अग्निशिखा मंच
१७/६/२९२१
चित्र पर कविता
चिडीया
दाना लाये चोंच में माँ
बच्चों का उदर भरती माँ
देख देख बच्चों को होती है निहाल ।
दाना पाकर बच्चे होते हैं खुशहाल ।।
बारिश की तैयारी है , घोंसला न्यारा है ।
हंसते हंसते सबको पालती
कष्ट अनगिनत वह सहती
उड़ उड़ थक जाती गौरैया
बच्चों को देख सब कष्ट भूलती
माँ का बच्चों से रिश्ता बड़ा प्यारा है ।।
दूर दूर जाकर दाना ले कर आती ।
अपने सभी बच्चों का पेट मेहनत से भरती ।।
तभी तो वह जननी कहलाती हैं ।
चोंच है छोटी बच्चे कई सोच में पडती
किसको खिलाऊँ , कैसे सबको शांत करु ।
बच्चे माँ को देख चू चू कर तिल्लाते सबके मूंह है खुले दाना पाने ।।
माँ ने जतन किया सबसे पहले छोटे को दाना दिया बारि बारि सबका पेट भरती
दाना लाती चोंच में माँ
बच्चों को उड़ना सिखलाती
बच्चे जब उड़ जाते ख़ुश होती
कर्त्तव्य पूरा कर मोह हटाती
जीवन चक्र यू ही चलता सिखलाती
चू चू कर सबको जगाती
सूरज दादा से मुलाक़ात कराती
काम पर चलो यही सिखलाती
मेहनत से न डरो कभी बतलाती ।।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷😺😺
चित्र देख कविता
रोजाना चिड़िया दूर - दूर तक उड़ कर जाती
ऊपर उड़ती ,नीचे उड़ती , नदी,पहाड़ लाँघती
दाना चुगती , नदी में पानी पी प्यास बुझाती।
,खुश होकर कुछ दाने वह मुंह में लेकर आती
फिर आकर अपने बच्चों को प्यार से खिलाती।
बच्चे गौरेया को देख मुंह खोलते चीं -चीं करते
चिड़िया खुश होकर दाना उनके मुख में रखती।
चिड़िया फिर उड़ जाती और दाना लेकर आती।।
गौरेया हो या इन्साँ, मांँ तो आखिर मांँ होती है,
पक्षी हो या इंसाँ,ममता सभी में बराबर होती है।
सभी माताएँ अपने बच्चों को प्यार से खिलाती हैं
इन्साँ मेहनत कर अपने बच्चों का पालन करता है।
गौरैया भी उड़- उड़ कर बच्चों हेतु दाना लाती है
नन्हें बच्चों को खिलाकर फिर उड़ना सिखाती है।
ऊपर - नीचे उड़- उड़कर दाना चुगना सिखाती है।।
नदी में पानी पीना और पानी मे नहाना सिखाती है।
आशा जाकड़
,🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌷🌷🌷
आज का विषय और विधा : चित्राधारित कविता
🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦
प्राक्कथन: आज का चित्र कुछ ऐसा है कि मुझे बाल कविता शैली में लिखना ही श्रेयस्कर लगा। किंतु कविता में बड़ों के लिए भी संदेश है। समीक्षक महोदय अंत तक कविता अवश्य पढ़ें।
🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦
शीर्षक : चिड़िया
🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦🐦
एक एक तिनका ला लाकर
छोटा गेह बनाती चिड़िया।
🐦
चंद दिनों के बाद घोंसले में
अंडे रख जाती चिड़िया।
🐦
जब तक अंडों को सेती है
कम ही बाहर जाती चिड़िया।
🐦
जब बच्चे बाहर आ जाते
तब सक्रिय हो जाती चिड़िया।
🐦
बार बार उड़ जाती चिड़िया।
चुन चुन दाना लाती चिड़िया।
🐦
बच्चे चोंच खोल देते हैं
उनमें भोज्य गिराती चिड़िया।
🐦
अपनी उसको फिक्र नहीं है
खुद भूखी रह जाती चिड़िया।
🐦
सूरज के उगने से पहले
रोज सुबह जग जाती चिड़िया।
🐦
चूं चूं चूं चूं शोर मचाकर
हमको नित्य जगाती चिड़िया।।
🐦
बच्चों से ममता कैसी हो
सबको यह सिखलाती चिड़िया।
🐦
ज्योहीं बच्चे उड़ने लगते
उनसे मोह हटाती चिड़िया।
🐦
बच्चों से लगाव हो कब तक
यह शिक्षा दे जाती चिड़िया।
🐦
जीवन की परिभाषा क्या है
सबको बतला जाती चिड़िया।
🐦
डा. कुंवर वीर सिंह मार्तण्ड, कोलकाता
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
चित्र पर आधारित
गौरैया
मां तो मां होती उसकी
बच्चों में जान बसती है
हर दुख हंसते-हंसते झेले
बच्चों पे वारी जाती है
नन्ही गौरैया को देखो
दिनभर फिरती मारी मारी।
शाम पड़े जब घर आती
देख के मुखड़ा बच्चों का।
सारी थकान को भूल के फिर से
नन्हे बच्चों में रम जाती।
चुन-चुन कर मुंह में दाना देती
जी भर के प्यार लुटाती है।
नन्हे बच्चे जब बड़े हुए
ऊंची उड़ान भर जाते हैं।
देश तरक्की बच्चों की
मां मंद मंद मुस्काती है
वो दूर बुलंदी को छूते
मां एक टक तकती रहती है
ये जीवन का चक्र निरंतर
यूं ही चलता रहता है।
बिना किसी आशा के मां
अपना कर्तव्य निभाते हैं
मां तो मां होती है उसकी
बच्चों में जा बसती है।
वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश।
*गौरैया, चिड़िया*
दुनिया कहती मेरी मां को गौरैया ।
पर हम सब कि है,वो प्यारी मैया।
रोज सवेरे वो,उठकर वो कही जाती,
चोंच मे दबाकर हमारा भोजन लाती।
फिर प्यार से वो, हम सब को खिलाती,
फिर,फिर उड़ जाती,फिर वो दाने लाती।
यही सिलसिला मां का जब तक है चलता,
तब तक हमसे हर कोई उड़ना नहीं सीखता,
ईश्वर ने भी दुनिया में, मां को क्या है बनाया
इंसान होया हो चिडिया,सब जगह एकही माया,
*जनार्दन शर्मा*
(संस्थापक अध्यक्ष मनपसंद कला साहित्य )
मांँ की सीख
************
मेरे प्यारो , आओ तुम्हें ,
मैं दुनिया से मिलवाती हूंँ।
संघर्ष इस जीवन के ,
मैं आज तुम्हें बतलाती हूंँ।
पंख फैला इन हवाओं में,
उड़ना तुम्हें सिखाती हूंँ।
घर के बाहर की थोड़ी-सी,
दुनिया आज दिखाती हूंँ।
