पर्यावरण -
धरा का आवरण फट गया
पर्यावरण खंड खंड हो गया !!
प्रदूषित हो रहा है प्रर्यावरण !
यही मानव के चिंता का कारण!!
प्रकृति का करने लगे विनाश !
धरा के लिये बना है अभिशाप !!
ख़त्म कर रहे है देखो हरियाली !
धधक रही है सूरज की प्याली !!
प्रदूषण ओज़ोन परत को डँस रहा !
दिन पर दिन बढ़ रहा नहीं कोई अंत !!
आओ मिलकर प्रदूषण को रोके प्रकृति की करे रक्षा !
वृक्षारोपण का प्रण ले , धरा की करे सुरक्षा !!
प्रकृति का करे सम्मान हम , स्वच्छता का रखे ध्यान !
हरित वसुधंरा की सुदंरता है , देश का अभिमान !!
पेड की पेड कट रहे नहीं रही है कही छांव !
कालोनियाँ कट रही है प्रकृति को देती घाव !!
कंक्रीट के जंगल पनप रहे नहीं आयेगी खुशहाली !
मरघट पर क्या पनपती है कभी भी हरियाली !!
प्रकृति हमारी जीवन दाता , पाल पोष कर बढ़ा करती !
आओ बचाए धरती माँ को साँसें वहीं देती !!
हमें फ़ैसला करना होगा जन जन से वृक्षारोपण करवाना है !
देश को महामारी से बचानाहोगा
हरित क्रांति लाना है !!
प्रदूषण को रोक कर करेंगे इसका सम्मान !
नहीं होने देंगे अब हम धरा का ज़रा भी अपमान !!
डॉ अलका पाण्डेय!
💐👌अग्निशिखा मंच पर उपस्थित अग्निशिखा परिवार की अध्यक्ष आदरणीय अलका पाण्डेय जी ,आदरणीय संतोष साहू जी, विशेष अतिथि र जी, जनार्दन सिंह जी ,शिवपूजन पांडे जी , जी ,संचालक ओ सुरेंद्र हरडे जी ,सेवासदन प्रसाद सभी का वंदन अभिनंदन।💐💐
आज अलका जी ने पर्यावरण दिवस के दूसरे दिन पर्यावरण विषय देकर सुंदर पहल की है क्योंकि आज पूरा विश्व कोरोना संकटकाल में ऑक्सीजन की समस्या से जूझ रहा है ।अभी हमने कोरोना प पीड़ितों को ऑक्सीजन की कमी से जूझते हुए देखा है सिलेंडर न मिलने पर बेबस मरते हुए देखा है अतः आज सभी लोगों को ऑक्सीजन का महत्व समझ में आ गया है ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है अतः हम सभी को पौधे लगाने चाहिए विशेषकर पीपल नीम और बरगद । पौधे लगाकर पौधों का संरक्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब हम पर्यावरण का संरक्षण करेंगे तभी पर्यावरण हमारे जीवन की रक्षा करेंगा। अलकाजी ने मुझे यहां मुख्य अतिथि बनाया और मुझे सम्मान दिया उनको तहे दिल से धन्यवाद। और अलका जी को बहुत-बहुत धन्यवाद क्योंकि इतने सुंदर विषय देकर सभी की लेखनी को चलाएं मान बना देती है ।
सभी का तहे दिल से शुक्रिया
सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं
हम पेड़ लगाएं धरा को हरा-भरा बनाए
आशा जाकड़(विशिष्ट अतिथि)
☺️💐👌💐👌💐👌💐👌💐💐💐👌💐💐👌
🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹
🌴अग्नि शिखा मंच को नमन🌴
🌳पर्यावरण दिवस पर विशेष 🌳
🙏🌳शीर्षक :*पर्यावरण *🌳
🌳विधा: कविता 🌳
( रचनाकार-डॉ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार)
🌳
माँ समान है, प्रकृति रानी
इसकी है इक ,अमिट कहानी ।
माँ जैसी ही पोषण करती,
शुद्ध हवा प्राणों में भरती ।
माँ समान ही रूप अनोखा ,
दे ,न कभी यह हमको धोखा ।
हरी- भरी रहती है हरदम,
करती हम- सबका संरक्षण ।
हम सब खुश होते इसे पाकर,
अन्न, फल ,सब्जियां उगाकर ।
खा- पीकर हम मस्ती करते ,
पर ,क्या इसका मर्म समझते ।
माँ करती संतति का पोषण ,
यह करती दुनिया का पोषण ।
इसकी बात है, गजब निराली,
रखती सभी प्राणी की लाली ।
पेड़ लगाओ ,अति सुख पाओ,
और , इसे संपन्न बनाओ ।
पर्यावरण को स्वच्छ बनाना है,
पृथ्वी को स्वर्ग बनाना है ।
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स्वरचित एवं मौलिक रचना
रचनाकार ~डॉ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार ~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(9)
पर्यावरण बचायें हम
आओ सब संकल्प करें
पर्यावरण बचायें हम।
सुन्दर पुष्पों और पेड़ों से
आओ इसे सजायें हम।
पशु पक्षी बचायें हम।
पर्यावरण बचायें हम।
श्वासों की धारा है इससे
जीवन हमको देती है।
अस्तित्व नहीं इसके बिना
सन्ताप सभी हर लेती है।
आओ मिलकर इस वायु को
शुद्ध और स्वच्छ बनाये हम।
पर्यावरण बचायें हम।
नहीं कल्पना हम सब इस बिन
रक्षा करता सबके तन की।
जीव -जीव है तड़पे इस बिन
यह धरोहर जीवन की।।
इस अमूल्य जल की आओ
बूंद-बूंद बचायें हम।
पर्यावरण बचाये हम।।
इसकी उर्वरा शक्ति घटती,
भूमि दूषित जब ये बनती।
अन्न फल से पोषण करती
माँ सम है अपनी ये धरती।
प्लास्टिक और पोलीथीन से
आओ इसे बचाये हम।
पर्यावरण बचायें हम।।
विचार भी है इसका हिस्सा
इनसे ही जीवन है बनता।
अच्छे बुरे कर्म इनसे ही
मानव जीवन में करता।
निज भावों की शुद्धि करके
जीवन सफल बनायें हम।
पर्यावरण बचायें हम।
डा. साधना तोमर
बड़ौत (बागपत)
उत्तर प्रदेश
पौधों को उपहार बनाएं
शुद्धता, गुणवत्ता, उत्तमता रत्नों की प्रतीक है प्रकृति
अन्नपूर्णा,हरफनमौला,सेहत की रक्षा करती है प्रकृति
पांच जून पर्यावरण दिवस,ओजोन दिवस हम मना रहे
हर साल जल दिवस,जैव विविधता दिवस हम रचा रहे
सामाजिक शारीरिक आर्थिक बौद्धिक प्रदूषण बढ़ रहा
जल वायु ध्वनि प्रदूषण से प्राकृतिक असंतुलन फैल रहा
पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश पंचतत्व जीवन के आधार
फल फूलअनाज आक्सीजन के लिए प्रकृति को आभार
बेहतर जनजीवन,स्वास्थ्य के लिए जरूरी है पर्यावरण
जैविक अजैविक प्राकृतिक संसाधन ही हैं पर्यावरण
पेड़ पौधे हमारी धरोहर,समझे दर्द, रोकें पेड़ों की कटाई
बहुत जरूरी वृक्षारोपण,जल संरक्षण, नदियों की सफाई
शुद्ध हवा पानी आहार से इम्यूनिटी, उम्र हो जाती लंबी
दूषित हवा पानी आहार से रोगों की लिस्ट होती लंबी
बालकनी,छत,गमले में सब्जी फल फूल दूब दुर्वा उगाएं
पेड़ लगने फर पक्षी आएंगे,मिट्टी के सकोरे भी ले आएं
नई मशीनों का भूमिगत जल,नमी बचाने में उपयोग करें
नई तकनीकों का पृथ्वी को बेहतर करने में प्रयोग करें
सब अनेक तरह के पेड़ लगाएं,पौधों को उपहार बनाएं
प्रियजन,स्वजन,वृद्धजन,जनजन के नाम के पौधे लगाएं
ममता तिवारी इंदौर
जीवन गीत
मानव जीवन आज मिला है
इसे न व्यर्थ गंवाना साथी
जीवन दीप कर्म है बाती
उजियारा बिखराना साथी
जीवन पाकर भूल न जाना
करना प्यार सभी अपनों को
पूर्ण हमेशा करना तुमको
सबके मन चाहे सपनों को
महत्वपूर्ण है कर्म यही
अपना धर्म निभाना साथी
जीवन दीप कर्म.........
आयेंगी बाधायें कितनी
लेकिन टूट नहीं तुम जाना
तोड़ मुश्किलों की जंजीरें
जीवन पथ पर बढ़ते जाना
बरसेंगे बहु तीर व्यंग्य के
पर तुम मत घबराना साथी।
जीवन दीप कर्म..........
कभी किसी को ठेस न पहुंचे
ऐसे कर्म कभी मत करना
होता हो अन्याय कहीं यदि
पीछे पाँव कभी मत धरना
करना है प्रतिकार तुम्हें तब
भूल कहीं मत जाना साथी
जीवन दीप कर्म.........
सरल हृदय बनकर है रहना
सच्चाई के साथ विचरना
निर्बल का तुम साथ निभाकर
परहित सारा जीवन करना
जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर
परम धाम पथ पाना साथी
जीवन दीप कर्म....... ..
भवसागर में जीवन नैया
वो ही पालनहार खिवैया
जाना पार बहुत ही मुश्किल
याद करो बस नाग नथैया
जीवन क्या है ?आना जाना
बस इतना समझाना साथी
मानव जीवन आज मिला है
इसे न व्यर्थ गंवाना साथी
जीवन दीप कर्म है बाती
उजियारा बिखराना साथी
स०सं० ९२२९/१७
समीक्षा 02
मानव जीवन के कर्तव्य बोध कराती सुंदर रचना 📗📗📗55
मगसम एस 11142/2020
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नमन मंच
विषय पर्यावरण
पदमा तिवारी दमोह
6/6/2021
मत बनो स्वार्थ में अंधे
सर्वोपरि प्राणवायु है
कुपित है प्रकृति हमारी
कम हो रही आयु है।।
पशु-पक्षी भी परेशान हमारे
रहने का ठिकाना छीन रहे
वृक्षों के कटने से
बच्चे उनके तड़प रहे।।
बैठकर खेत में वगले भी
कीटों का भक्षण करते हैं
सनी सामग्री खाकर का कौए
पर्यावरण को शुद्ध करते हैं।।
लगाकर पेड़ कर दो हरित
आंचल इस धरती का
धरती न बंजर होने पाए
करो सम्मान प्रकृति का।।
करो रक्षा धरती मां की
मिलकर एक एक पेड़ लगाओ
बच्चों जैसा कर प्रति पालन
हरा भरा तुम देश बनाओ।।
पदमा तिवारी दमोह
सर्वाधिकार सुरक्षित /यह रचना मौलिक और स्वरचित है।
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विषय- वृक्ष जीवन के अभिन्न अंग
क्रमांक 62
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
पर्यावरण संरक्षण के लिए
आओ वृक्ष लगाएं
जीवन को प्रदूषण मुक्त बनाएं
जन्मदिन मैं एक पौधा लगाएं
पौधा बढ़ेगा बढकर वृक्ष बनेगा
फलेगा फूलेगा फल देगा
धूप पानी से बचायेगा
सबको छाया देगा
प्राण वायु देता वृक्ष
जीवन है अनमोल
पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ
जीवन को सफल बनाओ
हर पल सब मुस्कुराओ
वृक्ष जीवन का अभिन्न अंग है
सुख दुख में साथ निभाएगा
डाँ गीता पांडेय "बेबी "जबलपुर
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.
