे।
स्वर्णिम किरणों को छूने,
लहराकर ऊपर चढ़ जाए,
इंद्रधनुष रंगों में रंगकर,
तूफानों में नाच दिखाएं ,
मंजिल का तो पता नहीं,
नील गगन की रानी कहलाए,
आसमान में बेखबर,
आजादी संग उड़ती जाए।
जब जब पेच लड़ा वह भी ,
लड़ने में जुट जाए ,
कट जाए या लूट जाए ,
तो वह निराश हो जाए ,
ऊंचाइयों का सपना,
दिल ही दिल में रह जाता,
अपने अस्तित्व को बचाने,
फिर से धरती पर आ जाए।
श्रीमती शोभारानी तिवारी,
619 आकर्षण अपार्टमेंट,
खातीवाला टैंक इंदौर ,मध्य प्रदेश मोबाइल 8989409210
[20/01, 12:22 pm] Nirja 🌺🌺Takur: 
अग्निशिखा मंच
तिथि -20,,1,2022
विषय- चित्र पर कविता
पतंग बेचती हूंँ मैं,
पतंग के साथ-साथ
सपने भी बेचती हूंँ मैं।
सपने होते हैं पतंगों की तरह ही
रंग बिरंगे ,चमकीले ,सुंदर
लुभाते हुए।
आकाश में उड़ते हुए
चॉंद को छूने की हिम्मत दिखाते हुए।
पतंगें होती हैं कई तरह की
सांप की तरह लहराती हुई
हमेशा हमें नीचे गिराने को तैयार खड़ी हुई।
जो हमें यह सिखाती हैं कि
सफलता के रास्ते में मुसीबतें
अचानक ही आती हैं।
उनसे कैसे पेंच लडा़ना ,कैसे निपटना यह तरकीब सभी को निकालनी ही पड़ती है।
कभी पतंग होती है सुंदर बच्चे सी निश्छल जो हमें यह सिखाती
चाहे कितने भी ऊंचे उठ जाओ,
जमीन से बंधी डोर ही हमें
बलशाली बनाती।
नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोंबिवली
महाराष्ट्र
[20/01, 1:13 pm] वैष्णवी Khatri वेदिका: jan 2022 ताटँक छंद ( पतंग)
नीली पीली रंग बिरंगी, आसमान पे छा जाना।
दूँगी मैं संदेशा तुझको, उसको तू पहुँचा आना।।
माता पिता छुपे तारों में, उनको भी सहला आना।
कहना बैठी सुता तुम्हारी, भू पे तुम बहला जाना।।
कमी बड़ी मुझको है खलती, आ सुध मेरी ले जाओ।
संकेतों में ही तुम केवल, कुछ संदेशा दे जाओ।।
पतंग नीली तुम तो उड़कर, शिव के पास चले जाना।
जब तक आँखें खोलें न शम्भु, तुम धरती पे मत आना।।
धरती पर सब राह तके हैं, संदेशा तुम दे आना।
हम सबकी कब प्यास बुझेगी, यह संदेशा ले आना।।
पीली वाली जाकर तुम तो, माँ शिवा को बुला आना।
बीमारी से त्रस्त सभी हैं, व्यथा सब की सुना आना।।
राधा कृष्ण से तुम बताना, जन जन से लड़ जाते हैं।
इतनी बड़ी विपदा में भी, रिश्वत वे तो खाते हैं।।
चाँदी पतंग तुम तो उड़कर, शारद पास चली जाना।
भरे पड़े नादान यहाँ पे, ज्ञान कोष को ले आना।
वैष्णो खत्री वेदिका
[20/01, 1:41 pm] विजेन्द्र मोहन बोकारो: मंच को नमन
विधा:-- *चित्र पर आधारित कविता*
शीर्षक:--- *पतंग*
*********
साहस की तू डोर बांँध ,
जीवन की पतंग उड़ाता चल ,
जब होगी तेरी सन्मति ,
घर आंगन महका कर नव ख्वाब है सजाते,
रंग बिरंगी इंद्रधनुष सी पतंग उड़ाते,
लहराती बलखाती पतंगे भी नभ पर छा जाती है,
जैसे डोर से जुड़ी पतंग ,
अंबर को छूने का दम रखती है,
डोर से कटते ही,