हांँ मैं मांँ हूंँ फिर भी अक़्सर,
पत्थर-सी बन जाती हूंँ।
ठेस न खाओ इस जग में,
इसीलिए सख़्ती दिखलाती हूंँ।
आज जो संँग मैं हूंँ तुम सबके,
तो दाना चुग कर लाती हूंँ।
उन दानों से मेरे प्यारो ,
भूख तुम्हारी मिटाती हूंँ।
हाथ तुम्हारा थाम के मैं ,
ये विश्वास दिलाती हूँ।
हिम्मत से तुम जग जीतोगे,
आज तुम्हें समझाती हूंँ।
रह न सकूंँगी हर पल संँग मैं,
इसलिए पाठ पढ़ाती हूँ।
संघर्षों से लड़ना प्यारों ,
इसीलिए सिखलाती हूंँ।
ममता है भीतर मेरे,
पर मैं उसे छिपाती हूंँ।
देख के तुमको सक्षम-सा ,
मैं मन ही मन ख़ुश हो जाती हूंँ।।
©️®️ पूनम शर्मा स्नेहिल☯️
उत्तरप्रदेश गोरखपुर एमएम
विधा कविता
____________________________
शीर्षक चिड़िया का जीवन
🙏🏻_______💥✍💥______🙏🏻
कवि नरेन्द्र कुमार शर्मा
भाषा अध्यापक
हि0प्र0शिक्षा विभाग
✍----------❤️🙏🏻❤️ ----------✍
------------चिड़िया का जीवन---------
तिनका- तिनका जोड़ के वो,
चिड़िया घोंसला बनाए।
कल को होंगे नन्हें बच्चे,
ये चिंता उसे सताए ।
छोटे-छोटे बच्चे उसके,
चीं-चीं कर चहचाए।
नहीं समझते नन्हें बच्चे,
माँ दान कहां से लाए।
बच्चों की खातिर दर-दर उड़ती,
चोंच में भोजन लाए।
बुढ़े-घने जंगल में चिड़िया,
मधुर गीत वो गाए।
मानव ने काटे जंगल आज,
वो आश्रय कहां बनाए।
प्रकृति से लगाव उसका,
प्रकृति उसको भाए।
बच्चो की खातिर मेहनत करके,
वो माँ का फर्ज़ निभाए।
पशु-पक्षी भी इतना समझे,
ये संदेश हमको बतलाए।
✍____नरेन्द्र कुमार शर्मा ____✍
🙏🏻❤️---हिमाचल प्रदेश---❤️🙏🏻
नमन अग्निशिखा मंच
विषय;-चित्राभिव्यक्ति
दिन ;-गुरुवार *(17/6/2021)
मैं माँ हूँ तुम सबकी बच्चों
तुममें जान मेरी है बच्चों
तुमसे ही तो लाड़ लड़ाऊं।
कभी प्यार से सहलाती हूँ
कभी बोलना तुम्हें सिखाऊं।।
जन्म दिया तुमको है मैने
अपना सब कुछ वारि जाऊं।
तिनका तिनका जोड़ा मेनो
किया घरौंदा ये तैयार ।
जिसमे रहे सदा सुरक्षित
बच्चे मेरे हैं होशियार।
ढूंढ ढूंढ कर लाती दाना
क्षुधा तुम्हारी मैं मिटाऊं।
जब होंगे तुम कुछ तैयार।
पंखों फैला उड़ना सिखलाऊँ।
जन्म दिया तुमको है मैने
अपना सब कुछ वारि जाऊँ।।
निहारिका झा।।🌹🌹🙏🏼🙏🏼
9264108266 prof.pushpa Gupta
---------------------------------------------------
🌹🙏अग्नि शिखा मंच 🙏🌹
🌳चित्र आधारित रचना 🌳
❤विधा:कविता ❤
🌿 दिनांक :17-6-2021🌿
गौरैया की जोड़ी ने, बगान के
एक क्रोटन के पेड़ पर -
तिनका- तिनका जोड़कर
बना लिया है घोंसला
यह घोंसला ऊपर से
उतना ही सुन्दर, सुघड़- घर जैसा
भीतर से उतना ही,नरम और गुलगुल
अरे, इसके अंदर तो रूई भी पड़ी है।
मैने अपनी प्यार भरी आँखों से-
देखा है यह सब,बचपन की नादानी थी।
जब माँ को बताया, घोंसले के बारे में, तो
माँ अंदर से तिलमिला गयीं
परन्तु प्यार से कहा- बेटा,
नहीं झाँका करते- घोंसले के अंदर
वह चिड़ियों का घर है-
कुछ दिनो के बाद देखा,
दो नन्हीं गौरैया,,चीं- चीं कर रही है
धीरे-धीरे उसके पंख भी निकल रहे हैं
जैसे ही दाना लेकर, आता है गौरैया
नन्हीं - सी चोंच खोलती है,
नन्ही- नन्ही गौरैया *
दाना खिलाता है पिता गौरैया
माँ गौरैया भी गई है ,दाना पानी लाने
वह भी डालेगी ,
अपने बच्चों के मुँह मे दाने.......×2
-------------------------------------------------
स्वरचित एवं मौलिक
रचनाकार-डॉ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार -
🙏🌹अग्नि शिखा मंच,🌹🙏
🙏🌹 जय अम्बे, १७/६/२१🌹🙏,
🙏🌹 चित्र पर आधारित रचना, 🌹🙏
भूखे हो गये छोटे बच्चे,मां को याद करते है,
चोंच मे दाना लाई मां, बच्चों के मुँह में देती है,
पहले मुझे देना कहकर, हर बच्चे चिल्लाते है,
चीं, चीं, चीं की सुर सुनकर, मां मन में हर्षित है,
धैर्य रखना मेरे बच्चे, सबको खाना देना है,
दूर से में लेकर लाई, दाना तुम्हें खिलाना है,
मिलता नहीं दाना बेटा, दरवाजा सब के बंध है,
कोविड की महामारी में, घर में मानव कैद है,
प्यार से रहना बाते करना,सब को खाना देना है,
हिम्मत और धैर्य से, मुश्किल में खुश रहना है,
मां हूं में तुम्हारी बच्चों, रक्षा की जिम्मेदारी है,
देखो बहूत दाने मेरे, मुंह में भरकर लाई है,
🙏🌹पद्माक्षि शुक्ल🌹🙏
चिड़िया मां
चूं चूं कर लाई दाना
बच्चों को खिलाई दाना
अभी उड़ नहीं सकते
इनके पंख नहीं है बढ़े
अभी तुम बच्चे हो
दुनिया के हिसाब से बहुत छोटे हो
अभी तुम्हारी परवरिश मुझे करनी है
बड़े होने तक तुम्हारी जिम्मेदारी मुझे लेनी है
दुनिया में जीने लायक तुम्हे बनाना है
इंसानों के बीच कैसे रहना है
ये बताना है
मां हूं कैसे छोड़ दूं तुम्हें अकेला
मां पर तो बच्चे का अधिकार
सदियों से है
फिर चाहे ओ भगवान हो,
चाहे इंसान हो
या फिर चाहे पशु
या फिर हम पक्षी हो
सभी मांओं में ममता एक जैसी होती है
क्योंकि सभी मांओं को भगवान ने एक जैसे बनाया है
रचनाकार
अंजली तिवारी मिश्रा जगदलपुर छत्तीसगढ़
जय मां शारदे
***********
अग्निशिखा मंच
दिन -गुरुवार
दिनांक- 17/ 6/ 2021 चित्र आधारित रचना
इंसान हो, जानवर हो या हो पशु पक्षी,सब में मां जैसा नहीं कोई सानी।