जय मां शारदे
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अग्निशिखा मंच
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दिन -रविवार
दिनांक- 6/6 /2021 शीर्षक- *दूषित वातावरण*
खांसते-खांसते जब बीवी हुई परेशान।
तब मियां जी ने पूछा- क्या हुआ भाग्यवान।
साथ वाली फैक्ट्री ने तो जीना दूभर कर दिया।
सारा का सारा धुआ मेरे सीने में भर दिया ।
तभी बच्चे ने भी पेट दर्द की गुहार लगाई ।
बाप दौड़ा और बच्चे को दवा पिलाई।
ये हाल सिर्फ एक परिवार का नहीं है।
पूरे देश का वातावरण यही है।
तह में जाने से पता चला कि कारण पर्यावरण है।
चारों ओर फैला दूषित वातावरण है ।
पर्यावरण के कारण अब जानते हैं हम।
जिसने हमारे जीवन में भर दिया इतना तम।
जनसंख्या के विकास की बाढ़ इतनी तीव्र है।
संतुलन के प्रतीक वनों की हिल चुकी नींव है।
दूषित वायु ,दूषित जल कैसे हो जीवन मंगल।
क्षीण वायु, क्षुब्द्द जल कैसे हो जन्म सफल ।
आज हर मानव दूषित वातावरण से ग्रस्त है।
जिंदगी तो जी रहा, पर हर पल वह त्रस्त है। अनेक बीमारियों को इंसान झेल रहा है।
रोज नए मौत के खेल
खेल रहा है।
नवजात शिशु भी इससे बच नहीं पाता ।
अंधा,लूला,लंगड़ा या अपाहिज हो जाता।
सुरसा की भांति बढ़ती समस्या का चाहिए समाधान ।
हम सबको कोशिश करनी होगी ये कर्म नहीं आसान ।
रोकिए उनको जो पेड़ पौधे काटते हैं ।
पेड़ पौधे ही तो हमको जीवन बांटते हैं। कारखानों को करो बस्तियों से दूर।
लगाओ चिमनियां धुआं हो काफूर।
इसके निवारण के लिए होना होगा सब को जागरूक ।
खत्म तो इसे करना है बातें है ये दो टूक।
रागिनी मित्तल
कटनी, मध्य प्रदेश
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पर्यावरण सुंदरी
ऐ पर्यावरण सुंदरी
हरा आँचल लहराती
गुलमोहर सी खिलखला रही हो।
तेरी केश सज्जा लुभावनी लगे
तेरी वेणी में सजे मादक गुलमोहर
हँस हँस झरते जा रहे
बरखा की नन्ही नन्ही बुंदिया
मधुरम गीत गा रहीँ।
ऐ पर्यावरण सुंदरी
हरा आंचल लहराती
गुलमोहर - -
पीत अमलतास झूमर बन
इठलाता जा रहा
तेरे झुमके बन गुनगुना रहा
मीठी मीठी बतियां कर रहा
रिमझिम रिमझिम सदाबहार
संगीत सुनाए जा रहा।
ऐ पर्यावरण सुंदरी
हरा आँचल लहराती
गुलमोहर - --
हरियाली तेरा ओढ़ना
हरी दूब तेरा बिछौना
हरे कोपल पीत आमपात
की सज रही बंदनवार
कोयलिया कूक रही बार बार
कदम्ब कनेर वृंद के, झर रहे पात
ऐ पर्यावरण सुंदरी
हरा आँचल लहराती
गुलमोहर - -
गुलाबी गुलाब के लुभावने पुष्पों से
अपनी ओढ़नी सजा रही हो
हरियाले सावन की याद दिला रही हो
सखियाँ कर रही हंसी ठिठोली
क्षण क्षण पिया की याद दिला रहीँँ
ऐ पर्यावरण सुंदरी
हरा आँचल लहराती
गुलमोहर - - -
डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
इँदौर मध्यप्रदेश (स्वरचित)
5-6-21
---------'xxxxxx xxxxxxxxxxxx.
स्वच्छ रखो पर्यावरण
तुम स्वस्थ रहोगे आबाद रहोगे
यदि स्वच्छ रखोगे पर्यावरण
अच्छा खानपान रखो अच्छे कर्म करो
योगा को बना लो निज आचरण।
पेड़ जीवन की आस मिले तुम्हें शुद्ध श्वास
पेड़ ही जीवन के रक्षक
प्रभु ने धरती दी जीवन से भरी
मत बनो धरा के प्रदूषक
पौधों को लगाओ उन्हें पानी पिलाओ
खिल उठेगा तुम्हारा वन उपवन
सुंदर पर्यावरण सुंदर वातावरण
होगा सुंदर विचारों का आगमन
तन मन होंगे सूची सर्वत्र धरती हरी
जल का करना है संरक्षण
गंदगी को हटाओ पॉलिथीन को भगाओ
धरती मां का करो अभिनंदन
आबादी है बड़ी समस्या इससे बढ़ी
प्रकृति का हो रहा है असंतुलन
कहीं वायु प्रदूषण कहीं ध्वनि प्रदूषण
कहीं भूमि और कहीं जल प्रदूषण ।
चाहे जन्मदिन हो चाहे शुभ पर्व हो
पेड़ों को लगाने का ले लो वचन।।
आशा जाकड़
-------------------------------------
पर्यावरण 🌴🌳💦☔
हम मानव ने जिस तरह प्रकृति पर कहर ढाया है इसका नतीजा हमारे सामने आ रहा है
हमारा शरीर प्रकृति के पंचतत्व से ही बना है अंत में उसी में विलीन हो जाता है तो हमें समझना चाहिए कि हम कुदरत के नियमों को पालन करते हुए चलें तभी हम उत्तम स्वास्थ्य पा सकते हैं कहते हैं स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन होता है अन्य धन की लालसा में हम इसे नष्ट करते आ रहे हैं अगर प्रकृति के नियम के साथ रहन-सहन खान-पान अचार विचार अपना ले तो कभी भी हमारे जीवन में दुख नहीं आ सकता मशीनी युग में हमने इस पर हावी होने की कोशिश की है अपने कृत्रिमता से इसमें प्रदूषण फैलाया है हमने इसके हर अंग से छेड़छाड़ की है ऊंची इमारतों बनाने हेतु पेड़ कांटे ,उद्योगी करण से हवा मे जहर
फैलाया नदियां सुखाई ,मूक जीवों को कैद किया आज आज प्रकृति घुट-घुट कर सिसकियां भर रही है और आंसू बहा रही है और बार-बार कई रूपों में हम संकेत के दे रही है पर हम मानव अपनी धुन में इसे नजरअंदाज करते चले जा रहे हैं जिस दिन यह अंतिम सांसे ले रही होगी तब हमारे हाथ पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं रहेगा आओ सब मिल हाथ बढ़ाएं और ईश्वर की इस अद्भुत देन की रक्षा करें जो हमारे जीवन की रक्षा करती है !!
प्रकृति प्रदत सुंदर उपहार
है हमारा जीवन आधार
आओ इस से हाथ मिलाए
प्रकृति प्रेम ,आदर की
भावना जगाए
पर्यावरण को संतुलित बनाएं
जैविक खाद्य अपनाएं
वृक्षारोपण करवाएं
ऊर्जा और पानी को बचाएं
पर्यावरण को संतुलित बनाएं
इस संदेश को
जन-जन तक पहुंचाएं
हम अपना जीवन बचाएं
सब जीवों का मन हरषायें
स्मिता धिरासरिया मौलिक
--------------------------------------
!!! पर्यावरण !!!