मिट्टी के मोल वह बिकती है,
डोर और पतंग से मिलकर रहना हम सीखते हैं।
विजयेन्द्र मोहन।
[20/01, 1:53 pm] रवि शंकर कोलते क: ।गुरुवार दिनांक २०/१/२२
विधा*** चित्र पर आधारित रचना
विषय""""#***** पतंग*****#
^^^^^^^^^^^
आओ सखी आज हम पतंग उडाएं ।
थोड़ा सा मस्ती में हम भी झूम जाए ।।
कितना उम्दा है यह आजका मौसम ।
पवन पंख लगाके पतंग मेरी लहराए ।।१
घर के काम काज को हम विराम दें ।
खुदको आज हम जरा सा आराम दे ।।
हम भी कुछकर दिखाए इस जहां को ।
हम पीछे हैं मर्दोंसे वो ये न इल्जाम दे ।।२
पतंग के प का मतलब है पवित्र ।
तं का अर्थ है कि हम हैं तंदुरुस्त ।।
ग का रिश्ता कृष्णरंगी नील नभसे है ।
उड़कर होती है वो धुनमें मदमस्त
।
कोई गुनाह किए बिना ही कटती है ।
जब जब वो औरों से आगे उड़ती है ।।
चाहे वो पतंग हो या कोई औरत ।
दरिंदे बेरहम मांजेसे बारहा टूटती है ।।५
प्रा रविशंकर कोलते
नागपुर
[20/01, 2:03 pm] आशा 🌺नायडू बोरीबली: 🌹 चित्र पर आधारित🌹
********************
*** पतंग संग डोर ***
********************
पतंग संग डोर का, साथहै, जीवन भर का, जब जब पतंग उड़ेगी, तब तब डोर साथ देगी।
जमीन से उठना है उसे, ऊंचाइयां छूना है उसे, आने वाली बाधाओं का, मुकाबला करना है उसे।
पतंग अपनी मर्जी से , उड़ नहीं सकता , जिसके हाथ डोर होती है, वहीं से उसे उड़ाता है ।
मनचाही ढील देता या तानता है , ठीक हमारा जीवन भी ऐसा ही है , जीवन दिया है प्रभु ने, वही हमारी जिंदगी संवार ता है ।
वहीं राह दिखाता है,। हम सब की जीवन की डोर , प्रभु ! के हाथों में ही है , उसकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है।
तो हैं पतंग तो , हमारा जीवन है डोर, और उड़ाने वाले हैं , हमारे प्रभु ! जो हैं,हम सब के, सर्वे सर्वा ।
******************
स्वरचित रचना.
डॉ . आशालता नायडू .
मुंबई . महाराष्ट्र .
********************
[20/01, 2:51 pm] कुंवर वीर सिंह मार्तंड कोलकाता: 🌺गुरुवार 20/1/2022
🌺विषय- चित्र पर कविता
हर चित्र कुछ कहता है
आओ चलो पतंग उड़ाएं।
इसके मिस धरती की पाती
अंबर के घर तक पहुंचाएं
आओ चलो ..….
डोर हमारे हाथों में है
जितना चाहे ढील दो।
जितना चाहो इसे नचाओ
जब चाहे तब खींच लो।
धरती के इस प्रेम पत्र को
पाने अंबर को ललचाएं
आओ चलो….
मेरी तेरी इनकी उनकी
सभी पातियां हैं धरती की
ये काटा वो काटा छोड़ो
लड़ो भिडो मत झगड़ा छोड़ो।
सभी पतंग पातियों को
अंबर के सम्मुख खूब नचाएं
आओ चलो….
धरती की है धानी चूनर
अंबर का अंबर है नीला।
नित्य सुबह लेकर आ जाता
सूरज रंग लाल औ पीला
आओ इन रंगों को लेकर
इंद्रधनुष के रंग बनाएं
आओ चलो ….
मित्रो, हम सब भी पतंग हैं
डोर प्रभु के हाथों मे।
जब चाहे तब हमें खींच ले
झटपट बातों बातों में।
प्रभु की प्रेममई पाती को
ना जाने हम कब पा जाएं
आओ चलो….
© कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता
[20/01, 3:05 pm] डा. बैजेन्द्र नारायण द्िवेदी शैलेश🌲🌲 - वाराणसी - साझा: आदरणीय मंच को नमन गुरुवार 20.1 .22
कागज की काया लिए उड़ उड़ जाए पतंग
श्रुति उन्नत गगन को हुई निगाहे दंग।।
कोई खींचे डोर को, दूर कहीं पर बैठ।
बाजी वही है जीतता, जिसकी ऊंची पैठ।।
हाथों से दुलारा रहे बच्चे करके स्पर्श।
जिसकी है वह पतंग वह मना रहा है हर्ष।।
जीवन एक पतंग है दूर है प्रभु के हाथ।
उड़ेगी नभ में तब तलक भाग्य दे जब तक साथ।।
रस्सी के टूटते ही पतंग होगी लुप्त।
जानेगा कोई नहीं, किस्सा है यह गुप्त।।
+++++++
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी🌷🙏🌻🍀☘️🌺
[20/01, 3:09 pm] Anshu Tiwari Patna: पतंग
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पतंग है रंग रंगीली
ऊंची उड़ती जाती है
सिखाती है यह हमें हमेशा
उडो चाहे जितना भी ऊंचा
जुड़े रहो अपनी धरती से
परिवार से संस्कारों से,
मांझे की तरह धार हो
कितनी भी तीखी तेज तरार,
अपनों के लिए निर्मल, सौम्य रहो,
चाहे कितने भी गोते खाओ ,
हिम्मत रखो तुम हमेशा,
मजबूती से तुम डटे रहो
मुश्किलें जीवन में आए
सबक सीख तुम आगे बढ़ो।
सबसे जरूरी सबक--
चाहे जितनी बार भी नीचे गिरो
अगली बार दुगने उत्साह से
तुम ऊपर उठो,
जीवन को मस्ती में जियो
उड़ते रहो तुम यहां वहां चहूं ओर।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना
[20/01, 3:20 pm] स्मिता धारसारीया Mosi: छवि विचार
आया ख़ुशियों का त्यौहार ,
नीली ,पिली ,लाल ,हरी
रंग ,विरंगी पतंगों से सजा है बाजार ,
मन को ये लुभाती ,खुशियाँ लाती अपार ,
चुन्नू ,मुन्नू ,डबलू ,पप्पू ,
तुम सब दौड़े आओ ,संग लटाई लाओ ,
हम सब मिल पतंग उड़ाये ,
पतंगों में पेंच लड़ाये ,
किसकी गगन में उड़ जाये ,
किसीकी धरती पे आ जाये ,
पतंगो का ये खेल निराला ,
सिखाये हमें कैसे जीवन जीना ,
जितना भी उड़ो ,
जीवन की डोर को थामे रखना ,
वरना कटी पतंग की तरह ,
कहीं दूर गर्दिश में खो जाओगे |
स्मिता धिरासरिया ,बरपेटा रोड
[20/01, 3:34 pm] 💃💃sunitaअग्रवाल: विषय- आवारा
दिन- बुधवार
दिनांक- १७/०२/२०२१
शीर्षक- आवारा
मौत भी ना आवारा हवा का झोंका, घूमती फिरती , कही भी,
कभी भी आ जाए,
मौत बिल्ली की माफिक दबे पांव
आपको अपने से हर ले जाए,
आवारा मौत भी ना अकड़बाज की अकड़, तिकड़म बाज की
तिकड़मी तड़का दे,
मौत भी ना बिन बुलाए मेहमान बन टपक जाए ।
मौत भी आवारागर्दी से बाज न आए, आवारा धूर्त, धोखेबाज ,वायरस ने दी दस्तक
घर घर तक,
आई वैक्सीन किया आवारा कॉरोना को नेस्तनाबूद,
उसकी आवारगी को लगित लगाम।
सुनिता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश स्वरचित धन्यवाद 🙏🙏
[20/01, 3:34 pm] 💃💃sunitaअग्रवाल: शीर्षक- पतंग
विधा- कविता
पापा,पापा
देखो आसमान में ,
