अंगार सिर पर धरना
११वी की परीक्षा खत्म हो गई थी सोनल बहुत खुश थी । उसने अपनी छोटी बहन को कहाँ वह आज शहर घुमने जायेगी । छोटी बहन नीलम ने कहाँ दादी मम्मी पापा बहार गये है , आप उनकी अनुपस्थिति में घुमने नही जा सकती , दो दिन में वे आ जायेगे तब चली जाना । क्यो आफ़त मोल ले रही हो ।
सोनम नहीं मैंने लीमा को कह दिया है हम दोनों शहर जा रहे है । तुम घर पर आराम करो ।
सोनम निकल गई सीमा के बताये स्थान पर इंतज़ार करने लगी पर बहुत समय हो गया वह नहीं आई फ़ोन भी बंद आ रहा था । तभी एक नवजवान मोटर साईकल पर आ कर बोला सीमा स्टेशन पर मिलेगी तुम मेरे साथ चलो उसने कहाँ है । सोनम डरते डरते बैठ गई पर अब उसे लग रहा था की उसने “अंगार सर पर धर लिये है “
स्टेशन पर भी सीमा नहीं आई तब उसने फ़ोन लगाया तो सीमा बोली तुम मेरे भाई के घर चल कर बैठो में वही आती हू रात की गाड़ी से चलेंगे । सोनम उस लड़के के साथ उसके घर गई पर वहाँ भी सीमा नहीं आई , उस लड़के ने सीमा को चुप रहने को कहाँ और तरवाजा बंद कर उसे कुछ सुँघाने की कोशिश करने लगा सोनम ने पास पड़े पीतल के फ्लावर पाट से लड़के के सर पर ज़ोर दार वार किया और वहाँ से भाग निकली , सिधे पुलिस स्टेशन में जाकर शिकायत की सीमा और उसके कथित भाई के नाम …
पुलिस ने सोनम को डॉट लगाते हुये कहाँ आजकल की लड़कियों के “अंगारे सर पर धरना “ इच्छा लगता हैं
आफ़त मोल लेने की क्या जरुरत है ।
शहर घुमना है को मा- बाप के साथ जाओ । सोनम बहुत शर्मीदा हुई पुलिस एस्पेक्टर को धन्यवाद कहाँ तब तक सीमा और उसकी कथित भाई वहाँ आ गये थे ।
सोनम सीमा को कुछ कहे बिना ही बहार चली गई ।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
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[28/09, 11:02 am] वैष्णवी Khatri वेदिका: मौत और समय
अ. भा. अग्निशिखा मंच
मंगल वार - 28/9/2021
विषय_ अँगारे सिर पर धरना—विपत्ति मोल लेना। ...
विधा - लघुकथा
रेणु और विजय की नई-नई शादी हुई थी। संयुक्त परिवार था इस कारण बात करने का समय ही नहीं मिलता था। एक दिन रेणु कहने लगी कि आप तो मुझे कहीं लेकर नहीं जाते। मेरा तो जीवन ही दूभर हो गया है। कहीं तो ले चलो। कुछ नहीं तो पास वाले मंदिर ही ले चलो। फिर क्या था उन्होंने घूमने उन्होंने घूमने का विचार बनाया। यह लगभग 1980 की बात है उस समय रिक्शे का बड़ा चलन था।
दोनों रिक्शे में बैठकर बातों में खोए हुए जा रहे थे। इतनी देर में ऊपर से एक मोटा से सांप चील के मुँह से छूटकर रेणु के ऊपर गिरा। बिना समझे वह चिल्लाई उसी समय चील उस सांप को उठाकर ले गई। तब तक सांप रेणु को काट चुका था।
पति के होश फाख्ता हो गए। थोड़ी ही देर में उसने प्रांत रेणु ने प्राण त्याग दिए। रोने के सिवा कुछ नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे चील सांप से रेणु को कटवाने के लिए आई थी।
अगर घर से ना निकलते उसकी जान बच जाती यह तो वही हुआ अंगारे सिर पर धरना। सही में मौत आसमान से भी टपक सकती है इसमें कोई शक नहीं।
वैष्णो खत्री वेदिका
जबलपुर
[28/09, 12:14 pm] वीना अचतानी 🧑🏿🦽: वीना अचतानी
मंच को नमन
विषय***अंगारे सिर पर धरना ****
आज फिर पड़ौस से पति पत्नी में झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं ।ये रोज़ का काम था, पहले बहस होती रही , थोड़ी देर बाद बर्तन फेकने और चिल्लाने की आवाजें आती रहीं ।राजेश जी जो उनके पड़ौसी थे,कहने लगे आज तो मैं इनको समझा कर ही रहूँगा,जब देखो आपस में लड़ते ही रहते हैं ।उनकी पत्नी मालती बोली रहने दो,ये तो इनका रोज़ का काम है, आप क्यों अंगारे सिर पर धरते हो,क्यों मुसीबत मोल ले रहे हो।परन्तु आज राजेश जी ने ठान ही लिया था।वे सीधे उनके घर गए,जैसे ही दरवाजा खोला तेज़ी से बेलन आकर उनके सिर पर लगा,वे चींख मार कर सिर पकड़ कर वहीँ बैठ गए।आवाज़ सुन कर मालती दौड़ कर आई,उनकी ये हालत देख कर बोल पड़ी,मैने मना किया था न, लो अब अंगारे सिर पर धर लिये।बेवजह मुसीबत मोल ले ली।।
स्वरचित मौलिक
वीना अचतानी
जोधपुर ।।।।
[28/09, 12:39 pm] Anita 👅झा: लघुकथा
अंगार सिर पर धरना
नादानियाँ
अभी मेरा बेटा मेरे ऊपर झल्ला के गया । अंगारे सिर पर रख ख़ूब चिल्ला चिल्ली किया ।
माँ तुम ये नहीं किया । आखिर मुझे अब तक मुझे बच्चा ही समझ तहज़ीब सिखाती ,ये देरी से किया वग़ैरह ,वग़ैरह . मुझे याद हैजब वो छोटा था तब भी ऐसा ही झल्लाता था ।चिल्लाता था ।
उसका कोई सामान इधर से उधर हुआ और उसे समय पर नहीं मिलता , तो आसमान सर पर उठा लेता ,और मैं मुस्कुराकर उसे देखती रहती थी ।
प्यार से दूलार से ममता से आख़िर मैं उसकी माँ जो ठहरी ,और आज भी जब उसकी शादी हो चुकी हैं ।
मैं उसे उसी प्रकार झल्लाते देख मुस्कुराती रहतीआख़िर वो मेरा बेटा ही तो है ।
आखिर मेरा ध्यान भी तो वो ही रखता है ,
सेवा भी तो वी ही करता है !
फिर आज मै अपनी सोच भ्रम ,क्यूँ ?
