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अखिल भारतीय Agni Shikha manch block per bal kavitaen patang padhen डॉ अलका पांडे मुंबई

कविता का शीर्षक 
पंतग - अलका पाण्डेय 



बंटी संटी माँ से बोले दे दो मुझको बीस रुपया बारह आना
सुबह स्नान कर ध्यान है लगाना 

भगवान को शीश झुकाऊँगा ,
फिर बाज़ार से पंतग लाऊँगा !

छत पर ख़ूब पंतग उड़ाऊँगा ,
पेंच लड़ा कर  मैं इठलाऊँगा 

मेरी पंतग होगी निराली 
गगन में खुब उड़ेगी मतवाली 

नही काटूँगा किसी और की पंतग 
हो जाऊँगा में पंतग देख मंतग 

परम्परा को मैं ज़िंदा रखूँगा ,
बडा हो कर गगन को चुमूँगा !

माँ जग में तेरा नाम  ,मान बढ़ाऊँगा 
दे दो मुझको बीस रुपया बारह आना !!

अलका पाण्डेय - अगनिशिखा 
9920899214



अग्नि शिखा मंच
12/7/21
बाल गीत पतंग
ओ मेरी प्यारी पतंग
 खेलूं मैं हरदम तेरे संग
 गले में तेरे जब बांधू मैं डोर 
छूती है तू अंबर का छोर
 इधर है उड़ती उधर है उड़ती
 सारे नभ में घूमा करती
जब मैं खींचू डोर तुम्हारी तुम आ जाती ओर हमारी
 कभी लाल गुलाबी हो तुम
 कभी हरी बैगनी हो तुम
 सब बच्चों के मन भाए पिंटू, रिंकू भी ललचाए
 तुमसा प्यारा दूजा ना कोई
तुम्हें सिरहाने रख मैं सोई
 तुम हो जग में सबसे प्यारी 

 लगती हो तुम सबसे न्यारी
स्वरचित बाल गीत
नीलम पाण्डेय गोरखपुर उत्तर



अग्नि शिखा को मंच को नमन
पतंग
छत पर चलो
मांजा ले लो।

गुड्डी आओ
पतंग लाओ।
नभ में आज पतंग उड़ाएंगे
 पतंग को देखकर खुशी मनाएंगे।
लाल पीला नीला है कितने प्यारे
इंद्रधनुष के जैसा लगते हैं न्यारे।
चिड़िया से ऊपर उड़ेगा हमारा पतंग 
बिना पंख के उड़ता हमारा पतंग।
हवा चलती तो उड़ती
हवा रुकती तो थमती।

डॉ गायत्री खंडाटे


बाल गीत
विषय-पतंग


आओ चलो उड़ाए पतंग।
लेकर मन में नई उमंग।
आओ चलो उड़ाए पतंग।

चीनू आ जा, मीनू आ जा।
छत पर चढ़ बजाएं बाजा।
थिरके जिस पर सारे अंग।
आओ चलो उड़ाए पतंग।

ये कटी फिर वो कटी।
कुछ लुटे कुछ तो फ़टी।
हाथ हो गए अब तो तंग।
आओ चलो उड़ाए पतंग।

रंग बिरंगी लगे सुहानी।
पल भर की है कहानी।
मुस्काएं एक दूजे संग।
आओ चलो उड़ाए पतंग।

   बुद्धि प्रकाश महावर 'मन'
       दौसा राजस्थान



मेरी प्यारी पतंग 

अंबर में उडे़ पतंग 
रंग बिरंगी उमंग संग 

मोनू चरखी थामे है 
सोनू पतंग उड़ाए है 

संभाल के उड़ाओ 
छत से ना गिर जाओ 

काट लिया पतंग को 
वो काटा वो काटा देखो 

मोनू सोनू ने पेच लड़ाया 
खूब मौज मस्ती मनाया

डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
1-7-21




बाल कविता "पतंग"
द्रोपती साहू "सरसिज"महासमुन्द, छत्तीसगढ़
शीर्षक:"पतंग"
विधा-बाल कविता
        ***
आसमान उड़ रही पतंग।
भरती उड़ान डोरी हो तंग।।

आओ सब अपनी छत पर।
रीना सफीना अभय उमंग।।

सर-सर फर-फर शोर करे।
हाथ में चकरी रस्सी संग।।

लंबी पूँछ नागिन सी लगे।
लहराती उड़ती हवा संग।।

कितने सारे अलग अलग।
लाल पीले हरे सातो रंग।।

काटती उड़ती हुई सबको।
लो अब कट गई मेरी पतंग।‌।

अंकल जी दरवाजा खोलो।
आपकी छत गिर गई पतंग।।
           *****
पिन-493445
Email-dropdisahu75@gmail.com


पतंग,,,जीवन दर्शन🙏🌷🌷

पतंग आसमान में उड़ती ।मैं झरोखे से देखती उसका लहरा लहरा के घूमना, इधर से उधर उसका डोलना, मैं आंखों को झपकाती, पलके उठा कर पुनः उस पतंग पर जमाती।

फिर दिमाग में यह विचार आया इस पतंग को उड़ाने वाला कौन आया,? देखा तो डोर के साथ-साथ कोई मांजा को हाथ में पकड़ा,, पतंग को चला रहा,, ऊंचाइयों पर ले जा रहा!🌷

पर उड़ती पतंग को देखकर जीवन दर्शन में महसूस किया। आसमान की ऊंचाइयों को छूने से पहले ज़मीदोज़ लोगों पर भी निगाहे बान किया,।।,

 जिनका पूरा योगदान हमें आसमान
 को छुआने का है,, दिखाने का है।

उड़ते हुए जमीन पर भी निगाहे हो,,
पैर तो जमीन पर ही 
जमाने हो🙂🙏🙏🙏🌷🌷🌷

सुषमा शुक्ला स्वरचित🙏🌷




🌹🙏अग्नि शिखा मंच 🙏🌹
          विषय:* पतंग 
          विधा:* बाल- साहित्य *
          शीर्षक: * पप्पू की पतंग*
          दिनांक:12-7-2021
*********************************🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁
चलो उड़ाएँ आज पतंग,
चुन्नू - मुन्नू का हो संग ।।

बाजार से डोरा लाएँ ,
इसका मज्जा खूब बनाएँ।

तिर-तिर करती,ऊपर चढ़ती,
और हवा से बातें करती ।

नहीं रूकेगी, नहीं कटेगी ,
ऊपर जाकर सैर करेगी ।

 फिर ,वापस आ जाएगी ,
पप्पू को खुश पाएगी ।।
😃😃😃
*********************************
स्वरचित एवं मौलिक रचना
 रचनाकार-डॉ. पुष्पा गुप्ता 
मुजफ्फरपुर
 बिहार --




नमन मंच
विषय --: पतंग (बाल कविता) 
दिनांक --: 12/7/2021

   चलो मुन्नी छत पर जायें
    रंग बिरंगी पतंग उड़ायें
 दूर क्षितिज पर उड़ती पतंग काटे
  संग तिल गुड़ के हम लड्डू खाए !

