**२३/०५/२०२१**
1) **जय माँ ज्ञादायिनी**
**बिषय गागर मे सागर भरना**
बात पढा़ई के जमाने की है।हिन्दी की टीचर हिन्दी बहुत अच्छा पढाती थी। हम सब लडकियाँ कबीर के दोहे पढ़ रही थी एक लड़की बोली गूरू जी कबीर को समझना बडा़ मुस्किल है।इसका रहस्य जानना और कठिन है।
जल मे कुम्भं ,कुम्भं मे जल है,भीतर बाहर पानी,फूटा कुम्भं जल जलही समानी यह तथ्य कह्यो ग्यानी।
अब टीचर बोली यह आत्मा और परमात्मा की बात है हम सब एक साथ बोल उठी इसमे तो भगवान का कही नाम नही है।तब टीचर बोली जब तुम लोग कबीर जी को कठीन मान रही हो तो बिहारी जी को कैसे समझोगी वह तो लिखते है तो गागर मे सागर भर देते है।
उन के दोहे बड़े गुढ़़ रहस्य लिए रहते है सतसइया के दोहरे जो ज्यौ ,नाविक के तीर।देखन मे छोटन लगे,घाव करे गम्भीर। हम सब लोग सोचने लगे। यह तो सचमुच बहुत कठिन है।
**स्वरचित**
**बृजकिशोरी त्रिपाठी**
2)$$ चाय दिवस $$
एक शिक्षक और लेखक के बेटे की शादी हुई बहु चाय नही पाती थी।और जैन होने की वजह से नवकारसी करती थी सूर्योदय के 1.30 घंटे तक कुछ नही खाती पीती थी,पर ससुर जी का हुक्म था कि बहु सुबह 5.30 पर सभी को चाय बनाकर देगी और सबके साथ खुद भी पीयेगी ।बहु को मन मारकर सुबह चाय पीना शुरू करना पड़ा पर कुछ दिनो के बाद घर पर कुछ विद्यार्थी आये तो शिक्षक महोदय बच्चो को शिक्षा दे रहे थे कि चाय नही पीना चाहिए चाय से होने वाले नुकसान बता रहे थे ।
बहु चुपचाप सुन रही थी ।
चन्दा डांगी रेकी ग्रैंडमास्टर
चित्तौड़गढ़ राजस्थान
3)संतुष्टी
🌹🌹
मनोज आज कोरोना पीड़ित होने के कारण होस्पितल् मे पड़ा कराह रहा था उसकी हालत काफी नाजुक थी पूरा घर उसके स्वस्थ्य् को लेकर चिन्तित था। दस बारह् दिन में उसे कुछ ठीक लगा तो उसे घर की याद सताने लगी अभी भी उनका आक्सीजन लेबल एकदम डाउन था उसने अपने बड़े भाई को फोन करके कहा कि मै जल्दी ही घर पहुचना चाहता हूँ उनके बडे़ भैया ने अपने छोटे भाई की नाजुक हालत को देखते हुये तत्काल उनके डाक्टर से बातचीत करके उन्हे आक्सीजन सिलेंडर सहित घर पर शिफ्ट करवा लिया । आज मनोज बहुत खुश और संतुष्ट था आखिर वो फाइनली अपने घर अपनो के बीच पहुंच गया था ।
शुभा शुक्ला निशा रायपुर छत्तीसगढ़
4)बहुरिया
कोरोना काल में नई बहु ससुराल आई ।
समय को देखते ,सासु माँ ने कहा - बहुरिया अब तो दाल रोटी से ही जीवन चलाना होगा ।
बहुरिया दाल रोटी बनाते चूल्हे की आग धीमी कर, धुँए के गुब्बार के साथ माँ की रोटी बनाने सीख याद कर रही थी ।
लड़कियाँ तो गीले आटे की तरह होती है ।
जहां जिस हाल में रखे ढल जाती है ।
माँ से मायका होता स से ससुराल होता है ।
आज माँ के हाथ के बने मीठे चावल याद आ रहे थे ।माँ जी बहुत अच्छी है । कुछ कह पाती ,तभी सासु माँ जी की मीठी आवाज सुनाई दी बहुरिया ,
मीठे चावल तो त्योहारों में ही बनते है ।
अनिता शरद झा मुंबई
5)🌹🌹🌹
लघुकथा
मैल
श्यामा की आंखों से अश्रुओं की धार लगातार बह रही थी |
3 दिन से उसका पति सोहन हॉस्पिटल में तड़प रहा था|
कोविड कोरोना ने पूरे देश की आर्थिक हालत बिगाड़ कर रख दी है | 2020 पूरा घर पर बैठकर खाते हो गया था | एक उम्मीद की किरण थी कि , 2021 में सब कुछ ठीक हो जाएगा |