देखो तो कैसे अपने बच्चों को दाना खिला रही है चिड़िया रानी।
आसपास में घूम-घूम कर चोंच में दाना लाती ।
भूखे ना रह जाए बच्चे मेरे प्यार से उन्हें खिलाती।
बच्चे भी राह तक रहे हैं, मां मेरी आएगी ।
हम भूखे नहीं सोएंगे,मां कुछ तो दाना लाएगी ।
जब आई चिड़िया, बच्चों ने मुंह खोला।
खिला रही है मां उनको और प्यार से ये बोला।
पालूंगी पोसूंगीं उड़ना भी मैं सिखाऊंगी ।
बच्चों इस गगन में राज्य करना सिखाऊंगीं।
रागिनी मित्तल
कटनी ,मध्य प्रदेश
नमस्ते मैं ऐश्वर्या जोशी अग्निशिखा परिवार को मेरा नमन प्रतियोगिता हेतु मैं मेरी कविता प्रस्तुत करती हूं।
विषय- चिड़िया रानी
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
एक एक तिनकी से
बनाती अपना सारा घर
घर भी बड़ा प्यारा लगे हमें।
चिडिया रानी चिड़िया रानी
नन्हें नन्हें पाओं से
घर का हर एक कोना
सपने जैसे सजाती।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
एक-एक दाना संभाल कर
लाती तू घर
बड़े प्यार से खिलाती
अपने बच्चों को
उसी में आपको आनंद आता।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
बहुत अच्छा जीवन तेरा
ना आज की चिंता ना कल की
सिर्फ मुक्त आकाश में
उड़ती सदा।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
हम मनुष्य को आकाश में
छलांग लगाना सिखाती हैं
और तो और चू चू आवाजों
से हमारा दिन बनाती है।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
बड़े ढंग से रहती सदा
हम मनुष्य को पसंद है
तेरी हर एक अदा।
धन्यवाद
पुणे
$$ उदास चिड़िया $$
उदास चिड़िया सोच रही
देख रही चूजों की ओर
दिनभर मैने भरी खूब उड़ान
ला पाई मे सिर्फ एक दाना
भूख सभी को लग रही
तीनो हो रहे बेहाल
किसको दूं ये एक दाना
सोचकर यही हूं परेशान
जंगल कट गये बचे नहीं पेड़
वातावरण बिगड़ रहा
इंसान कर रहे पाॅलीथीन का
खूब उपयोग
हवा अशुद्ध, पानी मे जहर है
धरती के कण कण मे कहर है
सोच रही क्यों जन्म दिया तुमको
किया मैने विवश रहने को
दूषित वातावरण मे जीने को
भर नही सकती जब पेट तुम्हारा
तो हो जाती मैं बैचेन यहाँ
अब हम मिलकर करेंगे
धरती को सुंदर मनोरम
समझाएंगे मानव को
पर्यावरण की रक्षा के बारे में
अभी तुम काम इसी से लो चलाय
हम बचाएंगे पेड़ और जीवन सबके
हम बचाएंगे पेड़ और जीवन सबके
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
चित्तौड़गढ़ राजस्थान
मंच को नमन 🙏
17/6/21
चित्र पर आधारित रचना
*********************
गौर चिरैया
*********
ओ री पंछी प्यारी गौर चिरैया
तू कितनी भोली -भाली
चीन -चीं करती चुग रही
मेरी भोर की गौर चिरैया
अपने बच्चों को उड़ना सिखाती गौर चिरैया
उसके बच्चों की चीं-चीं
चहकती फुदकती गौरैया
फुदकती फिरती यहां वहां
और फुर से उड़कर
जा बैठती बच्चों संग
तिनका-तिनका जोड़कर
बरसाती उसमें अपना घोंसला
बच्चों को चोंच से चुग्गा खिलाती गौरैया
अपने बच्चों को खूब भाती गौरैया
चाहे जैसे नाच-नाचकर
चाहे जैसे चुहचुहाती हो अपने घोंसले में
ओ री गौरेया क्यों नहीं गाती अब तुम मौसम के गीत
अपने बच्चों को भी सिखा देना संग -संग चहचहाना और नाचना
तूने बखूबी निभाया है अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य
सदा तू रहे आबाद ओ री गौरेया!
डॉ मीना कुमारी परिहार
गौरैया सोच रही
गौरैया चोंच में दबाकर लाई
घास का तिनका हरा- हरा
बच्चे उछल- उछल मुंह खोलें
मम्मा हमको दे दो पहले पहले।
गौरैया गहन सोच में डूब गई
धैर्य से खाओ बच्चों जल्दी से
मुझे काम बहुत सारे हैं और
क्या जाने कब छिन जाए ठौर।
आज मानव को देखा आते हुए
हाथ में कुल्हाड़ी को पकडे़ हुए
कब यह वृक्ष धराशायी हो जाएगा
मुझे बनाना है इक,आशियाना नया।
मेरे पास कुछ,खजाना जायदाद नहीं
मैं हूँ इक पंछी, मेरी कोई औकात नहीं
चलो मैं एक प्यारी लोरी गुनगुनाती हूं
नन्हे-मुन्ने सो जाओ, तुम्हें मैं सुलाती हूं।
डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
17-6-21
।अग्नि शिखा मंच ।
चित्र पर आधारित कविता।
यह चिड़िया भी खूब है,
कैसे बच्चों को खिलाती है।
कहां कहां से दाना लेकर,
इन छोटे बच्चों को चुगाती है।।
यह चिड़िया.............…. 1
जैसे बच्चे थोड़े बड़े होते है,
चिड़िया उड़ना सिखाती है।
तेज हवा पानी के थपेड़ों से,
दुख सहकर उनको बचाती है।।
यह चिड़िया.................. 2
मां का यह पवित्र स्वरूप,
जीवन की राह दिखाती है।
अनजाने मां को हम भूलकर,
क्या नहीं करते ज्यादती है।।
यह चिड़िया................. 3
मां सेवा कर भूल जाती है,
अपना कर्तव्य खूब निभाती है।
संतान अपना फर्ज भूलकर,
पाप की बढाये वह थाती है।।
यह चिड़िया................... 4
स्वरचित,
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ।
कोपरखेराने, नवी मुंबई ।
अग्नि शिखा
नमन मंच
दिनांक--: 17/6/2021
विषय--: चित्र पर आधारित
बाथरूम की खिड़की से
हर वक्त सुनु मैं चूं चूं चूं
उनकी रात दिन की
अविरत चूंचूं सुन
सोचा चढ़कर देखूं खिड़की में
उठकर देखा तो
मां की ममता बैठी थी उस पर
अपने गले से रस निकालकर
बच्चों को मुख में देती थी !