मुन्नी चरखी तुम्हें पकड़ना होगा 
      मैं पतंग उड़ाऊंगा
 जब-जब ढील तुम्हें देने को कहूं
      ढील तुम्हें देना होगा !

 ठीक है भैया,
 एक शर्त पर चर्खी पकडूंगी 
 बीच-बीच में मैंभी पतंग उडाऊंगी
बिट्टू की लाल पतंग है मुझे पसंद  
    काट उसको तो मैं ही लुटूंगी !

 पहले पतंग में डोरी तो बांधलो
थोड़ी लंबी पूछ पतंगकी करलो      
  रंगबिरंगी पतंगजीतन से पहले
      गुजिया और तिल गुड़
         के लड्डू खा लो !

आज खूब पतंग काटी है हमने 
खूब खाए तिल गुड़ के लड्डू भी
 सबने इंद्रधनुषी रंगों की पतंगों संग 
  क्षितिज भी मुस्कुराने लगा
मान दाद दे रहा हो क्षितिज भी 
      बच्चों को क्या कहने !

             चंद्रिका व्यास
          खारघार नवी मुंबई



अग्निशिखा मंच को नमन🙏
आज का विषय :-बालगीत
        *पतंग*
  
चिंकी ने कहा भैयासे
 ला दे मुझे एक पतंग
आज मैं भी खेलूंगी 
पिंकी के साथ पतंग। ‌१

मेरे धागे में मांजा है
लंबा चरखी में धागा है
काटुंगी मैं सबकी पतंग
मेरा ये आज इरादा है।।२

कल वाली फटी हवा से
आज नई लाऊं कहां से
भैया बोले नहीं है पैसा
फिर खेल होगा ये कैसा।।३

चिंकी रोये भैया लादे पतंग
पतंग नहीं तो कोई नहीं संग
जले मेरे दोस्त देखकर जिसे
सबसे न्यारी हो मेरी पतंग।।४

सुरेंद्र हरडे कवि
नागपुर महाराष्ट्र
दिनांक १२/०७/२०२१



कविता--बाल गीत

शीर्षक-"पतंग"

1. उड़ती पतंगे सात रंगों की , 
  बिखरी बहार रंगीनियों की , 
 
2.कहीं चंदा और सूरज लागे , 
  छा रही घटाएं परिंदों की , 
 
3.सारा आसमान घेरे है,
  धूम हो पतंगों की जंगों की .

4.हाथों में डोरी चरखी है ,
 बरसे है खुशियां उमंगों की , 

5.संगी पतंग के गीत सुनाए ,
  धूम मची ढोलकी चंगो की .

स्वरचित कविता रजनी अग्रवाल
  जोधपुर



अग्निशिखा मंच
12/7/2021 सोमवार
विषय-पतंग( बालगीत)

आया मौसम पतंगों को,
बच्चे उड़ा रहे हैं पतंग।

आसमान में उड़े पतंग,
नीली पीली लाल पतंग।

श्यामू चरखी घूमा रहा है,
रामू उड़ा रहा है पतंग।

वोई काटा के जोर शोर से,
लहराती बलखाती पतंग।

बंधी प्रीत की डोर से मेरी,
आसमान को छूती पतंग।

चुन्नू ने जब पैच लड़ाया,
काट दी मैंने उसकी पतंग।

ख़ुशी-ख़ुशी बड़े और बच्चे,
मौज से सभी उड़ाये पतंग।

15 अगस्त व मकर सक्रांति,
पर्व पे हमेशा उड़ती है पतंग।
                           तारा "प्रीत"
                       जोधपुर (राज०)



मंच को नमन 🙏
विधा-बाल कविता
 12/7/21

           चली मेरी पतंग
        ***************
देखो देखो चली मेरी पतंग
जैसे आसमान में उठी तरंग
लाल, हरा, बैंगनी ,नीली
मुझको तो भाती पीली
फर-फर-फर यह उड़ चली
कभी इधर कभी उधर
ये उड़ चली जाने किधर
रंग -बिरंगी, जैसे छैल छबीली
डोर ना करना इसकी ढीली
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंग
ये अलबेली करती बड़ी हुड़दंग
उड़न खटोले सी अंबर में डोले
खाती जाए हौले से हिचकोले

डॉ मीना कुमारी परिहार



जय मां शारदे
*********** 
अग्निशिखा मंच 
 दिन- सोमवार 
दिनांक- 12/7/ 2001 विधा -बालगीत 
शीर्षक- *पतंग*

पतंग हमारी सबसे प्यारी।
सब रंगों की न्यारी- न्यारी।
बबलू नभ मे उसे उड़ाता। 
डबलू आकर डोर बड़ाता।
इधर उधर हिचकोले खाती ।
बच्चों के मन को खूब है भाती। 
कूद-कूद कर ताली बजाते।
पतंग मेरी अच्छी गाना गाते ।
इतने में आ गई बड़ी पतंग
टूट गई बबलू की उमंग ।
अब ये पास में आएगी। 
मेरी पतंग गिरायेगी ।
लेकिन बड़ी पतंग यह बोली ।
बन जाते हैं हम हमजोली। 
आसमां में सबका अधिकार ।
नहीं किसी की अब सरकार। 
दोनों पतंग की बात सुनी।
खुश हो गए बबलू मुन्नी।
पाठ है इसका यही तुम जानो ।
सबको एक बराबर मानो।

