अलख जगाती है बेटी
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पिता के घर पली बढ़ी
मेहमान होती है बेटी।
भगवान से जो पाई गई
वरदान होती है बेटी।।
माता के घर की सुन्दर
श्रृंगार होती है बेटी।
पापा के निज प्राणों का
आधार होती है बेटी।।
घर के सारे खुशियों की
आगाज होती है बेटी।
माँ बाप करते जिसपर
वो नाज होती है बेटी।।
माँ बाप के होठों की
मुस्कान होती है बेटी।
खुशियों की जो हर सुबह
शाम होती है बेटी।।
जोड़़ सके जो दिलों को वो
आधार होती है बेटी।
नाश बुराइयों का करती
तलवार होती है बेटी।।
एक घर से दुसरे घर को
आबाद करती है बेटी।
माता पिता को हर बोझ से
आजाद करती है बेटी।।
पापा की पगड़ी का हरपल
मान बढ़ाती है बेटी।
बिदा भी करके टूट सके ना
पाठ पढ़ाती है बेटी।।
माता के आँचल को भीगोती
छोड़ जो जाती है बेटी।
बिदा होकर पापा से जाती
उन्हें रूलाती है बेटी।।
घर आँगन को सूना कर
ससुराल में जाती है बेटी।
घर में मिले संस्कारों को
वचनो को निभाती है बेटी।।
दोनों जहाँ में खुशियों की
अम्बार लगाती है बेटी।
विपदा घर में झाँक सके ना
अलख जगाती है बेटी।।
कवि--- प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )औरंगाबाद
भाव विभोर करती रचना 🙏
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