अनिता शरद झा
[28/09, 12:39 pm] वीना अडवानी 👩: विपत्ति मोल लेना
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आज पड़ोस की दो महिलाएं आपस में लड़ रही थी, कौन सी नई बात है देखा अनदेखा कर रही थी मैं, क्यों कि चाल में एसी घटना होना आम बात है। सरकार की तरफ से सौ परिवारों के बीच सिर्फ पांच सरकारी नल जो उपलब्ध करवाए अब बताओ कौन-कौन कितना पानी भर पाएगा ओर तो ओर आग मे घी डालने वाला सरकारी नलकूपों का ये रवैय्या की पानी भी मात्र सवा घंटा देंगे कभी-कभी तो इतनी मोटी धार की पांच मिनट में पांच बाल्टी भर जाती और कभी तो एसी धार की की पांच मिनट में जैसे लगता मजबूरी सरकार की सिर्फ दो बाल्टी पानी दे कर जैसे नलकूप एहसान कर रहा हो। ओह कहां मैं भी फालतू की बाते ले बैठी चलो इस झगड़े का लुफ्त उठाती हूं, की शांति काकी जीतेगी या मीरा मौसी। झगड़ा चरम़ सीमा को छूता हुआ देखते हुए मुझे अब डर लगने लगा था क्योंकि भाई अब तो मारपीट चालू जो हो चुकी थी। शांति काकी और मीरा मौसी दोनों को आमने-सामने देख मुझसे रहा नहीं जा रहा है। चलो सुलह करादूं ये सोच के नीचे चली गई, दोनों को प्रेम स्नेह से समझा रही थी पर दोनों ही शांत नहीं हो रही थी इतने में राधा वहां आ गई, अरे वही राधा जिससे मेरा झगड़ा दो दिन पूर्व हुआ था। वो भिड़ गयी पुरानी बातें ले कर अब तो शांति काकी और मीरा मौसी के साथ साथ हमारा झगड़ा भी शुरू हो गया इसे कहतें है ओखली में सर देना।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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[28/09, 12:45 pm] कुंवर वीर सिंह मार्तंड कोलकाता: मंगल वार - 28/9/2021
अँगारे सिर पर धरना
भारत में और चाहे जो हो बोलने, काम करने और वोट देने की पूरी आजादी है।
अबकी बार जब चुनाव होने को आए तो अशोक ने एक पार्टी को ज्वाइन कर लिया, जिसे वह बहुत पसंद करता था। जिसका काम उसे पसंद था। वह उसके प्रचार में लग गया। उसके जुलूसों में जाने लगा। धीरे धीरे कुछ बड़े-बड़े नेताओं सेपरिचय भी हो गया।
चुनाव का दिन आ गया । उस दिन भी वह जोश खरोश के साथ पार्टी के लिए काम कर रहा था। लोगों को घर से निकाल निकाल कर पोलिंग स्टेशन पर पहुंचा रहा था ।
चुनाव समाप्त हुआ और जिस कैंडिडेट का प्रचार वह कर रहा था संयोग से वह पराजित हो गया।
अब विरोधी पक्ष के लोग उसके घर पर रोज चक्कर काटने लगे, उसके घर के सामने आकर उसे गाली गलौज देकर चले जाते, रास्ते में मिलते तो भी छींटाकशी करते। .. और एक दिन रात में वे गुंडे घर में घुस पड़े और सब को मारने पीटने लगे। महिलाओं का भी अपमान किया। घर का सारा सामान तोड़ फोड़ दिया। कुछ उठाकर बाहर फेंक दिया।
अशोक घायल पड़ा हुआ कराहता रहा किंतु अड़ोस पड़ोस का कोई आदमी उसे पूछने तक नहीं आया। सब यही सोच रहे थे अंगारे सिर पर धरे हैं तो अब भुगतो। पुलिस में रिपोर्ट लिखाने गए तो रिपोर्ट तो नहीं लिखी बल्कि उन गुंडों को फोन कर दिया कि अशोक तुम्हारे विरुद्ध रिपोर्ट लिखाने आया है। जब वह थाने से लौट रहा था तो उन गुंडों ने रास्ते में उसे फिर घेर लिया। जैसे तैसे बचते बचाते घर पहुंचा। पत्नी ने भी यही कहा यह अंगारे सिर पर लेकर तुमने अच्छा नहीं किया। इन गुंडों ने हमारा जीना दूभर कर दिया है। अब कोई नेता हमारी सुध लेने भी नहीं आता। अशोक आज बहुत पछता रहा था। दल बंदी के दलदल से भगवान बचाए।
कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता
[28/09, 12:50 pm] शेभारानी✔️ तिवारी इंदौर: अंगारे सिर पर धरना लघुकथा
मीना अपनी सहेली के साथ टीना के जन्मदिन पर उसके घर गई ।मां ने मना भी किया कि अभी मौसम ठीक नहीं है ,मत जाओ ,लेकिन वह नहीं मानी। जब वे टीना के यहां से घर वापस आने लगी कि ,अचानक बदली छा गई ।वहां पानी गिरने लगा ।बिजली चली गई चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा गया ।सड़कों में पानी भर गया। फिसलन होने लगी ।कोई रिक्शा नहीं मिल रहा था बड़ी मुश्किल से रिक्शा वाले भैया तैयार हुए लेकिन उनकी नियत ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए मैंने मना कर दिया था ।मैंने सोंचा हमें मां का कहना मानना चाहिए था ।घर वाले भी परेशान हो रहे थे ।फोन नहीं लग रहा था ।चलते-चलते छुपते छुपाते 3:30 घंटे में घर पहुंचे ।उन्हें लग रहा था कि हमने जानबूझकर अंगारे सिर पर धर लिए थे ,हमें समय देखकर काम करना चाहिए।
श्रीमती शोभा रानी तिवारी,
मध्य प्रदेश मोबाइल 8989 409 210
[28/09, 1:02 pm] रवि शंकर कोलते क: मंगलवार दिनांक २८/९/२१
विधा*** लघु कथा
विषय*****
#***आपत्ती मोल लेना***#
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माधव बहुत साधारण परिवार का लड़का था जिसने महाराष्ट्र बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी । आगे वह पढ़ नहीं पाया। छोटे-मोटे काम करने लगा । उसके पिताजी शामराव जी नागपुर के एक स्थानीय कॉलेज में चपरासी की नौकरी करते थे । कुछ बीमार भी चल रहे थे । अचानक एक दिन उनकी मौत हुई और फिर परिवार का बोझ उस रमेश पर आ पड़ा । कॉलेज से कुछ प्रोविडेंट फंड की रकम डेढ़ दो लाख मिली उसके आधार पर रमेश ने एक छोटा किराना जनरल स्टोर की दुकान लगाई । ईश्वर की कृपा से दुकान चलने लगी । दो-तीन साल के बाद उसकी शादी हुई । कुछ समय बाद उसे कुछ दोस्तों के साथ खाने पीने की आदत लगी । दुकान बंद करने के बाद रोज शराब पीने की लत इस कदर बढ़ी के वो दुकान देरी से खोलने लगा पैसे के अभाव से दुकान में माल भी बराबर भरता नहीं था । ग्राहक भटक गए । दुकान ठीक से चलने नहीं लगी। आर्थिक तंगी महसूस हुई । सबने बहुत समझाया मगर उसने शराब पीना बंद नहीं किया ।
आखिर तंग आकर उसकी बीवी ने उससे रिश्ता तोड अपने मायके चली गई ।
उसकी बर्बादी का कारण खुद रमेश ही था क्योंकि खुद ही उसने ये आपत्ति मोल ली थी, शराब को मुह लगाकर । बुरी संगत से किसी का भला नहीं होता। इसलिए अच्छी संगत में रहना बहुत जरूरी है ।
कोई भी बुरी आदत जिंदगी को तहस-नहस कर देती है । इंसान खुद ही अपने सर अंगारे रखता है या आपत्ति मोल लेकर जीवन नष्ट करता है । मन का सुखचैन होता है ।
इसलिए मैं इस इस लघुकथा के द्वारा यह मशवरा दूंगा कि हर इंसान अगर सुख चैन की जिंदगी जीना चाहता है तो बुरी संगत और बुरी लत से दूर रहें ।
प्रा रविशंकर कोलते
नागपुर
[28/09, 1:44 pm] Nirja 🌺🌺Takur: अग्निशिखा मंच
तिथि-२८/९/२०२१
विषय-अंगारे सिर पर धरना,
विपत्ति मोल लेना
अंगार
