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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच के ब्लॉक पर आज दिनांक 29(9(2021/ko diye Gaye vishay shraddh kyon manaya jata hai per Rachna karo ki rachnaen padhen doctor

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28/09, 11:26 pm] Alka: श्राद्ध क्यों मनाया जाता है 

पितृपक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक 16 दिन का होता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार हमारी मान्यता है कि प्रत्येक की मृत्यु इन 16 ‍तिथियों को छोड़कर अन्य किसी दिन नहीं होती है। इसीलिए इस पक्ष में 16 दिन होते हैं।

एक मनौवै‍ज्ञानिक पहलू यह है कि इस अवधि में हम अपने पितरों तक अपने भाव पहुंचाते हैं। चूंकि यह पक्ष वर्षाकाल के बाद आता है अत: ऐसा माना जाता है कि आकाश पूरी तरह से साफ हो गया है और हमारी संवेदनाओं और प्रार्थनाओं के आवागमन के लिए मार्ग सुलभ है।

ज्योतिष और धर्मशास्त्र कहते हैं कि पितरों के निमित्त यह काल इसलिए भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के अनुकूल होती है


श्राद्ध पक्ष का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। प्राचीन सनातन धर्म के अनुसार हमारे पूर्वज देवतुल्य हैं और इस धरा पर हमने जीवन प्राप्त किया है और जिस प्रकार उन्होंने हमारा लालन-पालन कर हमें कृतार्थ किया है उससे हम उनके ऋणी हैं। समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष प्रेरित है, जो जातक को पितर ऋण से मुक्ति मार्ग दिखाता है।  

गरूड़ पुराण में वर्णित पितर ऋण मुक्ति मार्ग रेखा :
कल्पदेव कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति। आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।। पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्। देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।। देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।।

अर्थात्‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।’

'श्राद्ध' शब्द 'श्रद्धा' से बना है, जो श्राद्ध का प्रथम अनिवार्य तत्व है अर्थात पितरों के प्रति श्रद्धा तो होनी ही चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महालय पक्ष कहलाता है। इस अवधि के 16 दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से निर्धारित किए गए हैं। यही अवधि पितृ पक्ष के नाम से जानी जाती है।

Alka Pande
[29/09, 6:39 am] Nirja 🌺🌺Takur: अग्निशिखा मंच
तिथि-२९/९/२०२१
विषय-  श्राद्ध क्यों मनाया जाता है

      हमारी हिंदू संस्कृति पर जितना गर्व किया जाये कम है। अपने पूर्वजों को तो हम याद करते ही हैं।  
          आश्विन मास की कृष्ण पक्ष को ही श्राद्ध पक्ष कहा जाता  है। इस समय साल के किसी समय भी , घर के सदस्य की जिस तिथि को मृत्यु हुई है। उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है। 
          श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धा से किया गया काम। इस पक्ष में हम अपने  पूर्वजों को याद कर के उनकी तिथि पर जो दान देते हैं ,किसी को खाना खिलाते हैं तो यह सब उनको मिलता है ,ऐसी मान्यता है। 
       इस समय कुत्तों और कौओं को खिलाने का नियम है। कौए की मादा इस समय ही अंडे देती है। उसको खाना मिलता रहे और कौए ही पीपल और बरगद के फल खा कर ,अपनी बीट के  द्वारा पीपल और बरगद को रोपित करते हैं। वही बीज फिर पीपल ,बरगद का पेड़ बन जाता है। पीपल बरगद  के  वृक्ष  ही हैं जो हमें सबसे अधिक आँक्सीजन देते हैं और पीपल तो २४ घंटे आँक्सीजन देता है। 
        हमें गर्व है अपनी संस्कृति पर जिसमें पशु पक्षी प्रकृति सबका ध्यान रखा जाता है। 

नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोंबिवली
महाराष्ट्र
[29/09, 8:39 am] विजेन्द्र मोहन बोकारो: मंच को नमन
विधा :-- *लेख*
विषय:-- *श्राद्ध क्यों मनाया जाता है*

