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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच के ब्लॉक पर आज दिनांक 18 ए/१/2022 को दिए गए विषय पर "लघु कथा "चैन की बंसी बजाना "(सुख से रहनापर रचनाकारों की रचनाएं पढ़ें अलका पांडे मुंबई



लघुकथा 
विषय चैन की बंशी बजाना 

शिर्षक - हाथो का कमाल 

माली काका बहुत ही परेशान रहते थे उन्होंने अपने इकलौते बेटे दिनेश को बहुत कठिनाइयों से पढ़ाया वह इंजिनियर बन गया पर उसे नौकरी ही नहीं मिल पा रही थी कोरोना के लाकडाऊन ने वैसे हूँ लोगों की नौकरी खा गया अब नये बच्चों को कैसे नौकरी मिले काका बहुत चिंता में थे 
अचानक दरवाज़े पर बेल बजती है काका दरवाजा खोलते हैं कुरियर वाला दिनेश के नाम का लिफ़ाफ़ा दे कर चली जाता है माली काका दिनेश को आवाज़ लगाते हैं दिनेश लिफ़ाफ़ा खोलता है और ख़ुशी से काका को गोद में उठा कर झूम जाता है कहता है पापा मेरी नौकरी लग गई १५ दिन में ज्वाइन करना है मुम्बई में , अब आप चिंता न करे काम बंद कर आराम करे …
काका ख़ुशी ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और चैन की बंशी बजाते हैं कहते अब मुझे सुकुन मिल गया सारी चिंता खत्मबेटा तेरी नौकरी ने मुझे सारे जहां का चैन ला कर दे दिया 
दिनेश काका हाथ चूम कर कहता है पापा इन हांथो की वजह से आज में इंजिनियर बना । 

अलका पाण्डेय मुम्बई

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[18/01, 10:33 am] विजेन्द्र मोहन बोकारो: मंच को नमन
विधा:-- *लघु कथा*
शीर्षक:-- *एक फोन कॉल*

आज रितु कि कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई। हर साल की तरह एक्स- मस की छुट्टी में मैंके जाया करती थी जो जाना अनिश्चित हो गया। सोसाइटी और स्वास्थ्य विभाग को भी सूचना दे दी गई। उसके फ्लैट को क्वॉरेंटाइन के तमाम बंदीशे लगा दी गई। अब पति और 12 साल के बेटे को ही घर और खाना पीना संभालना था। कामवाली को भी रोक दिया गया। 
हाँ सोसाइटी के व्हाट्सएप ग्रुप से सूचना आने लगी *टेक केयर वेल सून*। तुम्हें महसूस होना चाहिए तुम अकेली नहीं हो हम लोग साथ हैं तुम्हारे। सुबह से शाम हो गई रितु के पास कोई भी मैसेज नहीं आया की मैं तुम्हारे पास खाना पहुंचा रहा हूं। बाहर दरवाजा पर रख देंगे ले लेना इंतजार करते रही। ऊपर के तल पर श्वेता रहती है उसका मैसेज आया कामवाली बोल रही थी 15 दिन तक नहीं जाएंगे तुम अपना इंतजाम करना। मैसेज पढ़कर चिंतित हुई पिछले 2 महीने का पगार दिए थे इस बार भी 15 दिन का पगार देना होगा। लेकिन इसी बीच *रमा कामवाली* का एक फोन कॉल आया आप कैसी हैं? मैम साहब कुछ खाए हैं कि नहीं? मेम साहब सुबह 10:00 बजे और शाम  5:00 बजे आपके घर पर खाना पहुंचा दिया करेंगे आप चिंतित ना हो। बाहर दरवाजा पर रख देंगे कॉल कर देंगे अंदर से आकर साहब ले जाएंगे। यह सुनकर रितु के मन में उत्साह बढ़ गई। गरीब है लेकिन मानवता है। उसके प्रति स्नेह उत्पन्न हो गई और सदा सदा के लिए छोटी बहन की तरह अपने पास रख ली।

विजयेन्द्र मोहन।
[18/01, 10:44 am] वैष्णवी Khatri वेदिका: मंगल वार - 18/1/2022
विषय /चैन की बंसी बजाना ( सुख से रहना)
     
विधा - लघुकथा 

डोडो नाम के पक्षी मॉरीशस और हिंद महासागर के अन्य द्वीपों पर पाए जाते थे।  सालों से यहाँ रहते थे। यहाँ इनका शिकार करने वाला कोई जीव जंतु नहीं था। भरपूर भोजन खाने के लिए मिल जाता था इस कारण यह सब निश्चिंत और चैन की बंसी बजाते थे।

प्रकृति ने इन्हें तेज़ भागने और उड़ने की क्षमता दी थी, लेकिन इसकी जरूरत न पड़ने के कारण उनके पैरों की हड्डियाँ नरम होती चली गईं और पंख शिथल होते गए।  इस कारण ये धीरे अपनी रक्षा करना और आक्रामकता को भूल गए थे। 16 वीं शताब्दी में जब डच यहाँ पहुँचे हैं तो वे हैरान रह गए कि इस पक्षी को आसानी से पकड़ा जा सकता है। वह अपने साथ है कुत्ते और  भी लाए थे। कुत्तों ने इनका शिकार किया और चूहों ने इनके अंडे खाए। इस प्रकार इनकी सारी की सारी जाति विलुप्त हो गई। 

अब केवल इसकी दो ममी बना कर रखी गई है। एक ब्रिटेन के म्यूजियम में और दूसरा मॉरीशस यूनिवर्सिटी में। जो प्रकृति द्वारा प्रदत्त गुणों का लाभ नहीं उठाता और उसके विपरीत जाता है उसका यही हश्र होता है इस इस कारण ईश्वर द्वारा दिए गुणों का हमें भरपूर प्रयोग करना चाहिए।