विकास तो किया हमने
पर नहीं रख पाये ध्यान
होने वाले विनाश का
नतीजा है सामने आते हैं
बाढ़, अकाल, और भुकम्प
पानी और बिजली क्या मिली
किया खूब दुरूपयोग
हद हो गई तब
जब खूब उडाया पैट्रोल
कपड़े की थेली छोड़
ली ढेरों पालीथीन
जैसा कि विदित है
अति सर्वत्र वर्जयते
विनाश तो आना ही था
प्लेग, डेंगू, मलेरिया
अब तो देखो कोरोना ने
जमाये अपने पेर
अभी समय हैं समझ जाये
खाना झुठा ना छोड़े
छोड़े हम पालीथीन
पेट्रोल को बचायें
खूब लगायेंगे पैड़
फिर धरती होगी सुन्दर
खुशहाली होगी चहूं और
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
चित्तौड़गढ़ राजस्थान
------------------------'xxx
मुझे लौटा दो
¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥
तुमने मुझसे जो छीना , वो मेरा प्यार मुझे लौटा दो
अच्छा नहीं है भीड़ में खोना, वो मेरा एकांत मुझे लौटा दो
गला न घोंटो मेरी ममता का , मैं हूँ तेरी कोई गैर नहीं
मुझसे न तोड़ो नाता , जीवन हूँ तेरी कोई गैर नहीं
मेरी हरियाली जो छीना , वो मेरा श्रंगार मुझे लौटा दो
अच्छा नहीं है भीड़ में खोना , वो मेरा एकांत मुझे लौटा दो
मुझ पर खड़े हो इंद्रधनुषी , नज़ारे देखें है तुमने
मस्त पवन के झोंके, कल कल निनाद करते पानी के झरने
फूलों के रस का चुनना , वो मेरा झुंड भ्रमर मुझे लौटा दो
अच्छा नहीं है भीड़ में खोना, वो मेरा एकांत मुझे लौटा दो
निश्चित ही जहाँ की तस्वीर बड़े जतन कर तुमने बदली
घर तो सुन्दर बना लिया पर पवन हुई जहरीली
सन सननसन चलती पुरवाइया,वो मेरा सम्मान मुझे लौटा दो
ग्रहों की शांति मैं प्रकति तुम्हारी , तुम्हें जीवन देने वाली
कर न पाए संरक्षण मेरा जिससे होती मुख पर तेरे लाली
वृक्षारोपण सेसंवारो मेरीकाया,वो मेरा अस्तित्व मुझे लौटा दो
अच्छा नहीं है भीड़ में खोना , वो मेरा एकांत मुझे लौटा दो
¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
उत्तरप्रदेश
---------------------------'xxx
कविता - पर्यावरण
सब जन नित रहे निरोगी
सुन लो आज ये संदेश
रखना पर्यावरण स्वच्छ
रोज निर्मल रहे परिवेश
शुध्द होगा वातावरण
होगी अपनी शुध्द सृष्टि
हम चले प्रकृति के साथ
हो हमारी पावन दृष्टि
प्रकृति की विकृति से
विनाशकाल तुम मान लो
जगत में होगी तबाही
मन में बात ये जान लो
हर जगह पर पेड़ पौधें
मिलकर सब खूब लगाओ
स्वस्थ रहकर के जीवन
जीने की आस जगाओ
बना रहे संतुलन सभी
जीव जंतु प्रकृति के साथ
बोयेगा वही मिलेगा
है आज मानव के हाथ
सृष्टि के संग न चले तो
मचा देगी हाहाकार
कभी नहीं कुदरत दोषी
खुद आदमी जिम्मेदार
एक दूसरे के पूरक
मत तोड़ो तुम फूल नया
स्वार्थपन में अब क्यों
भविष्य मानव भूल गया
छगनराज राव "दीप"
जोधपुर
------------------------------------
.पर्यावरण संरक्षण
।
चारो तरफ व्याप्त पर्यावरण,
है असली संरक्षक हमारा।
इसके हरे-भरे परिधि में रहकर,
मिलता हमें जीवन सुख सारा।
प्रकृति माँ की ममतामयी गोद में
हम पले ,खेले और बड़े हुए।
इसकी सुरभित शीतल वायु,जल,
पीकर तन मन से हृष्ट पुष्ट हुए।
इसके अद्भुत मेवा और फलों से
रसना को मिलती कितनी तृप्ति।
गोमाता का अमृत तुल्य दुग्ध,
पीकर मिलती परम संतुष्टि।
पर स्वार्थलोलुपता के वशीभूत हो,
इनका नैसर्गिक सौंदर्य क्षीण किया।
जंगल,पेड़ों को काट काट कर,
उसे व्यथित, अंगविहीन किया।
घरा का दोहन कर अति निष्ठुरता से
खनिज पदार्थ ,धरत्न,निकालते हो।
सरिता ,सागर में गोताखोर बिठाकर,
सारे मोती माणिक्य उगाहते हो।
पर्यावरण को प्रदूषित कर अब
खामियाज़ा भुगत रहे उसका ।
ऑक्सीजन को तरस रहे,
हुई विषैली गैसों की अधिका।
जन जन है आज पीड़ित, लाचार,
करता प्रायश्चित अपने कर्मों का,
संभवतः ले रही प्रकृति प्रतिशोध,
अपनी उस मर्मान्तक पीड़ा का।
आइये एक प्रण ले आज हम मिलकर,
सुधारेंगे त्रुटियां यही वक्त की पुकार।
करेंगे संरक्षित पर्यावरण को सप्रयास,
वृक्षों को रोपेंगे हर घर के उपवन द्वार।
प्रकृति को न व्यथित और करेंगे,
स्वार्थलिप्सा में अब न कभी फसेंगे।
प्रकृति माँ की अकूत संपदा का ,
अब और न दोहन, हरण करेंगे।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
नई दिल्ली
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अग्निशिखा मंच को नमन
विषय-पर्यावरण
क्रमांक-24
नदियां
पर्वत के वो शिखर से निकले
धरती के सीने पर फिसले,
कोई उससे कुछ भी कह ले
सबकी बातें हंस कर सह ले।
इसकी कहानी कहेंगी सदियां,
कल-कल करती बहती नदियां।।
इठलाती बलखाती चलती
कभी कभी वो ख़ूब मचलती,
उसके जल से दुनियाँ पलती
हरदम बहती कभी न थकती।
इसकी कहानी कहेंगी सदियां,
कल-कल करती बहती नदियां।।
सृष्टि को वो जीवन देती
सबके कष्टों को हर लेती,
बदले में वो कुछ नहीं लेती
सबको भर भर झोली देती।
इसकी कहानी कहेंगी सदियां,
कल-कल करती बहती नदियां।।
जननी जगत पावन कहलाती
मन की तपिश शीतल कर जाती,
अनन्त,अथक ये बहती जाती
सागर से मिल मंज़िल को पाती।
इसकी कहानी कहेंगी सदियां,
कल-कल करती बहती नदियां।।
गंगा,जमुना,सरस्वती मिल जाती
त्रिवेणी संगम कहलाती,
अपना जल वो सबको पिलाती
जिसकी महिमा दुनियाँ गाती।
इसकी कहानी कहेगी सदियां
कल-कल करती बहती नदियां।
गोद में जिसने हमको पाला
हमनें उसे दूषित कर डाला,
पड़ गया क्यों अक़्ल पे ताला
लेगा हिसाब वो ऊपर वाला।
इसकी कहानी कहेगी सदियां,
कल-कल करती बहती नदियां।।
तारा 'प्रीत"
जोधपुर (राज०)
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अग्निशिखा मंच
आज का विषय- पर्यावरण
एक दिन मां से बोली मुनिया
मां कैसी होती नीम की छइया
मां कैसे होते बाग बगीचे
कैसी होती है अमरिया
एक दिन,,,,,
मां पुस्तक में लिखा है
पहले होते थे जंगल
तब जीवन में सब था मंगल
थी हरी-भरी सारी दुनिया
एक दिन मां से बोली मुनिया
घर के आंगन से मांतुझको
चांद सितारा दिखता था
जब चांद उतरता थाली में
मुट्ठी में होती थी दुनिया
एक दिन मां से बोली मुनिया
कहते हैं विशाल गगन है
अनंत व्योम भी सिमट गया है
कंक्रीट के जंगल ने
सारा अंबर ढाक लिया
एक दिन मां से बोली मुनिया
स्वरचित
नीलम पाण्डेय गोरखपुर उत्तर प्रदेश
-----------------------------------------
'पर्यावरण बचाएंँ'
.......................
आओ पर्यावरण बचाएँ,
जगह-जगह हम वृक्ष लगाएँ।
वृक्षों को हम देकर श्वास,
उससे हम आक्सीजन पाएँ।
.
भैया ,मित्रों, सखी, पड़ोसी,
सब मिलकर एक काम ये करना।
हर एक हाथ से पाँच- पाँच,
वृक्षों का तुम रोपण करना।
कोई गली,मोहल्ला सड़कें,
बिन वृक्षों के न रह पाए ।
बाग - बगीचा गलियारों में,
सुंदर-सुंदर विटप लगाएँ।
अपने वाहन को विराम दें,
एक दिवस हम पैदल जाएँ।
पर्यावरण प्रदूषण दूर कर,
अपने देश का मान बढ़ाएँ।
वायु,ध्वनि और जल प्रदूषण से,
आओ अपना स्वस्थ्य बचाएँ।
हर एक श्वास में स्वच्छ वायु हो,
आओ हम विश्वास दिलाएँ।
मौलिक रचना
रंजना शर्मा 'सुमन', इंदौर
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पर्यावरण
प्रकृति को छेड़ना इंसान को भारी पड़ा कितना प्रलय को आप दावत दे गई यह मानवीय मनसा
सीना धरती का छलनी कर दिया हरे वृक्ष भी काटे
प्रकृति को छेड़ना इंसान को भारी पड़ा कितना
शहर यह इट कंकर पत्थरों का रह गया बाकी
हृदाय में पड़ गए पत्थर कोई एहसास ना बाकी
लगाई आग जंगलों में पशुओं का आशियां तोड़ा
उजाड़ी कोंख धरती की छीन ली हरित कला सारी
सहन वह भी करे कब तक बन गई वो प्रलयकारी
बवंडर आपदाओं का विनाशक बन गई भारी
विलुप्त होती वनस्पतियां तोभैया अब समझ भी लो
जीवन अंश है प्रकृति सहजो जल और वृक्षों को
शुद्ध पर्यावरण रखो शुद्ध पर्यावरण रखो
प्रकृति को छेड़ना इंसान को भारी पड़ा कितना
वंदना रमेश चंद्र शर्मा
देवास मध्य प्रदेश जिला
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द्रोपती साहू "सरसिज"महासमुन्द, छत्तीसगढ़
शीर्षक:"चिंता" कोरोना काल में"
विधा-कविता (तुकांत)
****
दिन ये कैसे निकलेंगे न जानें,
बड़ी विकट घड़ी आन पड़ी है।
बचाएँ कैसे हम ये प्राण अपने,
मौत बाँहें पसारे सामने खड़ी है।।
बंद सबका बाहर आना जाना,
रोजी रोटी के पड़ गये है लाले।
हर आदमी दिखने लगे हैं बेबस,
जीवन नैय्या संभालो ऊपर वाले।।
आसरे बड़े किये थे सरकार पर,
चुनावी दांव में रहे गये मशगूल।
उम्मीदों का दामन हमारा खाली,
इरादों के पन्नों पर चढ़ गये धूल।।
दवाई के नाम पर कालाबाजारी,
ऑक्सीजन बिना तड़पते लोग हैं।
मचा हाहाकार अब तो राम दुहाई,
करे विश्व स्वास्थ्य संगठन भोग है।।
दवाई इलाज हो गई बड़ी महंगी,
दूभर हुआ घर से बाहर निकलना।
गर्म पानी और गर्म खाना खाकर,
गर्मियों में मारे डर के पड़ा उबलना।।
सारे काम-धंधे करने पड़े हैं बंद,
साग भाजी का मिलना हुआ तंग।
रूखा सूखा खाकर दिन गुज़रा,
लॉकडाऊन लगे है चाक- चौबंद।।
जानें अब क्या होगा चिंता सताए,
बुरे ख़्याल मन में रहे आए जाए।
सुख का सबेरा जल्दी ही आ जाए,
दुःखद पल सदा के लिए छंट आए।।
*****
पिन-493445
Email: dropdisahu75@gmail.com
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पर्यावरण 🌴🌳💦☔
हम मानव ने जिस तरह प्रकृति पर कहर ढाया है इसका नतीजा हमारे सामने आ रहा है
हमारा शरीर प्रकृति के पंचतत्व से ही बना है अंत में उसी में विलीन हो जाता है तो हमें समझना चाहिए कि हम कुदरत के नियमों को पालन करते हुए चलें तभी हम उत्तम स्वास्थ्य पा सकते हैं कहते हैं स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन होता है अन्य धन की लालसा में हम इसे नष्ट करते आ रहे हैं अगर प्रकृति के नियम के साथ रहन-सहन खान-पान अचार विचार अपना ले तो कभी भी हमारे जीवन में दुख नहीं आ सकता मशीनी युग में हमने इस पर हावी होने की कोशिश की है अपने कृत्रिमता से इसमें प्रदूषण फैलाया है हमने इसके हर अंग से छेड़छाड़ की है ऊंची इमारतों बनाने हेतु पेड़ कांटे ,उद्योगी करण से हवा मे जहर
फैलाया नदियां सुखाई ,मूक जीवों को कैद किया आज आज प्रकृति घुट-घुट कर सिसकियां भर रही है और आंसू बहा रही है और बार-बार कई रूपों में हम संकेत के दे रही है पर हम मानव अपनी धुन में इसे नजरअंदाज करते चले जा रहे हैं जिस दिन यह अंतिम सांसे ले रही होगी तब हमारे हाथ पछतावे के अलावा कुछ भी नहीं रहेगा आओ सब मिल हाथ बढ़ाएं और ईश्वर की इस अद्भुत देन की रक्षा करें जो हमारे जीवन की रक्षा करती है !!