सुंदर सुंदर, रंग- बिरंगी प्यारी प्यारी,
हवा से बातें करती, बलखाती पंतग,🌸
चांद- सितारों को छूती पतंग,
पापा पापा,
देखो, कितनी सुंदर, कितनी प्यारी- - - - - - २
मकर संक्रान्ति पर इठलाती पतंग,
सारा आसमां भर जाता संग पतंग,
देख देख, मन में उठती तरंग,
काश,
पापा पापा ,देखो नभ में सुंदर तितलियों का मेला भरा है,
मुझे भी पतंग पर बैठा दो ना ,
नहीं तो मेरा संदेश पहुंचा दो ना,
चन्दा मामा आयेगे मुझे सैर कराएगे,
पापा पापा
देखो आसमान- - - - - - २
सुनीता अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश स्वरचित
[20/01, 4:01 pm] रागनि मित्तल: जय मांँ शारदे
*********
अग्निशिखा मंच
**********
दिन-गुरुवार
दिनांक-20/1/2022
चित्र आधारित रचना
जैसे डोर हमारे हाथ,
गगन में उड़े पतंग।
चारो ओर घूमे स्वतंत्र,
इनके बहुत हैं रंग।
एक नारी बीच मे,
अपने ढंंग से नचाती।
एक बड़ी सी पतंग,
हम सबको दिखाती।
ऐसे ही भगवान ने,
थामी हमारी डोर।
तरह-तरह के लोग बनाये,
नचाता है चहुओर।
इसके जैसे उड़ना सिखाया,
लड़ना,गिरना भी सिखाया।
कैसे रहते सबके बीच,
हमको भिड़ते भी दिखाया।
रागिनी मित्तल
कटनी,मध्यप्रदेश
[20/01, 4:07 pm] 💃rani:
अग्निशिखा मंच
विषय---चित्र पर आधारित
विधा---कविता
दिनांक---20-1-2012
पतंग
रंग बिरंगी उड़ती पतंगे आसमान में
डोर है उनकी औरों के हाथों में,
बस जिधर घुमाए उधर जाए पतंग
धीरे-धीरे ढील देते ऊपर से ऊपर उठती जाए ।
और हवा के संग संग उड़ती जाए
और जरा सा ध्यान ना दो तो कट भी जाए ।
डोर कसी हो ज्यादा तो अपनी अकड़
में कट जाएगी और
ढील दे दें ज्यादा तो दूसरों संग
उलझ कट जाएगी ।
पतंग उड़ाने की भी कला आनी चाहिए
जैसे जितनी ऊँची उड़ाई वैसे ही,
धीरे-धीरे वापस लानी चाहिए ।
ऐसे ही जीवन अपना है एक एक कदम
बढ़ाना है ताकि कुछ हासिल कर पाएं
सत्य राह पर चलकर ही जीवन
अपना सुगम बनाएं
राहें होती कठिन सत्य की
ऊँचाइयों को पाने की
पर जब अपना मकसद पा जाता
सदा के लिए वह टिक जाता और
जल्द तरक्की पाने के चक्कर में
जो गलत राहों को पकड़ लिया
और बिना सोचे समझे उन पर
कदम बढ़ा लिया तो, मंजिल तो
भले जल्द मिल जाए 'रानी'
ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी
फिर जिंदगी की सारी खुशी
इक मुसीबत बन जाएगी ।
रानी नारंग
[20/01, 4:08 pm] श्रीवल्लभ अम्बर: उड़ी पतंग नीलगगन में,
गजब उत्साह तनमन में
जबकि बंधी वो कच्ची डोर से,
संकोच जरा नही जीवन मे,
तन काठी का बना लेई से,
है बुलंदी कागजी बदन में
कटने लूटने का भय नही,
केवल इरादे दामन में।
मकर संक्रांति पर हार्दिक बधाई शुभकामनाये।
[20/01, 4:09 pm] अंजली👏 तिवारी - जगदलपुर: आज मैं भी उड़ाई पतंग
आसमान में फिराके
बच्चों के साथ में
जरा बचपन जी लूं
जरा में पतंग उडा लूं
आसमान में उडा के देखती हूं
कितनी उपर तक पतंग
मेरी जाती हैं
कोशिश करती हूं