रागिनी मित्तल
कटनी मध्य प्रदेश




नमन मंच 

पतंग 

आया आया पतंगों का त्यौहार 
सज उठा रंग विरंगी,
 पतंगों से बाजार 
कोई हरी ,कोई नीली , 
तो कोई मतवाली है ,
कोई लाल ,कोई पीली ,
कोई मन को मोहने वाली है ,
छूती ऊंचाई गगन ,
मन को हर्षाती है ,
यादें वो बचपन खूब दिलाती है ,
धैर्य हमें कभी न खोना है ,
संघर्ष अंतिम छोर तक  
करते ही जाना है ,
 ये सन्देश हम तक पहुचाँती है ,

स्मिता धिरासरिया ,बरपेटा रोड


पतंग
पतंग बाजी करूंगा छत मे
पतंग ‌बहुत उडाउंगा
अम्मा मुझे एक पतंग लाकर‌ दे दो
घर में रहकर पतंग बाजी करूगा 
कोरोना अभी गया नहीं है।
बाहर नहीं जाऊंगा।
तुम्हें परेशान नहीं करूगा
घर में ही रहकर पतंग बाजी करूंगा।
अम्मा पतंग की रस्सी मजबूत लाना।
डोर को कस के पकडूंगा।
देखुगा कोई मेरी पतंग को काट न ले
मेरी पतंग मेरी है।
इसे किसी ऐरे गेरे को
काटने न दूंगा।
कट गई तो हाथ से छूट जायेगी ।फिर अम्मा उडती पंतग के पीछे हर कोई भागेगा।
लिये बिना नही‌ रहेगा।
इसलिए पंतग की डोर कस के पकडूगा।
किसी को लेने नहीं दूंगा।

रचनाकार
अंजली तिवारी मिश्रा जगदलपुर छत्तीसगढ़




पतंग ( बाल गीत) -- ओमप्रकाश पाण्डेय
पापा वो देखो मेरी पतंग
पीली पीली सबसे आगे
वो जो उधर उड़ रही
खुले हुए नीले आकाश में
देखो कैसे इठला कर उड़ती
पापा वो देखो मेरी पतंग --------1
मैने डोर से बांधे रखा है
जितना चाहूँ इसे उड़ाऊं
जिधर भी चाहूँ उधर उड़ाऊं
यह उड़ती है इशारे पे मेरी
पापा वो देखो मेरी पतंग......... 2
रामू शामू नीलू व गोलू
देखो वे सब भी आये हैं
साथ में उनकी भी पतंगें हैं
हम सब मिल कर उड़ायेंगे
पापा वो देखो मेरी पतंग........ 3
रामू की वो नीली पतंग
हरी वाली शामू की है
गुलाबी पतंग है नीलू की
गोलू की पतंग तो है लाल 
पापा वो देखो मेरी पतंग........ 4
जैसे ही काटा मैंने लाल पतंग
गोलू चिल्लाया जोरों से
सब दौड़े उस पतंग के पीछे
पतंग लूटने की होड़ लगी है
पापा वो देखो मेरी पतंग......... 5
पतंग चाहे जितना भी उड़ ले
व जितना जी चाहे मचल ले
कट कर आये या काट कर आये
लौट कर आयेगी तो वह इसी धरा पर
पापा वो देखो मेरी पतंग..... .... 6
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)


पतंग_बालगीत
अ. भा. अग्निशिखा मंच
विषय_पतंग,विधा_बालगीत
बच्चों सुनो पतंग की कहानी,
यूं हंस करके बोली बूढ़ी नानी,
चीन देश ने खोजी पतंग,
देख के दुनिया रह गई दंग,
पतंग में बनाए ऐसे_ऐसे मुखौटे,
भयानक,देख हो जाएं खड़े रोंगटे।
भारत में होता संक्रांति त्योहार,
बच्चों को होता इससे विशेष प्यार
क्योंकि जाते छत पर उड़ाने पतंग 
अपने मात_पिता दोस्तों के संग,
अलग_अलग डिजाइन,अलग रंग
हवा में फड़के पतंग का अंग_अंग
अजब चाल है,इसके अजब ढंग,
गोते खाती जब,सब होते तंग,
कभी होती दो पतंगों में जंग,
पेच लड़ते,जब तक ना हो भंग,
पतंग बंधी रहती संग डोर,
जैसे ही डोर टूटती,मचता शोर,
"काप्यो छे,कापेलो छे"
कटे,जा कांटो में उलझे,
या बच्चे लेते लूट,
खींचातानी में सब कुछ जाता टूट,
कट जाती है, फट जाती है,
पर खोती नहीं उमंग,
फिर से उड़ने को होती है,
दुगुने दम से करने जंग।
बेटा क्या तुम जानो?
होती है दीप _पतंग भी,
छोटा_सा दीप जले अंदर,
नभ तक उड़े लिए उमंग नई,
ये उड़ाई जाती रात में,
चमके,जैसे तारे आकाश में। बच्चों क्या तुम पतंग उड़ाओगे?
हां हां नानी,हम जरूर उड़ायेंगे।
तो आओ,ये फिरकी मांजा लो,
छतपर चलोपतंगकी कन्नी बांधलो 
मैं फिरकी पकड़ रखूंगी,
तुम पतंग चकाते (उड़ाते)रहना,
ऊंची उड़ जाए, स्थिर हो जाए,
उसकी डोर मुझे थमा देना।
हम सब खूब मजा करेंगे,
खूब औरों की पतंग काटेंगे,
साथ में तिल के लड्डू,
चिक्की भी खूब खायेंगे।
खूब ऊंची उड़े सदा हमारी पतंग,
ठंडी हो न कभी, अपनी उमंग।।
स्वरचित मौलिक बालगीत_
रानी अग्रवाल,मुंबई,१२_७_२१.