लेकिन यह साल तो और अधिक जानलेवा साबित हो रहा था | दोनों की नौकरी छूट चुकी थी| बच्चों की ट्यूशन और स्कूल फीस में और 1 साल घर पर बैठकर खाने में उनकी जमा पूंजी लगभग समाप्त हो चुकी थी | मदद की कोई उम्मीद नजर नहीं आती थी| दूर - दूर तक गहन अंधकार ही दिख रहा था |
बैंक से अचानक आए मैसेज और अकाउंट में ₹2 लाख जमा होते देखकर श्यामा की आंखें फटी की फटी रह गई |
यह रुपए उसके भाई ने उसके अकाउंट में ट्रांसफर करवाए थे| उसका छोटा प्यारा सा भाई, जिससे पिता की मृत्यु के बाद वह लड पड़ी थी , और बराबर का हिस्सा लेने के बाद भी 3 साल से मुंह तक नहीं देखा था | अपने कुछ नजदीकी लोगों के भड़काने पर...|
श्यामा ने तुरंत अपने भाई को फोन लगाया और फूट-फूट कर रोने लगी | उसके आंसुओं के साथ दिल का मैल भी धुलने लगा |
डॉ. दविंदर कौर होरा
24/2 नार्थ राजमोहल्ला
इंदौर, मध्य प्रदेश
E mail - hora_davinder@rediffmail.com
यह रचना मेरे द्वारा लिखित और अप्रकाशित है |
🌹🌹🌹🌹🌹🌹*इन्सानियत*
' अरे प्रभु अब इन बच्चों को कौन गोद लेता है?' सुधा ने अपनी सहेली से फोन पे बात करते हुए पूछा। सुधा आज ही वाट्सप में मेसेज पढ के अपनी सखी मोहना से पूछा कि 'मोहना आज सुबह वाट्सप में मेसेज पढा कि 5 दिन और 6 महीने के दो बच्चों को कोई गोद लेना चाहते हैतो यहाँ दिया हुआ न० पे बात करे , तू कहती थी न गोद लेने की इच्छुक है।' सुधा की बात का उत्तर देते हुए मोहना ने बताया 'हा इच्छुक हूँ उस न० दो मै अभी फोन लगाती हूँ।' थोडी देर में सुधा ने मोहना को न० मेसेज किया।
सुधा का मन बहुत विचलित हुआ ।सोच रही थी कि कोरोना महामारी के कारण जीव कुल तमें त्राही -त्राही मच रहा है।हर जगह मरण मृदंग बज रहा था।
टी वी आन करके देखी समाचार में वही कोरोना का कोलाहल दिखा रहे थे।नीचे दिए हुए ब्रेकिंग न्युज पढी 'अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए कोप्पल के मठ के सकवामिजी आगे है ,अनाथ बच्चों की पूरी जिम्मेदारी मठ की कमिटी लेगी। मेसेज पढते ही सुधा को थोडा तसल्ली हुई। थोडी देर में मोहना का फोन आया,' सुधा मैं ने बात की मेरे हजबंड भी हा बोले ,आज ही हय दोनो जाकर बच्ची को दखलेते हैं।' मोहना की दँढ निश्चय पर मैं चौंक गयी।मैं ने कहा कि मोहना और एक बार सोच लो ,अभी कोरोना का समय बच्ची को भी टेस्ट करा के गोद ले लो । मोहना ने बताया 'जरुर अभी ईश्वर मुझे मौका दिया ,शादी होके 8 साल हो गये ,सभी ट्रीटमेंट हो गये फिर भी बच्चा नहीं हुआ ,अब मै ने डिसैड किया।' सुधा की आँखो में आँसु छलके, ठीक है मोहना अभी भी इनसानियत जिंदा है। कहकर फोन रखा।
सरोजा मेटी लोडाय कर्नाटक
7 लघुकथा:-*मां बिन जग सूना*
सुखी वृध्दाश्रम से रमेश को फोन आया हो "हॅलो हॅलो आपके माताजी के तबियत ज्यादा खराब अब कोई भरोसा नहीं, हर महीने में मिलने जानेवाला रमेश कोरोना महामारी से विगत चार महिने से नहीं गया था। जब यह बात पत्नी सरला को बताया, वह बोली " अजी सुनते हो, रमेश "झल्लाकर बोला" क्या है? माँ से मिलने जा रे हो तो दुर से ही बात करना!
मास्क के साथ दुपट्टा भी बांधना !जब मां से मिलने गया तो सुरक्षा कर्मि ने गेट पर रोककर कहां" रमेश जी अब मास्क पहन कर के नहीं पुरा चेहरा ही ढक कर जाआे।माँ से मिल ने बेड के पास गया, "माँ ने कहा "में जा रही हु !रमेश फफक-फफक रोने लगा। काश मैं सरला की बात नहीं सुनता तो आज माँ मेरे पास होती, भगवान की पूजा करने से जो,सुख शांति मन को मिलती है,वहीं मां की सेवा करने से मिलती है।
जिसके पास मां है उसकी कद्र करें। मां नहीं तो कुछ नहीं, मां बिन सारा संसार अधुरा है। माँ पिता का सन्मान करो संसार में सब कुछ मिल सकता है लेकिन माँ पिता नहीं मिलते!
सुरेन्द्र हरडे
लघुकथाकार नागपुर
मोबाइल नं 9689467419
8 मेरा भारत महान (लघुकथा)
रितेश अपने ऑफिस के लिए जगह देखने गया।
दूर-दराज में एक जगह उसे पसंद आई, वो सुनसान सी जगह थी, पर वहां पर एक बड़ा सा पेड़ था। वहां आसपास बस्ती के बच्चों ने पेड़ पर तिरंगे की झालर लगा दी थी। बस्ती के बच्चे जय हिंद, जय भारत, के नारे जोर- जोर से लगा रहे थे। रितेश को वह जगह पसंद आ गई ऑफिस के लिए।
बस क्या था कुछ ही दिनों में काम शुरू हो गया और ऑफिस बनने लगा। कुछ दिनों बाद इंजीनियर ने कहा, "साहब अब यह पेड़ काटना पड़ेगा क्योंकि ऑफिस की बिल्डिंग में व्यवधान डाल रहा है"।रितेश बोला" आप तो इंजीनियर हैं, कैसे भी करके पेड़ बचा लें।मैं जब यह जगह देखने आया था, तब इस पेड़ पर मेरे देश का तिरंगा लहरा रहा था, इसलिए मुझे यह जगह बहुत अच्छी लगी थी। इस पेड़ से बस्ती के बच्चों को भी बहुत लगाव और प्यार है, वह रोज पानी भी देते हैं, देखिए कितना हरा भरा हो गया है। इस पेड़ को देखते ही मेरे अंदर भी देश प्रेम की भावना हिलोरें लेने लगती है। जल्दी ही गणतंत्र दिवस आने वाला है। बस्ती के बच्चों के साथ हम गणतंत्र पर्व यहीं पर मनाएंगे। साथ ही इस पेड़ के फल भी खिलाएंगे"
।बस्ती के बच्चे बहुत खुश हो गए। मेरा भारत महान, जय हिंद ,जय भारत ,के नारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा।
डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
23 1 21
9 )

दर्द
देश के बार्डर की चौकी पर दो सैनिक बात कर रहे हैं।
कल दुश्मनों ने फिर गोला बारी की। आलोक ने कहा।
गोपाल ,,हाँ ये लोग समझते ही नहीं,जब देखो तब गोलीबारी करते हैं।
आलोक,,, कल जब राउंड पर गये थे मैं और राजीव तो देखा कि बाउंड्री की तार काटने की कोशिश हुई है,अगर ठीक नहीं किया तो बार्डर पार का दुश्मन कभी भी अंदर आ जायेगा।
गोपाल ,,रिपेयरिंग टीम बस पहुंचती ही होगी।
तभी चौकी के सामने एक गोला आ कर फटा।
गोपाल ,आलोक और राजीव ने अपनी अपनी मशीन गन संभाल ली। देखा वो 2 थे । गोपाल की गोलियों से वो मारे गये। उनके पीछे और 3,,4 लोग दिखे ।जो पास आते ही जा रहे थे।
राजीव ,आलोक ने पुकारा
एक दम से आगे मत बढ़ो खतरा है। उन्हे थोड़ा और पास आने दो ,फिर उन्हें देख लेंगे।
अरे छोड़ो ना अभी ही उनको खत्म किये देता हूँ।
आलोक ने कहा,,,राजीव थोड़ा रुक जाओ।इन के पीछे पता नहीं कितने होंगे। हमारे सैनिक भी आते होंगे।
राजीव के एक कदम आगे बढ़ते ही एक सनसनाती गोली उसकी छाती में लगी और वो गिर गया । आलोक और गोपाल ने जैसे अपनी मशीन गन खोल दी। देखते ही देखते वो चारो मारे गये।
तभी एक दुश्मन सैनिक के वायरलेस से आवाज़ आने लगी , चौकी फतह कर लिये ना ।आज ये काम करना ही है।ऊपर से ऑर्डर है।
राजीव के मृत शरीर को देख कर लगा।एक माँ इधर रोएगी तो 6 परिवार उधर भी रोयेंगे।
जाने दुश्मन को इतना लालच क्यों है।
आसमान तो बार्डर के इस पार भी जैसे खूँन से
लाल है और बार्डर के उस पार भी।
नीरजा ठाकुर नीर
पलावा डोंबीवली
महाराष्ट्र
23-5-2021
10
काव्य संगम
जय माँ शारदे/ मंच को नमन
दिनांक- 7/2 /2021
लघु कथा- मोबाइल और बच्चे
मम्मी- मम्मी मुझे मोबाइल दो न!
रिशु तुम मोबाइल का क्या करोगे,
अभी अभी तो तुमने पढ़ाई की है मोबाइल से!
मम्मा मुझे गेम खेलना है,
हाय बच्चा तूने अभी तो पढ़ाई की है, मेरे लल्ला, आँखें खराब हो जाएगी ज्यादा मोबाइल देखना अच्छी बात नहीं है बच्चा!
रानू ने अपने 5 साल के बेटे रोहित को समझाने की कोशिश की!
नहीं मुझे चाहिए मुझे चाहिए मुझे गेम खेलना है दो मम्मा- मम्मा दो मोबाइल दो,आआऊऊईई आँखें मलते हुए
रिशु जमीन पर पसर कर पैर घसीट ने लगा!
रिशु सुने बच्चे ऐसे नहीं करते रानू ने उसे समझाने की कोशिश की, पर रिशु मान ही नहीं रहा था!
तड़क एक थप्पड़ रिशु के गाल पर पड़ा! और वहाँ से दिशु रोते हुए दादी के कमरे में घुस गया!
रिशु की दादी सरला जोर से चिल्लाई मार दिया मेरे बच्चे को,
फिटे मुँह तेरा इतने छोटे बच्चे को कोई मारता है क्या!
क्या करूं माजी मान ही नहीं रहा था समझाने पर रानू ने कहा!
कहाँ जाएगा बच्चा घर के बाहर जाए तो कोरोना है, घर में रहे तो तुम इसे मारती हो आजकल के बच्चे तो हो गए धोबी के घर के न घाट के!
अपने दिन याद करो अपने दिन सरला रानू को 10 बात सुनाते हुए रूम में चली गई!
और इधर रानू अपना सर पकड़ कर बैठ गई हाय कोरोना तेरा सत्यानाश जाए, तुझे नर्क में भी जगह न मिले, तूने हर बच्चों को मोबाइल की लत लगा दी।
तो दोस्तों फिर मिलते हैं, अगली लघुकथा के साथ।
🌹🌹समाप्त🌹🌹
रेखा शर्मा स्नेहा मुजफ्फरपुर बिहार
11
जय मां शारदे
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शीर्षक - *दुश्मन*
विधा - लघु कथा
प्रकाश और दीपक बहुत ही घनिष्ट मित्र हैं छोटे से ही वो साथ-साथ पढ़े साथ-साथ ही उन्होंने युवावस्था और अपने गृहस्थी के दिन देखें ।दोनों में बहुत ही अधिक प्यार था। लेकिन दोनों घर के छोटे भाई बहनों के प्रेम संबंधों को लेकर आपस में *दुश्मनी* हो गई। और ये *दुश्मनी* इतनी अधिक बढ़ी कि वो एक दूसरे का चेहरा भी देखना नहीं चाहते थे ।यहां तक कि उन्होंने अपने घर के प्रवेश द्वार भी भिन्न दिशाओं में कर लिए। एक दिन प्रकाश अपनी छत पर बैठा हुआ था। तभी उसने देखा कि दीपक के दोनों बच्चे अपनी छत पर पतंग उड़ा रहे हैं।वो आराम से देख रहा था और अपने और प्रकाश के पतंग उड़ाने के दिन याद कर रहा था। तभी उसने देखा कि उसके छोटे बेटे का पैर फिसल गया है और वो नीचे गिरने लगा ।तभी गिरते हुए लड़के ने एक छड़ पकड़ ली ।यहां से प्रकाश चिल्लाया। बेटा पकड़े रहना मैं अभी आ करके बचाता हूं और वो अपने घर से दौड़ता हुआ दीपक के घर के अंदर पहुंचा । दीपक के घर के सारे लोग बाहर बैठे हुए थे ।उन्होंने प्रकाश को दौड़ते हुए ऊपर जाते देखा ।सभी क्या हुआ- क्या हुआ चिल्लाये और उसके पीछे-पीछे दौड़े ।लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया ।वो सीधा ऊपर पहुंचा और उसने लड़के को बचा लिया ।बच्चे को ऊपर खींच कर जब वो पलटा तो दीपक के घर के सभी लोग उसे कृतज्ञता भरी नजरों से देख रहे थे। इसीलिए कहते हैं की इंसानियत से ऊपर कोई चीज नहीं होती ।
स्वरचित रचना ,
रागिनी मित्तल कटनी,मध्य प्रदेश
12
रिश्तो की डोर ( लघुकथा )
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मां के ना रहने के बाद रक्षाबंधन में पहली बार सुनीता 4 वर्ष के बेटे देवांश के साथ अपने मायके जा रही थी ।अंदर ही अंदर एक अजीब सा डर और घबराहट हो रही थी,कि पता नहीं भैया और भाभी मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे। मेरा वैसा सम्मान होगा भी या नहीं ,जैसे मां के रहने पर होता था ।इसी सोच में डूबी थी ,कि स्टेशन आ गया ।जैसे हीइधर उधर नजर दौड़ाई वैसे ही कुछ परिचित आवाज कानों में सुनाई दी।सुनीता लाओ सामान मुझे दे दो । जैसे ही आगे बढ़ी तो सामने भैया को देखकर अच्छा लगा ।घर पहुंचते ही भाभी ने बहुत अच्छा व्यवहार किया ।राखी के दिन सुनीता मां की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी,तभी भैया ने आवाज लगाई और उस उसकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। भैया ने दुलारते हुए कहा, बहना हमारे रहते हुए तुम अपने को अकेला मत समझना। उसने भैया को राखी बांधी। भैया, भाभी के व्यवहार से संतुष्ट थी 2 दिन बाद जब वह वापस जाने के लिए तैयार हुई ,तो भाभी ने बहुत सुंदर सी साड़ी और ₹2000 उसके हाथ में रखे। दैवांश को ₹1000 दिया ,साथ में रास्ते के लिए टिफिन व मिठाइयां दी।भैया स्टेशन तक छोड़ने आया ।जब रास्ते में वेदांश को भूख लगी और टिफिन खोला तो उसे पूरी ,सब्जी मिठाई अचार खाने लगे ,तो उस खाने से रिश्तो के मिठास की खुशबू आ रही थी ।
श्रीमती शोभा रानी तिवारी,
619 अक्षत अपार्टमेंट खातीवाला टैंक ,
इंदौर मध्य प्रदेश,
मोबाइल 8989409210
13
लघुकथा
******* चरित्रहीन *****
सामान से भरा ट्रक जैसे ही सोसाइटी में दाखिल हुआ, सब अपने अपने फ्लैट से झाँकने लगे ।पीछे टैक्सी से मीनल उतरी ।आकर्षण और सादगी भरा व्यक्तित्व, सलीके से पहनी हुई सूती साड़ी, अच्छे से सँवरे हुए बाल ।जब वह अपने नये किराये के फ्लैट में दाखिल हुई, पड़ौस वाली बन्टी की मम्मी उससे मिलने आई, शायद पूछ ताछ करने आई,कहाँ से आई है,क्या नाम है ,नौकरी करती है क्या ।थोड़ी देर बात करके फिर अन्य महिलाओं को रस ले ले कर उसका परिचय दिया ।अकेली रहती है, किसी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर है।माँग तो सूनी है शायद कुँवारी है या विधवा ।जैसा कि होता है कुछ महिलाएँ खाली समय में उस पर नज़र रखने लगीं ।चूँकि मीनल मितभाषी थी इसलिए किसी से घुल मिल नहीं पाई।कुछ दिनो बाद बन्टी की मम्मी ने अन्य महिलाओं से कहा ये शाम को।आते ही कुछ देर बाद थैला लेकर घर से निकलती है,रात को पता नहीं कब घर आती है । रात को कहाँ जाती है ।धीरे-धीरे ये बात सारी सोसाइटी में फैल गई ।अब पुरूष भी रूचि लेने लगे ।और बिना तर्क किये ,बिना सोचे समझे उसे चरित्र हीन की उपाधि दे डाली ।सबने मिलकर तय किया एसी औरत को सोसाइटी में रहने नहीं देंगे । फिर उन लोगों ने पीछा करने का फैसला किया ।जब मीनल थैला लेकर घर से निकली ,दो तीन महिला और पुरुष उसके पीछे चलने लगे ।मीनल सधे हुए कदमों से पीछे बस्ती की तरफ गई ।और एक कमरे का दरवाज़ा खोल अन्दर दाखिल हुई।पीछा करने वाले सोसाइटी के लोग थोड़ा सा दरवाज़ा खोल अन्दर झाँकने लगे ।अन्दर एक बुजुर्ग दम्पति बैठे थे । मीनल ने एक दवाई की शीशी बुज़र्ग को दी और बोली बाबा ये खाँसी की दवाई लाई हूँ इसको लेने से आपको आराम मिलेगा ।और अम्मा आपकी नीन्द की गोली ।आधी ले लेना नीन्द अच्छी आऐगी ।बाबा ने उसके सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख कर बोला,बेटी कितनी सेवा करती हो, हमारी सन्तान तो हमें मरने के लिये छोड़ गई, तुम हमारी कुछ न होते हुए भी हमारी इतनी सेवा करती हो ।समय पर खाना दवाई, ।तभी मीनल बोली बाबा मै बहुत गरीब घर से थी। मेरे बीमार माता पिता बिना किसी ईलाज के भूखे प्यासे इस दुनियाँ से चल बसे,मै नहीं चाहती कि आप दोनों भी ,,,और वह सिसक पड़ी ।बाहर खड़े उसकी सोसाइटी के लोग जो गुस्से में उसका पीछा करते हुए आए थे,उनकी आँखों में पछतावे के आँसू थे।।। ।
स्वरचित मौलिक
वीना अचतानी,
जोधपुर (राजस्थान) . ... ..
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लघु कथा
क्या करें ,सावन का महीना हमको तो डूबा कर ले जाता है ,गोड तक पानी घर में घुस आया सारी रात चांग पर बैठे रहे ,खाना भी नहीं खाया | कामवाली बाई ..राधा मुझसे कह रही थी .. सही तो कह रही थी |सावन का महीना अमीरों के लिए उमंग का महीना होता है ,गरीब तो बिचारे रत को चैन से सो भी नहीं पाते |कब तूफान ,आंधी आ जाये और घर की छत उड़ा ले जाये ,पानी घर में घुस आये यही चिंता रत भर सताती रहती है| दिल को बड़ी ठेस पहुंची ,सच जहाँ एक ओर सावन की बहार होती है वहीँ दूसरी ओर ...बीमारी ,गरीबी और भुखमरी |
स्मिता धिरासरिया ,मौलिक
बरपेटा रोड