हिंदू संस्कृति में मान्यता है हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। यह समय काल 16 दिनों की होती है। मान्यता है कि पूर्वजों की मृत्यु 16 दिन के अंदर ही होते हैं। यह समय निर्धारित किया गया क्योंकि वर्षा काल समाप्त होने के बाद आसमान पूरी तरह से साफ रहता है और हमारी संवेदनाओं के जाने का मार्ग सुलभ है।

हिंदू संस्कृति में मान्यता यह भी है की पितृपक्ष में गया में फल्गु नदी किनारे पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है। अतः इस अवधि में गया शहर में पितृपक्ष मेला के रूप में मनाया जाता है। यहां पर देश विदेश के हर कोने से हिंदू समाज के लोग आ कर पिंडदान करते हैं। जो परिवार गया श्राद्ध कर लेते हैं अपने पूर्वजों से मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा मान्यता हिंदू समाज में है।
एक छोटी सी दंतकथा प्रचलित है:--
भगवान श्री राम वनवास समाप्त होने के बाद  सिंहासनासीन होने के बाद अगले वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में गया श्राद्ध करने आए थे। पिताश्री राजा दशरथ के मृत्यु तिथि एवं समय को देखकर पिंडदान करने की  इच्छा प्रकट किए। पूजा सामग्री लाने में देर होने के कारण माता सीता फल्गु नदी के जल से ही तर्पण कर दी। जब आए तो जानकारी मिलने के बाद क्रोधित होकर फल्गु नदी को वान मार कर क्षति पहुंचाए। देखते देखते  नदी जलविहीन हो गया जिसके कारण हाहाकार हो गई देवता गन प्रार्थना किए तब भगवान राम श्री राम संशोधन वान से फल्गु नदी को पुनर्जीवित किए लेकिन जल धरातल पर दिखाई नहीं पड़ेगी  लेकिन थोड़ी गड्ढे करने के बाद जल की प्राप्ति होगी । सिर्फ वर्षा ऋतु में ही धरातल पर जल दिखाई पड़ती हैं।
वहीं पर एक सीताकुंड भी है। मान्यता है कि सीता कुंड के पास पिंड दान करने से पूर्वजों की मोक्ष प्राप्त हो जाती है।
श्राद्ध पक्ष हिंदू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है हमारे पूर्वज देव तुल्य हैं और उन्हें आराधना करने से परिवार के हर सदस्य को शांति प्राप्त होती है अतः यह सुख शांति के लिए जरूरी है। इसलिए हम लोग श्राद्ध कर्म करते हैं लेकिन जो व्यक्ति गया श्राद्ध कर लेते हैं उन्हें दूसरे वर्ष से करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा ही सनातन धर्म में मान्यता है।

विजयेन्द्र मोहन।
[29/09, 9:41 am] वैष्णवी Khatri वेदिका: अ. भा. अग्निशिखा मंच 
बुधवार -29/9/2021
विषय  _श्राद्ध क्यों मनाया जाता है
विधा -  लेख 

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।

 हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। 

ऐसा माना जाता है इन 16 दिनों में ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। पितृपक्ष में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण होता है। हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख हुआ है।

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। 

पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते और पितरों को स्मरण करके जल चढ़ाते हैं। निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है।

गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहाँ सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है। हमारे हिंदू धर्म के अनुसार जन्म है तो मृत्यु और मृत्यु के बाद उसका जन्म भी निश्चित है। मोक्ष प्राप्ति वाले विरले ही होते हैं।  तीन पीढ़ियों तक के माता-पिता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है।


अकाल मृत्यु और सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन हानि, असन्तुष्टता आदि पितृ दोष हो सकते हैं।  इससे विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध प्रमुख बताये गए है।  नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध।
यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्ध नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम के श्राद्ध है।