इधर-उधर जो बच्चा होता
तुरंत संभाल लेती थी उनको
मां-बाप दोनों सेते थे उनको
बढ़कर क्या दे जाते थे वोउनको
पंखों के आ जाने तक ही
रहता उनका रिश्ता है
निःस्वार्थ की भावना लिए
ये बच्चे फुर्र से उड़ जाते हैं
पुख्त वय में आते ही
चक्र वही दोहराते हैं और
अपने बच्चों को भी
वहीं निस्वार्थ प्यार दे पाते हैं
चंद्रिका व्यास
खारघर नवी मुंबई
अग्निशिखा मंच को नमन🙏🙏
चित्र पर आधारित कविता
जाना है घर जल्दी
बच्चे भाट देखें मेरी।
दूर दूर तक जाकर आई
चोंच में दाना भर लाई।।
दूर से देख बच्चे खुशी से पुकारे
देखो देखो मां आई
तीनों के लिए दाना लाई,।।
हम सबकी भूख मिटेगी
जब मां खाना खिलाएगी।
दाना देख लड़ते आपस में
पहले तू पहले मैं।
मां कहती सबको मिलेगा दाना
ना लड़ना कभी आपस में।।
बच्चों का पेट भरती
ध्यान सदा बच्चों की रखती,।।
पानी पीकर अपनी भूख मिटाती
क्योंकि आज मिला है दाना कम।।
गर्मी ,वर्षा ,सर्दी से ना डरती
बच्चों को देख अपना दर्द भूलती।
प्यार से सहलाती पास में बैठती
सुनती उनके किस्से दिनभर की।
चंदा मामा को दिखलाती
लोरी गाकर उन्हें सुलाती।
सोचती औ कहती _--------
कल फिर जाना है काम पर
खाना लाना है पेट भर।।
डॉ गायत्री खंडाटे
हुबली कर्नाटक।
चिड़िया माई
अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच
विषय_चित्र पे कविता_
चिड़िया माई
[Image 396.jpg]
प्यारे बच्चों,मैं तुमरी माई,
चोंच में भरकर चुग्गा लाई।
तुम जन्मे प्रसव_ पीड़ा हुई,
फिर भी उड़कर मिलों गई।
मां हूं ,समझती हूं,तुमरी रुलाई,
भूख की तड़प, मां से जुदाई।
लो मुहूं खोलो,चुग लो दाना,
यहां न कोई तुमरा नानी_नाना।
धीरे_धीरे तुम बड़े होओगे,
अपने पैरों पर खड़े होओगे।
गिरे तो मैं ही संभाल लूंगी,
मैं ही तुम्हें उड़ना सिखाऊंगी।
जब उड़ जाओगे छोड़ मुझे,
मैं पीछे_पीछे न आऊंगी।
न रहेगा तुम्हें मुझसे मोह,
न सताएगा मुझे तुमरा बिछोह।
मानव बस ये एक यही सबक,
हमसे सीख ले,
अपनी औलाद से बिछड़ने पर,
रोना_धोना छोड़ दे।
तुम मुक्त गगन में विचरण करना,
स्वतंत्र घूमना,न इस घोंसले में लौटना।
फिर तुमभी ऐसा घोंसलाबनाओगे
तिनका_तिनका जोड़ सजाओगे।
फिर शुरू सृष्टि का वही चक्कर,
अपनी रह चुनना, ना हो टक्कर।
बस यूं ही सब चलता रहता है,
किसी के लिए ना कोई रुकता है।
है चिड़िया भोली,कोई सयानी है,
है बेईमान,कोई ईमानी"रानी"है।
स्वरचित मौलिक रचना___
रानी अग्रवाल ,मुंबई,१७_६.२१.
अग्निशिखा मंच को नमन
विषय :- *चित्रपर आधारित,रचना*
मां पशु पक्षी की हो या मानव की
वह सबको खिलाती रहती है
उसकी ममता है बहुत प्यारी न्यारी
वो बच्चोंके लिए दुख सहती है।1।
दाना पानी के लिए वो जंगल जाती है दाना,लाकर अपने बच्चों को वह खिलाती है पेड़ों पर बनाती हैं वो घोंसले अपने बच्चों को सुरक्षित पालती ।।2।।
चोंच में लाकर पानी बच्चों को पिलाती दूर कितनी भी वो जाए मगर शाम को वापस आती
भूख से व्याकुल बच्चों को शांत कराती, यही है मां की ममता।3।
कभी-कभी वह अपने बच्चों को गाना गाकर सुलाती,दिनभर माता थककर रात को सो जाती फिर सुबह हुई तो दाना पानी के लिए बाहर निकल जाती।।4।।
जब जाती जंगल में, नन्हे मुन्ने
को हिदायत देती मत निकालना
घोंसले के बाहर, पेड़ पर है
नागराज यह डर बताती है।।5।।
जब कोई, नहीं मिलता दाना
फिर भी बच्चों के लिए लाती
दाना, दस बार जाती इस पेड़
से उस पेड़ फल, के छोटे छोटे लाते टुकड़े खिलाती बच्चों
फिर वह खाती यही है मां की ममता।।6।।
जब तक बच्चे उड़ न पाते तब तक खिलाती है दाना जब बच्चे को लगती प्यास नीचे आकर अपनी चोंच में एक एक पानी बुंद से प्यास बुझाती यही है प्यार की ममता।।7।।
सुरेंद्र हरड़े
नागपुर ,महाराष्ट्र
दिनांक 17/06/2021
आदरणीय मंच को नमन
चित्र पर आधारित रचना
*******
अम्मा आई, अम्मा आई।
चोंच में अपने दाना लाई।।
पेट हमारा खाली खाली
करेगी अब उसकी भरपाई
अम्मा आई, अम्मा आई।।
++
जाने कितनी दूर गयी थी
बारिश में भी भींग गई थी
खोज कर चारा भरी चोंच में
धीरे-धीरे उड़ आई थी
कोई और कौर न जीने
जाने कितनी उड़ी उँचाई।
अम्मा आई, अम्मा आई।।
+++
बार बारी देगी हमको
तंग नहीं तुम करना उसको
तुम छोटे हो पहले तुमको
फिर वह चुग्गा देगी मुझको
नहीं हमें आपस में लड़ना
हम-तुम दोनों भाई भाई।।
अम्मा आई, अम्मा आई।।
-------
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेद्वी
शैलेश
बच्चे मां को देखकर चूंचंू का शोर करते हैं
जैसे कहते हो मानो पहले मुझे पहले मुझे पहले मुझ
े किंतु मां देती सब को एक
साथ और समझात
ी समझदारी की बात
क्योंकि वह मां है
मां कितनी भी मुश्किल से क्यों ना लाई दाना
परदेती सबको बराबर से अपनी चोच से दाना
मा में ममता बसती है
बच्चों का कलरव उसे भाता है अपने बच्चों की खातिर वह आँधी, तूफान,हो पानी धूप बरसा कुछ ना जानती है
सब सह कर भी
अपने बच्चे को
भोजन लाकर खिलाती है
मां की ममता बड़ी महान
ना जाना कोई इसका राज,
ी यह तो मां ही मां जाने
मां की ममता बड़ी महान