कोई पतंग की डोर न काट लें
बचा के रखती हूं
कट जायेगी
तो लूटने आए जायेंगे
मेरी पतंग ले जायेंगे
अपनी पतंग किसी को न दूंगी
आसमान में पतंग बाजी करूंगी
आज मैं भी बचपन के दिन जीऊंगी
सारा खुशी अन्दर की बाहर निकालूगी।
जरा जी भरकर आसमान में पतंग को उड़ते देखूंगी
अपने छत में बच्चों के साथ
मैं भी पतंग उठाऊंगी ।
अंजली तिवारी मिश्रा जगदलपुर छत्तीसगढ़
[20/01, 4:23 pm] हेमा जैन 👩: रंग बिरंगी पतंगे
लगती कितनी प्यारी
दूर गगन मे हवा
से बाते करती
कभी इधर तो
कभी उधर नाचती
डोर संग बंध कर
मर्यादा मे रहना सिखलाती
ऊंची उड़ान भर के भी
पर डोर संग ही रहती
कट जाये तो वजूद
पर सवाल खड़ा करती
कटी पतंग जिसे मिले
उसकी हो लेती ये सिखलाती
बच्चे युवाओं के मन को
खुशियाँ देती ये अपरम्पार
पेच लड़ा के आनन्द से ये
हर परिस्थिति का सामना करती
खुद कट कर भी फिर उड़ान भरती
यही सबक हमको बतलाती
हेमा जैन (स्वरचित )
[20/01, 4:33 pm] 💃वंदना: पतंग
मैं पतंग हूं पिया तूम डोर मेरी
ले चलोगे जिधर मैं चलूंगी उधर
भाॅप लूंगी हवाओं के रुख पिया।
फिर नचूंगी इशारे पर तेरे पिया
ये काटा वो काटा तू करना पिया
पर कटने ना मुझको तू देना पिया।
मेरा तुझ पे अटूट भरोसा पिया
तेरे हाथों में मेरी है डोर पिया
जानू जान से प्यारी में तुझको पिया।
प्रीत की डोर से में बंध के चली
पीहर सासरे की कमानी बनी
यह बंधन का मांझा मजबूत है
पिया।
पेंच कितने कटे पर ना टूटे पिया
डोर के संग चरखी संभाले पिया
बड़े पारखी और गुणी है पिया।
कई जन्मों से साथ हैं तेरा मेरा
मैं हूं पतंग तुम डोर पिया।
वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश।
[20/01, 4:43 pm] Anita 👅झा: नमन मंच
चित्र आधारित रचना
पतंग बाज़ार
बहना रानी कहती -भैया राजा से
मेरे सपनो की दुनिया में
सजा पतंगो का बाज़ार है ।
साथ साथ पतंग उड़ा सपने पुरा कर जाऊँगी !
मेरे सपनो की सतरँगी दुनिया में ,
मेरे भैया राजा तुम कब आओगे ।
सजी हुई छत दीवारों पर पतंगो ,
की चरखे मँजे की फुलवारी हैं ।
रंगो ने इतिहास रचा हैं ।
पतंगो में राणा सांगा ,
वीरों की तस्वीरें लगी है ।
चरखे संगीत सजा तुम आओगे ।
राजस्थान के सपने बुने है ।
संक्रान्ति का त्योहार
तिल गुड़ ,पतंग उड़ा ,
पतंग बाज कहलाओंगे ।
नये नये सपने बुन रोज़ ,
आसमाँ निहारा करती हूँ
पतंग तुम्हारी डोर मँजे की ‘
हवाओं संग उड़ आओगे
अनिता शरद झा
[20/01, 4:58 pm] ओम 👅प्रकाश पाण्डेय -: पतंग ( चित्र पर आधारित रचना) --- ओमप्रकाश पाण्डेय
नील गगन में ऐ उड़ती रहती
लाल पीले नीले हरे बैगनी
ऐसे अनेक रंगों की पतंगें होती
बच्चे जवान बूढ़े बुढ़िया सबकी
मन पसंद होती पतंग...... 1
चाहे जितना ऊपर उड़ ले पतंग
पर सदा डोर से बधीं रहती
होता डोर किसी और के हांथों में
जैसा वह चाहता वैसे ही उड़ती
अपने मन से कहाँ उड़ पाती...... 2