वैष्णो खत्री वेदिका
[18/01, 10:45 am] आशा 🌺नायडू बोरीबली: ‌‌(लघुकथा ) 
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  🌹चैन की बंसी बजाना🌹
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       कोरोना काल का प्रारंभ चल रहा था ।साहब के छोटे भाई का विवाह नागपुर में था। साहब परिवार के साथ कार से विवाह में शामिल होने के लिए चले गए। तीसरे दिन रात में वापस आना था ।पर वहां लॉक डाउन लग गया, तो वापस आना संभव न था।
       ‌दूसरे ही दिन सुबह सुबह साहब का फोन आया।" रामदीन यहां लॉक डाउन लग गया है। हम लोग 20 दिन तक आ न पाएंगे। तुम घर का ठीक ठीक ख्याल रखना। अपने सारे काम रोज करते रहना ।गेट पर ताला लगाए रखना। घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलना। अपना ख्याल रखना और गोल्डी की अच्छे से देखभाल करना। अपने लिए और गोल्डी के लिए भोजन बना लिया करना ।हम रोज फोन पर तुम्हारा समाचार जानते रहेंगे।"
          रामदीन बेचारा बड़े असमंजस में आ गया। जिम्मेदारी से उसे घबराहट होने लगी ।सारा घर बंद कर किचन व सामने के कमरे में ही रहता था। सुबह रोटियां सेक लेता ।गोल्डी का खाना पका लेता ।फटाफट सारे काम निपटा कर खटिया पर पड़ा रहता ।सोचा काम धाम तो है नहीं पड़े पड़े चैन की बंसी बजा लेता हूं। पर कहां ,वह तो डर और चिंता में डूबा जा रहा था। मौका मिला फिर भी वह चैन की बंसी न बजा सका , क्योंकि वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझता था। जिस दिन साहब लोग वापस आए उस दिन उसने चैन की बंसी बजाई।
********************स्वरचित रचना .
डॉ . आशालता नायडू .
मुंबई . महाराष्ट्र .
********************
[18/01, 11:58 am] सरोज दुगड गोहाटी: * अग्नि शिखा काव्य मंच *
* मंगलवार १८/१/२०२२ /
 * बिषय चैन की बंसी बजाना *
 * विधा :- लघुकथा * 

* रघु शहर में एक मिल में नौकरी करता था ! कम आमदनी में वह अपने मांँता - पिता पत्नी बच्चो को गाँव में रखता था ! शहर का प्रदुषण एक छोटी सी कोठरी में चार लोगों के साथ रहना ढाबे का खाना रघु को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था ?
वह अपने परिवार को बहुत याद  करता था !
करोना का कहर आया और रघु की फैक्ट्री बंद हो गई ! मन मारकर वो गाँव आया ! अपने परिवार से मिल उसकी सारी निराशा खत्म हो गई उसका मन प्रफुल्लित हो उठा ! माता -पिता ने कहा बेटा क्यों मन छोटा करते हो सब साथ मिल मेहनत करेंगे तो गुजरा हो ही जायेगा !
रघु के पिता का एक खेत था मगर उम्र का तकाजा था तो खेत विरान पड़ा था !
रघु ने अपने खेत की जुताई की नियत समय बुआई की तो उसकी आशा से अच्छी फसल हुई ! उसकी पत्नी भी काम काज में सुघड़ थी ! वह अपनी सास के साथ मिल आम पापड़ , अमचूर , जामुन का सिरका , आचार इत्यादि घर पर बनाने लगी ! उसके बनाए सामान के स्वाद और गुणवत्ता देख समान हाथों हाथ बिकने लगा !
        धीरे- धीरे आचार आम पापड़ की  बिक्री बढ़ी तो रात को रघु और उसके पिता समान पैकिंग में हाथ बंटाने लगे !
रघु की माँ खाना बनाने व घर के कामकाज में बहु का हाथ बटाने लगी !
चार पैसे हाथ आये तो घर में खुशहाली छा गई ! 
गाँव की शुद्ध हवा पानी और घर के सात्विक  खाने से रघु की सेहत सुधर  गई ! मेहनती तो वो था ही अब बदन कसरती होने लगा ! 
बच्चे माता-पिता दोनों का साथ पाकर  खिलने लगे !
बुढ़े माँ - बाप की आँखों में चमक आ गई !
एक दिन रघु बाजार से जलेबी लाया और बच्चों को आवाज लगाई ! दोनों बच्चे उसके गले में झुल गये और बोले पापा अब कभी शहर मत जाना !
बच्चों के सर पर हाथ फिराकर रघु ने कहा नहीं बेटे अब मैं कभी शहर नही जाऊंगा ! यहीं गाँव में मेहनत कर "चैन की बंशी बजाऊंगा !

मौलिक स्वरचित
सरोज दुगड़
खारुपेटिया 
असम 
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[18/01, 12:01 pm] रागनि मित्तल: जय मां शारदे
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 अग्निशिखा मंच
 दिन -मंगलवार 
दिनांक -18/1/ 2022 लघु कथा प्रदत्त विषय-- *चैन की बंसी बजाना या सुख से रहना*

 कांतिलाल और उनकी पत्नी ने बहुत मुश्किल से अपनी उम्र निकाली है। आर्थिक स्थिति से कभी भी वे और संपन्न नहीं थे। बस जितना कमाते थे उसमें किसी तरह गृहस्थी चलाते थे ।उसी स्थिति में उन्होंने दो बच्चो का पालन पोषण किया और उन्हें लायक बनाया।उनकी जरूरतों के लिए अपनी सभी इच्छाओ को दबा दिया।
      आज दोनों बेटे ऊंचे पद पर कार्यरत है । उनका वेतन भी काफी अच्छा है। लेकिन जब से बहू आई हैं,दोनों के रंग ढंग बदल गए हैं ।बेटे और बहू का व्यवहार बिल्कुल भी ठीक नहीं है। समय पर खाना ना मिलना, दवाई ना मिलना, प्रेम ना मिलना, पूरे समय बेइज्जती होना बस यही इनके जीवन में रह गया था।
                एक दिन कांतिलाल बोले कि हम दोनों ने तुम लोगो के लिए अपने सुख त्याग दिये। लेकिन आज तुम सभी मिलकर हम दोनों को नही रख पा रहे हो।हम दोनों से ऐसा व्यवहार मत किया करो।
तब सभी बच्चे बोले-हम तो ऐसे हीऔर इतना ही कर पायेंगे।आप लोगो को रहना है तो रहो,वरना कहीं भी जा सकते है।समय निकलता रहा।दोनो बुजुर्ग की  हालत और भी खराब होने लगी।
       एक दिन खाना न मिलने पर जब कांतिलाल ने बेटो से कहा तो वो बोले-आप लोगो का हम रोज-रोज नहीं कर सकते। चलिये आप दोनों को वृध्दाश्रम मे छोड़ आते है।दोनो के लाख मना करने पर भी बेटे उन्हें वृध्दाश्रम छोड़ आये।कांतिलाल और उनकी पत्नी बहुत दुखी हुये।
         दूसरे दिन नींद खुली तो देखा कोई गर्म पानी लेकर खड़ा है।उन्होने मुँह हाथ धोया।तभु चाय आ गई।थोड़ी ही देर में नहाने का इंतजाम हो गया।फिर नाश्ता हुआ। सभी ने मिलकर भजन किये।
दोपहर मे खाना हुआ।
शाम को सभी मिलकर आपस मे गप लड़ाते।
सिर दर्द होने पर वहां की कार्यकर्ता ने तुरन्त दवा और बाम लाकरज दी।
        उन दोनो को बहुत अच्छा लगा।अब तो उनकी मानसिक और शारीरिक दोनो हालत अच्छी हो गई।
         तब कांतिलाल की पत्नी बोली काश हम पहले यहां आ गये होते।यहां सब कुछ बहुत अच्छा है।अब हमारे *चैन की बंसी बजाने का समय आ गया हैं।अब हम सुखी है।*