🦉🐥🦅🦇🦆
कुमारी चन्दादेवी स्वर्णकार जबलपुर मध्यप्रदेश
अग्निशिखा मंच
विषय---चित्र पर आधारित
शीर्षक----चिड़िया
दिनांक---17-6-2021
चिड़िया
चिड़िया का चहचहाना मेरे आंगन को सजाना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
घर के आलने में वह घोंसला बनाती
तिनका-तिनका जोड़ घर को वह सजाती
सुबह चीं चीं से उसकी, नींद का खुल जाना
आता है याद मुझको, बीता हुआ जमाना ।
चिड़िया और चिड़ा की प्रेम कहानी
चुगते थे मिलकर वो सदा दाना पानी
फिर उनके घोंसले में छोटे-छोटे बोट मुस्कुराना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
चहचहाने में उसके संगीत सुन लेते
फुदकती थी जब वह हम मुस्कुरा लेते
कभी पूरे घर में उसका चक्कर लगाना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
दाना पानी उसके लिए हम भी रख देते
आते-जाते उसका अपने बच्चों को खिलाना
फिर बच्चों का भी चीं चीं कर शोर मचाना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
बच्चे धीरे-धीरे सीख रहे पंख फैलाना
हो जाएँ जब बड़े तो उनको है उड़ जाना
उनको अपना अलग आशियाना बनाना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
अब ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों ने उनका आशियाना छीना
शहरों से दूर हो गई रहा उनका ना ठिकाना
चाहता है दिल फिर से उनको ढूँढ लाना
आता है याद मुझको बीता हुआ जमाना ।
रानी नारंग

अग्निशिखा मंच
तिथी,, १७,६,२०२१
मां
आज सोच में पड़ी है ये मां
दाना किसको खिलाऊं
तीनो बच्चे भूखे मेरे
किसका पेट भराऊं।
चींचीं चूंचूं शोर करें वो।
पहला खाना मुझको दे दो।
मां तू खाना कम क्यों लाई
जाने तू, सब ले लेता भाई।
बारिश बहुत ही तेज पड़ी है।
किसी को किसी की पड़ी नहींं है।
मुश्क़िल से मिला है एक दाना।
तीनों ने है भूख को जाना।
जब पेट की आग जल उठती है,
सबको बस अपनी भूख दिखती है।
भूख से ऐंठती आंतों ने आवाज़ लगाई,
भूख बड़ी है ना छोटा ना बड़ा भाई
समझदारी दिखाई छोटे ने
चूं चूं कर के लगा बोलने।
मां तू क्यों रोती है,
मुझे भूख नहीं लगी है।
नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोम्बिवली
महाराष्ट्र
वीना अचतानी,
चित्र पर आधारित रचना ।
*******चिड़िया ******
कविता की
रस धार तुम हो
चहकन की मिश्री
ममता की धार
तुम हो
चूं चूं करके
चोंच मे दाना
भर लाती हो
बच्चों को खूब
खिलाती हो
तिनके चुन चुन कर
सुन्दर घर बनाती हो
धूप बारिश आँधी से
छुपा कर अपने पंखो तले
बच्चों को बचाती हो
माँ की ममता है तुम में
कलरव की बँसी हो तुम
चहक चहक कर
हर्षाती हो।।।।।।
वीना अचतानी
जोधपुर ।।।।
चित्र आधारित कविता
एक चिड़िया के बच्चे चार ,
घर से निकली पंख पसार ,
पूरब से पश्चिम में आई उत्तर से दक्षिण में आई घूम घाम जब घर पर आई ,
बच्चों के लिए चुग्गा लाई ,
चूं चूं करते बच्चे चहके,
भूख प्यास से बिलखे बच्चे ,
चौंच पसारे खाना मांगे ,
चिड़िया सोचे किसको दूं पहले ,
सबको देकर शांत करती ,
आपस में प्रेम भाव है भरती ,
मिल जुल कर रहना सीखलाती , समय-समय पर प्यार दर्शाती ,
उड़ने की कला भी उन्हें सिखाती ,
पंछी के सब गुण सिखलाती,
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
बच्चों के लिए चुग्गा लाती,
चूचू करके गीत सुनाती.
स्वरचित कविता
रजनी अग्रवाल जोधपुर
अ. भा. अग्निशिखा मंच
गुरुवार -17/ 6/ 2021
विषय- चित्र पर कविता
चिड़िया रानी
चिड़िया चीं चीं करती है।
सबका मनोरंजन करती है।
तिनका-तिनका नीड़ बनाती।
बच्चों को वह वहाँ सुलाती।
अपना सारा प्यार लुटाती।
उनको उड़ना भी सिखाती।
चिड़ा भी काम में लग जाता।
वह भी दाना चुनकर लाता।
सुबह सवेरे उड़ जाती है।
दाना चुन कर लाती है।
चिड़ी आती कुछ दबाए।
बच्चे सुख से दाना खाएँ।
छोटे बच्चे मुँह को खोले।
चीं चीं भाषा में माँ बोले।
सुबह सबेरे उठ है जाती।
कलरव कर सबको जगाती।
जब आती है बिल्ली रानी।
तेज होती है उसकी वाणी।
जब चिड़ी का खतरे में होती।
ऊँचे स्वर में सब को बुलाती।
सबसे प्यारी सबसे दुलारी।
सबसे है यह न्यारी न्यारी।
वैष्णो खत्री वेदिका
जीवन की एक ही रीत,
पक्षी हो या प्राणी मां देती है सीख
घोसला में नन्ही नन्ही चिड़िया
उड़ नहीं सकती प्यारी चिड़िया।
गाना चुग कर लाती मां चिड़िया
नन्हे नन्हे बच्चों को खिलाती चिड़िया
सहयोग करना सिखाती चिड़िया
संघर्ष करना सिखाती चिड़िया
सुबह उड़ जाती है चिड़िया
शाम ढलते दाना लेकर आती चिड़िया
गर्मी सर्दी मे पंखों से बचाती चिड़िया
तिनका चुनकर घोंसला बनाती चिड़िया
अपने घर में दाना पानी रखो
चिड़िया आएगी शोर मचाएगी
ची ची कर दाना चुनेगी
पानी पीकर प्यास बुझाएगी
बच्चों के लिए दाना ले जाएगी
सबके मन को खुश कर जाएगी
कुमकुम वेद सेन
गुरुवार दिनांक १७/६/२१
विधा ******कविता
विषय***
#**चित्र पर आधारित रचना**#
^^^^^^^^^^^
मां अन्नपूर्णा है सबको खिलाए ।
मां दयालु है वो देवी कहलाए।।
खुद भूखी रह जाए माता मगर ।
अपने बच्चोंको भूखा ना सुलाएं ।।१