चारों ओर से हमेशा घिरी रहती
अनेक पतंगों से यह आसमान में
इसे काट कर खुद आगे बढ़ना ही
एकमात्र लक्ष्य रहता उन सबका
संकटग्रस्त हमेशा ऐ रहती .........3
जीवन इसका क्षणभंगुर है
फिर भी मस्ती में उड़ती रहती
खुद भी खुश रहती हमेशा
औरों को भी खुशी बांटती रहती
परवाह नहीं इसे किसी का...... 4
पता है इसको कि जीवन इसका
है केवल उड़ना औरों के कारण
कट कर गिरुंगी एक न एक दिन
फिर भी सदा खुशी बिखेरती रहती
धन्य है जीवन इसका....... 5
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)
[20/01, 5:40 pm] कुम कुम वेद सेन: चित्र पर आधारित
सखियों संग चले पतंग उड़ाने
रंग बिरंग पतंगों से आकाश सजाने
मस्ती के दिन कुछ हम जी ले
सखियों संग पतंग उड़ा ले
आकाश में जब उड़े पतंग
मन में उठे हजारों उमंग
घर घर छत पर खड़े हैं बच्चे
हाथ में लेकर पतंग की डोर
पतंग लड़ाना लगता है अच्छा
कटने पर मन हो जाता बेचैन
पतंग देती है जीवन का संदेश
उड़ने को जितना मन करें उड़ो
कटने पर ना होना उदास
यही है जीवन का रास
जब तक उड़ते रहो मस्त रहो
सपने देखो उड़ना सीखो
नहीं करोगे तो नहीं सीखो गे
जीवन में दाव लगाना पेच लगाना
कुमकुम वेद सेन
[20/01, 5:46 pm] मीना कुमारी परिहारmeenakumari6102: पतंग उड़ी जाय
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वो देखो उड़ती पतंग को
खुले आसमां में उड़ी-उड़ी जाय
आवारा , बंजारा इठलाता -सा
लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
इन्द्रधनुषी रंगों के समान रंगीन
कभी इधर तो कभी उधर
मानों दुनियां से हो बेखबर
और ऊंचा , बहुत ऊंचा उड़ती जाय
उड़ता है आसमां के उस पार
बादलों से खेले, कभी टकराते
घर तूफानों, झंझावातों में फंस
जाते
तो हिम्मत दिखा निकल जाये
वो स्वतंत्र होते हुए भी परतंत्र है
क्योंकि पतंग की डोर थामे कोई और है
कभी उसे खिंचता तो कभी ढील देता
उसे नहीं मालूम जाना कहां है
बस उड़ता रहा, आसमां पे चढ़ता रहा
हर पल एक नई उड़ान लिए
न मंजिल का पता,न ही घर की फ़िक्र
न अपनों का मोह, न ही गैरों का डर
बस उड़ता ही गया वो अपनी धुन में
वो असीम ऊंचाइयों की ओर
और दूर आसमान के उस पार तक
वो देखो देखो उड़ती पतंग को
डॉ मीना कुमारी परिहार
[20/01, 5:49 pm] सुरेन्द्र हरडे: अग्निशिखा मंच को नमन
आज की विधा:- चित्रपर आधारित रचना
कविता *पतंगोत्सव*
आओ सखी मकरसंक्रांति त्यौहार आया है पतंगोत्सव आया है।
पतंग सिखाती उंचे उड़कर
जीवन जीने की कला।।१।।
लाल,पीली,काली नीली, सफ़ेद,
गुलाबी हरी- हरी आसमान में पतंगे लहराएंगे मकरसंक्रांति का पर्व दुनिया मनाएंगी घर घर में खुशियां भरेंगी।।२।।
हर प्रांत में पतंग उत्सव मनाया जाता बच्चों का हर्षोल्लास आसमान में छा जाता किसी की कट जाती तो कोई काटता है
ओ काटs ओ काटs
का शोर सुनाई देता ।।३।।
