लघुकथा
" बहादुर बेटा"
शुभम अपने दादा जी का बड़ा लाडला थाl उसके दादाजी उसे रोज वीरों की , महापुरुषों की और क्रांतिकारियों की कहानियांँ सुनाते थे। शुभम 9 वर्ष का था तब से ही उसके मन में वीरता की भावनाएं जन्म लेने लगी और वह भी हमेशा बहादुरी की बात करता और कहता "दादाजी मैं भी बड़ा होकर सैनिक बनूंगा और जो देश मेरे देश पर आक्रमण करेगा,उस दुश्मन देश की मैं ईंट से ईंट बजा दूंँगा'
शुभम के दादा जी कहते "शाबाश बेटा , बस तू खूब पढ़ना ,बड़ा होकर अपने देश की रक्षा करना और अपने परिवार का नाम रोशन करना"
"हांँ दादा जी मैं बड़ा होकर देश की रक्षा करूंँगा और दुश्मन अगर मेरे सामने आएगा तो मैं उसको अपनी बंदूक से मार गिराऊँगा।" शुभम हाथ में अपनी बन्दूक लेकर कहता।
" शाबाश मेरे बहादुर बेटा" कहकर उसके दादाजी उसे गले से लगा लेते।
आशा जाकड़