रागिनी मित्तल
कटनी,मध्यप्रदेश
[18/01, 12:14 pm] चंदा 👏डांगी: *लघुकथा*
*!!चेन की बंसी बजाना !!*
2021 अप्रैल माह कोविड ने हाहाकार मचा रखा था किसी को समझ नही आ रहा था आखिर क्या किया जाए ऐसे मे मेरे भतीजे की शादी 26 मई को होना निश्चित हुई थी हम सभी पशोपेश मे थे क्या किया जाए सभी बुकिंग पहले ही हो चुकी थी । एक बार को सोचा कोर्ट मैरिज करवा देंगे पर घर की पहली शादी मन ये मानने को तैयार नही। फिर सोचा शायद माहौल ठीक हो जायेगा तो शादी 30जुन तक कर लेते हैं ।खुशी की बात ये थी की सभी बुकिंग वालों ने  भी बराबर साथ दिया और आखिर मे 200 महमानों के साथ शादी करने का तय किया गया । सबके मन मे डर तो बना ही हुआ था कि क्या 30 जुन तक कोरोना कम हो जाएगा। लेकिन ईश्वर ने साथ दिया और मेरे भतीजे रजत की शादी कोविड प्रोटोकाल को मानते हुए सकुशल सम्पन्न हुई । और हम सभी ने चैन की बंसी बजाई ।
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर मंदसौर मध्यप्रदेश
[18/01, 12:42 pm] शेभारानी✔️ तिवारी इंदौर: चैन की बंशी बजाना  लघुकथा

मोहन अपने परिवार  के साथ गांव में रहता था। वह पढ़ा-लिखा था ।   कई बार नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। मोहन  ने हार  नहीं मानी।वह गांव से शहर आ गया और एक कमरे का मकान किराए पर ले लिया ।जब तक कोई नौकरी नहीं लगी, तब तक वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा, और जो भी रुपए मिलता  उसमें से गांव में भेज देता।  माता-पिता को उसकी कमी खलने लगी। मां ने फोन पर कहा... बेटा मोहन यहीं आ जाओ जैसा भी होगा हम कम में ही गुजारा कर लेंगे, लेकिन हम से अलग ना हो। मोहन को भी अकेले अच्छा नहीं लग रहा था। खासकर मां के हाथ का खाना नहीं मिल रहा था।एक दिन मोहन ने अख़बार में जॉब की वेकेंसी पढ़ी, और उसने तुरंत फ़ॉर्म भर दिया ।कुछ दिनों के बाद उसका साक्षात्कार हुआ ,और उसका सिलेक्शन एक ऑफिस में प्राइवेट नौकरी के लिए हो गया ।ऑफिस से आने के शाम को ट्यूशन पढ़ाता था। एक बड़ा मकान किराए पर  ले लिया, और अपने माता- पिता को शहर में ले आया। माता-पिता ने एक अच्छी सी लड़की देखकर अपने बेटे की शादी कर दी, और अब आराम से चैन की बंसी बजाने लगे।

श्रीमती शोभा रानी तिवारी,
619अक्षत अपार्टमेंट खातीवाला टैंक इंदौर  म.प्र. मोबाइल 8989 409 210
[18/01, 1:06 pm] वीना अडवानी 👩: मेरे बच्चे का भविष्य संवारा
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राहुल बहुत ही सुशील मेहनती लड़का था , बच्पन में ही उसके सर से माता पिता का साया उठ गया था , चाचा चाची ने ही पाल पोसकर बड़ा किया , स्वभाव से राहुल के चाचा बहुत ही अच्छे थे परंतु राहुल की चाची उस पर जुल्म ढाती थी । घर के काम करवाती थी राहुल के चाचा के दो बच्चे थे राहुल उनके साथ खूब खेलता और उनका ध्यान भी रखता था राहुल के चाचा सब्जी विक्रेता थे। राहुल को पढ़ने का बहुत शौक था परंतु चाची उसे पढ़ने नहीं देती थी वह उसे कहती की तेरे मां-बाप तो मर गए एक फूटी कौड़ी तक छोड़ गए ऊपर से हमारे ऊपर तेरा भी बाहर छोड़ दिया जा अपने चाचा का काम में हाथ बटा, राहुल अपने चाचा की खूब मदद करता था चाचा कहते थे तू पढ़ ले राहुल रात को किताबें लेकर कुछ देर पढ़ लेता था धीरे-धीरे दिन भी चले गए । राहुल बड़ा हो गया और वहां प्रतियोगिता परीक्षा भी देने लगा राहुल अपनी चाची की बातों को दिल पर नहीं लगाता था अपने चाचा के द्वारा बताए गए रास्ते पर चलता गया साथ ही मेहनत भी करता गया राहुल की सरकारी नौकरी लग गई उसे रहने के लिए आवास भी मिला साथ ही गाड़ी भी मिली । उसे अच्छी पोस्ट पर नौकरी मिली जिसके चलते उसकी पगार भी बहुत अच्छी थी बल्कि उसके छोटे भाई बहन पढ़ ना पाए और वह अपने पिता के व्यवसाय में जुट गए चाची को अपने किए पर शर्मिंदगी होती थी राहुल अपने मकान में चाचा चाची को साथ रखने लगा और उनका हर खर्चा उठाने लगा उनके चाचा का खूब सत्कार भी किया गया जिन्होंने सब्जी विक्रेता होने के बावजूद भी राहुल का सही मार्गदर्शन किया चाची के विशेष आग्रह करने पर राहुल के छोटे भाई को उनके ही दफ्तर में राहुल ने क्लर्क की नौकरी दिलवा दी अब राहुल का भाई राहुल को साहब साहब कह कर बुलाने लगा चाची को आज एहसास हुआ जिस राहुल को मैंने मां का प्यार न दिया आज वही राहुल मेरे बच्चे का बिल्कुल बड़े भाई जैसा ख्याल रख भविष्य संवारा। 

वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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[18/01, 1:17 pm] Nirja 🌺🌺Takur: अग्निशिखा मंच
तिथि -18,,1,,2022
विषय- लघुकथा, चैन की बंसी बजाना
          बचत
       आज फिर कामेश की पत्नी लतिका का मकानमालकिन  से छोटी सी बात पर झगड़ा हो गया। कामेश इन झगड़ों से तंग आ चुका था। 
दोस्तो ने उसे समझाया - " देखो 
कामेश तुमको फिज़ूलखर्ची की बहुत आदत है। खर्च करने के पहले तुम  बिल्कुल नहींं सोचते। कुछ बचत की आदत डालो  और एक घर ले लो। "
उसको लगा सभी बचत के लिए कहते हैं क्या जीवन अच्छे से ना जियें। 
     दोस्त कहते - " कामेश  आमदनी में से कुछ बचाने की आदत डालो और कुछ नहींं तो छोटी-छोटी बचत करो।हम  ये नहींं कहते कि  परिवार को कंजूसी में रखो पर याद रखो  यही  छोटी बचत  एक दिन बड़ी बन कर समय पर तुम्हारा  साथ देगी। "
  कामेश को दोस्तों की बात समझ में आई। उसने सोचा मेरा वेतन तो अच्छा खासा है मैं तो बड़ी बचत कर सकता हूंँ। "
       उसने एक  अच्छा घर देखा।   बचत के पैसे और बैंक से कर्ज ले,उसने वह घर खरीद लिया। 
आज वह अपने घर में रह कर चैन की बंसी बजा रहा है और अपने दोस्तों को बचत का महत्व समझाने के लिए बार-बार धन्यवाद कर रहा है। 

नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोंबिवली
महाराष्ट्र
[18/01, 1:34 pm] रवि शंकर कोलते क: मंगलवार दिनांक १८/१/२२
विधा**** लघुकथा
 विषय **#चैन की बंसी बजाना#      
                  ( सुख में रहना )
                """""""""""""""""""""""
         कौशल्या सहाय एक मध्यम परिवार की महिला जिन्होंने बड़े हिम्मत से उसका पति गुजर जाने के बाद एक छोटा सा व्यवसाय चालू किया ।
        रघुपति सहाय एक मामूली किसान थे जो बच्चों की पढ़ाई के वास्ते शहर में आ बसे थे और गांव की खेती शहर से ही*आधे बटई* पर देकर करते थे । 
         उन्हें सांस की बीमारी थी और कोरोनाकी वजह से उनकी हालत खस्ता हो गई और एक दिन वह चल बसे ।
       घर की आर्थिक स्थिति का बोझ कौशल्या पर आ गया । बच्चे पढ़ रहे थे  । छ आठ महीने तो ऐसे तैसे करके निकल गए मगर दिन-ब-दिन कमाई का साधन ना होने कारण काफी दिक्कतें उन्हें आने लगी । क्या करना चाहिए इस कशमकश में उन्हें कुछ पारिवारिक लोगों ने समझाया कि क्यों न वह अपने हुनर का इस्तेमाल छोटे से व्यवसाय के रूप में कर घर को चलाए । चार पैसे आएंगे तो काम चल जाएगा और किसी के सामने गिड़गिड़ाने की  जरूरत नहीं पड़ेगी ।        इस सुझाव पर कौशल्या ने बहुत विचार किया और हिम्मत से आगे बढ़ने का निर्णय लिया । कौशल्या बहुत अच्छा खाना बनाना जानती ।  क्योंकि कौशल्या ने  कैटरिंग वालों के साथ काम किया था तो उसके पास पाक शास्त्र का  अनुभव था । 
         उसने अपने परिवार के सदस्यों की बात मानी और समाज की परवाह ना करते हुए रास्ते पर #**आलू पोहे**#  बनाकर लोगों को खिलाने का छोटा सा व्यवसाय चालू किया । देखते-देखते कौशल्या के आलू-पोहे की चर्चा होने लगी और लोग उस का आनंद लेने के लिए दूर-दूर से आने लगे । और इस तरह से उसके आलू पोहे का यह छोटा सा धंधा खूब चलने लगा । यह ठेले का व्यवसाय आज एक होटल की शक्ल लेने लगा ।
        आज कौशल्या सुकून की बंसी बजा रही है। सुख से उसका परिवार रह रहा है । बच्चें भी उसी व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे । अब उन्हें कहीं नौकरी करने की जरूरत नहीं । 
       आज कौशल्या, उसकी हिम्मत, पाक कला का उसका अनुभव और हुनर के साथ मजे में जी रही है ।
आज वह चैन की बंसी बजा रही है और परिवार भी सुखी हो गया है ।
        मैं इस कहानी के माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि इंसान चाहे कितनी भी बड़ी समस्या खड़ी क्यों ना हो , अगर वो हिम्मत और लगन से काम ले तो वह कभी हारेगा नहीं ।
        कौशल्य की तरह कौशल के आधार पर जीवन कुशल और मंगल बना सकता है ।

प्रा रविशंकर कोलते
     नागपुर
[18/01, 2:13 pm] रामेश्वर गुप्ता के के: चैन की बंशी बजाना-लघुकथा
वंश, हाई स्कूल की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त कर पास हुआ। अब उसने भविष्य के लिए एक लक्ष्य बनाया, उसे उच्च प्रशासन अधिकारी बनना है। उक्त परीक्षा में पास हुए बच्चों के वह साक्षात्कार पढता था, उसका सिर्फ एक ही लक्ष्य रखा है, उसे उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनना है।
धीरे धीरे वह अपने सभी विषय गम्भीरता से पढता है तथा अच्छे बच्चों के संग में बैठकर पढ़ाई करता है।
उसकी कक्षा के अध्यापक महोदय श्री मिश्राजी ने उसे अपने कमरे में बुलाया तथा उन्होंने उसकी रूचि देखकर उसे पढाई करने की विधि बताई। अब वह अक्षरता अपने काम में लग गया।
अब वह समय आ गया, उसे उक्त परीक्षा में बैठना था। वंश की पढ़ाई अच्छी हो गई थी। उसे पूरा विश्वास होगया, वह जरूर उच्च प्रशासन अधिकारी बन जायेगा।
समयानुसार उसकी परीक्षा का परिणाम आ गया। उसका चयन उच्च प्रशासन अधिकारी की जगह पर हो गया था।
उसकी शादी के रिश्ते आने लगे और वंश की शादी अच्छे परिवार में हो गई। अब वह परिवार के साथ एक खूबसूरत नये घर में रहने लगा तथा उसके यहां चैन की बंशी बजने लगी।

द्वारा : रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ।
[18/01, 3:22 pm] श्रीवल्लभ अम्बर: 🙏 नमन मंच🙏

  विषय,,,, चैन की बंसी बजाना।

        सार्थक विषय है,,, हर इंसान इस समय की तलाश में रहता है,,,इसी पर, स्वय के परिवार की एक घटना लिखने का मन कर रहा है,,,
       बात यह है कि मेरे दो बेटे है,,,दोनो ही आईटी कंपनियों में अच्छे पैकेज पर है,, दोनो की शादी ब्याह भी कर दिया ,एक नाती भी बड़े बेटे से है,,,और जीवन मजे से गुजर रहा था, परंतु,,छोटे बेटे की शादी ज्यादा समय नहीं चली और उनका संबंध विच्छेद हो गया ,यह हमारे लिए ब्यूटी पीड़ा दायक घटना हो गई,,,छोटे बेटे का शादी से मन ही हट गया और वह अकेले ही जीवन गुजारने का निश्चय करने लगा,, हम लोग उसे हेमशा समझाने लगे मानने लगे जीवन बहुत बड़ा है अकेले कैसे कटेगा ,,हम लोग गृहस्थ हो कर घर परिवार की परिपाटी वाले लोग है समाज में मान सम्मान से रहने वाले है,,उसी प्रकार तेरा भी घर बस जाए,,, आखिर उसे कुछ समझ में आया और उसे एक लड़की पसंद आ गई,,, खुशी खुशी उसका पुनर्र विवाह हो गया,,, हमे बड़ी प्रसन्नता हुई,, अच्छे संस्कारों वाली,,,दोनो बहुओं से आज घर समूर्णता को प्राप्त हो गया,,,
     सभी घर में प्रसन्न है,,,और इस तरह से हम लोग भी चीन की बंसी बजा रहे है,, आगे हरी इच्छा,,,
        यह सत्य घटना पर आधारित स्वयं की कहानी प्रस्तुत है,,,