पतंग उड़ाये मगर ख्याल रहे कि किसी की गर्दन ना कटे नायलॉन मांजा से अपने ही लोग दुख से ना छटपटे चीन की हर चीज का विरोध करो साधे धागे से प्रेम की पतंग उड़ाकर सबका दिल जीतो।।४।।
सुरेंद्र हरड़े
नागपुर
दिनांक २०/०१/२०२२
[20/01, 6:16 pm] रानी अग्रवाल: मैं और मेरी पतंग___
२०_१_२०२२, गुरुवार।
विधा_ चित्र पर कविता।
शीर्षक_ मैं और मेरी पतंग।
उड़ चली ऊंची मेरी पतंग,
लेकर मेरे उम्मीदों के रंग,
बंधी पतंग संग उत्साह की डोर,
मेरे हाथों में है इसका दूजा छोर।
उड़े कितनी ऊंची गगन,
पर धरती से जुड़े रहते चरन,
ये प्रतीक है मेरे अरमानों का,
आंगन है इसका आसमानों का।
उड़ती,उछलती,मचलती है,
अपनी मस्ती में झूमती है,
कटने से न डरती है,
काटने को दौड़ती है।
आगे बढ़ती जाती है,
हवा में बेफिक्र लहराती है,
खो गई है अपनी मस्ती में,
यहां से दूर अपनी बस्ती में।
इसे भरोसा है मेरे हाथ पर,
इसे भरोसा है मेरे साथ पर,
कभी कटने न दूंगा इसे,
कभी टूटने न दूंगा इसे।
हम दोनों एकसे हैं,
हम दोनों मजे में हैं,
दुनिया का नहीं करते गम,
बस,उड़ते_ उड़ते जाते हम,
बना रहे यूं ही हमारा संग,
फीके न पड़े कभी ये रंग,
सदा उड़ती रहे अपनी पतंग।
स्वरचित मौलिक रचना____
रानी अग्रवाल, मुंबई।२०_१_२०२२,गुरुवार।
[20/01, 6:27 pm] डा. अंजूल कंसल इन्दौर: चलो सखि पतंग उड़ाए
चलो सखि रंगबिरंगी पतंग उड़ाएं
घर में ही विराजमान रहना है
कोविड नियमों का पालन करें
अपनी छत पर ही पतंग उड़ाएं।
नीली पीली हरी नारंगी रंग बिरंगी
पतंग लहराकर उत्साह देती
उमंग उल्लास से पतंग उड़ाएं
हौसले हिम्मत से पेंच लड़ाएं।
पतंग नीले नंबर छूने को आतुर
पतंगों का जीवन है क्षण भंगुर
कभी ऊंची उड़,आकाश को छूती
कभी कचरे में जा कर गिर जाती।
पतंग तरह ही सब का जीवन
पतंग के समान लक्ष्य बनाओ
मंजिल को छूने की कोशिश करो
कट कर गिरने से ना घबराओ।
लहराती पतंग देती है संदेश
कभी निराशा नहीं छूने देती है
सकारात्मक भावों को अपनाओ
ऊंची पतंग उड़ा कर मंजिल पाओ।
डॉक्टर अंजुल कंसल "कनुप्रिया"
20-1-22
[20/01, 6:54 pm] वीना अडवानी 👩: पतंग
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मेरी पतंग सबसे प्यारी
रंग बिरंगी इतनी प्यारी
चिन्नी , कागज़ से बनी
हैं पतंग मेरी सारी।।
मांजा कच्चे सूत का बांधा
दो चरखी में है आधा-आधा
आधा लाल तो आधा हरा है।।
संग मेरे सबसे बड़ा भाई खड़ा है।।
मुझे पतंग आज उड़ाना सिखाया
मुझे उड़ाके दी फिर पेंचा लगाया।।
मेरी पतंग का धागा कट पतंग दूर गिराया
मुझे देखो खूब रोना भी आया।।
मेरा भाई मुझे खूब समझाया
अरे छोटे पतंग संग पैंचे में ही मज़ा है आया
चलो दूजी पतंग संग उसे मज़ा चखाएंगे
उसकी पतंग अब कि बार हम काट गिराएंगे।।
मेरा मन फिर मुस्काया झटपट-झटपट
दूजी पतंग ले आया।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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