वो बुलबुल हो या गोरैया मैना ।
उसे बच्चोंकी चिंता रहे दिनरैना ।।
दिनभर दाने पानीका जुगाड़ करे ।
बच्चों को खिलाये बिन पड़े न चैना ।।२
वो दयालु शुभचिंतक है हितकारी ।
वो जननी है वही है पालन हारी ।।
इसलिए कह गए ज्ञानी मां बिना ।
स्वामी तीनों लोक का है भिकारी ।।३
बच्चों के लिए वह हर दर्द सहती है ।
जिंदा रख्खे बच्चोंको खुद मरती है ।।
कामपर तो जाती छोड़कर उनको ।
पर आंख उन पर ही टिकी रहती है ।।४
प्रा रविशंकर कोलते
नागपुर
महाराष्ट्र
अग्निशिखा मंच
17/6/2021 गुरुवार
विषय-चित्र आधारित रचना
ममता
चुन-चुन कर
तिनका-तिनका,
पंछी ने
नीड़ बनाया।
कपड़ों की चिन्दियों
उलझे धागों से,
फिर उसे सजाया।
अपने होने
वाले चूजों की
सुरक्षा के लिए,
अपने जीवन का
पल-पल लुटाया।
अपने ज़िस्म की
गर्मी देकर,
सेती रही अंडे।
और एक दिन
चीं चीं करतें
अंडों से चूजे निकले,
ममता की मारी
चिड़िया मां
ख़ुशी से
फूली नहीं समायी।
चोंच में
चोंच डाल कर,
बच्चों को
दाना चुगाया।
प्यार से अपने
ममता से,
उन्हें सहलाया।
धीर-धीरे
नन्हें चूजों के,
नन्हें नन्हें पर
निकल आये।
उनके कमज़ोर
पंखों में अपनी,
आशाओं का
दम भरा।
उन्हें अपने सपनों का
खुला आसमाँ और,
हौसलों की ऊंची
उड़ान दी।
और आज
समर्थ हुए तो,
उड़ गए
छोड़ कर नीड़।
तोड़ कर
ममता का बन्धन,
भूल कर
अपना कर्तव्य।
छूने आकाश की
ऊंचाइयों को,
फिर कभी भी
वापिस न लौट कर
आने के लिए।
तारा "प्रीत"
जोधपुर(राज०)
छवि विचार
प्यारी प्यारी चिड़ियाँ रानी
सुबह होते ही उठ जाती है ,
उठ कर सबको जगाती है ,
लाकर दाना बच्चो को खिलाती है ,
माँ का फर्ज बखूबी निभाती है
पाठ अनुशासन का पढ़ा रही
रीत दुनिया का बता रही ,
कैसे इस जग मे रहना है
यह बच्चो को समझा रही ,
प्रेम ,विश्वास ,साहस ,धैर्य
सफल जीवन के है आधार
ऐसे नैतिकता के पाठ पढ़ा रही
गर आये तूफान जीवन में ,
नहीं कभी डरना है ,
रख हौसला हर तूफान से टकराना है
जब हो जाओगे तुम बड़े ,
पंख फैला कर उड़ना है ,
आये न कोई दुःख
मात .पिता के जीवन मे
यह ध्यान तुम्हे रखना है
स्मिता धिरासरिया बरपेटा रोड
🌹चित्र आधारित 🌹
प्रकृति के मेल में
दुनियां के खेल में,
कई भावना के रंग है
उसी में रंगा प्रेम रंग है,
किन्तु सबसे हसीन प्रेम रंग
माँ की ममता का प्रेम रंग,
दृश्य में चिड़िया रानी है
और उसके 2नन्हें बच्चे है,
चिड़िया चोंच मे दबा के आई
भोजन बच्चों के लिए लाई,
दूर -दूर मिलो उड़ान भरती
तब जाकर खाना ला पाती,
फिर भी नहीं चिड़िया थकती
क्योंकि ममता रग रग में बहती
तिनका -तिनका चुन चुन के ये
अपना घोंसला खुद से बनाती ये
कितनी नन्ही सी जान होकर भी
बहुत कुछ ये सिखलाती हमें भी
हेमा जैन (स्वरचित )
घोंसला ---- ओमप्रकाश पाण्डेय
( आज के चित्र पर आधारित)
बगिया बगिया डाली डाली
घूम घूम कर एक पक्षी ने
यहाँ से तिनका वहाँ से तिनका
बीन कर बीन कर बड़े जतन से
एक प्यारा घोंसला बनाया
पक्षियों का यह ही अपना घर है....... 1
दिन भर चाहे जहाँ भी घूमे
दिन ढले यहीं पर लौट आते
गर्मी हो बारिश हो या हो शर्दी
या तूफान तेज चलता हो
इनका यह एकमात्र आश्रय
पक्षियों का यह ही अपना घर है......... 2
दाना चुग चुग कर ये लाते
कुछ खाते कुछ बचा के रखते
अंण्डे अपने यहाँ पर देते
सेंते उनको बड़े जतन से
रखते बच्चों को भी बड़े जतन से
पक्षियों का यह ही अपना घर है........ 3
दाना चुग चुग कर ये लाते
प्यार से बच्चों को खिलाते
रक्षा बच्चों की करते दिन रात
फिर एक दिन नील गगन में
अपने पंखों से बच्चे उड़ जाते
पक्षियों का यह ही अपना घर है......... 4
पालते पोस्ते बड़े जतन से
बच्चों को वे बड़ा भी करते
पर मोह ममता से परे हैं ये
बच्चों को ये उड़ने देते
नहीं रोकते उड़ने से उनको
पक्षियों का यह ही अपना घर है......... 5
( यह मेरी मौलिक रचना है ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)
मां/पिता जैसा कोई नहीं
*******************
इसांन हो या जानवर
पंछी हो या जीवजंतु
सबमें जज़्बात समाते
सब अपने बच्चों को बहुत चाहते।।
नन्ही चिडिया के गुण हम गाते
दूर उड़ आसमान मे खाना लाते
अपने घौसलों मे चूजों को चोंच
से खाना खिला ममता बरसाते।।
बारिश सर्दी मे पंख फैला अपने
पंखों के नीचे बच्चों को छुपाते
आऐ वृक्ष पे कोई दुश्मन तो
चोंच से वार कर बच्चों को बचाते।।
इंसान,जानवर यही तो एक गुण
जज़्बात समान हैं पाते।।२।।
वीना आडवानी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र
*******************
बालगीत
चिड़िया रानी
चूं चूं करती चिड़िया रानी,
सुबह सवेरे आती है।
देख मेरे हाथों में खाना,
वह भी तो ललचाती है।
मैं भी भूखी बच्चें भूखे,
दाना मुझको दे दो ना।
एक दोने में पानी रख दो,
प्यास हमारी बुझा दो ना।
मिलते कहाँ घने पेड़ अब,
जिन पर मैं तो रहती हूँ।
ना छीनो आशियां हमारा,
यही मैं तुमसे कहती हूँ।
निज लालच की खातिर
पेड़ घने तुम काट रहे।
अस्तित्व हमारा खतरे में,
हमको दुख क्यों बांट रहे?