अग्नि शिखा मंच
दिनांक 12जुलाई2021
वार सोमवार
विषय बाल गीत
पंतग
उड़ी रे उड़ी हमारी पतंग उड़ी।
पापा ने उड़ाई हमारी पंतग उड़ी।
नीले आसमान की ओर हमारी पंतग उड़ी।
डोर हाथ पापा के हमारी पंतग उड़ी।
रंग बिरंगी पतंग के संग
खुशी बच्चों को चली।
हमारी पतंग से दुजो की पतंग जो कटी।
दुजो की छत पतंग कट जा गिरी।
बच्चों मे पतंग. लूटने की,
धूम जो मची।
एक दुजे के हाथो पतंग की डोर खीची चली गई।
संक्रांति पर पतंगों की होड़ जो चली।
बस बच्चों की खुशी आसमान छूती चली गई।
उड़ी रे उड़ी हमारी पतंग उड़ी।

दिनेश शर्मा इंदौर
मोबाईल 9425350174




$$ पतंग $$

चुन्नु ने जब ली पतंग 
मुन्नी ने है धर्म मचाई 
बाबा मुझे दिलादो पतंग 
भैया संग पतंग उडाऊंगी 
आसमान मे लहराऊंगी
लाल,नारंगी,नीली,पीली
पतंग मुझे दिलादो ना ।।
बाबा बोले अभी छोटी हो
नहीं चढ़ सकती तुम छत पर
देख यहीं से ताली बजाओ
नाचो गाओ धुम मचाओ 
नहीं बाबा पतंग दिलादो
भैया के संग ही उडाऊंगी 
बात मान ली बाबा ने
 मुन्नी को भी दी सुंदर पतंग 
दोनो ने मिल पतंग उड़ाई 

चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर 
चित्तौड़गढ़ राजस्थान



🌹🌹पतंग🌹🌹

लाल नीली हरी पीली
मन भाती है पतंग
ऊंची उड़ान भर तीहै
सभी के मन भाती पतंग।।

कभी उड़ती ऊंची
पेच लड़ने पर कट जाती पतंग
देखकर होते बच्चे खुश
कभी ऊपर कभी नीचे आती पतंग।।

पतंग सी उड़ान भरना बच्चों
आसमान को तुम छूना
अपने नेक इरादों में
इंद्रधनुषी रंगों को भरना।।
पदमा तिवारी दमोह मध्य प्रदेश



नमन अग्निशिखा मंच
दिनाँक ;-12/7/2021
विषय;-पतंग बालगीत
    🌹पतंग 🌹
आसमान में उड़ती देखो 
रंग बिरंगी आज पतंग।
मम्मी मुझको लेनी है 
नीली ,पीली, लाल पतंग
सोनू मोनू उड़ा रहे हैं
मिल कर पींगे बढ़ा रहे हैं।
मन करता है मम्मी मेरा
आज उड़ाऊँ मैं भी पतंग
नहीं करूँगा कोई जिद मैं
दे दोगी जब मुझे पतंग।
मम्मी मुझको लेनी है
रंग बिरंगी वही पतंग।
मांझे को मैं अपनी ट्रिक से 
पैना खूब कराऊंगा।
सोनू- मोनू से भी ऊंची 
मै पतंग उड़ाऊँगा।
मानो मेरी वात ये मम्मी 
कभी नही मैं सताउंगा।
एक बार बस पतंग लिवा दो
मैं खुशम खुश हो जाऊँगा।।
मैं......।।।।
निहारिका झा🙏🙏🌹🌹



*पतंग* 

मां मैं जब भी देखता हूँ आकाश में पतंग 
मन में उठती है हूक ,हिलोरे लेती है तरंग
भगवान ने क्यूं मुझे बनाया है दिव्यांग 
क्यूँ छीन ली मेरे जीवन की हर उमंग…


माँ मुझे भी बनानी है इक नन्ही पतंग
माँ मुझे भी उड़ाना हैं ये इन्द्रधनुषी रंग…
बच्चे की चाहत से माँ परेशान और दंग
कैसी ये जद्दोजहद ,कहाँ से माँगे ये अंग ..

छलक आते आँसू भर लेती अपने अंक
भर्राये गले से लिपट जाता माँ के संग
मत रो माँ मैं रहूंगा अब से हरदम दबंग 
मिलकर लड़ेंगे हम दोनों अब ये जंग ..

न मांगूंगा कभी भी तुम से कोई पतंग 
ना मांगूंगा कभी भी तुमसे कोई पतंग..


मौलिक रचना 
कान्ता अग्रवाल 
गुवाहाटी (असम)



बालगीत  
पतंग 
-------
 रंग बिरंगी नीली पीली
 मांझे के संग ऊपर उड़ती जाती है
 आसमान से बातें करती 
मेंघों से भी गले मिल आती
 यह पतंग आसमान की सैर करती,
 तरह-तरह के आकार वाली
 पंखों वाली, पक्षियों वाली
 शेरोवाली , बाघोंवाली
 गोल गोल,
 चौकोर सी
 और कितने रंगों में।
 पतंग महोत्सव में 
पापा संग जाकर ,
  मैंने भी देखा था 
 बहुत बड़ी, बड़ी बड़ी सी,
  मांझे संग कितनी ऊंची जाती है
 मेरा भी संदेशा ले जा
 तू भी सूरज दादा से
 आसमान से , मेघों को भी
 गले लगना मैं भी
 चाहता हूं उनके
 मैं भी उड़े आसमान
 में बन पतंग
  अपनो तक संदेशा भेजूं 
 जितना भी चाहो ऊंचा उड़ो
 पर अपनी जमीन से यूं बंधे रहो
 कैसे पतंग रहती मांझे के संग
 अपने संग वैसे ही बंधे रहो,
 ए मेघा! तुम इतना बरसो
 यह महामारी अब चली जाए
 बंधन ना हो अब कोई
दोस्तों संग मिलकर हम भी
 पतंगों से उड़ते झूमते
 नाचते गाते रहे।
 धन्यवाद
 अंशु तिवारी पटना



पतंग 

सर- सर -सर -सर उड़ी पतंग ,
फर -फर- फर -फर उड़ी पतंग,
 इठलाती, बलखाती जाए ,
नागिन सी लहराए पतंग।

 लहराती उड़ चली नभ में,
 तेज हवा के झोंकों संग,
 जिधर हवा ले जा रही ,
उधर उड़ कर चली पतंग ।

कभी ढील कमजोर हुई ,
कभी ऊपर चढ़ गई पतंग,
  मकर संक्रांति पर देखो ,
हर तरफ रंग बिरंगी पतंग,

 आसमान में बेखबर हो ,
आजादी संग उड़ती जाए,
 जब कोई पेच लड़ाए तो,
 लड़ने में जुट जाती पतंग,

 कट जाती ,लुट जाती तो,
 वह निराश हो जाती ,
ऊपर से नीचे धरती पर,
 फिर से आ जाए पतंग।

 श्रीमती शोभा रानी तिवारी ,
 खातीवाला टैंक इंदौर मध्य प्रदेश


अग्नि शिखा मंच 
विषय -पतंग 
*बहना की पुकार *
बहना रानी कहती -
मेरे राजा भैया आ जाओं 
मेरे सपनो की दुनिया में 
सजा पतंगो का बाज़ार है । 
साथ साथ पतंग उड़ा 
सपने पुरा कर जाऊँगी ! 