🙏 श्रीवल्लभ अम्बर🙏
[18/01, 3:31 pm] कुम कुम वेद सेन: विषय चैन की बंसी बजाना

पूरे परिवार में खुशी का माहौल चारों ओर बरकरार है कहीं जाना हो रहा है तुम बजाना हो रहा है कहीं खाने पीने की तैयारियां हो गई घर की मालकिन दमयंती जी पूरे घर को संभाले हुए हैं उनके पास कभी इस घर में तो कभी ऊपर के घर में कभी बगीचे में इस तरह से वह चारों ओर का प्रबंधन संभाली होनी है कमर में लटक रहा है चाबी का गुच्छा। दमयंती जी के यहां क्या है दमयंती जी  के बेटी की शादी है बहू घर में आने वाली है बहुत खुश है आज बारात है शादी हो गई बहू घर में आ भी गई बहू का मान सम्मान आदर सत्कार रस्में रिवाज पूरी हो गई आज नई बहू का पहला रसोई का दिन था बहू से कुछ मीठा बनाने के लिए कहा गया बहु खुशी-खुशी तैयार थी
उसने खूब अच्छी रसमलाई बनाई और बड़े ही सुसज्जित ढंग से लोगों को खाने के लिए दिया सभी का मन गदगद हो गया सबने बहू को पहली रसोई का नेग भी दिया
जब सासु मां को उसने रसमलाई की कटोरी बढ़ाई बड़े ही शानदार तरीके से दमयंती जी अपने कमर से चाबी का गुच्छा निकाला और बहू के हाथ में थमा दिया यह घर तुम्हारा इस घर के लोग तुम्हारे इस पर तुम्हारा पूरा अधिकार है अब मैं चैन की बंसी बजाकर घर में रहूंगी इस प्रकार दमयंती जी बहुत खुश होकर के अपनी जिम्मेवारी अपनी बहू को दे दी।
साथ मैं यही कहा कि आज से 30 साल पहले मेरी सासू मां ने भी मुझे पहली रसोई के दिन ही यह चाबी मेरे हाथों में दी थी मैं अपने परंपरा को कायम रखी हूं।

कुमकुम वेद सेन
[18/01, 3:40 pm] ओम 👅प्रकाश पाण्डेय -: चैन की बंशी बजाना ( शांति से रहना) -- लघुकथा -- ओमप्रकाश पाण्डेय
मैं आज कोई बात नहीं सुनुगीं, हर साल मकान मालिक किराया बढा़ देता है, अब या तो बढ़ा हुआ किराया दो नहीं तो दूसरा किराये का मकान खोजो. बच्चे अब कक्षा नौ और दस में  पहुँच गए, स्कूल भी नहीं बदल सकते, इतना अधिक घरेलू सामान हो गया है. हर बार मकान बदलने में कितनी परेशानी होती है, तुम्हें कुछ पता है ? आप बैंक से लोन लेकर, छोटा ही सही एक फ्लैट खरीद लो. आखिर हम किराया तो देते ही हैं, वही पैसा हम बैंक को दे देगें. हम सब कुछ  कम पैसे में ही गुजारा कर लेगें. लेकिन आप अपना फ्लैट खरीद ही लो.
चन्दा अपने पति आनन्द को कहे जा रही थी, आनन्द बेचारे चुप चाप सुन रहे थे, क्योंकि चन्दा बात तो सही ही कह रही थी. थोड़ी देर बाद आनन्द ने कहा मैंने एक फ्लैट देख लिया है, बिल्डर और बैंक दोनों से बात हो गई है, लोन मिलते ही नया फ्लैट खरीद लूंगा. बगल के लक्ष्मी नारायण बिल्डिंग में दो कमरे का फ्लैट है. भारतीय स्टेट बैंक के शाखा में लोन के लिए आवेदन भी कर दिया है. कुल साठ  लाख के आसपास लगेगा, मेरे पास भी बीस लाख है, काम हो जायेगा.
इस वार्तालाप के दो माह के बाद बैंक से आनन्द को लोन मिल गया और उसके पन्द्रह दिन के भीतर फ्लैट की रजिस्ट्री भी गया. दूसरे महीने सही मूहूर्त देखकर  आनन्द ने पूजा करके गृह प्रवेश किया. आज आनन्द का पूरा परिवार चैन की बंशी बजा रहा है और अपने घर में खुश हैं.
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)
[18/01, 3:42 pm] वीना अचतानी 🧑🏿‍🦽: वीना अचतानी, 
विषय, ****लघुकथा ****
****चैन की बंसी बजाना*****
राघव गरीब बस्ती  में  रहता  था ।उसके माता पिता  दोनों  मजदूरी  करते थे,।राघव को पढ़ने का  बहुत  शौक था, किसी  तरह ज़िद करके पास के सरकारी  स्कूल में  दाखिला  ले लिया  ।वह बहुत  ही लग्न से पढ़ता, और समय पर स्कूल  जाता ।वह जब स्कूल  से आता  सब बच्चे  खेलने में  मस्त  हैं ।फिर उसने एक उपाय  सोचा,बस्ती के पास ही थोड़ी  सी खाली जगह थी ,वहां  पेड़  के नीचे बस्ती  के बच्चों  को इकट्ठा  किया, और पढ़ाने लगा ।स्कूल में जो भी सीखता  वह बच्चों  को पढ़ाता ।स्कूल  में  बच्चों  की छोटी  घिसी हुई  पेन्सिल और रबड़ लाकर बस्ती  के बच्चों में  बाँट  देता ।धीरे धीरे बच्चे  अधिक मात्रा  में  आने लगे ।अब समस्या  उनको बिठाने और ब्लैक बोर्ड की व्यवस्था  करने की थी,बच्चों  का इतना  उत्साह  देखकर सबके माता पिता  ने पैसे  इकट्ठे कर उनके बैठने  और ब्लैक बोर्ड की व्यवस्था  कर दी ।स्कूल  टीचर ने राघव की इतनी मेहनत देखकर स्कूल  की पुरानी  पुस्तके  और कापियां  उपलब्ध  करवा दीं ।राघव की मेहनत से बस्ती  में  एक छोटी  कक्षा  का उद्घाटन  हो गया  । और अब सब बच्चों के माता-पिता  निश्चिन्त  होकर अपने अपने काम पर चले जाते।बच्चों की शरारतें  भी बहुत  कम हो गईं , सब मिल कर पढ़ाई करते।इस तरह बस्ती में  शान्ति  रहने लगी।सब सुख से चैन की बंसी बजाते सुख से रहने लगे।।
वीना अचतानी 
जोधपुर ।।।
[18/01, 3:50 pm] स्मिता धारसारीया Mosi: चैन की नींद सोना (लघु कथा )