  श्राद्धों के प्रकार :-
1 नित्य श्राद्ध- प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। 

2 नैमित्तिक श्राद्ध- किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। 

3 काम्य श्राद्ध- किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है। 

4 वृद्धि श्राद्ध- किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। 

5 पार्वण श्राद्ध-  किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। 

6 सपिण्डनश्राद्ध- सपिण्डनशब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। 

7 गोष्ठी श्राद्ध-  श्राद्ध सामूहिक रूप से सम्पन्न किए जाने वाले श्राद्ध गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।

8 शुद्धयर्थश्राद्ध- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। 

9 कर्मागश्राद्ध- किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मागश्राद्ध कहते हैं।

10 यात्रार्थश्राद्ध- यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थश्राद्ध कहलाता है। 

11 पुष्ट्यर्थश्राद्ध-  शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है।

मनौवै‍ज्ञानिक पहलू यह है कि इस अवधि में पूरी तरह आकाश साफ हो जाता है इसलिए हम अपनी संवेदनाओं और प्रार्थनाओं और भावों को वहाँ तक पहुँचा सकते हैं।

ज्योतिष और धर्मशास्त्र कहते हैं कि इसमें सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के श्रेष्ठ मानी जाती है। 

वैष्णो खत्री वेदिका
जबलपुर
[29/09, 11:10 am] आशा 🌺नायडू बोरीबली: 🌹 श्राद्ध क्यों मनाया जाता है ?🌹
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          श्राद्ध का हमारे हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जो पितरों के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है ।अश्वनी कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महाकाल  को कहा गया है ।
हमारे हिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। हमारे जन्मदाता हमारे माता पिता को उनकी मृत्यु के बाद  हम भुला न दें , इसलिए उनका श्राद्ध करने की विशेष प्रथा या विधान को श्राद्ध कहते हैं । इन दिनों में  ये16 दिन अपने पूर्वजों पितरों को श्रद्धा पूर्वक तर्पण कर ,श्राद्ध समर्पित किया जाता है, ताकि हमारे पितरों व पूर्वजों की आत्मा को असीम शांति मिल सके।
      ‌‌     कहते हैं ,देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न किया जाता है और माना गया है कि यह अधिक कल्याणकारी होता है। हमारे पूर्वज देव तुल्य हैं क्योंकि उनके द्वारा हमें यह सुंदर जीवन प्राप्त हुआ है ।उन्होंने हमारा लालन-पालन कर हमें योग्यता प्रदान की है ।हमें उनके प्रति कृतार्थ होना चाहिए, उनके इस उपकार से हम मुक्त नहीं हो सकते। अतःहम सदा उनके ऋणी हैं। अपने इसी भावना के प्रति श्रद्धा समर्पित करते हुए ,हम श्राद्ध की इस परंपरा का पालन कर अपने पूर्वजों को, अपने पितरों को पिंडदान कर ,तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं, ताकि हमें पितृ ऋण से मुक्ति मिल सके ।अगर हम ऐसा नहीं करते हैं ,तो कहा जाता है, उनकी आत्मा विभिन्न योनियों में भटकती रहेगी। हमारे श्राद्ध कर्म से उन्हें संतुष्टि मिलती है एवं उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है, इसलिए हिंदू धर्म मे श्राद्ध पक्ष का अत्यधिक महत्व है ,जो देव तुल्य माना गया है।
        इसके अलावा धर्म शास्त्र और ज्योतिष यह भी कहते हैं, कि पितरों के लिए यह समय इसलिए भी शुभ व श्रेष्ठ होता है , क्योंकि इस काल में सूर्य कन्या राशि में रहता है ,जो ज्योतिष गणना के अनुसार अनुकूल होता है ,इन्हीं सब कारणों से श्राद्ध मनाया जाता है ।
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स्वरचित व मौलिक रचना
डाॅ . आशालता नायडू .
मुंबई . महाराष्ट्र .
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[29/09, 11:58 am] Anita 👅झा: विषय -श्राद्ध क्यों मनाया जाता है 
हमें अपने संस्कार जीवंत बनाये रखना है जिसे श्रद्धा विश्वास के साथ आगे बढ़ना परिजनों का कर्तव्य माता पिता की सेवा करना
मेरी लघुकथा यथार्थ पर आधारित 
लघुकथा 
मोक्ष        
श्राद्ध का पहला दिन पिता सत्य नारायण का स्वर्गवास !
परिजनों संग हँसी ठहाके लगाते देखते सुनते कहते कैसे लोग है । पिता दुनिया गये । 
निष्ठुर माँ सावित्री कह रही है जब तक जीवित थे तुम सब ने जी जान से सेवा की यही सबसे बड़ा मोक्ष का सरल उपाय है  ।
अनिता शरद झा रायपुर