मेरे सपनो की सतरँगी दुनिया में ,
मेरे भैया राजा तुम कब आओगे ।
सजी हुई छत दीवारों पर पतंगो ,
की चरखे मँजे की फुलवारी हैं ।

रंगो ने इतिहास रचा हैं ।
पतंगो में राणा सांगा ,
वीरों की तस्वीरें लगी है ।
चरखे संगीत सजा तुम आओगे ।

राजस्थान के सपने बुने है ।
 संक्रान्ति का त्योहार 
तिल गुड़ ,पतंग उड़ा ,
पतंग बाज कहलाओंगे ।

नये नये सपने बुन रोज़ ,
आसमाँ निहारा करती हूँ  
पतंग तुम्हारी डोर मँजे की ‘
हवाओं संग उड़ आओगे ।
अनिता शरद झा


अग्नि शिखा काव्य मंच को नमन 🙏
१२/७/२०२१ सोमवार 
विधा - बाल गीत 
बिषय - पतंग 
फागुन का महीना जब आता ,
घरती पर खिलते सुंदर फूल !

घरती की शोभा को देख कर ,
अंबर जाता जल - भून ?

नन्हे बच्चों से सहन नहीं होता ,
आकाश में उड़ाते पतंगी फूल !

रंग - बिरंगी छोटी - बड़ी सुंदर आकार,
जब पतंगें उड़ती आसमान होता गुलजार ,

किन्नो, कनकैया ,चोपड़ ढ़ालदार ,
टकली,फीसली, गुड्डीदार , चंदा गुडी !

अलग-अलग नाम लेकर बच्चे शोर मचाते ,
वो मारा ,वो मारा की जोर से हाँक लगाते !

उनका रोमांच चरम पर होता ,
जब पतंगें कटती तो जाती तो 

खाना पीना सब भूल ही जाते ,
 दिन भर चरखी पर माँझा लगाना 

चावल की लूगदी पीसे कांच से ,
माँझे को मजबूत बनाना !

जब कट कर पतंग कोई छत पर गिरती,
भाई बहन की झपटा झपटी मे्
होती जोरा जोरी ,
पतंग मरी चिड़िया सी आँगन में गिरती ,

एक दूजे पर आरोप लगाते तूनें ,
मेरी पतंग क्यूं कर फाड़ी ? 

सरोज दुगड़
खारूपेटिया 
असम 
🙏🙏🙏


🌹अग्निशिखा मंच 🌹


🌹🌹विषय -पतंग 🌹🌹


रंग -बिरंगी पतंगे
           लगती कितनी प्यारी

दूर गगन में हवा 
                   से बाते करती

  कभी इधर तो
                 कभी उधर नाचती

डोर संग बंध कर
      मर्यादा मे रहना सिखलाती

 ऊंची उड़ान भर के भी 
             पर डोर संग ही रहती

कट जाये तो वजूद
          पर सवाल खड़ा करती

कटी पतंग जिसे मिले
    उसकी हो लेती ये सिखलाती

बच्चे युवाओं के मन को
          खुशियाँ देती ये अपरम्पार

पेच लड़ा के आनन्द से ये 
   हर परिस्थिति का सामना करती

खुद कर भी फिर उड़ान भरती
      यही सबक हमको बतलाती

हेमा जैन (स्वरचित )


‌सोमवार दिनांक**१२/७/२१
विधा***बाल गीत
विषय ****#"""""पतंग""""#
                      ^^^^^^^

कैसे झूम झूम के चली मेरी पतंग ।
निकली सैरको वो लिए मस्ती उमंग ।।
पंख हवाके लगाकर उड़े गगन में ।
अपनी ही दुनिया में वो होकर दंग ।।१

सुनो दोस्तों करलो कोशिशे हजार ।
लडा़लो पेंच फिरभी न कटेगी यार ।।
आज वो किसी के हाथ न आएगी ।
उसीका होगा सारे नभपे अधिकार ।।२

लाल पीली नीली हैं प्यारी पतंगे ।
रंग बिरंगी छोटी बड़ी न्यारी पतंगे ।।
कोई काटेलूटे और कोई छूट जाय ।
छल कपटसे हरदम हैं हारी पतंगे।।३


मुन्ना पकड़ चक्री मै पतंग उड़ाता हूं ।
कला पतंग बाजी़ की मै दिखाता हूं ।।
सारे पतंग बाजोंको मैं आज हराऊंगा ।
खेल खेलभावसे खेले ये सिखाता हूं ।। ४






प्रा रविशंकर कोलते
     नागपुर




   
अग्निशिखा मंच
 विषय---पतंग
 विधा---कविता 
दिनांक---12-7-2021        
                  
                       पतंग

रंग बिरंगी उड़ती पतंगे देख 
बच्चों का मन खुश होता है 
पकड़ हाथों में डोर पतंग उड़ाते हैं ।
 एक बच्चे के हाथ में पतंग की डोर 
एक डोर की चकरी थामे खड़ा है ।
ढील पर ढील देता बच्चा
 पतंग ऊपर ले जाता है ।
जिधर हवा का जोर पतंग 
उधर उड़ती जाती है ।
और कभी कभी उलझ जाती
 औरों की पतंग से 
फिर दांवपेच हैं खेलते बच्चे 
जो काट दे वह बच्चा वो,
 काटा वो काटा का शोर मचाता है ।
फिर कटी पतंग को पकड़ने 
की ख़ातिर दौड़ लगाता है ।

बच्चों जीवन है पतंग जैसा...जैसे... 