प्रकृति प्रदत सुंदर उपहार
है हमारा जीवन आधार
आओ इस से हाथ मिलाए
प्रकृति प्रेम ,आदर की
भावना जगाए
पर्यावरण को संतुलित बनाएं
जैविक खाद्य अपनाएं
वृक्षारोपण करवाएं
ऊर्जा और पानी को बचाएं
पर्यावरण को संतुलित बनाएं
इस संदेश को
जन-जन तक पहुंचाएं
हम अपना जीवन बचाएं
सब जीवों का मन हरषायें
स्मिता धिरासरिया मौलिक
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विषय- प्रकृति से प्रेम है।
*मैं करती प्रेम*
हे माँ जन्में तेरी गोदी में,
सास भी दिया मुझे तू ही
भूख मिटाया माँ तू ही,
खेला डालियाँ झूले में ।
प्रकृति ही मेरी माँ है,
तू ही ममता,मिटाता पाश,
यह तो सच है तू ही ईश
हर पल तू ही रक्षा करती है।
जिसने दिया स्थान मान,
आज उसी को बेच रहे हैं,
मन-माने दाम लगा रहे हैं,
यह मोहब्बता का अपमान।
भारत में होती प्रकुति पूजा
संस्कृति ,संप्रदाय शान हमारा
इस भू रज माथे तिलक हमारा,
माँ प्रकृति तेरे बिना नहीं दूजा।
फल-फुल,पुष्प ,जडी बूटियाँ तेरी खजाना ,
लिखा वसीहत नामा बच्चों के नाम,
इससे बढकर और क्या दाम,
रखेंगे सुरक्षित कोई न लूटजाना।
डाॅ० सरोजा मेटी लोडाय।कर्नाटक
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पर्यावरण बचाना जरूरी जीने के लिए।
कविता
लोगों की आबादी बड़ी
रोजगार की जरूरत पड़ी
उघोग के लिए जगह ख़ाली नही
करते कैसे समस्या आन खड़ी हुई
देखा तो चारों ओर हरियाली छाई
उघोग के लिए मनुष्य ने हरियाली को उजाड फेंकी
अब चारों तरफ काला धुआं है
पेड़ पौधे हरियाली नहीं विरान मैदान है
पेड़ पौधे की शुद्ध वायु गायब है
अब गर्मी सहन नहीं होती छांव ढूंढते है
पेडों को काटकर सुकुन ढूंढते हैं
अब गर्मी सहन नहीं होती ठंडी हवा के लिए गांव ढूंढते हैं
अपने स्वार्थ के लिए जिसने उजाड़ा प्रकृति को
वहीं अब गांवों में प्रकृति ढूंढ घर बसाते हैं ।
शहर छोड़ गांवों की ओर रूख करते है
इंसान को समझ पाना मुशिकल नहीं नामुमकिन है
भगवान के दिये नजराना को ठुकराकर
अब भगवान से खुशियों की भीख मांगते है ।
जीने के लिए आक्सीजन और शुद्ध हवा अब पेड़ों से मांगते
पेडपौधे को उजाडो नहीं
ये हमारी धरोहर है
खाद्य से औषधीय तक जीवन की पूर्ति करता है
जैव विविधता से जीने को आसान बनाता है
पर्यावरण को सुरक्षित रखो
जीने की उम्मीद जगाओ
जीवन को सुखी और खुशहाल बनाओ।
अंजली तिवारी मिश्रा जगदलपुर छत्तीसगढ़
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ना करो मेरे रूह को आहत
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हे मानव! मत काटो मुझे
मेरे नाजुक अंग
हे अधम ! क्यों बने अभिमानी
दो वक़्त की रोटी के खातिर
काहे को करे मनमानी..?
मैंने कितना तेरा साथ निभाया
जन्म -मरण सा जितना
जब छोटा बच्चा था मैं इतना
तेरे पिता और मैं संग-संग
दोनों हुए जवान
हमने मिलकर बांटे
सुख-दुख एक समान
घर पर दु:ख की जब-जब
छाई बदरिया..? सुख -चैन की छाया मैंने ही दी
अपने सारे हाथ फैलाकर
मीठे-मीठे फल देकर
अपने पुत्र धर्म का निर्वाह किया
तेरे पिता का जब विवाह हुआ
पतझड़ में खूब झूमा नाचा
तेरे जन्म पे मैंने अपनी बाहों में झूला बांधा
तुझ अबोध बालक का मां जैसा
पल-पल रखा मैंने ध्यान
मैं निर्जीव तुझ सा खिलौना पाकर हुआ निहाल
मुझे मत काटो !मुझे बहुत दर्द होता है!
डॉ मीना कुमारी परिहार
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🙏🌹अग्नि शिखा मंच🌹🙏
🙏🌹जय अम्बे🌹६/६/२१🌹🙏
🙏🌹पर्यावरण की रक्षा🌹🙏
औषधि लकड़ी वृक्ष दे हरियाली,
प्राणवायु देकर शुद्ध हवा बनाई,
फल फूल दिया, तृप्ति हमने पाई,
सुगंधित हवा से खुशीयां पाई,
वृक्ष काटकर आशियाना बनाया,
पर्वत काटकर सडक बनाना,
खेत-खलियान को नहीं छोड़ा,
अब आंसू क्यों लगे बहाने?
कहिं सुखा, कहिं अतिवृष्टि,
ओजोन में छेद, तूफान,गर्मी,
दूषित किया मानव ने सरिता,
बनी हुई अब जहरीली हवा,
ना मिला ऑक्सीजन दम तोड़ा,
लाशों का अब तो ढेर हो गया,
स्वार्थी मानव,सुधर ना पड़ेगा,
पर्यावरण की रक्षा करना होगा,
हर मानव एक पौधा लगाए,
बच्चों की तरह प्यार जताए,
पौधे जब बड़ा वृक्ष बनेगा ,
सुख शांति मानव को मिलेगा,
शुद्ध रहने दो सरिता का पानी,
कूड़ा कचरा प्लास्टिक से बचाना,
बहने दो पर्वत से गिरते झरने,
प्रकृति को सदा सम्मानित करना,
🙏🌹स्वरचित रचना, 🌹🙏
🙏🌹पद्माक्षि शुक्ल🌹🙏
आंच ना आए
तुम चलो जहां से आगे मैं चलूं जहां से पीछे
बस लक्ष्य यही हो अपना धरती पर आंच न आए
कण कण चंदन बन जाए
हर खेत झूम लहराए
हर डाली घूंघर बजाए
तुम अंधियारों को छांटो मैं घर घर दीप उजारूं
तुम हर खाई को पाटो मैं बन बन फूल निखारूं
तुम उड़ो गगन में ऊंचे मैं बहू धरा पर नीचे
बस लक्ष्य ही हो अपना बादल पर आंच ना आए
हंस-हंसकर सावन गाए हर
हकर घन फुहार भर लाए
हर झूला झूल झूम झुलाए
हर अमां खिले पूनम सी, चांदी सी रात बिछाए
हर किरण धरा पर उतरे सूरज का नाम लिखाए
तुम नव अंकुर उपजाओ मैं रहूं जड़ों को सींचे
बस लक्ष्य ही हो अपना बगिया पर आंच न आए
हर भंवरा ठुमरी गाये
हर कली मधुर मुस्काए
हर पवन गंध भर लाए
हर ऋतु मधु ऋतु सी महके हर पाखी बीन बजाए
हर मन में मधुबन उतरे हर ओठ प्रभाती गाये
तुम इस जीवन में उतरो पलकों में बिछे गलीचे
बस बस यही हो अपना प्राणों पर आंच ना आए
तिल तिल कर जल ना जाए
पल पल पर डालना जाए
हिम जैसा गल ना जाए।
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.प्रकृति का कहर
🍀☘️🌳🌲🌹🍀☘️🌳🌲
आधुनिक परिवेश में प्रदूषण हमारी प्रमुख समस्या
पर्यावरण सूरक्षित नहीं , नहीं सुरक्षित देश की प्राकृतिकता
एक ओर तो चीखते रहते ,हम सब पर एहसान जता कर
प्लास्टिक का विरोध दिखाते जहां तहां जुलूस निकाल कर
हर सरकार आती जाती अपने जलवे बिखेर के जाती
पर जो आवश्यक तत्व हैं उनपर उनकी नजर ना जाती
जनता भी ना अपनाये पर्यावरण के स्वस्थ उपाय
स्वयं तो कुछ कर नहीं पाते एक दूजे पे उंगली उठाए
सरकार के साथ हमें भी स्वच्छता का मूलमंत्र याद रखना होगा
गीला कचरा सूखा कचरा अलग रखने का पालन करना होगा
पर्यावरण को बढ़ाने दोस्तो एक एक पेड़ लगाना है
रास्ते गलियां घर चौबारो में शीतल बयार बहाना हैं
प्लास्टिक की मोहमाया को आज भी हम सब तज नहीं पाते
यदा कदा डिस्पोज़ल कैरीबैग हम अपने काम ले ही आते
जो हम ध्यान ना रख पाए तो भुगतान हमे ही करना होगा
आपातकालीन परिस्थितियों से जूझने हेतु सबको तत्पर रहना होगा
बार बार चेतावनी देते धरती वायु अग्नि अम्बर
समझा रहे हमको बाढ़, भूकंप ,आग, सुनामी ला कर
प्राकृतिक आपदाओं में जाने कितनी जाने चली जा रही
फिर भी हम अक्ल के मारों को सद्बुद्धि नहीं ही आ रही
जानवरों को मार के खा रहे कोई पक्का तो कोई कच्चा ही खा रहे
गाय सुअर , साप ,कुत्ता कोई भी इनसे बच ना पा रहे
चीन की गलती का खामियाजा आज हम सब भुगत ही रहे
कोरोनावायरस जैसी महामारी में अपनों को खो के सुलग ही रहे
अब भी सुनो और समझो प्रकृति हमसे क्या कहना चाह रही
धरती को स्वच्छ और स्वस्थ रखो बस इतना ही वह हमसे मांग रही
जो ना समझेंगे ना सुधरेंगे तो प्रकृति हमको सबक सिखायेगी
तूफान,भूकंप ,महामारी से फिर अपना कहर बरसायेगी
शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़
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🙏🙏 मंच को नमन
पर्यावरण पर एक रचना।
🌳🌳🌳🌳🌳🌳
पेड़ पानी हवा यही तो है
जीवन की संजीवनी दवा
प्रकृति से मिला उपहार है
मनुष्य का अटूट संबंध
पर्यावरण से हमारा
आज और कल है ।
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
पर्यावरण ही इस धरती
का स्वर्ग है ।
पर्यावरण की करोगे
रक्षा तो पर्यावरण है
हमारी जिंदगी
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
भर की सुरक्षा ।
पर्यावरण को बचाए
इस धरती को प्रदूषित
होने से बचाएं ।
जीवन का आधार
पर्यावरण हमारा
सुंदर परिवार ।
बिना पर्यावरण के
लगे पूरी सृष्टि निराधार
🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴
उपेंद्र अजनबी
गाजीपुर उत्तर प्रदेश
-----------
नमन मंच
विषय -;🌴 पर्यावरण🌴
प्रकृति का अनुपम उपहार
हरित नीड़ वन सदा बहार
इनसे ही तो होता है
धरती का अनुपम श्रृंगार।
होती प्रकृति माँ के जैसी
केवल देती ही है रहती
फ़िर भी करते रहे सभी
प्रकृति पर ये कैसा वार?