प्रेम प्रीत से रहना सीखों,
हम भी इस जग के प्राणी।
प्यार हमें भी दे दो थोड़ा,
बोलो मीठी सी वाणी।
चोंच में दाना ले चिड़िया,
बच्चों के पास आती है।
बड़े प्यार से चिड़िया रानी,
दाना उन्हें खिलाती है।
मिलजुल कर रहना बच्चों,
उनको यह बतलाती है।
कभी किसी का न छीनना,
सबक यह सिखलाती है।

डा. साधना तोमर
बड़ौत (बागपत)
उत्तर प्रदेश
*चित्र पर आधारित कविता*
पहले उड़ती- फिरती थी,
ये हर डाली - डाली पर
कौन - थी ये चिड़िया प्यारी?
क्या नाम है इसका,
जरा -पूछो भईया?
अरे ये चिड़िया है - गौरया ।।
पहले दिखती थी ये,
हर - घर आंगन में
परंतु अब है ये।
पक्षी संकट में ।।
इसे बचाने के लिए,
करना पड़ेगा कोई उपाय।
ताकि ये चिड़िया,
इस धरती पर बच पाए।
थोड़ा- सा दाना और थोड़ा -सा पानी,
अगर इसे मिल पाए।
तो इसकी प्रजाति,
इस धरती पर बढ़ जाए।।
यदि नहीं किया अभी ऐसा,
तो आने वाले वक्त में
कभी ये खबर आए
एक छोटी- सी चिड़िया थी न्यारी।
नाम था जिसका गौरैया प्यारी।।
विजयेन्द्र मोहन।
*अग्नि शिखा काव्य मंच*
* गुरु वार -१७/६/२०२१ *
* बिषय - चित्र पर कविता *
माँ तो माँ होती है पालनहार ,
चाहे हो पशु,पक्षी ,या इनसान ?
अपने बच्चों की भूख मिटाती ,
गोरैयो माँ हर दिन बार- बार !
एक चोंच ओर बच्चे चार ,
फिर भी नहीं माँ मानती हार !
चूँ चूँ चीं चीं की रेल -पेल में ,
दाना चुन लाती बार बार !
मेरे बच्चों धिरज रखो ,
सबको खिलाउँगी बार -बार !
जब तक मैं हूँ तुम सब पर ,
कोई आंँच कभी ना आयेगी !
अपनें नन्हें पंखों से भर उड़ान ,
मैं दानाँ पानीं लाउँगी !
अपनें नन्हें बच्चों की ?
हर रोज भूख मिटाऊंगी !!
सादर समीक्षार्थ !
सरोज दुगड़
खारुपेटिया, गुवाहाटी
असम
जय माँ शारदे
चित्र आधारित रचना
मैं तो माँ हूँ मेरे बच्चों उड़ना तुम्हें सिखलाती हूँ।
नहीं डरो तुम इस दुनिया से तुझको मैं बतलाती हूँ।।
ची -ची चिड़िया चौच में दाना भरकर में ले आती हैं।
मेरे नन्हे प्यारे चुजो तुमको मैं खिलाती हूँ।
नहीं गिरने दूँगी जमी पर विश्वास यह दिलाती हूँ।
नहीं सुनोगे बात मेरी फिर मैं कठोर हो जाती हूँ।।
सर्दी गर्मी बारिश में भी पंखों से बचाती हूँ।
तिनका- तिनका चुन कर घोंसला अपना बनाती हूँ।।
तुम छोटे-छोटे चूजे हो अभी मैं साथ बतलाती हूँ।
हर हमेशा नहीं रहूँगी पकड़ना तुम्हें बताती हूँ। ।
हमेशा साथ में नहीं रहेंगे प्रकृति का नियम बताती हूँ।
नहीं डरो तुम नहीं झुको तुम अभी मैं साथ में रहती हूँ।।
पिता नीचे से पकड़े दाना मैं चौच में देती हूँ।
माँ की ममता देखकर खुशी के आँसू बहाती हूँ। ।
चित्र आधारित रचना लिख चिड़िया की कहानी बताती हूँ।
चल 'स्नेहा' उठा ले क़लम नई कविता रचाती हूँ।।
श्रीमती रेखा शर्मा 'स्नेहा' मुजफ्फरपुर बिहार
नमन मंच
चित्र आधारित कविता
चिड़िया
देखो कितनी प्यारी चिड़िया,
मन को कितनी भाती चिड़िया।
पंख हैं इसके रंग रंगीले,
काली चोंच बहुत नुकीले।
तिनके चुन घोंसला बनाती,
बच्चों को उसमें सुलाती।
दूर दूर तक उड़ वो जाती।
उनके लिए खाना ले आती।
बच्चों की चिंता सदा करती।
बारिश,और धूप में तपती।
कैसे भी, यत्न कुछ करके,
दाना पानी एकत्रित करती।
बच्चों को उड़ना सिखाती,
स्वावलंबन का पाठ पढ़ाती।
संघर्ष बहुत है जीवन में,
इससे लड़ना उन्हें सिखाती।
मौसम जब सुहावना होता,
खुश बहुत हो जाती चिड़िया।
सावन की रिमझिम बारिश में,
मीठी धुन सुनाती चिड़िया।
पेड़ काट दिए जब लोगों ने,
तबसे बहुत दुखी है चिड़िया।
ऊंचे ऊंचे टावर बन गए,
कितनी मर जाती है चिड़िया।
चिड़िया है रौनक प्रकृति की,
रौनक हमारे वातावरण की।
इनकी ची - ची चू-चू सुनकर,
होती अच्छी शुरुआत दिन की।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
नई दिल्ली
ओ ..माँ मेरी,ओ.. प्यारी माँ
लगी है बहुत भूख.. ..हमें माँ
भूख हमारी ..माँ मिटाओ,
तेरे चोंच में हैं. दाने खिलाओं,
हम न जानते बाहरी दुनिया,
तू ही हमारी ममता की दुनिया
सुरक्षित हैं हम तेरी गोदी में ,
दूर गगन में माँ तू उड़ती है
ढूंढकर आहार तू लाती है,
तू कितनी साहसी ..हो माँ ,
तू कितनी प्यारी.. हो माँ,
भूखी तू, पर हमें खिलाती है
चीं चीं गा कर हमें सुलाती है।
ओ .. माँ मेरी, ओ.. प्यारी माँ
तेरी ममता की दुप्पट्टा ओढके,
सदा करती रखवाली, नींद त्यज के,
हम न जानते और किसी को,
तेरी दुल्हार में हम भूले हमको।
डाॅ. सरोजा मेटी लोडाय।
☘️🌴🌲गौरैया🌲🌴☘️🎄