अगर ढील दे दी ज्यादा तो पतंग
 औरों के संग उलझ कट जाएगी ।
और जो डोर को कस के थामा तो
 अपनी अकड़ में कट जाएगी ।
डोर है उनकी औरों के हाथों में
जिधर घुमाओ उधर जाएगी ।

ऐसे ही जीवन अपना है 
एक एक कदम बढ़ाना है 
 ताकि कुछ हासिल कर पाएँ ।
सत्य राह पर चलकर ही  
जीवन अपना सुगम बनाएँ । 
राहें होती कठिन  सत्य की 
ऊँचाइयों को पाने की  
पर जब अपना मकसद पा जाए  
तो वह सदा के लिए खुशीयाँ पाए ।

और 

जल्द तरक्की पाने  के चक्कर में 
जो गलत राहों को पकड़ लिया
और बिना सोचे समझे उन पर 
कदम बढ़ा लिया तो, मंजिल तो 
भले जल्द मिल जाए 'रानी' 
ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी 
फिर जिंदगी की सारी खुशी
इक मुसीबत बन जाएगी ।  

                 रानी नारंग



मेरी पतंग

 हाथ में चरखी और पतंग
 छाई रही मन में नई उमंग 
आओ मित्रआज हमारे संग
तुम संभालो चकरी मैं पतंग

 डोर बांधना मुझे नहीं आता 
 डोर बांधना., मुझे सिखाओ 
 फिर चलो मित्र पतंग उड़ायें
 खुशियों का संसार सजाएं

 मौसम है मस्त सुहावन 
 बह रही शीतल मंद पवन 
 है पतंग बेताब उड़ने को 
 ऊपर आसमान छूने.को  

जितनी तेज हवा चले 
ऊपर उड़तीउड़तीजाए 
कट जाए तो नीचे अाये 
नव उम्मीदों से टकराये

 पतंग की अपनी कहानी 
 रहती उमंग की जवानी 
 कहती,हार न मान कभी
 संघर्ष है,जीतकी कहानी

आशा जाकड़



बाल गीत कविता
पतंग

शरद ऋतु संक्रांति का मौसम
पतंग लटाई से सजी है बाजार
रंग बिरंगी लाल हरी नीली पीली
पतंग लहर आई है पूछो वाली

पापा ने कहा चलो बच्चों
पतंग उड़ाने खरीद लाया हूं
रंग बिरंगी नीली पीली पतंग
खुश होकर बच्चे बोले चलो
उड़ाए गगन में अपनी पतंग

पापा के साथ चले बच्चे
बच्चों के बहाने पापा ने
बचपन के दिन गुजारे
खींच लटाई पतंग उड़ाए
हाथों में बच्चों के लटाई थमाए

उमंगो उत्साह के साथ पतंग
नाच रही है गगन में कभी
खींचता कभी काटना पतंग का गिरना उठना लगता है मजेदार

वाली है प्रतियोगिता
पतंग सिखाती है आंखों और
हाथों का संतुलन प्रतिक्रिया
यह भी है एक मानसिक व्यायाम शारीरिक व्यायाम
पतंग से सीखा हमने सपनों
को देना एक अंजाम

चलो उड़ाए हम सब पतंग
लेकर मन में खुशियां और उमंग
शहरों फ्लाइट की दुनिया है अजीब
नाम मिलती पतंग उड़ती पतंग
हाथों के गेम से खेलते पतंग
चलो चलो उड़ाई पतंग घर के बाहर खेले संग संग


कुमकुम वेद सेन




नमस्ते मैं ऐश्वर्या जोशी
अग्निशिखा परिवार को मेरा नमन प्रतियोगिता हेतु मैं मेरी कविता/ बाल गीत प्रस्तुत करती हूं।
विषय- पतंग

नन्ना मुन्ना दिल मेरा
सदा उड़ना चाहे 
पतंगों की तरह ।

पतंगों को देखते ही 
मन में मेरे सवाल उठे
पतंग भी दिखने में 
कितना छोटा लगे फिर भी आकाश में उड़ता रहता सदा
 ना जाने मैं क्यों ना उड़ सकता ।

नन्ना सा दिल मेरा सदा विचार करता रहता कितना मुक्त है पतंग
ना किसी चीज का ख्याल ना किसी की चिंता उसका काम केवल एक छलांग लगाकर आकाश में उड़ना।

नन्हे मुन्ने सपने मेरे 
पतंग की तरह मुझे भी
बिंदास बेफिक्र होकर जीना है
काश मैं भी कभी पतंग बन जाऊ।

धन्यवाद
पुणे



बाल गीत***पतंग
आसमान में दूर दूर तक
उड़ती जाती देखो पतंग
हवा से जाकर बातें करती
डोर से बंधी ये पतंग
ऊपर नीचे नीचे ऊपर
गोते खाती रहती है
पल भर में ऊपर फिर
लहराती है
पतंग दूजी जब पास आ जाये
दांव पेंच दिखलाती पतंग
मांझा जिसका पक्का होता
पतंग काट ले जाता है
कच्चे मांझे की पतंग वाला
फिर सिर धुन कर पछताता है बच्चों अपने जीवन में तुम
काम सदा पक्के करना 
पाकर सफलता सदा सदा ही
हंसते खेलते तुम रहना।
मौलिक रचना
 .. लीला कृपलानी



👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻🌷🌷🌷🌷 पतंग उड़ी उड़ी रे पतंग चली चली रे 
पतंग डोर पर सवार होकर आकाश के पास 
चली चली रे पतंग
 लाल नीली हरी पीली सतरंगी है मेरी पतंग इंद्रधनुष का बना दिया 
आकाश में उसने मेरा मन
 चली चली रे पतंग उड़ी 
उड़ी रे पतंग की डोर पर सवार 
चली चली रे पतंग
 15 अगस्त को जब उड़ी पतंग तिरंगा
 बन के छा गई मनोहर छा गई 
सावन में जब आई पतंग
 हरियाली बुला गई 
बादलों से बातें कर गई
 उड़ी उड़ी रे पतंग चली चली रे पतंग होके डोर पर सवार
 बादलों के पास चली चली रे पतंग चली चली रे
 होली में जब उड़ी पतंग बौछार बताती है सब रंगों से
 सराबोर हो मन को वह चाहती है उड़ी उड़ी रे पतंग चली चली रे 
पतंग चली बादलों पर होके 
सवार चली चली रे पतंग चली चली रे