लता और उषा के पापा रिटायर हो गये थे। उनकी नौकरी ठीक ठाक थी तो बहुत पैसे जमा नहीं कर पाये। उषा तो पढ़ रही थी। लता को लगता कि उसे नौकरी मिल जाती तो सहारा हो जाता।पेपर में देख साक्षात्कार के लिए जाती ही थी।नौकरी के लिए सबसे बोल भी रखा था।
फिर मोहल्ले के श्याम चाचा बोले एक नौकरी मेरी नज़र में है,वो तुम्हे मिल जायेगी। सबने कहा भी कि श्याम का विश्वास मत करो पर लता ने ध्यान नहीं दिया। कंस्ट्रक्शन कंपनी में साक्षात्कार के दौरान उससे कहा गया कि पहले महीने का वेतन दूसरे महीने के साथ मिल कर दो माह का वेतन मिलेगा।
लता ने शर्त स्वीकार कर लिया।
१ तारीख को वेतन नहीं मिला तो लगा अगले महीने के वेतन में जुड़ कर मिल जायेगा पर जब दूसरा महीना खत्म होने में २ दिन बचा था। लता आफिस पहुंची तो देखा आफिस में बहुत भीड़ थी। पता चला ये कंपनी तो चिटफंड कंपनी थी जो सब का पैसा ले कर भाग गयी। जब लोगों को पता चला कि लता उसी कंपनी की कर्मचारी है,सब उसे पकड़ कर पुलिस स्टेशन ले गये। वहां उसे लाकअप में डाल दिया गया। शाम तक छोड़ तो दिया गया पर कहा गया कि जब भी जरुरत होगी तुम्हें बुलायेंगे। शहर छोड़ कर जाना मत।
लता को लगा ये क्या मुसीबत आ गयी क्यों मैंने सिर पर अंगारे रख लिए।
नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोंबिवली
महाराष्ट्र
[28/09, 2:16 pm] आशा 🌺नायडू बोरीबली: (लघुकथा)
🌹अंगारे सिर पर धरना🌹
रत्ना बहुत सरल स्वभाव की सीधी सादी लड़की थी ।दिखने में बहुत सुंदर न थी, पर बुरी भी न थी ।12वीं पास कर जब वह कॉलेज पहुंची, तब भी उस में कोई परिवर्तन नहीं आया। पढ़ने में भी अच्छी थी।वह माता पिता की इकलौती संतान थी।
रमेश उसका पड़ोसी था ।वह नौवीं कक्षा से साथ पढ़ रहा था। पढ़ाई के सिलसिले में अक्सर दोनों में बातचीत हो जाया करती थी ।कभी-कभी साथ आना जाना भी हो जाता था। रत्ना नोट्स बनाती थी, तो नोट्स का लेनदेन भी चलता था।
धीरे धीरे रमेश के दिल में रत्ना के लिए जगह बनने लगी। वह उसे पसंद करने लगा, पर उसने कभी अपनी भावनाएं जाहिर नहीं की। अचानक रत्ना के पिता ने रत्ना का ब्याह निश्चित कर दिया। पता चलते ही रमेश बेचैन हो उठा ।उसने अपनी मां से अपने दिल की बात बताई। मां ने कहा "उसके पिता उसूलों के पक्के हैं। इकलौती बेटी है। उनसे रिश्ते की बात करना याने अंगारे सिर पर धरना है, इसलिए तुम अपनी पढ़ाई में ध्यान दो और अपना जीवन संवारों, जो नहीं हो सकता उसके पीछे सिर फोड़ने से कोई अर्थ नहीं।"
********************स्वरचित व मौलिक रचना
डाॅ . आशालता नायडू .
भिलाई . छत्तीसगढ़ .
********************
[28/09, 2:19 pm] विजेन्द्र मोहन बोकारो: मंच को नमन
विधा::-- *लघु कथा*
विषय:-- *अंगारे सिर पर धरना -- विपत्ति मोल लेना*
मेरे मित्र राकेश कुमार के छोटा सुखी परिवार है। अपने लोग साथ मे दो बच्चे, जिन्हें अंग्रेजी माध्यम से स्कूली शिक्षा दिलाएं। स्कूली शिक्षा के बाद व्यवसायिक शिक्षा के लिए मेट्रो शहर में भेजकर उनके पसंद की पढ़ाई पढ़ाए।
प्रथम दृष्टि से राकेश जी को महसूस होने लगा की हमारे दोनों बच्चे अपने अपने क्षेत्र में कामयाब होकर दिन प्रतिदिन अग्रसर हो रहे हैं। राकेश जी दोनों पुत्र को जीवन के पारिवारिक सुख में बांध दिए। दोनों पुत्र अपने परिवार के बीच मस्त होकर रह रहे थे।
साथ में अपने माता-पिता को भी ध्यान रखते।इसी बीच एक पुत्र को विदेश जाने की मौका मिला तब अपने माता- पिता से आज्ञा लेते हुए वहां चले गए। राकेश जी एवं उनके पत्नी को इच्छा हुई अपने कर्म भूमि पर एक छोटा सा आशियाना बनाए सेवानिवृत्त होने के पहले। क्योंकि सेवानिवृत्त होने के बाद अपने आशियाना में ही जाए।बीच-बीच में दोनो पुत्र के पास जाया करते। अचानक सेवानिवृत्त के 6 साल बाद राकेश जी की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। राकेश जी अब अकेला हो गए। जो पुत्र मेट्रो शहर में रह रहे हैं अपने साथ पिता को भी ले गए। राकेश जी यह सोचकर गए मेरा खून है आखिर कहां जाऊंगा। बीच-बीच में विदेश भी जाकर रहते। लेकिन अधिकांश समय भारत में ही रहते। पुत्र एवं पुत्र बहू पूरा- पूरा ख्याल रखते। अचानक पुत्र को कर्म भूमि पर प्रॉपर्टी खरीदने की इच्छा हुई अपने पिता श्री राकेश जी को यह बात की जानकारी दिया गया साथ में रुपया भी मांगा। राकेश जी पुत्र मोह के जाल में फंसे गए और जो भी बचत कर के अपने पास रखें हुए थे पुत्र को दे दिए। कुछ दिनों के बाद उन्हें कष्ट होने लगा तब अपनी इच्छा जाहिर कर अपने कर्म भूमि पर जो छोटा सा आशियाना बनाऐ वहां आकर रहने लगे।अब पड़ोस से आवाज आने लगी राकेश जी खुद वो अंगारे सीर पर धरे यानि विपत्ति मोल लिए। इस बात से सहमत भी होते हैं कहते हैं अब मैं क्या करूं *चिड़िया चुग गई खेत* यह कर संतोष करते हैं अपना नया जिंदगी जी रहे हैं। *यही है कलयुग*।
विजयेन्द्र मोहन।
विजयेन्द्र मोहन।
[28/09, 2:22 pm] 💃💃sunitaअग्रवाल: विषय _ अंगारे सिर पर रखना
शीर्षक ___ तीन दोस्त
सुबह से बारिश हो रही थी, रविवार का दिन, तीनो दोस्त मिलकर सोचने लगें क्या खेल खेलें , मजा आएऑनलाइन पढ़ाई करते थकान होने लगी है ।
रहीम ने कहा चलो पास के मैदान में खेलते हैं, राम ने मना कर दिया वहां साँप बहुत है , पेड़ों पर मधुमक्खी के बड़े बड़े छत्ते लगें हुए हैं गलती से कुछ हुआ तो लेने के देने पड़ जाएंगे, अपन बाहर गली में खेल लेते हैं , लेकीन वो कहां मानने वाले थे बॉल उठाई पहुंच गए मैदान में राम को भी जाना पड़ा , बार बार दोनों को सावधान करता रहा, रहीम ने सोच लिया था, राम अपनेआप को समझता क्या है? हमेशा बड़ों
की तरह टोका टाकी करता रहता है, सोच विचार दिमाग में चल रहा था उधर बॉल पेड़ पर लटक रहे
छत्ते पर जा लगी देखते ही देखते हजारों मधुमक्खियां भिन भिन करती दोनों पर झूम गई, अब वो जोर जोर से चिल्लाने लगे बचाओं बचाओ , राम ने कहा "तुम दोनों जमीन पर लेट जाओ, राम दौड़कर घर से चादर ले आया , दोनों के शरीर पर लपेट दी, कहने लगा,"अंगारे सिर पर क्यों रखना , मेरिट बात सुनी होती तो यह हाल नही होता।
रहीम और करतार दोनो ने माफी मांगी कहा जान बूझकर बेठे बिठाए विपत्ति मोल नही लेंगे।
सुनीता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश स्वरचित 🙏🙏
धन्यवाद जी 🙏🌹
[28/09, 2:35 pm] निहारिका 🍇झा: नमन अग्निशिखा मंच
विषय;-अंगारे सर पर धरना
दिनाँक-28/9/2021
विधा;-गद्य(लघु कथा)