रामलाल के चार बेटियां थी और एक बेटा  वो एक बहुत ही ईमानदार और बड़ा व्यापारी था |घर में किसी भी बात की कमी नहीं  थी  बच्चो को अच्छे  संस्कार दिये और अच्छे स्कूल में पढ़  रहे थे  वो काफी दिलदार था ,कोई  भी मदद के लिए आता वो उसकी सहायता करता |उसकी  तमन्ना रही कि  सभी ऊंची शिक्षा प्राप्त कर बड़े अफसर बने , पर उसने भविष्य की चिंता  नहीं की  उनकी एक रेवती नाम की बहन भी थी  वो गांव  से कुछ दिन उनके पास  रहने  आई | एक दिन बातों  बातों में  रेवती बहन ने कहा ..अरे रामलाल तूने बच्चो की पढाई एवं शादी के लिए कुछ  जमा किया की नहीं ,रामलाल ने कहा नहीं दीदी ..क्या जरुरत है  अपना व्यापर अच्छा ही चल रहा है ,रेवती  बहन  ने कहा ..समय  हर  वक्त एक जैसा नहीं होता ,मेरी मानो तो सबके नाम बैंक में रकम जमा करवा दो ,रामलाल ने कहा हा दीदी आपने सलाह  अच्छी दी है  आज ही जमा  करवा देता हूँ  एक दिन अचानक से रामलाल के घर  आग लग गईं  और सबकुछ खत्म हो चूका था  पर रामलाल  बिल्कुल भी विचलित नहीं हुआ ,क्योकि उसने  रेवती बहन की सलाह मानकर अच्छी खासी रकम सब बच्चो के नाम जमा करवा दी थी  आज इतना कुछ होने के बाद भी रामलाल चैन की नींद  सो रहा  था 

स्मिता धिरासरिया ,बरपेटा रोड
[18/01, 4:14 pm] निहारिका 🍇झा: नमन अग्निशिखा मंच
विषय;-चैन की बंसी बजाना(चिंता मुक्त हो जाना)
दिनाँक;-18/1/2022
रीमा कक्षा 9की छात्रा थी।।पढाई में वह सामान्य ही थी।उसे गणित व अंग्रेजी विशेष रूप से कठिन लगते थे।जब भी मम्मी पढ़ने कहतीं वह हिंदी की कविताएं या विज्ञान के चित्र बना कर समय बिता देती ।।धीरे धीरे सत्र खत्म होने आया ।परीक्षा की तिथि भी आ गयी अब रीमा का मन डरने लगा कि बाकी तो ठीक है पर गणित व अंग्रेजी जैसे अनसुलझे विषय की परीक्षा वो कैसे  दे पाएगी।।घर मे यदि चर्चा करती तो उसे ही डांट पड़ती कि साल भर क्या किया।।वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करती रही कि भगवान इस बार भर सम्भाल लो साल मत खराब हो।अगली बार  समय से पूरी पढाई ध्यान से करूंगी।।
तभी अचानक यह खबर आई कि इस महामारी के कारण सिर्फ बोर्ड की परीक्षा होगी वो भी ऑनलाइन ।बाकि सब को जनरल प्रमोशन दिया जायेगा
रीमा ने जब यह सूचना पढ़ी तो उसे यकीन ही नही हुआ।।पर जब क्लास टीचर ने उसे उत्तीर्ण का प्रमाणपत्र दिया तो वह खुशी से फूली  न समायी।
मन मे भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकल्प लिए उसने चैन की बंसी बजाई।।
निहारिका झा।।🙏🙏🌹🌹
[18/01, 5:04 pm] सुरेन्द्र हरडे: अग्निशिखा मंच को नमन🙏
आज की विधा :- लघुकथा
विषय:- *चैन की बंसी बजाना*
अर्थ:-  चिंता मुक्त होना

  "कहते जब रोम जल रहा था तब वहां का राजा चैन की बंसी बजा रहा था"

      प्राचार्य अरविंद वर्मा बड़े परेशान थे कक्षा नौवीं के छात्र बडे़ उदमी थे रोज कुछ नहीं कुछ कारनामे करते थे सभी शिक्षकों उस कक्षा का सामना करना पड़ता था "करे तो क्या करे बडे व्यवसायिक बाप के बिगड़ैल बेटे"
     विद्यालय में आए नए अध्यापक विजय शर्मा सर ने सबसे उदंड कक्षा को अपने काबू में कर लिया था। उनकी इजाजत के बिना कक्षा में कोई शोर सुनाई नहीं पड़ रहा था उनसे हर काम को इजाजत छात्रों को लेनी पड़ती थी कोई बिना पूछे जाए उसकी खैर नहीं थी और वह अनुशासन समिति के सदस्य थे ना कोई जा सकता था जब वह दूर से देखते थे छात्रों को उनके सामने छात्रा आने को कतरा थे।
     यह चमत्कार देखकर प्राचार्य अरविंद वर्मा बहुत खुश हुऐ और उत्सुकता वश इसका कारण जानने के लिए विजय शर्मा सर को अपने चेंबर में बुला लिया और बोले"विजय जी मैं आपसे बहुत खुश हूं आपने बिगड़ैल बच्चे को महीना भरे में ठीक कर दिया, इसका राज क्या है? हंसते हुए,
", राज बस यही है सर जब छात्राओं को अपने बच्चों के माफिक जिम्मेदारी से ट्रीट करते  हैं तो, आपको बच्चे भी समझ जाएंगे  कि यह हमारे भले के लिए समझा जा रहा है जबकि पहले के अध्यापक बस क्लास लेकर और समय बिताकर चल दिया करते थे उन्हें उनके व्यवहार रूप से बिगड़ते अभद्रता करने से कोई मतलब नहीं रहता था इससे बच्चे अध्यापक को डांटने की आदत से कुछ देर तो शांत हो जाते थे पर सुधार की कोई गुंजाइश नहीं थी जब अपने बच्चे की तरह कठोरता से साथ स्नेह और प्रेम का लेप लगाएंगे और उससे भविष्य में होने  वाले नुकसान और खतरों से अवगत कराएंगे तो उसे आभास कराएंगे और महसूस करेंगे और स्वयं में सुधार लाने  की पहल करने लग जाएंगे। और अध्यापक को अपना आदर्श अध्यापक मानने लगेंगे धीरे धीरे बदमाशी भूल जाएंगे पिता के तरह प्यार करेंगे अध्यापक की जिम्मेदारी है की उदंड बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ा कर सही राह पर लाना नहीं तो भविष्य में उदंड बच्चे बड़े होकर काफी बदमाश तो होगे और सामाजिक गुंडागिरी में लिप्त होगे।
इतना बोलते ही "वाह वाह बहुत बढ़िया काम किया विजयजी यह बोलकर प्राचार्य अरविंद वर्मा ने उस उंदड्ड कक्षा से चिंता मुक्त हुऐ और  चैन की बंसी बजायी विजय सर ने अपने कौशल से छात्रों को ठीक किया। 