पेड़ काटकर ,बांध बनाकर
वार करें इस पर हर बार।
वन के वन हैं काट गिराते
उद्योगों का जाल बिछाते
पर नादां हम समझ न पाते
हम अपनी सांसे ही हरते।।
पेड़ बिना ये जलद
आज हमको जल से तरसायेंगे।
नहीं मिलेगी शुद्ध हवा
कैसे हम सब जी पाएंगे।।
प्रदूषण का काला धुंआ
पर्यावरण का ह्रास करे
सूरज की तीखी किरणों से
कवच सुरक्षा चोटिल है।
ताप धरा का बढा हुआ
जल का स्तर कम होता
धन देकर भी मिले न पानी
जल बिन जीवन तरस रहा।
अब तो हमको लानी होगी
नयी चेतना चारों ओर
बीज लगाये वृक्ष बचाएं
प्रकृति को सहेजें हम।
अपने संग संग आने वाली
पीढ़ी कोभी संजो लें हम।।
निहारिका झा🙏🙏
विधा कविता
रचना नरेन्द्र कुमार शर्मा
भाषा अध्यापक
हि0प्र0शिक्षा विभाग
शीर्षक पर्यावरण
पर्यावरण को स्वच्छ बनाना है,
अगर मानव जाति को बचाना है।
न स्वच्छ हवा न स्वच्छ जल
कैसे सुरक्षित हमारा कल ।
ये संदेश सभी को बताना है,
अगर मानव जाति को बचाना है।
प्रदूषित पर्यावरण से पनपे रोग
नई नई बिमारियों से मरते लोग
बस समय नहीं ये बहाना है,
अगर मानव जाति को बचाना है।
कारखानों का विषैला धुआँ
मानव को बना मौत का कुआँ
ये जन जन को बताना है,
मानव जाति को बचाना है।
अप्रकाशित रचना।
----------'xxxz--------------
🌹 पर्यावरण दिवस🌹
धरा है मां हमारी
मां पालती पोसती है
हमें बड़ा करती है । जीवन देती है।
देकर हरीतिमा जीवन संवारती है।
खेतों में उगा कर अन्न
जीवन का करती है पोषण ।
कण कण में है उसके
हमारी जीवन की बढ़ती ।
कर्तव्य है हमारा
उसकी रक्षा करना।
लगाकर पेड़ ही पेड़
उसे बचाना । बची रहेगी वो तो बच पायेंगे हम
और बच पाएगी ये सृष्टि ।
अपने को बचाना है तो पर्यावरण को संभालना होगा ।
पेड़ पौधे लगाकर उसकी रक्षा करना होगा ।
प्रत्येक व्यक्ति का है यही कर्तव्य
लगाकर एक एक पेड़
उसकी जिंदगी हैबचाना ।
आज पर्यावरण दिवस पर लें ये संकल्प
लगाओ खूब पेड़ लगाओ और उन्हें बचाओ ।
तभी बच पाएंगे हम ।
अपने को बचाना है
तो खूब पेड़ लगाना है।
मिलेगा ऑक्सीजन तो ही जी पाएंगे हम ।
प्रकृति हम से है
हम प्रकृति से हैं।
धरा है मां हमारी
पालती पोसती है
हमें बड़ा करती है।
******************
स्वरचित व मौलिक रचना
डाॅ . आशालता नायडू .
भिलाई . छत्तीसगढ़ .
********************
करो पेड़ों संरक्षण
यह मानव तू क्यु करता प्रकृति का दोहन, अब तो समझ जा।
कोराना ने किया मौत का तांडव
यह बशर तु ही इसका जिम्मेदार।
चलती आंधी उठे ऐसा तुफान
कांपने लगे धरती,डोलने लगे
आसमान, और उखड़ जाएं सब
ये प्रस्तावित पेड़,खड़े हैं छाती पे
धरती के एक्स, वाई जेड
पर्यावरण का नहीं किया ख्याल
पानी की बोतल लेना पड़ती है
वैसा लेना पड़ेगा ऑक्सीजन
फिर पछतायेंगा बशर।
देख नहीं लिया कोरोना में
ऑक्सीजन के अभाव में
तड़प तड़प मर रहा बशर
पेड़ लगाओ नहीं तो। नहीं
तो तेरा जीवन होगा दुबर
पेड़ों की घनी शीतल छाया
मिलता सुकुन आज यह
कसम खा पेड़ लगाओ
पेड़ जगाओ नहीं तो तेरा
जीवन होगा दुबर।
सुरेंद्र हरड़े कवि नागपुर
दिनांक 06/06/2021
🌲एक लक्ष्य,बनाएँ,🌴 एक वृक्ष लगाएँ
पर्यावरण पर मेरी एक रचना।
आज बरसों बाद ,एक बुज़ुर्ग गौरैया से हुआ संवाद।
कहाँ थी इतने बरस,जो दिखी हो बरसों बाद
अपनी नम आँखो से,उसने मुझे दियाजवाब
मैं भी स्तब्ध रह गया,सुनकर उसका जवाब
जब कहा उसने
मेरी पीढ़ियाँ तो तेरे बचपन से इस आँगन में आती थी,
तू घुटने चलकर आता था,मै फुर्र से उड़ जाती थी ।
बस यही खेल चलता था ,मैं थक जाती आँगन के पेड़ो पर निढाल सी पड़ जाती थी।
पर हे मानव इन अट्टालिकाओं के लालच में अपने ही उस आँगन को उजाड़ दिया।
काटकर हरे,भरे पेड़ो को,मेरे घोंसले को भी उखाड़ दिया।
अब न वो पेड़ बचे हैं न हरियाली है। घर बड़े हो ग,ए पर खुशियों के आँगन खाली है।
बच्चों का बचपन भी मोंबाईल मे खो गया है।
इसलिए पर्यावरण हरने वाले हे मानव मेरा आना जाना कम हो गया है।
अब न वो आबो हवा है,न साँसो में दम है।
इन प्रदूषित हवाओं से, दूषित जीवन है।
उखड़ती साँसो में,अब ऑक्सीजन कम है।
अगर मुझे फिर चहचहाते देखना चाहते हो तो,एक वादा निभाना होगा।
हर आगंन में एक वृक्ष लगाकर फिर हरियाली को लाना होगा।
मैं फिर तेरे आँगन आऊँगी,फिर मीठे बोल सुनाऊँगी,फिर मीठे बोल सुनाऊँगी।
स्वरचित
*जनार्दन शर्मा* (जे.डी.)(आशुकवि लेखक हास्य व्यंग्य)
मनपसंद कला साहित्य मंच इंदौर
पर्यावरण बचाएं
पत्थरों के नगर जो बसते जा रहे
तो प्रकृति से हम कटते जा रहे
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार
जीवन अपना दूभर करते जा रहे
पक्षियों के घरोंदें छीने हमने
और खुद पेड़ों की छाया
हरियाली सब खत्म हो रही
पेड़ों पर चलवा आरी जो बदली हमने काया
वातावरण प्रदूषित हो रहा
मानव दूषित हवा में साँस ले रहा
और जो नदियां पवित्र कहलाती हैं
उनमें भी मानव कचरा भर रहा
प्लास्टिक,कागज,कारखानों का कचरा
नदियों में जो प्रवेश कर रहा
कारखानों से उठता धुआँ
ओजोन परत को भी नुकसान पहुँचा रहा
हवा शुद्ध नहीं,निर्मल जल नहीं,खाद भी प्रदूषित हुई
फल-सब्जी फिर शुद्ध कहाँ से आएगी
चारा पशुओं का भी अशुद्ध हुआ
फिर शुद्ध दूध की धार कहाँ से आएगी
जिससे प्रकृति ने भी अपना रंग बदला
इँसान को है चेताने आई
कहीं सूखा,कहीं बाढ़ तो कहीं ओलावृष्टि है
और कभी कोई वायरस फैला कर
मानव को समझाने आई
महामारी का कहर बनकर
सोते से जगाने आई
नकली खानपान,नकली जीवन,नकली ही इंसान यहाँ
फिर मन भी कैसे शुद्ध रहे खुद आफत में डाली जान यहाँ
अपने जीवन को 'रानी' अगर खुशहाल करना है
तो बिना प्रकृति से छेड़छाड़ जीवन यापन करना है
प्रकृति के उपकारों का हम ऋण तो चुका नहीं सकते
पर प्रकृति के ज़र्रे ज़र्रे से प्यार तो है कर सकते।
रानी नारंग
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बहती नदी
एक दिन सपने में आई नदी
बोली
मेरा आंचल गंदा मत करो
स्वच्छ रखोगे स्वच्छ रहोगे
तुम मुझे पीने योग्य ही रहने दो
बाल्टी भरकर तुम नहा लो
वह पानी पेड़ों में जाने दो
फिर उसका आनंद उठा लो
पेड़ों सेऑक्सीजन मिलती है जीवनदायी ये होती हैं
किस तरह मौत को गले लगाया
अभी अभी देखा है तुमने
जब ऑक्सीजन नहीं मिली
रोते रह गये परिजन सारे
अब तुम पेड़ खूब लगाओ
मेरे जल से उसे नहलाओ
पर्यावरण बचाना है तो
कसम तुम्हें मेरी खाना है
पांच पेड़ लगाउंगा
नदी से जल चढ़ाउंगा
पेड़ हसेंगे नदी छलकेगी
आने वाली नई पीढ़ियां
इस वातावरण को अपनाएगी
पीने को पानी होगा
और खाने को होंगे फल
किसान खेत में हल चलाता
बूंदेपसीने की जब गिरती है
दाना उसका फल फूल कर
डाली डाली मोती लगते हैं
उनकी मेहनत सफल बनाओ पर्यावरण को तुम बचाओ
आओ हम सब करे प्रतिज्ञा
पर्यावरण बचाएंगे
जीवन बनाएंगे
मुन्नी गर्ग
105 रामचंद्र नगर एक्स
इंदौर
9926667776
अग्नि शिखा मंच माँ शारदे को नमन मनचासिन अतिथियों नमन
विषय - पर्यावरण
शीर्षक -मानस मन आस “
पर्यावरण साँसों का नाम है ।
प्राणवायु बिना मचा हाहाकर है ।
कटते वृक्ष बदलते संतुलन को
देख मौसम कुछ उदास है ।
हर रूप में बदलते आविष्कार है ।
हरियाली मौसम बाज़ार
प्लास्टिक फूलों फलों के जस्बे है
नक़ली ख़ुशबुओं प्रदूषण बाज़ार है
हर रूप में कृत्रिम हरियाली है
रंगीन चश्मे हरियाली को ढूँढते हैं
अपने चश्मे से हक़ीक़त बया पर्यावरण प्रदूषण कालाजादू हैं
आज सब कुछ जान इंसान उदास
हलचल नज़रों में चढ़ा तूफ़ान है
इंसानियत को फ़रेब बता रहा हैं
रंगीन चश्मे चढ़ा हरियाली ढूँढते है
आज मौसम कुछ उदास है
सब कुछ जान इंसान उदास है
सच को ताप सहने की आदत है
बदलते मौसम के साथ तूफ़ान खड़ा है ।
बेमौसम तेवर कृत्रिम प्राणवायु है
बारिस में हरियाली ढूँढते ,
एक पेड़ सौ पुत्रों के बराबर है
अनजान बन हिदायतें दे जाते है
प्राणवायु की कद्र हर साँस में है
मन की हरियाली ख़ुशहाली में है
हर साँस ताज़ी हवायें ख़ुशियों का पैग़ाम लायेंगी !