देख प्यारी गौरैया को जीवन समझ आया,
कैसे कैसे जतन से अपने परिवार को पाया।
आरजु से जुझो, फिर जिंदगी की नई राह ढूढ़ो समझाया
हवाओं को मोड़ो, भुजाओं के बल पर,
गगन आज अपना,धरा आज अपनी,
आरजु ने आज कहा,बैठो न कल पर।
जिंदादिल जिंदगी परोपकार सब पर
चिड़िया ने समझाया अभी तो सुबह है
उमंग भरी हैं,हाथ में तकदीर अपनी है
पसीने के रंगो से तसवीर अपनी,
अभी है समय खींच डालो सुहानी।
सफर ने संदेश दिया,कदम-से-कदम
मिला बढ़ गए स्वर्ग धरती बनाएँ हम
उठो, जिंदगी में नई साँस फूँके मिल हम
नव जीवन सुखमय नव तरंग लाएँ हम
गौरैया कह रही ममता समता फले फूले
सृजन का ही कर्म हो प्रति व्यक्ति ऐसा मन बने
खिल पड़े मन का कमल ऐसी पड़ें रवि राशियाँ
लोक मंगल मे सब बनाओ आरजु से जिंदगी में मंगल।
डॉक्टर रश्मि शुक्ला
प्रयागराज
गौरैया
_______
(20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस)
पेड़ों पर फुदकती हो गौरैया ,
मेरे घर भी आओ तुम ,
मेरे दिल का आंगन सूना है ,
उसमें बाहर कर जाओ तुम ।
दाना खाकर ,पानी पीकर,
तुम फुर्र से उड़ जाती हो,
चीं-चीं-चीं-चीं गीत सुनाकर,
सबका दिल बहलाती हो,
संस्कृति परिवार का हिस्सा हो,
सब की यादों में रहती हो ,
बच्चे पकड़ने दौड़ते हैं,
पर हाथ नहीं तुम आती हो।
मुंह में दाना लेकर अपने ,
बच्चों को खिलाती हो,
गौरैया तुम अपना कर्तव्य ,
बखूबी निभाती हो।
अपने घोसले में रहकर ,
बच्चों को पर प्यार लुटाती हो,
बड़ी लगती है यह दुनिया जब,
गगन में उड़ जाती हो ।
अस्तित्व तुम्हारा खतरे में है ,
संख्या कम होने लगी है,
संकल्प करते हैं गौरैया ,
तुम्हारे आशियाने को,
फिर से बसाएंगे ,
सुंदर चुलबुली गौरैया को ,
मिलकर हम बचाएंगे।
श्रीमती शोभा रानी तिवारी,
619 अक्षत अपार्टमेंट,
खातीवाला टैंक इंदौर मध्य प्रदेश,
मोबाइल 89894 09210
मेरी प्यारी चिड़ियाँ रानी है ।
रोज़ सुबह चीं चीं करती है।
हमें जगाने चिड़ियाँ रानी आती है
फुदक फुदक कर राग सुनाती
बच्चों का मन बहलाती है।
दूर झरोंखे देख पँख फैलाये
संगी साथी संग समय देख चिड़ियाँ रानी आती है
दाना लेने आई चिड़ियाँ रानी
देख वही रुक जाती है
फुदक फुदक कर राग सुनाती है
अन्न दाने चूज़ों के चोंच में डाल
घोंसले से उड़ाना उन्हें सिखाती है
प्रकृति की हरियाली
जल थल नभ में रम जाती हैं
कर्मक्षेत्र जीवन उड़ाना सिखाती हैं
नित नये घोंसले चिड़िया बनाती है
अनिता शरद झा मुंबई
*अग्नि शिखा काव्य मंच*
* गुरु वार -१७/६/२०२१ *
* बिषय - चित्र पर कविता *
माँ तो माँ होती है पालनहार ,
चाहे हो पशु,पक्षी ,या इनसान ?
अपने बच्चों की भूख मिटाती ,
गोरैयो माँ हर दिन बार- बार !
एक चोंच ओर बच्चे चार ,
फिर भी नहीं माँ हार मानती !
चूँ चूँ चीं चीं की रेल -पेल में ,
दाना चुन लाती बार बार !
मेरे बच्चों धिरज रखो ,
सबकी बारी आयेगी !
जब तक मैं हूँ तुम सब पर ,
कोई आंँच कभी ना आयेगी !
अपनें नन्हें पंखों से भर उड़ान ,
मैं दानाँ पानीं लाउँगी !
अपनें नन्हें बच्चों की ?
हर रोज भूख मिटाऊंगी !!
सादर समीक्षार्थ !
सरोज दुगड़
खारुपेटिया, गुवाहाटी
असम
चित्र पर आधारित रचना
☘️चिड़ी मां का रूप,,
💐चिड़िया मां के रूप में बच्चों को सहलाती,
यही मां की पहचान है ,
पल पल फिक्र जताती।
फुलवारी फुलकारी सी फुदकती,
अपनी चोंच से बच्चों को दाना दुनका देती।
पूरी लगन से अपना धर्म निभाती,
बच्चों को खुशी दे खुद को चहकाती।
ना करती परवाह दुनियादारी की, बनती हर पल हितकारी सीl
दाना दुनका उसका खजाना,
जननी बनके प्रीत निभाना,
यही तो उसकी शोभा न्यारी,
लगती सबको प्यारी प्यारी,l
इस रूप में सर्वोत्तम कृति है,
हे तो मां का ही रूप, ना लाए बच्चों पर धूप,
पल-पल उनका साथ निभाती,
उनको ऊंचा नभ दिखलाती।✈️
स्वरचित कविता सुषमा शुक्ला
चित्र आधारित कविता
**अग्नि शिखा मंच**
**१७/०६/२०२१**
चींचीं करती चिडियांआई।
बच्चों केलिए दाना लाई चिड़ियां।
दूर देश को जाती चिडियां
शाम ढले आती है चिडियां।
निस्वार्थ बच्चो को पालती
असीम प्रेम है बाँटती चिडि़या।
दिन भर चारा चुग कर लाती
जाने अपने कब खाती है चिडि़या।
माँ तो सबकी एक जैसी
होती यह हमको बतलाती है
चिडि़या।
अपने बच्चो के लिए सुन्दर
घोसला बनाती चिड़ियां
अपने बच्चो को मेहनत
का पाठ पढ़ाती है चिड़िया।
स्वरचित
बृजकिशोरी त्रिपाठी
गोरखपुर यू.पी
नमन मंच ,,,श्रीराम रॉय
ReplyDelete