सुरेंद्र हरडे
नागपुर
दिनांक 18/01/2022
[18/01, 5:12 pm] Anita 👅झा: विषय -चैन की बंशी बजाना 
लघुकथा 
ख़ुशी 
सौरभ ख़ुशी को घर से बाहर कर दिया ।
मायके लौटते सोचने लगी । ये क्या किया ? सौरभ तुमने क्रोध के आवेश में !  
ख़ुशी कुछ दिनो के लिय मुझे अकेला छोड़ दो ?
ख़ुशी कहती - दोस्तों के द्वारा सौरभ तुम ग़लतफ़हमी के शिकार हो गये हो । ठंडे दिमाग़ से सोच कर देखना मै तो सूरज के साथ तुम्हारी परछाई बन चलना चाह रही हूँ ।
सौरभ कहता - ये मेरी अपनी सोच है ।
देखो -ख़ुशी तुम ओहदे में बड़ी हों।सूरज के पैदा होने के बाद तुम्हारा स्वाभिमान और बढ़ गया तुम मेरी हर बात काटती हो ।तुम्हें मेराव्यवहार दुराचार नजर आने लगा ।
ख़ुशी कहती - मै जा तों रही हूँ , तभी वापस 
आऊँगी जब तुम मुझे लेने आओगे किसी से कुछ ना कहूँगी भरोसा रखना ।
 आख़री बात पर गौर करना ,ख़ुशी तब मिलेगी जब आप धर्य विश्वास के साथ सोचते है 
जो सोचते वही करते है  सामंजस्य में ख़ुशी है । 
अचानक सौरभ का दिन फ़ोन आया । मै कल ही तुम्हें लेने आ रहा हूँ तुमने सच कहा था आख़री बात पर गौर करना , 
माँ ने कहा -ख़ुशी तुम तो क्रिसमस की छुट्टियाँ मनाने आई थी । कह रही हो सौरभ तुम्हें कल ही लेने आ रहे है ।
माँ ने कहा - चैन की बंशी अपने घर जा कर ही बजेगी , भाभी ने छेड़ते हुये कहा जब से आई ननद रानी चेहरे में बारह ही बजे थे ,अब प्यार की बंशी बजाना !
अनिता शरद झा
[18/01, 5:24 pm] रानी अग्रवाल: बेफिक्र बादशाह_____
१८_१_२०२२,मंगलवार।
विधा_लघुकथा।
विषय_चैन की बंसी बजाना।
शीर्षक_ बेफिक्र बादशाह___
श्रीमती सरोज मेहता श्री सुदेश मेहता के साथ सुखमय जीवन बिता रहीं हैं।या यों कहें दोनों चैन की बंसी बजा रहे हैं तो अतिशयोक्ति न होगी।
     सरोज जी स्कूल में पहले शिक्षिका,तत्पश्चात प्रधानाध्यापिका होकर सेवा निवृत्त हुई हैं।श्री सुदेश जी रेलवे  में अधिकारी पद से सेवा निवृत हुए हैं।पहले समय के अनुसार दोनों की सैलरी ठीक ठाक थी कोई बहुत अधिक नहीं थी।मध्यम वर्ग का जीवन व्यतीत हुआ।लेकिन जो विशेष बात थी वो ये कि श्रीमान जी को कोई व्यसन नहीं था,इसलिए कोई बेकार का खर्च नहीं था।श्रीमतीजी "जितनी चादर उतने पैर फैलाना" वाले हिसाब से घर खर्च चलाती थीं इसलिए बचत अच्छी खासी हो जाती थी।
     उनके दो बच्चे हैं।पहली बड़ी लड़की जिसने फार्मास्यूटिकल में पी एच डी किया है,आज वो अमेरिका में शादी करके सेटल है।दूसरा बेटा है जिसने सी ए किया है।वो अच्छे पैकेज में नौकरी कर रहा है ,मैनेजर है,अपना अलग घर भी बसा लिया है।उसका एक बेटा है।
     इस प्रकार बच्चे अच्छी तरह से सेटल हैं।आपस में कोई मनमुटाव नहीं है।खूब एकदूसरे के घर आते जाते हैं।सारे तीज त्योहार साथ में मनाते हैं।जरूरत के हर समय बेटा बहू तुरंत आ जाते हैं ।ये भी महीना दो महीना जब चाहें तब उनके यहां रह आते हैं।इस तरह खुशी से जीवन बीत रहा है सभी" चैन की बंसी बजा रहे हैं"," बेफिक्र बादशाह" हैं। सब ईश्वर की कृपा है।
स्वरचित मौलिक लघुकथा____
रानी अग्रवाल,मुंबई।
१८_१_२०२२,मंगलवार।
[18/01, 5:33 pm] मीना कुमारी परिहारmeenakumari6102: चैन की बंशी बजाना
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          अरे भाग्यवान सुनती हो......? कहां रहती हो ...?जब देखो काम ही काम.... मैं बाज़ार जा रहा हूं सोचा -तुमसे पूछ लूं... किसी चीज की जरूरत हो तो...
 पैसे भी तो देखने पड़ते हैं.... ये हैं दीनानाथ पाण्डेय जी जो अपनी पत्नी और बूढ़े मां -बाप  ,दो बेटा ,एक बेटी संग रहते हैं। दीनानाथ जी सरकारी स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक हैं..... उन्हीं की कमोवेश कमाई से किसी तरह से   घर चलता है। "बूढ़े मां-बाप की दवाइयां और तीनों बच्चों की पढ़ाई का खर्च...."।अपने खर्च से काट-काटकर बच्चों को ऊंची शिक्षा के लिए अच्छी पढ़ाई कराई.... "। बच्चे भी पढ़ने में तेज ,मेहनती और संस्कारी थे।"
दीनानाथ के माता-पिता का  आशीष हर दिन मिलता रहता था...देखना बेटा! एक दिन दु:ख के बादल छंट जाएंगे.....फिर खुशियों का सबेरा होगा....फिर क्या था...कुछ समय बाद तीनों बच्चों को अच्छी नौकरी मिल गई। घर में  अच्छी कमाई आने लगी। दु:ख के दिन निकल ग‌ये घर में और सुख चैन की  बंशी बजाने लगी।

 डॉ मीना कुमारी परिहार
[18/01, 6:11 pm] कुंवर वीर सिंह मार्तंड कोलकाता: 🌺मंगल वार - 18/1/2022

विषय /चैन की बंसी बजाना ( सुख से रहना)

हल्कू अब सचमुच हल्का हो गया था। उम्र बढ़ने के साथ साथ उसकी शारीरिक क्षमता निरंतर क्षीण होती जा रही थी। अब वह खेत में पहले जैसी मेहनत नहीं कर पाता था। अंततः उसके मन में एक विचार आया। आजकल चारों ओर एलोवेरा की धूम मची हुई है। अधिकतर सौंदर्य प्रसाधनों में एलोवेरा का प्रयोग किया जा रहा है। बाबा रामदेव के यहां तो एलोवेरा की बहुत मांग है। क्यों ना मैं एलोवेरा की खेती प्रारंभ कर दूँ। मेहनत भी कम है और आमदनी खूब है। ना पानी की किल्लत ना बार-बार बोने की किल्लत। एक बार बो दिया पौधे में से पौधे निकलते रहते हैं तोड़ते रहो और बेचते रहो। अब मुझ से इतनी मेहनत होती नहीं बच्चे सब बाहर हैं, यह करना ही ठीक होगा। पत्नी ने भी हां में हां मिला दी।
हल्कू ने वैसा ही किया खेत में एलोवेरा की पौध लगवा दी। दो-चार महीने में पौधे बड़े बड़े हो गए और उसने एलोवेरा के बड़े बड़े पत्ते तोड़ तोड़कर बेचना शुरू कर दिया। दाम भी अच्छोे मिल रहे थे।
अब हल्कू फिर भारी होने लगा है।  वह भले ही संगीत नहीं जाने, मगर चैन की बंसी बजा रहा है।

© कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता
[18/01, 6:29 pm] Anshu Tiwari Patna: चैन की बंसी बजाना
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  कोरोना काल में सभी ने बहुत परेशानियां झेली। पर कहते हैं ना हिम्मत हो तो कुछ भी मुमकिन है, कुछ दिन पहले हमारे मोहल्ले के राशन वाले भैया की दुकान में आग लग गई थी, पूरा तहस-नहस हो गया उनके खाने के भी लाले पड़ने लगे। तभी कोरोनाकाल आ गया और एकदम से लॉकडाउन की घोषणा हो गई, पर यह राहत की बात थी कि जरूरी सेवाएं चालू थी राशन  की होम डिलीवरी जरूरी सेवाओं में थी, भैया ने अपनी थोड़ी जमा पूंजी थोड़ा उधार थोड़ी मदद से अपनी राशन की दुकान फिर से शुरू की, पूरी सावधानी बरतते हुए उन्होंने किस्से जब भी फोन किया लिस्ट वेरी सामान पहुंचाया। उस समय सभी लोग घर के अंदर बंद थे तो राशन भी ज्यादा लगता था तो उन्हें बहुत फायदा भी होने लगा, उनका व्यवहार और सतर्कता सभी बड़े खुश थे। जब भी जिसने फोन किया परेशानियों के खुद परेशान होते रहे पर सभी के लिए सामान पहुंचाया हिम्मत और जी तोड़ मेहनत और वह भी सावधानी और सतर्कता के साथ काफी रंग लाई।
 साल भर के अंदर ही उन्होंने दूसरी दुकान भी शुरू कर दी और" चैन की बंसी बजाने" लगे।
 उन्हें खुश और तरक्की करते देख मोहल्ले वाले भी बहुत खुश हुये
 धन्यवाद 
अंशु तिवारी पटना
[18/01, 7:04 pm] पल्लवी झा ( रायपुर ) सांझा: लघुकथा -चैन की बंसी बजाना


मौसमी का इकलौता बेटा साकेत बड़ा ही संस्कारी था पर नौकरी के मामले में कहीं टिक भी नहीं पाता था ।अब विवाह योग्य उसकी उम्र हो गयी थी नियमित नौकरी के अभाव में अच्छे रिश्ते नहीं मिल पा रहे थे इसलिए  मौसमी बहुत चिंतित रहने लगी थी  उसे बीपी की समस्या भी हो गयी ।
      एक दिन मौसमी की सहेली  श्रेया आकर कहती हैं "मौसमी अगर तुम लोगों को मेरी बेटी पसंद आती हो तो मैं तुम्हें समधन बनाना चाहती हूँ "
           मौसमी कहती है"तेरी बेटी जैसी  योग्य और संस्कारी लड़की तो मुझे चिराग लेकर ढ़ूंढने पर भी न मिले पर मेरे बेटे को तो जानती है जिम्मेदारी उठाने लायक हो तो, तुझे धोखा नहीं दे सकती ।"

     श्रेया उसे प्यार से समझाते हुए कहती हैं तु सींगल मदर होते हुए इतने लाड़ से बेटे को पाली पोसी है इसलिए थोड़ी एकाग्रता और जिम्मेदारी नहीं है पर संस्कार तो उसके में तुझ जैसे कूट कूटकर भरे हैं । विवाह के बाद जिम्मेदारी आने पर स्वयं कर्मठ हो जायेगा । 

     और सच में बेटे के विवाह के बाद  उसके व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आया आज वह घर परिवार  के साथ साथ नौकरी की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा  रहा था श्रेया चुटकी लेते हुए मौसमी को चाय थमाते हुए कहती है ।
"अब बीपी बढ़ाना बंद करो समधन जी मजे से चाय पीयो और चैन की बंसी बजाओ ।" दोनों सहेलियां हंस पड़ीं हैं।


पल्लवी झा (रूमा)
रायपुर छत्तीसगढ़
[18/01, 7:36 pm] डा. अंजूल कंसल इन्दौर: अग्निशिखा मंच 
विषय-चैन की बंसी बजाना 

रीना खुशी-खुशी सुनीता से मिली। सुनीता बोली-," क्या बात है रीना, आज बहुत खुश नजर आ रही हो।"
    रीना हंसते हुए बोली-" सुनीता मैं, अपने बेटे संजय की शादी के समय बहुत डर रही थी, ना जाने कैसी बहू आएगी? पर मेरी बहू तो बहुत अच्छी है। बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार करती है। मैं तो चैन की बंसी बजा रही हूं सुनीता।"
 सुनीता बोली-" रीना तुम बहुत भाग्यवान हो।" दोनों सहेलियां हंसते हुए अपने घर चल दीं। 

डॉक्टर अंजुल कंसल "कनुप्रिया"
18-1-22


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