अनिता शरद झा मुंबई
प्रकृति से प्रेम
*************
देती हमको जीवन दान ,
कर लो तुम उसका सम्मान।
नहीं मांँगती तुमसे कुछ भी ,
पर उससे चलते हैं सारे काम ।
छाव उसी की पाकर आता ,
तपती धूप में आराम ।
रुकती नहीं है गति कभी उसकी,
चाहें सुबह हो चाहें शाम ।
आंँचल में इसके ही बसते ,
सारे तीरथ सारे धाम ।
प्यार से इसको देते हम ,
प्रकृति मांँ का बस इक नाम।
आज धरोहर पर अपनी ,
लग ना जाए पूर्ण विराम।
प्रयत्न सभी को करना है,
करते हैं जिसका गुणगान ।
आओ बताएंँ प्रकृति को हम ,
करते हैं उसका सम्मान।।
©️®️पूनम शर्मा स्नेहिल☯️
नमन अग्निशिखा मंच
रविवारीय प्रतियोगिता हेतु
दिनाँक- 6/6/ 2021
विषय- पर्यावरण
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
हरे भरे पेड़ की डाली, मत काटो इंसान।
कुल्हाड़ी के वार से हमें मत बांटो इंसान।।
🪓🪓🪓🪓🪓🪓🪓🪓🪓
पेड़ हम ऑक्सीजन देते, देते फल भरमार।
पर्यावरण बिगड़ जाएगा, मत बांटो इंसान।।
🍇🍈🍉🍊🍋🍌🍍🍓🍒🍑🍐🍏🍎🥭🥝🍅🥥🥑🍆🥔🥕🥦🥬🥒🌶🌽🧅
न फिर कोई चिड़िया होगी,न होगी मुर्गे की बाग।
न मयूर का नाच होगा, न कव्वे की कांव- कांव।।
🐧🐓🐧🐓🦚🦚🦅🦅🦚🦚
नदी नाले सब सूख जाएँगे, सूरज का चढ़ेगा ताप।
झूलस जाएगा गर्मी से तू, ऐसा ही होगा श्राप।।
🔥☀️☀️👹👹☀️☀️🔥🔥
मछली तड़प रही होगी, ऊंट पर होगा आधात।
न बादल की गर्जन होगी, न रिमझिम बरसात।।
🐠🐪🐟🐪🌩🌧⛈🌦⛈🌨
इंद्रधनुष नहीं आएगा, न सतरंगी आकाश।
न रात में चंद्रमा होगा, नाहीं सितारों भरी रात।।
🌈🌈🌈🌛🌟🌙⭐⭐🌕
एक पर्यावरण बिगड़ने से,बिगड़ जाएँगे दिन-रात।
सिसकेगी धारा मुल्केगें उल्लू, होगा गिद्धों का वास।।
🌓🌓🦉😭🦉🦅🦅🦅
सांस पर सांस टूटेगी,न होगी चिता सजाने की बात।
चंपा मरी पड़ी होगी कहीं, कहीं होगा गुलाब भी साथ।।
🧟♀️🧟♂️👤☠💀🌸🌹🌸🌹
हरी-भरी धरा बनाकर ईश्वर ने दिया उपहार।
इसकी सुरक्षा कर 'स्नेहा' कर ख़ुद पर उपकार।।
🌺🥀🌲🌹🍀☘🌿🌾🌵🌳
तुम कहते जमीन नहीं हैं, गमले में उगालो गाछ।
पीपल शीशम बरगद के संग, घर सजा लो आज।।
🌳🌲🍁🍀☘🌿🌾🌵🌴🌲🌳
रेखा शर्मा 'स्नेहा' मुजफ्फरपुर बिहार
पर्यावरण
5 जून पर्यावरण दिवस
प से पांच
प से पर्यावरण
सुनो सुनो दुनिया वालो
पर्यावरण की भावनाओं
एक दिन पर्यावरण
एक सभा बुलाई
उस सभा में धरती, जल,
वृक्ष, वायु और सूर्य की रोशनी
अपनी अपनी दुखों को सुनाया
धरती बोली मुझे तो लोगों ने
खुला रहने नहीं दिया
मेरे ऊपर इमारत बनाई
खुलकर में सांस भी नहीं ले पाती
दुखियारी जल भी सुनाई
अपनी गंदगी की कहानी
फिर बारी आई वृक्षों की
रोते हुए वृक्षों ने कहां
तो काट काट कर लहूलुहान
कर दिए खत्म हो गई निशान
वायु भी आंखों में आंसू लेकर बोली
विषैले धुंए से मैं तंग आ चुकी
मेरी गुणवत्ता ही नष्ट हो गई
सभी की शिकायतें सुनने के बाद
निर्णय लिया पर्यावरण
महामारी का रूप लेकर कोरोनावायरस दुनिया को
अपनी ताकत का एहसास
कराने तबाही मचाने आ गई
त्राहि-त्राहि करते मानव जाति
हाथ जोड़कर कर रहे प्रार्थना
हे पर्यावरण तू तो रक्षक है
ऐसा तांडव क्यों दिखा रहा
चाहते यदि को शांत करना
संकल्प और साधना को अपनाओ वृक्ष लगाओ
पर्यावरण बचाओ
अगली पीढ़ी के धरोहर
का करो सम्मान
कुमकुम वेद सेन
जय माँ हंस वाहिनी
अग्नि शिखा मंच
.६/०६/२०२१
बिषय पर्यावरण दिवस।
माँ समान है धरती माता,
इनके गर्भ मे सब कुछ रहता।
यह है धरती महारानी,
इन्हे पहनाओ चुनर धानी।
माँ समान करती है प्यार,
कभी नही करती इनकार।
पेड़ पौद्धे इनके है श्रीगांर,
इसी से करती सबका उद्धार।
फलो से हमरा पोषण करती
प्राण वायू मेरे तन मे भरती।
हरी भरी हम इनको रखते,
पोषक तत्व हम इन से पाते।
धरती माता सब कुछ देती,
अपनी पीडा़ कभी न कहती।
माने हम इनका उपकार,
कभी करे ना इनका तृस्कार।
पेड़़ पौद्धा खुब लगाओ,
खुशी मनाओ नाचो गाओ।
इसकी ममता है गजब निराली,
रखे सबके चेहरे की लाली।
इसको तुम न करो उजाड़,
पेड़़ लगा कर इसका करो श्रीगांर।
स्वरचित
बृजकिशोरी त्रिपाठी।
गोरखपुर यू.पी
-----------------------
नमस्ते मैं ऐश्वर्या जोशी अग्निशिखा परिवार को मेरा नमन
प्रतियोगिता हेतु मैं मेरी कविता प्रस्तुत करती हू।
विषय-पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण का संरक्षण करना
हमारा है काम
हमारे कल के लिए
हमारे अपनों के लिए।
पर्यावरण का संरक्षण करना
हमारा है काम
हम सब की है वह जान
करना चाहिए उसका सन्मान।
पर्यावरण का संरक्षण करना
हमारा है काम
सुंदर पर्यावरण का दृश्य बनाएं
संदेश यह सब तक फैलाएं।
पर्यावरण का संरक्षण करना
हमारा है काम
प्रकृति से हाथ मिला कर
करोना जैसी संकट पर
करनी है मात।
आज विश्व पर्यावरण दिवस पर
हम सब मिलकर उठाते हैं
नए कदम
सबको हम स्वस्थ बनाएं
आओ अब पर्यावरण बचाएं।
धन्यवाद
पुणे
---------'------------------------..