पुराणो में बहुत सी बातें लिखी है 
श्राद्ध पक्ष का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। प्राचीन सनातन धर्म के अनुसार हमारे पूर्वज देवतुल्य हैं और इस धरा पर हमने जीवन प्राप्त किया है और जिस प्रकार उन्होंने हमारा लालन-पालन कर हमें कृतार्थ किया है उससे हम उनके ऋणी हैं। समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष प्रेरित है, पितर ऋण से मुक्ति मार्ग दिखाता है।  
ये पुराणो में लिखी मान्यताएँ है 
अर्थात्‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।’
श्राद्ध' शब्द 'श्रद्धा' से बना है, जो श्राद्ध का प्रथम अनिवार्य तत्व है अर्थात पितरों के प्रति श्रद्धा तो होनी ही चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महालय पक्ष कहलाता है। इस अवधि के 16 दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से निर्धारित किए गए हैं। यही अवधि पितृ पक्ष के नाम से जानी जाती है।
अनिता शरद झा रायपुर
[29/09, 12:34 pm] रजनी अग्रवाल जोधपुर: शीर्षक-श्राद्ध क्यों मनाया जाता है-

हिंदू धर्म में अपने माता पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना जाता है। अपने जन्म दाता की स्मृति सदैव याद रखें इसलिए उनका श्राद्ध मृत्यु के उपरांत मनाया जाता है । इसके लिए विशेष समय और विधान है। यह श्राद्ध  भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक 16 दिनों में अपने-अपने पितरों की मृत्यु तिथि के दिन सब अपने पितरों पूर्वजों की सेवा उनके पसंद के व्यंजन बनाकर  वे गाय ,कुत्ते,कौवे और ब्राह्मणों को तर्पण कर्म करवा कर अग्यारी पर डालते हैं । और इन सब को भोग लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे  कुल में कोई दुखी नहीं रहता । पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु ,  पुत्र प्राप्ति और घर में सुख समृद्धि रहती है।

  स्वरचित रचना         रजनी अग्रवाल
       जोधपुर
[29/09, 2:07 pm] 💃💃sunitaअग्रवाल: विषय __ श्राद्ध क्यों करना चाहिए 

 विधा ___ लेख 
जरुरी है श्राद्ध करना 

यह विधान हमारे हिंदू धर्म में ही है, अन्य धर्म एवम जाति मै मरने के बाद शरीर को मिट्टी माना जाता है । 
शाहजंहा को कैद किया औरंगजेब ने गद्दी हासिल कर ली  तब पिता को पानी के लिए भी तरसा दिया था, शाहजहां ने कहा, हिंदू धर्म में मरने के बाद भी पूर्वजों को पानी पिलाया जाता है तू है जिसने जीते जी पानी के लिए तरसा दिया।
हमारे सनातन धर्म संस्कृति को पूरा विश्व मानता है ।
देवलोक से भी अधिक महत्व पितृलोक का है ।
धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।
5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।
8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

सुनीता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश स्वरचित 🙏🙏
धन्यवाद🌹

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