💐💐💐💐💐💐💐💐


कुमारी चंदा देवी स्वर्णकार



नमन पटल
आज की विधा- बालगीत
विषय -पतंग

पंद्रह अगस्त ,संक्रांति को,
 खूब उड़ाई जाती पतंग।
घर की छत पर रौनकं रहती,
बच्चे खुश हो उड़ाते पतंग।

उड़ती है उन्मुक्त गगन में,
रंग बिरंगी नाज़ुक पतंग।
संग पवन के ठिठोली करती,
लहराती इतराती सुंदर पतंग।

पतला सा होता मांझा इसका,
पर ऊंचे तक ले जाता पतंग।
 एक दूजे की पतंग काटते 
 मन में भर कर खूब उमंग।

आसमान में ऊंची उड़ने वाली,
कट कर झट नीचे आ जाती,
या जाती अटक किसी पेड़ पर
दिखती कितनी विवश पतंग।

उसे लूटने को आतुर बच्चे,
किसी के हाथ आ जाती पतंग।
 बचा न पाती अस्तित्व अपना,
फेंक दी जाती फटी-चिटी पतंग।

छूते जो शीध्रता से ऊंचाइयों को
करते न विचार भले - बुरे का।
जल्दी वे नीचे भी हैं गिर जाते ,
उत्तम पाठ हमें पढ़ाती पतंग।

बेशक छूलो ऊँचाई नभ की,
पर पॉँव सदा धरा पर रखना।
बने जो तुम्हारे लिए नींव के ईंट,
भुलाना न उन्हें सिखाती पतंग।

स्नेहलता पाण्डेय ' स्नेह'


अग्निशिखा मंच
तिथि-१३-७-२०२१
विषय -बाल गीत पतंग

 उड़ती पतंग मुन्ने की, हो के हवा में सवार.
ऊंचे उड़ना चाहती , जाती बादलों के पार.
रंग बिरंगी पतंग मेरी, डोर से करती है प्यार.
रोके जो डोर उसे,करती है उससे तकरार.

आसमान की रानी पतंग मेरी पूंछ है सुनहरी. 
 पतंग एक उड़ती आई, नाम उसका लहरी.
काटने लगी डोर इसकी .तनातनी हुई दोनो में
लड़ते लड़ते हारी लहरी,गिर गई वह कोने में,
शान से उड़ती पतंग मेरी,उससी नहींं कोई जगत में.

नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोम्बिवली
महाराष्ट्र



🙏🌹अग्नि शिखा मंच🌹🙏
🙏🌹जय अम्बे🌹12/7/21🌹🙏
🙏🌹बालगीतःपतंग और बच्चे 🌹🙏

आज गगन में छाई पतंग।
मानो इन्द्रधनुष के रंग ।।
बंधे डोर से पतंग घुमे।
मित्रो साथ मस्ती में झूमे।।

छत पर मिले पतंग उड़ाने। 
सून रहे मस्ती के गाने।। 
चीकी बोर साथ में लाये। 
साथ साथ में मौज मनाये।।

किसीका पतंग उड़ रहा है । 
किसीका पतंग रुठ रहा है।। 
पैच लगाने उड़ती पतंग।
बीच डगर में कटती पतंग।।

राजू के छक्के छूट रहे ।
डौर हाथ में ही टूट रहे।। 
श्याम की ईठलाती पतंग। 
राजू की गीर गई पतंग।। 

फिर से पतंग सजाने लगे।
नीलगगन में उडाने लगे।। 
पतंग ऊपर उड़ती जाती। 
बादल को छूकर है आती।। 

🙏🌹स्वरचित रचना🌹🙏
🙏🌹पद्माक्षि शुक्ल🌹🙏


अग्नि शिखा मंच
12/7/2021
बिषय पंतग
बाल गीत।

उडी़ उडी़ रे पंतग मेरी उडी़ रे।
होके माझे पर सवार चली बादलो के पार ।
आगेआगे सबके उड़ चली रे।
उड़ी उड़ी रे.....।।।
मेरी पतंग ऐसे बल खाती,
जैसे सडको पर नागीन जाती।
उडी़ उड़ी .।।।।
कितनी सुन्दर है उडान ,
जैसे चिडियाँ नादान उड़ उड़ के गिर जाती रे
उडी़ उड़ी रे पतंग..।।।
उड़ उड़ के झुकती है ऐसे ,
नई दुल्हन हो जैसे।
चलती है इठलाती दुल्हन जैसे बलखाती रे
उडी़ उडी़ रे पंतग.।।।

बृजकिशोरी त्रिपाठी
गोरखपुर, यू.पी



पतंग

आई देखो रुत मस्तानी ,
मिलकर है अब पतंग उड़ानी।
सब बच्चों ने मन में ठानी ,
हवाओं में पतंग है लहरानी।

आओ छत पर दादी-नानी,
करेंगे मिलकर खूब शैतानी।
मम्मी की जब डांट पड़ेगी ,
तब मम्मी को है समझानी।

तिल कुटनी लड्डू और गजक,
संग हमको है ये शाम बितानी।
मस्त हवाओं के संग हमको,
 सारा दिन करनी मनमानी।

रंग- बिरंगा आज गगन है ,
देखो कह‌ई पतंगों से।
भिन्न-भिन्न हैं रूप में उसके,
पर मांझे का साथ मिला है।

आज पवन के साथ यूँ मिलकर, आसमान में पतंग पहुँचानी।
मस्ती मिलकर खूब करेंगे ,
आओ दादी आओ नानी।।


©️®️पूनम शर्मा स्नेहिल ☯️



।पतंग।
पतंग जब आसमां उडती है,
दिल पंतग बन उड जाता है।
पतंग के संग ये उडता मन,
आसमां में उडान भरता है।। 
पतंग......................... 1 
जब पतंग ऊंची उडती है, 
कितनी कुलांचे वह खाती है। 
तन मन मगन हो जाता है, 
वो दुनिया अपनी हो जाती है।। 
पतंग........................ 2 
रंगीन पतंगें जब उडती है, 
सबके मन ये हर लेती है। 
इन सब पतंगों की डोर से, 
ये पतंगे करतब दिखाती है।। 
पतंग..........................3
आसमां बन जाता मूक दर्शक, 
इस नजारे में शरीक होता है। 
बहती हवा संग उडती पतंगे, 
आसमां हमसफर बन जाता है।। 
पतंग............................4
स्वरचित, 
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ।


अ. भा. अग्निशिखा मंच
12/ सोमवार 2021
 विषय - पंतग बाल गीत 

पतंग उड़ी है पतंग उड़ी।
रंग बिरंगी ये पतंग उड़ी।
सर सर कर पतंग उड़ती।
फर फर कर यह बढ़ती।

अठखेलियाँ यह करती।
नभ पे उड़ान है भरती।
इसको काटे उसको काटे।
प्यार स्नेह हम सब में बाँटे।

आसमान लगता है प्यारा।
पतंगों से पट गया सारा।
मौसम होता बड़ा सुहाना।
पतंगों के रँग होते नाना।

ऊँचाई पर स्थिर हो जाती।
ऊपर नीचे कहीं न जाती।
उड़ने की परवाह न करती।
दाएँ बाएँ है पतंग तकती।

काटने का प्रयास है करती।
डोर खींचो तो नीचे आती।
नीचे आके नखरे दिखाती।
डोर खींचो ऊपर चढ़ जाती।

खूब करती है यह तमाशे।
दौड़ लगाते अच्छे खासे।
नीलगगन से बतियाती।
सबको आनन्द दे जाती।

वैष्णो खत्री वेदिका
जबलपुर




वीना अचतानी, 
मंच को नमन,
विषय **** पतंग *****
एक डोर से बन्धी 
रंग बिरंगी 
हवा में हिचकोलें खाती 
मुक्त रूप से 
जीवन जीने की कला 
सिखाती है पतंग 
सन्तुलन नियम नियन्त्रण 
संस्कृति से जुड़ी 
संस्कार की डोर से बन्धी 
खुले आस्मान में उड़ी
जोशीले व्यक्तित्व की 
पहचान कराती है पतंग 
हर परिस्थति में ढलना 
स्वच्छन्द उड़ने वाली
ज़मीँ की जड़ों से जुड़ी 
एक उम्मीद और खुशी 
परवाज़ का सबक 
सिखाती है पतंग 
आशा सकारात्मकता 
सुषुप्त इच्छाओं की प्रतीक 
जोश और गर्व से भरी 
हठीली हवाओं को चीरकर
हवा के अनुकूल होने की
अद्भुत शिक्षा देती है पतंग ।।।
स्वरचित मौलिक 
वीना अचतानी 
जोधपुर ।।।।।।




🌺12 जुलाई / सोमवार 21
🌺आज विषय - पंतग 
🌺 बाल गीत 
🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁
ऊपर ऊपर चढ़ी पतंग
देखो नभ में उड़ी पतंग।
🪁🪁
कागज और बांस से निर्मित
पतली डोरी से संचालित
जिसको कहते लोग लटाई
जाती चरखी पर लिपटाई।
इस पतली डोरी से देखो
उड़ उड़ जाती बड़ी पतंग।
🪁🪁
उड़ती उड़ती ऊपर जाती
मैघों को भी छूकर आती
दाएं बाएं भी लहराती
चिड़ियों से भी होड़ लगाती।
ज्यों ज्यों डोरी ढीली छोड़ी
त्यों त्यों ऊपर बढ़ी पतंग।
🪁🪁
नहीं किसी से भी भय खाती
यह औरों से पेंच लड़ाती।
काट डालती है औरों को
कभी कभी खुद भी कट जाती।
ये तो अच्छी बात नहीं है
जो पतंग से लड़ी पतंग।
🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁🪁
© कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏



चोली दामन का साथ
मांजे और पतंग का
****************

बिन माज़े के पतंग अधूरी
बिन पतंग माज़ा भी अधूरा
दोनों मिल जाऐं तभी तो ये
साथ है पूरा।।

जैसे..चोली दामन का साथ।।2।।

मांज़ा बांध उड़ाई पतंग थी ऊंची
आसमान मे जैसे टंगी कोई कूंची
जैसे ही मांज़े ने साथ कभी छोड़ा
धरा पे धराशायी पतंग बच्चों ने लूटी।।

जैसे..चोली दामन का साथ।।2।।

पतंग हवा संग बतियाती
फिर देखो बहुत इतराती
मांज़े को भी गुस्सा आता
बीच मे साथ तोड़ नीचे आता।।

जैसे..चोली दामन का साथ।।2।।

सुन पतंग और मांज़े तुम 
दोनों का साथ आनंद दिलाता
तभी तो चोली दामन का 
मुहावरा सार्थक हर कोई पाता।।

जैसे..चोली दामन का साथ।।2।।

वीना आडवानी
नागपुर, महाराष्ट्र
*************




मंच को नमन
विधा:--बाल गीत
शब्द:--- *पतंग*

मौसम आज पतंगों का है,
नभ में राज पतंगों का है,
इंद्रधनुष के रंगों का है,
मौसम नई उमंगों का है।


निकले सब ले डोर पतंगे
सुंदर सी चौकोर पतंगे
उडा रहे कर शोर पतंगे
देखूं चारों ओर पतंगे।

उड़े पतंगे बस्ती बस्ती
कोई महंगी कोई सस्ती
पर न किसी में फूट परस्ती
उड़ा -उड़ा सब लेते मस्ती।

चली डोर बैठ पतंगे
इठलाती सी ऐठ पतंगे
नभ में कर घुसपैठ पतंगे 
करे परस्पर भेंट पतंगे।

हर टोली ले खड़ी पतंग
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगे
आसमान में उड़ी पतंगे
पेच लड़ाने बैठी पतंगे।

कुछ के छक्के छूट रहे हैं
कुछ के डोरे टूट रहे हैं
कुछ लंगी ले दौड़ रहे हैं
कटि पतंगे लूट रहे हैं।

विजयेन्द्र मोहन।




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