आखिरी खत ------ओमप्रकाश पाण्डेय
( पर्यावरण पर मेरी कविता)
धरती कराह रही है कब से
सुन लो अब भी ये दुनियाँवालों
हो चुका विध्वंश बहुत कुछ अब तक
अफ़सोस करोगे सब मिट जाने पर
मत करो विनाश अब इस धरती का
यह आखिरी खत है तेरे नाम ...... 1
कितने वृक्ष काट डाले तुमने
पर लगाया एक नहीं अभी तक
कागज़ में तुम करते वृक्षारोपण
फाईलों में भरा है सारा जंगल
मत करो विनाश अब इस धरती का
यह आखिरी खत है तेरे नाम...... 2
नदियों को तुम कहते हो माता
तुम उसको देवी भी तो कहते हो
पर दूषित कर डाला पावन जल उसका
अपनी सारी गन्दंगी डाल के उसमें
मत करो विनाश अब इस धरती का
यह आखिरी खत है तेरे नाम..... .... 3
वायु को तुम कहते हो देवता
उसका पूजन भी तो करते हो तुम
पर प्रगति के इस अन्धीं दौड़ में
तुमनें कर दिया प्रदूषित उनकों भी
मत करो विनाश अब इस धरती का
यह आखिरी खत है तेरे नाम........ 4
जब माता और देव कहा है उनको
तो अपना पुत्रधर्म निबाहो तुम
ईश्वर ने दिया जल वृक्ष और वायु
इन तीनों पर ही है जीवन र्निभर
मत करो विनाश अब इस धरती का
यह आखिरी खत है तेरे नाम........ 5
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)
ब्रम्हांड की मनोहारी रचना
**********************
वसुन्धरा ने धरती को कितना पावन बनाया है
माटी ने भी दे साथ वसुन्धरा को महकाया है।।
बगिया के फूलों ने अपनी महक से महकाया है
पांच तत्वों ने मिल धरा को सच मे खूब सजाया है।।
काल्पनिक नहीं ये दुनिया इसे ब्रम्हांड ने बनाया है
देखो धरती पे ही स्वर्ग सा कश्मिर हिमालय पाया है।
कलकल बहते झरनों को देख आनंद कितना आया है
पहाड़ों पे उतरे बादल देख मन उड़ान भर पाया है।।
पेड़ो के पत्तों को ओस की बूंदो ने ही नहलाया है
मोतियों सी ओस की बूंदो ने मन ललचाया है।।
तितलियों,परागो ने मिल गुलशन से रस चुराया है
मधु,फल,फूल,शाकभाज से हमें अनुग्रहित कराया है।
ब्रह्मांड ने ही मनोहारी दृश्य हमें दिलाया है।।2।।
वीना आडवाणी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र
*********************
प्रकृति और हम
****************
पंचतत्व से बनी है धरती, प्रकृति ने सुंदर संसार दिया,
सूरज चंदा नदियां पर्वत,जीने का आधार दिया,
रंग बिरंगे फूल खिला कर, हरियाली उपहार दिया,
प्रकृति ने सब किया समर्पण ,जीवन को साकार किया।
कल कल स्वर में नदियां बहती, मधुर संगीत सुनाती है,
फल फूलों से लदी डालियां झुकना हमें सिखाती हैं ,
यह धरती भारत मां बनकर, सब को आश्रय देती है,
अन्नपूर्णा बनकर हम सब का, लालन पालन करती है ।
सावन की रिमझिम बूंदे, घुंघरू की तान सुनाती है,
पुरवइईया के मस्त झकोरे, कानों में बंशी बजाती है ।
वसंत आगमन पर ,रोम-रोम पुलकित हो जाता है,
हरित वर्णों में लिपटी वसुंधरा, दुल्हन सी शर्माती है।
प्रकृति को चुनौती देंगेतो, कुप्रभाव से ना बच पाएंगे,
बाढ़, तूफान, धरती हिलेगी, बादल भी फट जाएंगे अपने हाथों इंसान ने , जंगल , बाग़ उजाड़ा है,
कृषि भूमि को रौंद दिया, पर्वत में सुरंग बनाया है वायु नभ मंडल दूषित है, दूषित नदियों का पानी निमंत्रण दे रहा मृत्यु को, मानव तू अभिमानी है। दीया और बाती का रिश्ता जैसे फूलों का खुशबू से ,
प्रकृति मानव का रिश्ता जैसे सांसों का धड़कन से जीवन जीना है तो प्रकृति को बचाना होगा ,
इस धरती को स्वर्ग से भी सुंदर हमें बनाना होगा संकल्प ले हम हरियाली से धरती का श्रृंगार करेंगे हरे-भरे वृक्ष लगाकर प्रकृति का सम्मान करेंगे।
श्रीमती शोभा रानी तिवारी 619 अक्षत अपार्टमेंट खातीवाला टैंक इंदौर मध्य प्रदेश
मोबाइल 8989409210
*करके देखो प्रकृति से प्यार...*
काट- काटकर वृक्षों को हमने
ठूंठ बंजर कर डाला!
और प्रकृति की सजा पर
दोष उसी पर मढ़ डाला!
जंगल- कानन सब काटे हमने
लिए कुल्हाड़ी हाथ रहे!
मगर कोप के प्रकृति से
हरपल हम अनजान रहे!
भूल गए हम सुविधाओं में
अपनी ही की थी मनमानी!
आज अगर दोहन किया था
तो, कल तो आफत थी,आनी!
अब भी चेतो हे मानव! तुम
करो विवेकी आचरण!
सदा देती ही आई प्रकृति
अब भी देगी हमें संरक्षण!
करो संकल्प, दो ..दोनो हाथों से
प्रकृति को खुलकर हरियाली उपहार!
वह भी देगी भूल सभी कुछ...
करके देखो उससे प्यार!!
*मीना गोपाल त्रिपाठी*
*अनुपपुर ( मध्यप्रदेश )*
*6 / 6 / 2021*
*रविवार*
पर्यावरण
हरदम पर्यावरण ही, पर्यावरण पर चिल्लाते हो।
एप को छोड़ धरा पर भी, कोई पेड़ लगाते हो?
विकास के नाम पेड़ों का, तुमने विनाश किया।
हरी-भरी धरा हमारी, उसको भी मैदान किया।
हरियाली के बदले कंक्रीट, के शहर बसाते हो।
एप को छोड़ धरा पर भी, कोई पेड़ लगाते हो?
प्रकृति दोहन से तो धरती भी, क्रोधित होती है।
पासा पलट के मौसम का, हमको चेता देती है।
बेमौसम झँझावत को देख, दुखी हो जाते हो।
एप को छोड़ धरा पर भी, कोई पेड़ लगाते हो?
जीव भी धरा-अधिकारी, उन्हें न जीने देता है।
उन्हें खा-खाकर खुद, कब्रिस्तान हो जाता है।
अनेक जीवों की हत्या कर, फूले न समाते हो।
एप को छोड़ धरा पर भी, कोई पेड़ लगाते हो?
जल-संकट आने वाला, बार बार चिल्लाते हो।
इस चेतावनी से 'फेसबुक' 'वाट्सएप' भर जाते हो।
जल बचाने की तरक़ीब, घर पे भी आज़माते हो?
एप को छोड़ धरा पर भी, कोई पेड़ लगाते हो?
वैष्णो खत्री वेदिका
जबलपुर मध्यप्रदेश
🌹 चट्टान 🌹
अग्नि शिखा मंच के सभी पदाधिकारियों को मेरा नमन🙏🏻
आज का विषय पर्यावरण 🪴☘️🌵🌳🌲🎄🍀☘️🌿🍃🍂🍁🎋🌴
पर मेरी एक कविता
**दरार*
चट्टान ने खोला है सीना
लोगों को आया है पसीना
चट्टान बोली मुझमें लगाओ
वनस्पति
लोगों ने समझा आई विपत्ति
चट्टान बोली मैं कब से खड़ी हूं
सोचा कोई आएगा काम में लाएगा
बहुत आए शिखर बनाए,
मूर्तियां बनाई, पर वनस्पति किसी ने नहीं लगाई
😢
पर वनस्पति किसी ने नहीं लगाई 😢
अब मैं बोलती हूं अपना मुंह खोलती हूं
मुझ में जो आई है यह दरारे
यह न समझो आई जॉन की परसों सुखड़ने लगी है
मैं करती हूं तुमसे वादा,
धरती का भार कर दूंगी आधा
समंदर में होते हैं अनमोल मोती
धरती की कोंख में होती है ज्योति
मैं लेकर आऊंगी अनमोल ज्योति और मोती
मुझको दो एक दाना
लो तुम मुझसे खजाना
लोगों के समझ में ना आई
चट्टान को आई रुलाई
😢😢😢😢😢
आंसू उसके निकल पड़े और शिलाजीत💧
बनकर बहने लगे और लोगों से कहने लगे ,
मैं भी मां की आंख का आंसू हूं ।
मैं भी कुछ कम नहीं
मां की इच्छा पूरी कर दो ।
हरियाली से इसको भर दो
हरियाली से इसको भर दो
धन्यवाद 🙏🏻
स्वरचित✍️
डॉ लीला दीवान जोधपुर राजस्थान
नमन मंच
विषय --: पर्यावरण
********
जल लहरों की कलकल छलछल
अपने ही अन्तर्द्वन्द को लेकर
शांत होती है वह उस पल
मिलती है जब सागर के तल पर!
पलपल उठती और थमती
जलांधर के बोझ से दबती
हलाहल को निष्क्रिय है करती
शांत भाव लिए फिर से है उठती!
लहरे अपना काम दिखाती
सागर फिर भी कुछ न कहता
आगोश में अपने भर लेने को
हरदम बांहे फैलाए रखता!
सृष्टि की रचना तो देखो
इस धरा पर दृष्टि तो फेंको
तीन भाग में सागर है फैला
फिर भी पृथ्वी ने उसको है झेला!
धरा का यह विशाल स्वरुप
होता है नारी के अनुरूप
अपने मे समा लेने की क्षमता
नारी में ही होती है यह समता!
शांत भाव से पृथ्वी है सहती
बोझ उठाकर के वह कहती
सागर से अमृत पाकर भी
विष से भरी हुई हूं अब भी!
शीतल हवायें देती थी जो
आग वही बरसाती है
धैर्य की हर सीमा लांघे
उससे पहले हम उनको बांधे
जगह जगह हम पेड़ लगायें
वसुंधरा को हरित बनाये
उत्कृष्ट उपवन को लहरायें
शीतलता संग अमृत बरसायें!
आओ हम सब दृढ़संकल्प करे
समुद्र-मंथन से मिले अमृत को दे
मां पृथ्वी को विषमुक्त करें
विशाल हिर्दय वाली माता को
हम सब मिलकर नमन करे!
आओ हम सब दृढ़संकल्प करे
मंथन से मिले अमृत को दे
मां पृथ्वी को विषमुक्त करे!
चंद्रिका व्यास
खारधर नवी मुंबई
(दिनांक --: 2/10/2020 )
पर्यावरण
अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच
विषय_पर्यावरण,विधा_कविता
नारायण_नारायण,
नष्ट किया पर्यावरण,
पहले आया खूब मजा,
फिर पाई उसकी सजा,
अब अकल ठिकाने आई है,
हर तरफ उदासी छाई है।१।ही
अब समझ आया इसका महत्व,
जरूरी है पर्यावरण का हर तत्व,
पेड़_पौधे,फल_फूल सारे,
नदी,पहाड़,झरने ये प्यारे,
सूरज_चांद टिमटिम तारे,
आसमां में चमकते सारे,
खेतों की फसलें देती भोजन,
जल की धारा संवारे जीवन।२।
निःशुल्क मिलता भंडारण,
अक्षुण्ण रहता,न होता क्षरण,
करे हमारा भरण_पोषण,
हमारा ये सुंदर वातावरण,
हमारी धरा का आवरण,
करो ना इसका चीर_हरण,
अब नहीं चलेगा केवल भाषण,
हम सब खूब करें वृक्षारोपण।३।
स्वरचित मौलिक रचना_
रानी अग्रवाल,मुंबई,६_६_२१.
पर्यावरण💐
आज है पर्यावरण दिवस
कुछ मनाएं खास
हर दिन बने प्रर्यावरण दिवस।।
लंबे पेड़ छोटे पेड़
कहते तुमसे अपना दर्द
ना काटो दर्द होता है हमें
हम हैं तुम्हारे जीवन के आधार।
लेते प्रदूषित वायु
देते तुम्हें शुद्ध ऑक्सीजन वायु।।
तपति धरा को देते शीतलता
हम से ही होती वर्षा।
गाते पशु पक्षी नर
चेहरे पर लाते खुशहाली हम।
चिड़ियों के है घरोंदे हम।
गाते रहते हैं यहां हरदम।।
ऋषि मुनि दादी के
नुस्खे छिपे है हम में।
हर बीमारी की है दवा हम हमें।।
हम होते थे सबको अन्न नीर।
अब तो समझ लो ही वीर।।
ना करो धरा से जुदा
आवाज दे रहा है खुदा।।
जुदाई से होता दर्द हमें
ना बांटो हमें टुकड़ों में।।
गर परिवार की तू है आन।
हम हैं धरती की शान।।
हम करेंगे तुम्हारा रक्षण।
करो हमारा तुम संरक्षण।।
बनेगा तू महान।
रख हमारी मान।।
डॉ गायत्री खंडाटे, हुबली कर्नाटक
*अग्निशिखा मंच कवि सम्मेलन *
माँ शारदे को वंदन
मंच को नमन
विषय -" पर्यावरण"
पर्यावरण प्रकृति संरक्षण कैसी प्रभु की संरचना ,
प्राणवायु हम इनसे पाते तभी स्वस्थ हम रह पाते !