राजेश अपने माता पिता की इकलौती संतान था।अधिक स्नेह के कारण व उच्छ्रंखल हो गया था उम्र बढ़ने के साथ उसकी यह प्रवृत्ति बढ़ती ही गयी।कॉलेज के प्रथम वर्ष में पहुंचते ही उसकी मित्र मंडली का दायरा बढ़ गया।कुछ मित्र अत्यधिक रईस वर्ग के थे जिनकी गाड़ियों धन ऐश्वर्य में राजेश का मन भी डाँवाडोल हो गया वह भी अपने घर मे धन व सुविधाओं की मांग करने लगा।।जब घर से पूर्ति नहीं हो पायी तो गलत दिशा में कदम बढ़ाने लगा। एक मित्र के पिता जो बड़े उद्योगपति थे ने एक कार्य के एवज में बड़ी धन राशि की पेशकश की राजेश अपनी मनमानी करने निकल पड़ा।वह समान का बैग लेकर गंतव्य की ओर जा ही रहा था कि बीच रास्ते मे कुछ लोगों ने उसका रास्ता रोक बाइक से गिरा दिया व बैग छीन कर भाग खड़े हुए।जिनका बैग था उन उद्योग पति ने उसके खिलाफ शिकायत कर दी वह घायल होते हुए भी पुलिस हिरासत में था।।माता पिता अत्यंत दुखी हुए ।सबने कहा भी जब अंगारे सर पर लेकर चला तो यह हश्र होना ही था।।
निहारिका झा🙏🙏
[28/09, 2:36 pm] रजनी अग्रवाल जोधपुर: शीर्षक-अंगारें सिर पर धरना--
बसंत b.a. फाइनल का छात्र है । गांव का रहने वाला है । लेकिन है बहुत चरित्रवान , निष्ठावान ,संस्कार शील । कहीं भी कोई समस्या या विपत्ति दिखाई देती है वह वही सहायता करने पहुंच जाता है । ऐसे ही एक दिन वह बाजार से गुजर रहा था। उसे दो व्यक्ति लड़ाई में गुत्थम गुत्था हुए दिखाई दिए। उनके चारों ओर तमाशबीन खड़े हुए थे। वह फुर्ती से भीड़ को चीरता हुआ उन दोनों के निकट जैसे ही पहुंचा वह समझ गया कि दोनों बेइंतेहा पिए हुए नशे में धुत है। इस बात पर झगड़ रहे थे कि तूने मेरा रास्ता रोका है और दूसरा कहता मैंने नहीं तूने मेरा रास्ता काटा है। बसंत ने अपनी पूरी ताकत से पहले तो दोनों को अलग अलग किया। वह दोनों जैसे ही अलग अलग हुए उस पर टूट पड़े ।अब और लोग भी उस से प्रेरित होकर बचाने आए। तब तक बसंत भी लहूलुहान हो चुका था। बैठे-बिठाए बसंत ने अंगारे सिर पर धर लिए ।
स्वरचित लघु कथा रजनी अग्रवाल
जोधपुर
[28/09, 2:54 pm] 💃वंदना: अंगारे सिर पर रखना
विपत्ति मोल लेना
रीमा बहुत तुनक मिजाज लड़की थी उसे दिखावा ज्यादा ही पसंद था किसी भी बात को बढ़-चढ़कर बताती थी किसी भी चीज की दोगुनी रकम बता कर वह अपना स्टेटस बताती थी हर चीज को विदेशी और इंपॉर्टेंट बताकर लोगों के बीच अपना रुतबा जमाना उसका शौक बन चुका था।
ना तो है छोटे बड़े का मान रखती थी नाही उसे पैसों की कीमत पता थी बस उसे अपने को बढ़ चढ़कर बताना ज्यादा अच्छा लगता था हाई सोसाइटी का दिखावा करने वाली रीमा जब तब
हर किसी का अपमान करा करती थी और एक दिन रीमा का दिखावा ही उसके लिए विपत्ति मोल ले आया कुछ गलत लोग उसके पीछे पड़ गए उन्हें लगा रीमा बहुत पैसे वाली है बस फिर क्या था रीमा पर हमला हुआ चोर सब कुछ से छीन कर भाग चुके थे और इस हमले में से चोट भी लगी। रीमा की हेकड़ी एक दिन में ही निकल गई थी वह समझ चुकी थी की ये अंगारे खुद उसने अपने सिर पर रखे हैं। वह अपनी गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहती थी और सभी से उसने क्षमा याचना की और फिर कभी यह गलती ना दो रानी का वादा किया सब ने उसे एक भूल समझ कर माफ कर दिया रीमा भी उन सब का विश्वासपात्र बनकर अपनी पुरानी जिंदगी को एक बुरा सपना समझ कर अपनी आगे की नई जिंदगी में बहुत खुश हैं।
वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश
[28/09, 2:56 pm] स्नेह लता पाण्डेय - स्नेह: नमन पटल
आज का विषय-अंगारे सिर पर लेना
विप्पति मोल लेना
केतकी की तबियत उस समय खराब रहती थी जिससे वह बहुत चिड़चिड़ी हो गई थी। घर का लगभग सारा काम पति और बच्चे करते थे। कोई काम समय से नहीं होता तो भी वह चिड़चिड़ करने लगती।वह कभी ठीक महसूस करती तो कुछ काम करने लगती। पति और बच्चे मना करते तो उसे बुरा लग जाता।
एक दिन उसे अपनी तबियत अच्छी लग रही थी। उसने वाशिंग मशीन में कपड़े डाल दिये। बेटे ने कहा कि वह छत पर कपड़े सूखने को डाल देगा, कहकर बेटा कहीं चला गया।
केतकी ने सोचा कि वह भी बहुत दिनों से छत पर नहीं गई है और बेटा भी न जाने कबतक आएगा मैं ही कपड़े डाल देती हूँ।
वह कपड़े लेकर छत पर गई और तार पर फैलाने लगी तभी एक बड़ा सा बंदर आया और उसके बाजू पर काट दिया ।वह डर से चिल्लाते हुए सीढ़ियों से नीचे आने लगी बंदर भी पीछे पीछे आने लगा। तबतक उसका बेटा आ चुका था उसने डंडा दिखाकर बन्दर को भगाया। उसके पति और बच्चे उसे लेकर अस्पताल गए और सुइयाँ लगीं। वह सोच रही थी उसने आज जानबूझकर अंगारे सिर पर ले लिया था जिसका खामियाज़ा भुगत पड़ा।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
[28/09, 3:04 pm] रानी अग्रवाल: २८_९_२०२१.मंगलवार।
विधा_लघुकथा।
विषय_सिर पर अंगारे रखना।
लाला मंगतराम गांव के सरपंच थे।उनके पास काफी खेती _बाड़ी थी।ऊंची हवेली थी।
उनके दो हटते_कट्टे जवान बेटे थे।वो अपना कर्तव्य भी बखूबी निभाते थे।सारी सरकारी योजनाओं की जानकारी रखते थे और अपने गांव के किसानों को उनका लाभ दिलवाते थे।
बस उनमें एक आदत बुरी थी वो सब किसानों से मुफ्त में उनकी फसल का कुछ हिस्सा मांग लेते थे।अपने पद और रूतबे का नाजायिश फायदा उठाते थे।
बेचारे किसान डरकर दे देते थे।
रामलाल किसान का बेटा मोहन शहर से कृषि विज्ञान में डिग्री लेकर आया।अपने पिताजी के साथ खेती करने लगा।जब उसे सरपंच की मुफ्त की उगाही के बारे में पता चला तो उसने" सिर पर अंगारे रखकर" इसे सुधारने की सोची।
एक दिन सीधा सरपंच के घर पहुंचा और उनसे कहा_आप मुफ्त का अनाज लेना बंद कर दो ,ये अन्याय है।लाला तो गुस्सा हो गए,डराने_धमकाने लगे, जान से मरवा देने की धमकी भी दे डाली परंतू मोहन डरा नहीं, डटा रहा।वह बोला_सोच लो , वरना मैं अभी पुलिस और सरकारी दफ्तर में तुम्हारी शिकायत दर्ज करवा दूंगा,पुलिस पकड़ ले जायेगी,५_१० साल की जेल तो पक्की समझो,सरपंच की कुर्सी भी जा सकती है।लालाजी सोचने लगे ये ज्ञानी बच्चा है,अपनी कुर्सी चली जाने के डर से सहम गए और उन्होंने मोहन की बात मन ली।
इस प्रकार मोहन ने "अपने सिर पर अंगारे रखकर" गांव के किसानों को अन्याय से बचा लिया।अब उन्हें मुफ्त में अपनी फसल का हिस्सा न देना पड़ता,उनका मुनाफा बढ़ गया,सब मोहन को बधाई और दुआएं देने लगे,उसे अपना नेता बना लिया।
सच में आज समाज में मोहन जैसे नौजवानों की आवश्यकता है जो अपने सिर पर अंगारे रखकर अन्याय से मुक्ति दिला सकें।
स्वरचित मौलिक लघुकथा__
रानी अग्रवाल,मुंबई,२८.९.२१.
[28/09, 3:10 pm] Chandrika Vyash Kavi: नमन मंच
दिनांक :- 28/9/2021
विषय-: अंगार सिर पर धरना
" शैलेष तुम पढ़ने बैठ जाओ... चिल्लाती हुई रचना अपने देवर के लड़के को जो यहाँ उसके पास रहकर पढ़ रहा है कहती है.... तुम्हारा ब्रेक कब का खतम हो चुका है .... तुम्हारी अॉनलाइन पढाई चल रही है इसका ये मतलब नहीं की तुम कैमरा बंद कर, म्यूट में रह कुछ भी करो.....मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगी! "शैलूष ने कहा ! ...ताई जी आप अपना काम करें मेरे मामले में ना पडे़ं ..."
"देखा आपने.... सामने बैठे पति को देखकर कहती है.... मुझे कैसे जवाब दे रहा है...... -तो क्या करूं शैलूष ने कहा..... जब देखो मेरी पढाई के पीछे लगी रहती हैं जाने कितना जानती हैं ....आपको नहीं रखना है मुझे तो मत रखें..... सारा दिन किटकिट ना करें.....रचना अवाक रह गई.... पति को कहने लगी मैने कब कहा ऐसा...?" देवर जी को पता चलेगा तो क्या समझेंगे.... मेरे लिए....
" रोते रोते रचना कहने लगी पढा़ई का महत्व पता नहीं था किंतु अब समझ गई हूँ इसीलिए तो पढ़ने को कहती हूँ !
"पति ने कहा... पगली , क्यों अंगार सिर पर धरती हो ? ...'आ बैल मुझे मार ' तुमने ही तो कहा था अपनी देवरानी को..... हॉस्टल में क्यों ? शैलेष यहीं अपने घर में रहकर पढे़गा अब विपत्ति मोल ली है तो भुक्तो!
"रचना रोते हुए कहती है 'नेकी कर और दरिया में डाल ' वाली बात कर दी.. बड़बड़ती रोते हुये अपना काम करने लगती है ....!
चंद्रिका व्यास
खारघर नवी मुंबई
[28/09, 3:23 pm] कुम कुम वेद सेन: विषय अंगारे सिर पर धरना का अर्थ विपत्ति मोल ले लेना
एक पड़ोसी की यह लघु कथा है
भोलू की मां और शेखर की मां मैं जान पहचान थी रस्ते में मिलती थी और दोनों में बातचीत हुआ करती थी बातचीत के दरमियान यह पता चला कि दोनों एक ही मोहल्ले में रहने वाली हैं फिर दोनों में दोस्ती भी बढ़ गई और दोस्ती में घर से आना जाना कम हुआ लेकिन अक्सर स्कूल में दोनों की मुलाकात होती थी क्योंकि दोनों के बच्चे स्कूल में पढ़ाई करते थे इसी बीच भूलू की मां ने अपने बेटे भोलू का ट्यूशन लगा दिया ट्यूशन की जो टीचर थी वह शेखर की मां थी।
दोनों की दोस्ती भी थी और भोलू की पढ़ाई भी हो रही थी।
भोलू की मां एक अच्छी गायिका रही और ऑल इंडिया रेडियो में अपना प्रोग्राम भी देती थी पर उनके पति परमेश्वर जो थे वह शराबी थे दोनों का विवाह प्रेम विवाह था।
शराबी थे और इसी नौकरी में नहीं लगे हुए थे घर में पैसों की कमी नहीं थी लेकिन आपस में पति पत्नी की बिल्कुल नहीं बनती थी एक दिन अचानक रात का समय शेखर की मां घर में घरेलू कामों में उलझी हुई थी अचानक कॉल बेल की घंटी बजी वह दरवाजा खोली तो देखा भोलू की मां खड़ी है और रो रही हैं उसने कहा कि मुझे घर से निकाल दिया गया है मैं एक रात के लिए आपके घर में रह सकती हूं शेखर की मां को उनकी कहानी सुनकर दया अवश्य आई लेकिन उन्हें थोड़ी देर बैठा कर शांत की और अपने घर में परिवार वालों से राय विचार की परिवार के सभी सदस्यों ने रहने की अनुमति नहीं दी और यह कहा कि विपत्ति को न्योता नहीं दीजिए। उन्हें अगर एक दिन भी शरण देंगी तो अंगार सिर पर धरने वाली बात हो जाएगी।
शेखर की मां अपने परिवार की बातों को मानते हुए हाथ जोड़कर भोलू की मां से माफी मांगी और कहीं अब वापस अपने घर जाइए घर में रहना ज्यादा उचित है। इस प्रकार विपत्ति मोल लेने से अपने आपको बचा ली।
कुमकुम वेद सेन
[28/09, 3:40 pm] ओम 👅प्रकाश पाण्डेय -: अंगारे सिर पर धरना ( बिपति मोल लेना) --ओमप्रकाश पाण्डेय
रामकिशन जी एक बार ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. वे अपने घर जा रहे थे. यात्रा लम्बी थी . लम्बी यात्रा में सहयात्रियों से थोड़ी बहुत जान पहचान तो हो ही जाती है. सो रामकिशन जी के सामने एक नौजवान भी बैठा था और बातचीत के दौरान उससे थोड़ी सी निकटता हो गई.
अचानक उस व्यक्ति ने उनसे कहा कि जरा मेरा सामान देखियेगा मैं अपने एक मित्र जो कि दूसरे डिब्बे में बैठा है, उससे मिल कर आ रहा हूँ. रामकिशन जी ने कहा ठीक है. डिब्बे के अन्दर से ही दूसरे डिब्बे में जाने का रास्ता तो बना ही रहता है, अत: वह चलती गाड़ी में ही चला गया.
लगभग चार घंटा बीत गया लेकिन वह आदमी लौट कर नहीं आया. इधर रामकिशन जी का अपना स्टेशन आने ही वाला था, रामकिशन जी ने सोचा कि मैंने क्यों यह अंगारा अपने सिर पर रख लिया और अगर मेरे गाड़ी से उतरने के पहले वह नहीं आया तो उसका सामान छोड़ कर ही उतरना पड़ेगा.
हुआ भी यही. रामकिशन जी का स्टेशन चौकाघाट आ गया लेकिन वह आदमी नहीं आया. रामकिशन जी चुपचाप उसका सामान वहीं छोड़ कर उतर गये.
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)
[28/09, 3:44 pm] रामेश्वर गुप्ता के के: अंगारे शिर पर रखना- विपत्ति मोल लेना-लघुकथा।
विजय सेठ, मुंबई का बड़ा मकानों का निर्माता है। उसने वहां के रहने वालों से काफी जमीन खरीद ली है। रमेश भी विजय सेठ की इमारत में रहता है। रमेश के घर के सामने खाली मैदान है। विजय सेठ यह कहकर सबको मकान बेचा कि खाली जगह पर बढिया फुलवारी बनायेगा। कुछ दिन के बाद रमेश ने देखा कि उसके घर के सामने के मैदान में विजय सेठ ने बांधकाम का काम चालू कर दिया है। रमेश ने बांधकाम देखकर नगर पालिका में जाकर विजय सेठ के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी। रमेश की शिकायत पर नगरपालिका ने विजय सेठ के बांधकाम को गिराकर चले गये। रमेश ने विजयसेठ से पंगा लेकर अंगारे सिर पर ले लिया। फिर बाद में समस्या आपसी समझौता से हल हुई।।
स्वरचित,
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ।
[28/09, 3:57 pm] डा. अंजूल कंसल इन्दौर: अग्निशिखा मंच
विषय- अंगारे सिर पर धरना- विपत्ति मोल लेना
अरविंद को उसका दोस्त राजेश ताज होटल ले गया। वह लोग शाम को होटल में चाय पी रहे थे इतने में आतंकवादी हमला हो गया। अरविंद को समझते देर न लगी। वह तुरंत जमीन पर लेट गया, पर राजेश बैठा रहा। उधर से गोलियां चल रही थी राजेश को भी गोली लग गई और वह लुढ़क गया।
अरविंद सोचने लगा मैंने राजेश को कितना मना किया पर इसने अंगारे सिर पर धर लिए, मेरी एक ना सुनी। आखिर मैं इसकी मां को क्या जवाब दूंगा?
आतंकवादी की तो मां बहनें होती नहीं, यह हर समय अंगारे सिर पर रखकर निकल पड़ते हैं।
डॉक्टर अँजुल कंसल "कनुप्रिया"
28-9-21
[28/09, 4:01 pm] डा. बैजेन्द्र नारायण द्िवेदी शैलेश🌲🌲 - वाराणसी - साझा: आदरणीय मंच को नमन
++++
गांव में आज की ऐसा वातावरण रिप्लाई देता है कि गरीबों को बड़े लोग अपने प्रभाव से दबा कर रखते हैं।
संपत लाल एक गरीब परिवार से है उसकी अपनी पत्नी दो छोटे-छोटे बच्चे हैं वह मात्र 1 बीघे का काश्तकार है।वह कभी कभी अपने खेत पर काम करने के बाद दूसरे लोगों के खेत में भी काम करता है। एक बार उसने समय न रहने पर गांव के जमींदार से यह कह दिया-"बाबूजी मेरे पास समय नहीं है,।बच्चा बीमार है,।दवा लिए शहर जाना है।"जमींदार से ऐसा कहकर उसने अपने सिर पर अंगार ले लिया। जमींदार ने उसे दी जाने वाली हर सहायता बन्द कर दिया।सम्पत लाल ने उससे क्षमा मांगी।खेत में जाकर काम किया।दोपहर के बाद दवा लाने शहर गया।शाम को जमींदार ने उसे बुलाया। कुछ पैसे और अनाज मजदूरी के रूप में दिया।
+++++डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेद्वी शैलेश वाराणसी👏👏🌹🌹
[28/09, 4:17 pm] रागनि मित्तल: जय मां शारदे
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अग्निशिखा मंच
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दिन-मंगलवार
दिनांक- 28/9/2021 विद्या -लघुकथा
प्रदत्त विषय - *अंगारे सिर पर लेना*या विपत्ति मोल लेना
रेल अपनी रफ्तार से बढ़ी जा रही थी ।
मैं इस प्रतीक्षा में थी कि कब अपनी मंजिल तक पहुंचूं। लेकिन उसमें अभी काफी समय था। मैं आराम से अपनी सीट पर लेट कर कोई मैगजीन पढ़ रही थी। तभी मैंने देखा एक महिला जोर-जोर से टीटी से बहस कर रही है। अंत में वो रोने लगी ।मैंने सोचा उनका आपस का मामला है पहले मैंने कुछ नहीं बोला, लेकिन जब उसका रोना बढ़ता रहा और साथ में उसकी बेटी भी जोर-जोर से रोने लगी। तब मैंने जाकर पूछना जरूरी समझा। पूछने पर पता चला कि वो महिला बिना टिकट के ही रेल में चढ़ गई है और अब टीटी के पेनाल्टी लगाने पर वह रो रही है ।मैंने सोचा इनका अपना मामला है ।इसको तो बिना टिकट के चढना ही नहीं चाहिए था ।अब इसमें मैं क्या कर सकती हूं ।काफी देर के बाद टी.टी.बोला!अब तुमको पुलिस थाने चलना होगा।वो वहां जाने को तैयार नहीं थी ।मैं फिर गई,मैंने उस महिला से बोला ! हुआ क्या? पैसे क्यों नहीं दे देती ।तब वो बोली पैसे होते तो मैं पहले ही टिकट ले लेती।
तब मैंने टी.टी. से बोला! छोड़ दीजिए, जब इनके पास पैसे नहीं हैं तो क्या करेंगे ।इतनी बड़ी रेल में एक व्यक्ति बिना टिकट के भी चढ़ गया तो क्या हर्ज है ?
तब टी.टी. बोला !आपको इतनी ही दया आ रही है, तो आप ही इनके टिकट के पैसे दे दीजिए ।मैं क्या करती ।मैंने जो *अंगारे अपने सिर पर रख* लिए थे। अंततः मुझे उस महिला की टिकट के पैसे देने पड़े।
रागिनी मित्तल
कटनी, मध्य प्रदेश
[28/09, 5:03 pm] ♦️तारा प्रजापति - जोधपुर: अग्निशिखा मंच
28/9/2021 मंगलवार
विषय-अंगारे सिर पर धरना (लघुकथा)
शाहीराम एक स्कूल में चपरासी की पोस्ट पर कार्यरत है।उसकी पत्नी विमला भी घर में ही सिलाई का काम करके घर की जिम्मेवारियों में शाहीराम का हाथ बटाती है। शाहीराम के एक बेटा और एक बेटी है,जो दोनों सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं। बेटा प्रकाश बारहवीं व बेटी माधुरी दसवीं कक्षा में हैं।शाहीराम हमेशा दुःखी रहता क्योंकि वो अपने बच्चों को अधिक सुविधाएं नहीं दे पाता। उसने स्कूल के बाद रात को एक कारखाने में चौकीदारी का काम शुरू कर दिया।शाहीराम और उसकी पत्नी दिन-रात मेहनत करते ताकि उनके बच्चें पढ़-लिख के अपने पैरों पर खड़े हो जाये। दोनों ही बच्चे जी लगाकर पढ़ रहे थे।अगले वर्ष प्रकाश कॉलेज में आ जायेगा।कॉलेज उसके शहर से बीस किलोमीटर दूर है।रोज-रोज पैदल या साईकिल पर जाना सम्भव नहीं था।
शाहीराम के एक दोस्त ने सुझाव दिया कि आज-कल बाईक किश्तों में मिल जाती है। क्यों नहीं प्रकाश के लिए किश्तों पर बाइक ले लेते? ताकि प्रकाश कॉलेज आराम से जा सके। शाहीराम सोचने लगा घर का खर्च,माधुरी और प्रकाश की पढ़ाई फिर ऊपर से हर महीने किश्त,कैसे कर पाऊंगा मैं ये सब?फिर सोचा बिना साधन के प्रकाश कॉलेज कैसे जाएगा? आख़िर हिम्मत करके शाहीराम ने अपने बेटे प्रकाश के लिए किश्तों पर बाइक ले ली। दो-तीन महीने तो जैसे-तैसे किश्ते भरी पर साल भर किश्ते भरना,शाहीराम को लगा जैसे उसने अंगारे अपने सिर पर धर लिए हो।वो हर समय परेशान सा रहने लगा।रातों की नींद उड़ गई।बड़ी मुश्किल से राम-राम करके शाहीराम ने किश्तें पूरी की।और आगे के लिए सबक लिया कि वो कभी भूल कर भी कोई वस्तु किश्तों पर नहीं लेगा।
तारा "प्रीत"
जोधपुर (राज०)
[28/09, 5:06 pm] +91 98822 39135: 🙏मंच को नमन🙏
विषय -अंगारे सिर पर लेना /विपत्ति मोल लेना
🌻लघु कथा🌻
युवराज और श्रद्धा दोनों बहुत ही चंचल स्वभाव के बच्चे थे वह हर दम शरारते करते रहते थेऔर अपने आसपास के लोगों को हमेशा तंग किया करते थे । एक दिन वो दोनों खेल रहे थे तब अचानक उनकी नजर घर के पास वाले बगीचे के पेड़ के ऊपर गई वहां उन्हें मधुमक्खियों का एक छता दिखाई दिया ।दोनों आपस में बातें करने लगे कि हम इन मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकाल लेंगे ।युवराज शहद निकालने के लिए पेड़ के ऊपर चढ़ने लगा ।तभी युवराज के दादा वहां पर आ गए ।वह युवराज से बोले युवराज बेटा पेड़ से नीचे उतर जाओ यह मधुमक्खियां तुम्हें काट लेगी लेकिन युवराज ने दादा की एक बात ना सुनी ।श्रद्धा भी अपने भाई युवराज को बोल रही थी कि भैया तुम दादा की बात मत सुनो आज हम मीठा शहद खा कर ही रहेंगे ।जैसे युवराज मधुमक्खियों के छत्ते के पास पहुंचा और शहद निकालने लगा तभी बहुत सारी मधुमक्खियों ने उसको काट लिया और वह पेड़ से नीचे गिर गया ।पेड़ के नीचे खड़ी श्रद्धा को भी मधुमक्खियों ने काटा ।दोनों बच्चों ने दादा की बात को ना मानकर अपने सिर पर जान बूझकर विपत्ति मोल ले ली।दोनों भाई बहन मधुमक्खियों से बचने के लिए चीखते चिल्लाते घर के अंदर भाग गए और दादा जी के सामने जोर जोर से रोने लगे ।तब दादाजी ने उनसे कहा कि मैंने पहले ही आप दोनों को मना किया था की पेड़ के ऊपर मत चढो ।लेकिन तुम दोनों ने मेरी बात न मानी और अपने सिर पर जानबूझकर विपत्ति मोल ले ली जिसका खामियाजा आप दोनों को भुगतना पड़ा ।
नीरज कुमार
हिमाचल प्रदेश
[28/09, 5:15 pm] सुरेन्द्र हरडे: अग्निशिखा मंच को नमन
आज की विधा :- लघुकथा
शीर्षक *अंगारे सिर पर रखना*
अर्थ :-विपत्ति मोल लेना
रामा राव अपने शहर के समाज सेवक थे कोई भी गलत काम वह बर्दाश्त नहीं करते थे एवं वह टोकने से बाज नहीं आते थे लोगों को जागरूक करना गरीब लोगों की छोटी मोटी मदद करना गरीब लोगों के वह एक तरह मसीहा थे।उनकी सब बात मानते थे जैसा पानी का महत्व, पेड़ लगाना, वृक्षारोपन करना, गंदगी ना करना कोरोना -19 इंजेक्शन (सुई) लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करना!
एक बार वह स्कूटर से अकेले जा रहे थे चार पांच आवारागर्दी करने वाले लड़के सड़क किनारे अपनी कार लगाकर आम के पेड़ के नीचे सिगरेट पी रहे थे रामा राव को अच्छा नहीं लगा अपनी आदत के अनुसार उसने कहा"; बच्चों सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसके शरीर खराब होता है, इतना बोलते ही नहीं एक लड़का बोला," अरे जा जा अपना काम कर",तेरे बाप के पैसे से पीते क्या"?
एक लड़के ने तो ना आव देखा ना ताव देखा रामा राव के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया रामा राव ने फोकट की सलाह देकर *अपने सिर पर अंगारे ले लीऐ* इसको ही बोलते है " आ बैल मुझे मार।
सुरेंद्र हरडे
लघुकथाकार नागपुर
दिनांक २८/०९/२०२१
[28/09, 5:33 pm] सरोज दुगड गोहाटी: * अग्नि शिखा काव्य मंच *
* २८/९/२०२१ मंगलवार *
* विधा - लघुकथा *
* बिषय - सर पर अंगारे रखना *
धिरज आसाम से एक बार अपनें मम्मी पापा के साथ छुट्टियों में राजस्थान अपनें गांँव गया था ! वहाँ उसको बहुत अच्छा लगता था ! दिनभर खेलना और मन पसंद चीजें खाना ! धिरज की बुआ और नानी का घर भी उसी गाँव में था !.उसका पूरा दिन खेलनें ओर धमाचौकड़ी में बीत जाता ! नानी ,दादी,बुआ के प्यार में उसके दिन मजे से कट रहै थे!
गाँव में घर पास-पास होते हैं! वह कभी नानी के घर कभी बुआ के घर खेलता रहता ! वहांँ उसके कुछ दोस्त भी बन गये थे !
एक दिन धिरज अपनी बुआ के घर पर खेल रहा था ! बुआ की हवेली बहुत बड़ी थी और उनके घर में गाय थ ! धिरज गाय को रोटी खिलाने गया ! ग्वाली घर के पास ही एक तहखाना भी था ! बुआ के मना करने के वावजुद धिरज उस तहखानें में चला गया ! उस तहखानें में मघुमक्खियों का बहुत बड़ा छता था ! अंधेरे में धिरज का हाथ मघु मक्खियों के छते से टकराया और मघुमक्खियों नें उस पर हमला बोल दिया ? धिरज किसी तरह अपनीं जान बचाकर भागा ? मधुमक्खियों के काटनें से पूरा चेहरा फूल गया ! इंजेक्शन खानें पड़े ! मम्मी -पापा की डाँट पड़ी हो अलग ?
धिरज ने सोचा जब खुद ही" सर पर अंगारे रख लिए " अब पछतानें से क्या ?
सरोज दुगड़
खारूपेटिया
असम
🙏🙏🙏
[28/09, 6:45 pm] Nilam 👏Pandey👏 Gorkhpur: अग्निशिखा मंच
विषय -सिर पर अंगार डालना अर्थात विपत्ति मोड़ लेना
लघुकथा
मोहित अपनी फैक्ट्री से घर की ओर जा रहा था। रात काफी हो चुकी थी। मोहित के फैक्ट्री से घर के रास्ते में कुछ दूर बहुत सुनसान पड़ता था। मोहित मन ही मन सोच रहा था की घर जाकर बस खाना खाकर जल्दी से सो जाएगा ,जिससे कि दिन भर की थकान उसकी मिट जाएगी ।अभी वह इसी चिंतन में था कि अचानक उसकी नजर सड़क के किनारे खड़ी दो महिलाओं पर पड़ी ।जो रुकने के लिए हाथ दे रही थी ।पहले तो उसने सोचा कि नहीं रास्ते में रुकना ठीक नहीं होगा ,पता नहीं कौन है? अनजान व्यक्ति के लिए रुकना? फिर उसे उसने गाड़ी रोक दी शीशा थोड़ा सा नीचे करके उसने पूछा क्या बात है? महिलाओं में से एक ने कहा की हम लोग को हॉस्पिटल जाना है। लेकिन कोई सवारी न मिलने के कारण पैदल ही जा रहे हैं और इनकी तबीयत बहुत खराब है। उसने उनसे पूछा कि आप लोग इतनी रात को सुनसान रास्ते पर अकेले फिर कैसे यहां तक कैसे पहुंचे ? तो उसने बगल वाली पगडंडी को दिखाते हुए कहा" हम लोग उस गांव से आ रहे हैं सोचा कि शायद मेन रोड पर हमें कोई सवारी मिल जाएगी। लेकिन काफी देर हो गए हमें कोई सवारी ही नहीं मिली और मेरी बड़ी बहन की तबीयत बिगड़ती ही जा रही है ।" देखने में महिलाएं भले घर की लग रही थी। मोहित ने मानवता के नाते उन महिलाओं को लिफ्ट दे दी ।सुनसान रास्ते तक तो वह महिलाएं चुपचाप बीमारी का बहाना करती हुई बैठी रही। लेकिन जैसे ही बस्ती वाली जगह आई दोनों महिलाओं ने चिल्लाना शुरू कर दिया। मोहित अचानक से घबरा गया कि क्या हुआ उसे समझते देर न लगी कि उसने इन्हें लिफ्ट दे करके अपने सिर पर अंगार रख लिया है। महिलाओं ने शीशा डाउन करके लोगों को चिल्ला चिल्ला के बुलाना शुरू कर दिया मोहित ने क्या हुआ आप दोनों को ऐसा पूछते हुए मोहित ने अपने मोबाइल का रिकॉर्ड बताएं दबा दिया था ।मोहित ने पूछा क्या हुआ उसमें से एक ने कहा कि जो कुछ भी तुम्हारे पास पैसे हैं चेन अंगूठी घड़ी सब कुछ निकाल कर दे दो हमारे हवाले कर दो। नहीं तो हम लोग अभी यहां लोगों को जमा कर लेंगे और पुलिस को भी बुला लेंगे कि तुमने लिफ्ट देने के बहाने हमें हमारे साथ कुछ गलत किया है। फिर तुम बच नहीं पाओगे। इसलिए अच्छा यही होगा कि अपने पास के सारे पैसे और घड़ी अंगूठी चेन दे दो । मोहित ने कहा ठीक है दे रहा हूं। उसने कुछ सोच विचार कर के गाड़ी भीड़भाड़ वाले जगह पर रोक दी फिर भीड़ जमा होने पर लोग पूछने लगे महिलाओं ने मोहित पर इल्जाम लगाना चाहा तभी मोहित ने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड किया हुआ पूरा वक्तव्य उनको सुना दिया जिससे भीड़ को समझते देर न लगी कि महिलाएं ही जालसाज है ।भीड़ में से एक सज्जन ने इस बात की पुष्टि भी कर दी। कि हां , हां यह तो ठग महिलाएं हैं। यह ऐसे ही राह चलते लोगों को बेवकूफ बना करके लूटती हैं। इस तरह से मोहित वहां से बच कर के निकल पाया और सुरक्षित अपने घर पहुंचा।
स्वरचित लघुकथा
नीलम पाण्डेय
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
[28/09, 6:46 pm] आशा 🏆🏆जाकड इन्दौर: लघुकथा ः
28.9.21
विषय - सिर पर अंगारे रखना
छँटते बादल
ऊपर आकाश में बादल मंडरा रहे थे ।ठंडी- ठंडी हवा चल रही थी और बारिश होने के पूरे आसार नजर आ रहे थे। पूजा खिड़की में खड़ी- खड़ी सोच रही थी कि मेरे जीवन से ऐसे काले -काले बादल कब छँटेंगे ? कब तक मैं अपने मायके नहीं जा सकूँगी। आज शादी को 15 साल हो गए हैं । मेरी गुड़िया भी 14 साल की हो गई है।मैंने मम्मी- पापा की इच्छा से शादी नहीं की ,लव मैरिज की उसका मुझे यह दण्ड आज तक भुगतना पड़ रहा । बहन की शादी हो गई भाई की शादी हो गई लेकिन मैं किसी की शादी में नहीं जा पाई।
अब सोचती हूंँ काश उस समय मैंने पापा का कहना माना होता ।मैं अभिषेक की बातों में न आई होती। अभिषेक ने मुझे कैसे ऊंँचे -ऊंँचे सब्जबाग दिखाए थे।मैं तुम्हारे लिए नौकरी करूँगा, तुम्हारे लिए खूब मेहनत करूंगा । तुमको खूब पढ़ाऊंगा ,तुम्हें नौकरी भी करने दूंगा और मैं इसकी बातों में आ गई। पापा मेरे लिए इंजीनियर लड़का देख रहे थे लेकिन मेरे ऊपर तो अभिषेक के प्रेम का भूत सवार था । मैंने शादी के बाद पढ़ाई की और और अब मैं नौकरी करती हूंँ पर अभिषेक के काम का कोई ठिकाना नहीं है। न तो उसकी कोई नौकरी है ,न कोई ढंग का काम और रोजाना शराब चाहिए। मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन एक- एक पैसे के लिए इतना परेशान रहूंँगी ।वह तो सास- ससुर अच्छे हैं जो हमारी सहायता कर देते हैं पर आखिर कब तक मैं उनके सहारे रहूंँगी। आज मैं अपने मन के दुख को अपने माता-पिता से भी नहीं कह सकती हूंँ। मेरी नासमझी के कारण, मेरी अपनी गलती के कारण ही मुझे सिर पर अंगारे रखने पड़ रहे हैं।
अब मैं ऐसी गलती अपनी गुड़िया को बिल्कुल नहीं करने दूंँगी ।आज मेरी गुड़िया दसवीं पास कर चुकी है। उसके लिए अच्छा लड़का देखकर ही शादी करूँगी।।
ं
आशा जाकड़
[28/09, 6:51 pm] चंदा 👏डांगी: $$ सिर पर अंगारे रखना $$
शीला और रमा दोनो एक ही कक्षा मे पढ़ने के साथ साथ बहुत अच्छी सहेलिया भी थी । दोनो ही पढ़ने मे होशियार थी , पर संयोग की बात की रमा की दोस्ती सलीम के साथ हो गई और धीरे धीरे उसका मन पढ़ने से हटने लगा । शीला को रमा का भविष्य बिगड़ते देख कुछ अच्छा नही लगा । शीला ने रमा को समझाने की बहुत कोशिश की ।तुम अंगारे सर पर ले रही हो अभी पढ़ने का समय है इन प्यार व्यार के चक्कर मे मत पड़ो । सलीम अच्छा लड़का नही है पर रमा कहाँ समझने वाली थी , उसने शीला की एक ना सुनी और कुछ समय के बाद सलीम उसके रुपये और जेवर लेकर धोखा देकर भाग गया । अब रमा का रो रोकर बुरा हाल हो गया और वो परीक्षा मे भी फेल हो गई। तब रमा को समझ मे आया कि सही मे शीला की बात नही मानकर मैंने खुद ही अपने सिर पर अंगारे ले लिए।
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
रामटेकरी मंदसौर मध्यप्रदेश
[28/09, 7:45 pm] पुष्पा गुप्ता / मुजफ्फरपुर: 🌹🙏अग्नि शिखा मंच 🙏🌹
विषय: सिर पर अंगारे रखना
विधा : लघुकथा
दिनांक: 28/9/21
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धीरज एक बहन भाई थे,,दोनों जुडवाँ । बचपन से ही ,दोनों मे खूब बनती थी ,,,मम्मी पापा दोनो को इस बात का गुरूर था,,,,, ।
साथ पढना,खाना ,खेलना ,,,,पढने में
भी अब्बल ,,,दोनों ने मिडिल,हाई स्कूल अच्छे से पास कर, माता पिता का नाम रौशन किया । काॅलेज में को- एड मे ही नाम लिखवाया,,,,कि साथ - साथ जाने मे
आसानी हो ।
काॅलेज की अच्छी खासी दूरी थी ,,,इसलिए एक स्कूटर की बात धीरज ने कही,,,,फिर मम्मी पापा राजी हो गये,
स्कूटर भी आ ही गया ।अब दोनों मजे से
कालेज ,कोचिंग जाते ।
अभी इनकी परीक्षा चल रही थी,
बहन को गेट तक छोड़ कर ,,,पुनः बैक हुआ ,निधि ने पूछा,,,परीक्षा नही देनी है ,
क्या,,?
धीरज ने कहा बस तुरत आया।
वह स्वीटी को (क्लासमेट ) पिक अप करने गया था ,,,
क्योंकि उसकी साईकिल खराब हो गयी थी,,,, चलो कोई बात नहीं ,,,।
घर आकर मम्मी पापा के सामने दिन वाली घटना की चर्चा शुरू हुई,,,,
पापा ने समझाया कि जमाना खराब है,
तुमने तो अपने हिसाब से ठीक किया,
लेकिन यदि उसका भाई- बाप तुम्हारे साथ देख लेता तो,,,,, ?
तो उस पर शामत आती ,,,, उसे जिन्दा दफन कर देता,,,,!!!
अब कभी सिर पर अंगारे मत रखना,,,।
🌹🙏
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स्वरचित एवं मौलिक रचना
रचनाकार -डॉ पुष्पा गुप्ता
मुजफ्फरपुर
बिहार
🌹🙏