हवा प्रदुषण मुक्त हो जीवन पंछियों सा हो उन्मुक्त ,
प्राण वायु ओर गहरे श्वास लें यही जीवन का मूल मंत्र !
जीव - जंतु ओर पंख - पखेरू जल,थल,नभ में रहते हैं ,
पर्यावरण का संतुलन हम सब मिलकर ही करते हैं !
आधुनिकता के नाम पे जब से जीवन शैली बदली है ,
भोगवाद की लिप्सा नें बसुधा मैली कर दी है !
जीव -जगत को रखें सुरक्षित वृक्षारोपण करना है ,
कंकरीट के जंगल में भी नीम बबुल फिर बोना हैं !
एक वृक्ष दस बेटों जितनां पुरखे यूं ही नहीं कहते हैं ,
जो प्रकृति के संरक्षण को ही अपनाने फर्ज समझते है!
धरती माता कल्पबृक्ष सम हमको सब कुछ देती है ,
प्राणवायु ,फल ,फूल ,शुद्ध जल कोई कमीं नहीं रखती है !
हम उसकी बिगड़ी संतानें कैसी नादानी कर बैठे हैं ,
नंदन वन सी वसुधा को हम ही मैली कर बैठे !
हर गलती की सजा सुनिश्चित हमको भी अब मिल रही ,
कहीं भूकंप,कहीं पे सूखा ,कहीं पे आंँधी ओर सुनामी है ?
घड़ा पाप का पूरा भर गया विकराल करोना आया है ?
आक्सीजन की कमी से जीवन पर संकट गहराया है ?
अब भी बाजी हाथ हमारे अभी भी कुछ नहीं है बिगड़ा ,
पर्यावरण संरक्षण से ही मिट जायेगा झगड़ा - टंटा !
प्राणवायु भरपूर मिलेगी जब हवा भी होगी पूरी शुद्ध ,
आनें वाली नस्लें हमारी पूर्ण सुरक्षित होगी स्वस्थ !
एक दिवस से कुछ नहीं होता सजग सदा ही रहना है ,
अपनीं सारी दिनचर्या में करनी पर्यावरण सुरक्षा है !
आओ मिल संकल्प करें सादा जीवन अपनायेगें,
अपनें बच्चों के समान ही वृक्षों की रक्षा कर पायें !!
सरोज दुगड़
खारुपेटिया , गुवाहाटी
असम
🌴🦚💥🍁🌫️🌈🌄🌴
🙏🙏🙏
🌹🌹अग्निशिखा मंच🌹🌹
🌳🌹विषय -पर्यावरण 🌳🌹
आज देखो जरा नजरें तो उठाकर
अपने चारों और थोड़ा वक्त निकाल
क्या हालत कर दी हमने अपनी धरती की
जो सदियो से थी कितनी बेमिसाल।।
जिस प्रकृति ने ना कभी गलती की
हमने कितनी ही गलतिया उस पर की
तरह तरह के प्रलोभनों में आकर
ना जाने कितनी तकलीफ़े उसे दी।।
पानी की लड़ाई ऑक्सिजन की तड़प
अंगारो जैसी बढ़ती गर्मी का कहर
सब तो बर्बाद कर चुके आगे बढ़ने में
बाकी रहने ना दी कही कोई कसर।।
अब तो जागो अब तो रुको
इस विनाश को अब तो रोको
बस इतना कर लो अब तो तुम
जितना है हाथ मे उसे ही संभाल लो तुम।।।
हेमा जैन (स्वरचित )
विषय****** पर्यावरण
आओ बचाएं हम पर्यावरण को ।
ना सूखने देंगे नदी धरण को ।।
होगा बचाना हरे-भरे जंगल ।
रोकेंगे प्रदूषण अकाली मरणको ।।१
आओ हम वसुंधरा को बचाएं ।
उसे और भी हरा भरा बनाएं ।।
यह धरती है माता हम सबकी ।
इसे ना हम कोई चोट पहुंचाए ।।२
यह हमें अन्न आबो हवा देती है ।
मौतसे बचाती दारू दवा देती है ।।
हम नहीं उजाडेंगे करते हैं प्राण ।
हमदर्द है सबकीखुशियां देती हैं ।।३
हम बर्बाद होंगे इसे उजाड़ कर ।
हरे-भरे छायादार वृक्ष काटकर ।।
हम उड़न पाएंगे परिंदोंकी तरह ।
हम खुद अपने परोंको छाटकर ।।४
हे निसर्ग तू बहुत सुंदर उदार है ।
मानवपर करता सदा उपकार है।।
रूप तेरा देखकर मनमें कवि के ।
होता कल्पनाओं का अविष्कार है।।५
प्रा रविशंकर कोलते
नागपुर
महाराष्ट्र
वीना अचतानी,
अग्निशिखा मंच को नमन,
विषय *****पर्यावरण ******
मौसम हमेशा बदलते
पर वृक्ष वहीँ खड़े रहते
तपती धूप में ठन्डी छाँव देते
रखते है हमें स्वस्थ दीर्घायु
कुदरत से मिली है सौगात हमे
यह ईश्वर का वरदान हमें
बड़ा अनमोल उपहार है
यह धरती का श्रृंगार है
पक्षियों का रैन बसेरा
पीपल , बरगद, आँवला नीम लगाए
तुलसी से आँगन की शोभा बढ़ाएं
आओं मिल कर पेड़ लगाऐं।
खुली हवा में ले साँसें
आने वाली पीढ़ी को
तोहफा दे जाऐं
प्राकृतिक वातावरण को
निर्मल स्वच्छ बनाऐं
इस धरती को बंजर होने से बचाऐं
आओं मिल कर पेड़ लगाऐं ।
सिमटता है जब जंगल
होता है अमंगल
काट कर वृक्षोआ को
बना दिये कंकरीट के जंगल
तपिश भरे दिन
न फूलों की खुशबू
न उपवन की शोभा
नदी तालाब सूख गए
अब न सुनाई पड़ती
कोयल की कूक
भँवरों का गुँजन
आओं मिल कर प्रण करें
प्रदूषण को दूर भगाऐं
फिर से धरती का आँगन सजाये
आओ मिल कर पेड़ लगाऐं ।।।
स्वरचित मौलिक,
वीना अचतानी
जोधपुर (राजस्थान).. .
दो मुक्तक
नज़ाकत समय की समझा करो
नहीं हर एक से उलझा करो
अपरिचित से न हाले दिल कहो
मात्र दो बात कर चलता करो।।१
वैसे तो आवारा बनकर घूम रहे
अंबर धरती उछल उछल कर झूम रहे
जब मित्रों का प्यारा प्यारा साथ मिला
अपनी उनकी गाथा सुनकर झूम रहे।।२
एक सज़ल
##########
गुजर जाएगा ही यह दौर भी।
बंधेगा शीश एक दिन मौर भी।।
कोरोना काल बनकर आ गया
छिन गया अपने मुंह का कौर भी।।
कोंपलें, पत्तियां शाखा दिखी तो
आएगा वृक्ष में कल बोर भी।।
करता जैसा है जो वह भुगतता है
साथ में आता है कुछ और भी।।
आस्था समर्पण श्रद्धा यह कहती
शिव के संग पूजते गणगौर भी।।
मात्र धन से नहीं मिलता है सभी कुछ
जानना होता तरीका तौर भी।।
खड़े शैलेश हो तो एक दिन
मिलेगा बैठने को ठौर भी।।
++++++++
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी
*अग्निशिखा मंच कवि सम्मेलन *
माँ शारदे को वंदन
मंच को नमन
विषय -" पर्यावरण"
पर्यावरण प्रकृति संरक्षण कैसी प्रभु की संरचना ,
प्राणवायु हम इनसे पाते तभी स्वस्थ हम रह पाते !
हवा प्रदुषण मुक्त हो जीवन पंछियों सा हो उन्मुक्त ,
प्राण वायु ओर गहरे श्वास लें यही जीवन का मूल मंत्र !
जीव - जंतु ओर पंख - पखेरू जल,थल,नभ में रहते हैं ,
पर्यावरण का संतुलन हम सब मिलकर ही करते हैं !
आधुनिकता के नाम पे जब से जीवन शैली बदली है ,
भोगवाद की लिप्सा नें बसुधा मैली कर दी है !
जीव -जगत को रखें सुरक्षित वृक्षारोपण करना है ,
कंकरीट के जंगल में भी नीम बबुल फिर बोना हैं !
एक वृक्ष दस बेटों जितनां पुरखे यूं ही नहीं कहते हैं ,
जो प्रकृति के संरक्षण को ही अपनाने फर्ज समझते है!
धरती माता कल्पबृक्ष सम हमको सब कुछ देती है ,
प्राणवायु ,फल ,फूल ,शुद्ध जल कोई कमीं नहीं रखती है !
हम उसकी बिगड़ी संतानें कैसी नादानी कर बैठे हैं ,
नंदन वन सी वसुधा को हम ही मैली कर बैठे !
हर गलती की सजा सुनिश्चित हमको भी अब मिल रही ,
कहीं भूकंप,कहीं पे सूखा ,कहीं पे आंँधी ओर सुनामी है ?
घड़ा पाप का पूरा भर गया विकराल करोना आया है ?
आक्सीजन की कमी से जीवन पर संकट गहराया है ?
अब भी बाजी हाथ हमारे अभी भी कुछ नहीं है बिगड़ा ,
पर्यावरण संरक्षण से ही मिट जायेगा झगड़ा - टंटा !
प्राणवायु भरपूर मिलेगी जब हवा भी होगी पूरी शुद्ध ,
आनें वाली नस्लें हमारी पूर्ण सुरक्षित होगी स्वस्थ !
एक दिवस से कुछ नहीं होता सजग सदा ही रहना है ,
अपनीं सारी दिनचर्या में करनी पर्यावरण सुरक्षा है !
आओ मिल संकल्प करें सादा जीवन अपनायेगें,
अपनें बच्चों के समान ही वृक्षों की रक्षा कर पायें !!
सरोज दुगड़
खारुपेटिया , गुवाहाटी
असम
🌴🦚💥🍁🌫️🌈🌄🌴
🙏🙏🙏
बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत ही सुंदर अगोजन।।सभी रकनवकारों को हरेडिक शुभकामनाएं।संचालक मंडल का हार्दिक आभार।आ0 अलका दी कोविशेष आभार संग नमन।जिनकी लगन व अथक प्रयास से यह कार्यक्रम इटनक़्सफ़ल हो पाया।।पुनः नमन संग शुभकामनाएं🙏🙏🌹🌹
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete